ब्रज में लठ्ठमार और लड्डूमार होली क्यों मनाई जाती है
होली के त्योहार(Holi festival) को रंगों का त्योहार कहा जाता है। इस त्योहार में लोग गिले शिकवे भूला कर एक दूसरे को गले लगा लेते हैं और खुशी से एक दूसरे को रंग लगाते है।
ब्रज मंडल में होली का एक अलग ही आनंद है। वहां होली श्री राधा कृष्ण के प्रति प्रेम, भक्ति, आस्था और श्रद्धा की प्रतीक है। इसलिए अगर आप श्री राधा कृष्ण के भक्त हैं और होली के शौकीन हैं तो ब्रज की होली का आनंद आपके लिए एक आलौकिक अनुभूति बन सकता है। जहां श्री राधा कृष्ण की भक्ति से सराबोर रंग बरसते हैं।
Braj Holi 2024:ब्रज में बसंत पंचमी के दिन होली रंगोत्सव शुरुआत होती हैं और रंग पंचमी को होली का समापन होता है। ब्रज में 40 दिवसीय फाग महोत्सव चलता है।
बृज धाम में बसंत पंचमी के दिन से ही मंदिरों में होली खेलने की शुरुआत हो जाती है। बांके बिहारी जी को बसंती पोशाक धारण कराई जाती है। बसंत पंचमी के दिन बांके बिहारी जी कमर में फेंटा बांधकर भक्तों के साथ होली खेलेंते है।
बांके बिहारी मंदिर में शृंगार आरती के बाद बांके बिहारी जी को गुलाल का टीका लगाकर होली की विधि शुरुआत की जाती है। उसके पश्चात मंदिर प्रांगण में उपस्थित श्रद्धालुओं पर बसंती गुलाल उड़ेला जाता है। इस उड़ते हुए गुलाल को अपने आराध्य देव के प्रसाद के दौर में समझते हैं ।
ब्रज में राधा कृष्ण के प्रेम स्वरूप खेली जाने वाली होली की धूम बरसाना, नंदगांव, मथुरा, वृंदावन सहित सभी मंदिरों में होती है।
ब्रज की होली के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और होली के ब्रज की होली के आलौकिक दृश्य का आंनद उठाते हैं। मानो पूरा ब्रज मंडल राधा कृष्ण के नाम की मस्ती में सराबोर हो। इस आर्टिकल में हम आपको ब्रज में मनाई जाने वाले होली पर्व की लिस्ट और उनके मनाएं जाने के पीछे की मान्यताओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को दूज का पर्व मनाया जाता है। फूलेरा दूज होली के पर्व का आगमन माना जाता है। फूलेरा दूज का पर्व श्री राधा कृष्ण को समर्पित है। इस दिन राधा कृष्ण मंदिरों में उनके विग्रह को फूलों से श्रृंगार किया जाता है। फूलेरा दूज मथुरा, वृंदावन के मंदिरों में विशेष रूप से मनाई जाती है।
ब्रज मंडल होली महोत्सव 2024
नंदगांव में फाग आमंत्रण बरसाना लड्डू मार होली 17 मार्च 2024 रविवार
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा रानी के गांव बरसाना से भगवान श्री कृष्ण के नंद गांव में होली का निमंत्रण(Faag Amantran) भेजा जाता है।
रानी की सखी का वहां भव्य स्वागत किया जाता है। शाम को नंद गांव से श्री राधा रानी के मंदिर में होली निमंत्रण स्वीकृति का संदेश लेकर पांडा जाता है। राधा महल में स्वीकृति का संदेश लाने वाले पांडे को खाने के लिए लड्डू दिए जाते हैं।
लड्डू मार होली का उत्सव बरसाने से होली का आमंत्रण नंदगांव भेजने और फिर नंदगांव से आमंत्रण स्वीकार करने की खुशी में मनाया जाता है।
माना जाता है यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। एक बार नंद बाबा को बरसाने से होली खेलने का निमंत्रण आया तो नंद बाबा ने निमंत्रण स्वीकृति की सूचना एक पांडा के माध्यम से वृषभान जी को भिजवाई। बृजभान जी ने नंद बाबा के गांव से आए पांडा को लड्डू खाने को दिए। उसी समय गोपियों ने पांडे के मुंह पर गुलाल लगा दिया।
पांडा के पास गुलाल नहीं था उसने खाने के लिए दिए लड्डूओं को ही गोपियों पर फेंकना शुरू कर दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। हर साल बरसाना में लड्डुओं से यह होली(Barsana Laddu mar Holi) खेली जाती है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं।
बरसाना लट्ठमार होली 18 मार्च सोमवार
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बरसाने में लट्ठमार होली(Barsana Lathmar Holi) खेली जाती है। बरसाना की लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। जिसे देखने के लिए देश विदेश से श्रृद्धालु बरसाना आते हैं। लट्ठमार होली श्री राधा कृष्ण को समर्पित है।
लट्ठमार होली में नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती है क्योंकि श्री कृष्ण नंदगांव और राधा रानी बरसाने की थी।
माना जाता है कि श्री कृष्ण राधा रानी और गोपियों से होली खेलने बरसाना पहुंच जाते और जब वह उनके साथ ठिठोली करते तो राधा रानी और गोपियां उन पर डंडे बरसाती है और ग्वाल बाल अपनी रक्षा के लिए ढाल का प्रयोग करते हैं।
बस तभी से यह लठ्ठमार होली की परम्परा बरसाना में चली आ रही है। होली खेल रहे पुरुषों को हुरियारें और स्त्रियों को हुरियारन कहते हैं। होली खेलने के लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है।
नंदगांव से जब हुरियारे रंग से भरी पिचकारियों को लेकर बरसाना पहुंचते हैं तो बरसाने की हुरियारन उन पर खुब लाठियां बरसाती है । हुरियारे को ढाल के सहारे उन लाठियों से बचना होता है और हुरियारिनों को रंगों से भिगोना होता है।
बरसाना की लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है। इस होली को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आकर इस आलौकिक दृश्य का आंनद मानते हैं।
नंदगांव लट्ठमार होली 19 मार्च मंगलवार
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को नंदगांव में लट्ठमार(Nandgaon Lathmar Holi) होली खेली जाती है। लट्ठमार होली श्री राधा कृष्ण के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। बरसाना की लट्ठमार होली के अगले दिन नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाती है। नंदभवन में बरसाना के हुरियारों का स्वागत होता है।
नंदगांव की हुरियारिनें बरसाना के हुरियारों पर लाठियां बरसाती है। श्री कृष्ण का बचपन नंदगांव में बीता था। द्वापर युग से लट्ठमार होली की परंपरा चली आ रही है।
रंगभरनी एकादशी श्रीकृष्ण जन्म स्थान मथुरा 21 मार्च वीरवार
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसका आनंद लेने के लिए श्रृद्धालु दूर दूर से आते हैं। रंग भरनी एकादशी के दिन केसर और टेसू के फूलों से रंग और गुलाल बनाया जाता है। श्रद्धालु सांस्कृतिक कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण की मयूर, फूलों की होली का मजा लेते हैं।
गोकुल छड़ीमार होली 22 मार्च शुक्रवार
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को छड़ी मार होली(Gokul chhadi mar Holi)खेली जाती है। इसदिन गोपियां होली खेलने आए कान्हाओं पर छड़ी बरसाती है। माना जाता है कि श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को लाठी से चोट ना लग जाए इसलिए गोपियां लाठी के स्थान पर छड़ी से होली खेलती है।
गोकुल में बहुत उत्साह से धूमधाम से छड़ीमार होली खेली जाती है। जहां भी होली देखने देश विदेश से श्रृद्धालु आते हैं।
गोकुल में श्री कृष्ण कृष्ण का बचपन बीता था। छड़ी मार होली के दिन गोपियां बाल कृष्ण के साथ हाथ में छड़ी लेकर होली खेलती है। श्री कृष्ण बचपन में बहुत शरारती थे। गोपियों को श्री कृष्ण तंग करते थे। गोकुल में छड़ी मार होली की शुरुआत यमुना किनारे स्थित नंदकिले के नंद भवन में ठाकुर जी को राजभोग लगाकर की जाती है। नंदगांव में छड़ी मार होली की तैयारियां 10 दिन पहले हो जाती है।
फालेन गांव होलिका दहन 24 मार्च रविवार
मथुरा से कुछ दूरी पर स्थित फालेन गांव में यह प्रथा चली आ रही है कि होलिका दहन के समय पांडा धधकती आग की लपटों के बीच से निकल कर सुरक्षित पार कर लेता है।
होलिका दहन फालेन गांव(Falan Gaon Holika Dahan)में प्रह्लाद मंदिर के समीप मनाया जाता है। जब होलिका दहन का मुहूर्त होता है तो पंडा प्रह्लाद कुंड में स्नान करता है और पंडा की बहन प्रह्लाद कुंड से पानी लेकर होलिका दहन स्थल तक डालती है जिस पर चलकर पंडा होली का कुंड से आते हैं और आग की लपटों में से गुजर कर दूसरी और निकल जाते हैं । इसे प्रह्लाद मंत्र का चमत्कार कहा जाता है ।
इसके पीछे एक मान्यता है कि गांव के निकट एक साधु को पेड़ के नीचे मूर्ति दबे होने का सपना आया। पंडा परिवार ने जब साधु के सपने में बताई की जगह पर खुदाई की तो नरसिंह भगवान और प्रह्लाद जी की प्रतिमाएं प्राप्त हुई। उसने परिवार को आशीर्वाद दिया था कि इस परिवार का जो भी व्यक्ति शुद्ध हृदय से धधकती हुई होली से गुजरेगा उसके शरीर में प्रह्लाद जी स्वयं विराजमान रहेंगे। उस पर अग्नि का कोई भी प्रभाव नहीं होगा। उसके पश्चात वहां मंदिर और प्रह्लाद कुंड बनाया गया। इस प्रथा पंडा परिवार में आज भी चली आ रही है।
द्वारकाधीश मंदिर होली 25 मार्च सोमवार
द्वारिकाधीश मंदिर में होली(Dwarkadhish mandir Mathura Holi) की अनोखी छटा देखने को मिलती हैं। द्वारिकाधीश मंदिर में होली पर्व को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। द्वारिकाधीश मंदिर में ठाकुर जी बगीचे के माध्यम से भक्तों संग होली खेलते हैं। मंदिर को बगीचे की तरह सजाया जाता है। श्रृद्धालुओं का मानना है कि जैसे होली ब्रज में खेली जाती है वैसी अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलती।
दाऊजी का हुरंगा 26 मार्च मंगलवार
होली के पश्चात मथुरा के दाऊजी मंदिर बलदेव गांव में दाऊजी का हुरंगा(Dauji ka Huranga) खेला जाता है। इस उत्सव में हुरियारे हुरियारनों पर रंग गुलाल डालते हैं और हुरियारिनें उनके वस्त्र फाड़ कर उसके ऊपर कोड़े बरसाती हैं। इस उत्सव को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं।
दाऊजी भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे जो कि शेषनाग के अवतार माने जाते हैं और दोपहर को शुरू होता है। गोप बलराम जी को खेलने के लिए निमंत्रण देते हैं और उसके पश्चात हुरियारिनों पर रंग डालते हैं। दाऊ का हुरंगा मंदिर प्रांगण में खेला जाता है। रंग टेसू के फूलों से तैयार किया जाता है।
हुंरंगा के नायक दाऊजी महाराज होते हैं। हुरंगा खेलने के लिए ब्रज की महिलाएं फारिया लहंगा परंपरागत वस्त्र और परम्परागत आभूषण पहनती हैं। पांडे समाज के लोग खेलते हैं । हुरंगे की तैयारी कई दिन पहले शुरू हो जाती है। दाऊजी का हुरंगा देखने के लिए श्रद्धालु मंदिर की छतों पर से इस दृश्य को देख कर आनंदित होते हैं।
रंग पंचमी रंगनाथ मंदिर में होली
रंग पंचमी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन श्री कृष्ण ने राधा जी के साथ होली खेली थी। इसलिए इस दिन उनको रंग गुलाल अर्पित किया जाता है। इसदिन अबीर गुलाल शरीर पर ना लगा कर वातावरण में बिखेर दिया जाता है। यह आपसी प्रेम और सौहार्द को दर्शाता है। शास्त्रों में इस त्यौहार को अनिष्टकारी शक्तियों से विजय पाने का दिन भी कहा गया है। बसंत पंचमी पर होने वाले रंगोत्सव का रंग पंचमी के दिन रंगनाथ मंदिर में समापन होता है।
ब्रज में होली श्री राधा कृष्ण को समर्पित है। अगर आप श्री राधा कृष्ण के भक्त हैं और होली के शौकीन हैं तो ब्रज की होली का आनंद आपके लिए एक आलौकिक अनुभूति बन सकता है। इसलिए आप इस बार होली ब्रज में श्री राधा कृष्ण संग खेलने के लिए ब्रज में होली मानने का प्रोग्राम प्लान कर सकते हैं।
ब्रज की होली लिस्ट 2024
रविवार 17 मार्च 2024 : नंदगांव फाग आमंत्रण, बरसाना लड्डू मार होली
सोमवार 18 मार्च : बरसाना लट्ठमार होली
मंगलवार 19 मार्च : नंदगांव लट्ठमार होली
वीरवार 21 मार्च : रंग भरनी एकादशी श्रीकृष्ण जन्म स्थान मथुरा
वृन्दावन बांके बिहारी मंदिर फूलों वाली होली
शुक्रवार 22 मार्च : गोकुल छड़ीमार होली
रविवार 24 मार्च : फालेन गांव होलिका दहन
सोमवार 25 मार्च : धुलंडी अबीर गुलाल होली, द्वारकाधीश मंदिर मथुरा होली
मंगलवार 26 मार्च : दाऊजी का हुरंगा
Also Read
राधा नाम की महिमाश्री कृष्ण मधुराष्टकं लिरिक्स
Message to Author