DAMODAR LEELA KRISHNA STORY IN HINDI

 DAMODAR LEELA KRISHNA STORY IN HINDI KARTIK MAAS KO DAMODAR MAAS KYUN KAHA JATA HAI श्री कृष्ण की दामोदर लीला की कथा कहानी 

Kartik month: श्री कृष्ण की दामोदर लीला 

हिंदू सनातन धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु, श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करना विशेष फलदाई माना जाता है। कार्तिक मास को दामोदर मास भी कहा जाता है। कार्तिक मास में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दामोदर लीला की थी इसलिए कार्तिक मास को दामोदर मास कहा जाता है। दामोदर मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। इस मास में तुलसी माता को दीप दान करना चाहिए। क्योंकि तुलसी श्री हरि विष्णु और श्री कृष्ण को बहुत प्रिय है। दामोदर मास की देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह शालीग्राम से करवाने पर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

श्री कृष्ण को दामोदर क्यों कहा जाता है 

krishna story in hindi:श्री कृष्ण को हम कन्हैया, कुंज बिहारी, राधे श्याम, बांके बिहारी, नंदलाल, कई नामों से जानते हैं। उनमें से श्री कृष्ण का एक नाम दामोदर है। मां यशोदा ने श्री कृष्ण को रस्सी से बांध दिया था तब उनका नाम दामोदर पड़ा। 

मां यशोदा श्री कृष्ण की शरारतों से तंग आ चुकी थी। एक दिन श्री कृष्ण की शरारतों से तंग आकर मां यशोदा ने श्री कृष्ण को रस्सी से बांधना चाहा क्योंकि श्री कृष्ण स्वयं तो माखन खाते साथ में अपने सखा और बंदरों को भी खिलाते । जिस भी रस्सी से श्री कृष्ण को बांधती वह दो उंगुल छोटी पड़ जाती। 

ऐसा करते रहते मां यशोदा ने बहुत सी रस्सियों को बांध दिया लेकिन रस्सी फिर भी छोटी ही रह जाती। लेकिन जब श्री कृष्ण ने देखा कि मां शिथिल पड़ गई है तो वह रस्सी से बंध गए। तभी से श्री कृष्ण का नाम दामोदर पड़ा। ‌

दाम का अर्थ होता है 'रस्सी' और उदर का अर्थ होता है 'पेट'। पेट से रस्सी से बंधने के कारण उनका नाम दामोदर पड़ा।

मां यशोदा श्री कृष्ण को ओखली से बांध कर अपने काम में लग गई। श्री कृष्ण ओखली खींच कर आंगन में लगे यमलार्जुन वृक्षों तक ले गए। उन्होंने ओखली को दोनों वृक्षों में अड़ा कर जोर से झटका दिया। जिससे दोनों वृक्ष उखड़ कर नीचे गिर गए। उन वृक्षों से दो सुंदर पुरुष निकले वह श्री कृष्ण को प्रणाम कर अपने लोक चले गए।

श्री कृष्ण ने यमलार्जुन के वृक्षों का उद्धार क्यों किया 

यह दोनों कुबेर के पुत्र नलकुबेर और मणिग्रीव थे जो कैलाश पर्वत पर रहते थे। वह दोनों  भगवान शिव के भक्त थे और उनकी कृपा से उनको अथाह धन संपदा प्राप्त हो गई। धन वैभव के मद में चूर होकर उन्होंने शिव भक्ति छोड़ दी और अपना जीवन भोग विलास में बिताने लगे।

एक बार यह दोनों नग्न‌ होकर स्त्रियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहे थे संयोग वश नारदजी वहां से गुजरे। स्त्रियों ने नारद जी को देखकर वस्त्र धारण कर लिए। लेकिन यह दोनों अभिमान वश वहां पर ही खड़े रहे। 

उनकी उदण्डता को देखकर नारद जी ने उन दोनों को श्राप दिया कि लोकपाल के पुत्र होकर भी तुम दोनों ने अभिमान वश कपड़े नहीं पहने और वृक्ष की भांति खड़े रहे। इसलिए तुम दोनों गोकुल में जाकर वृक्ष बन जाओ। 

दोनों को जब अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने नारद जी से क्षमा मांगी और अपने उद्धार का उपाय पूछा।

नारद जी ने उनके क्षमा मांगने पर कहा कि जब श्री कृष्ण द्वापर में गोकुल में अवतार लेंगे तब तुम दोनों का उद्धार होगा। उसके पश्चात वह दोनों गोकुल में पेड़ बन गए। 

मां यशोदा ने जब श्री कृष्ण को ओखली से बांधा तो उन्हें उन दोनों का ध्यान आया । श्री कृष्ण ओखली को खींच कर वहां ले गए और दोनों पेड़ों में अड़ा कर उन्हें गिरा दिया। उन वृक्षों में से दो सुंदर पुरुष निकले और उन्होंने श्री कृष्ण की स्तुति की। वह दोनों कहने लगे कि नारद जी के कारण ही हम दोनों आपके दर्शन कर पाए हैं। वह दोनों श्री कृष्ण को शिश निवा कर अपने लोक चले गए।

वृक्षों के गिरने की आवाज सुनकर मां यशोदा दौड़ी आई और श्री कृष्ण को गोद में उठा गले से लगा लिया और उनको सकुशल देखकर उनकी बलईया लेने लगी।

श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में दिवाली के दिन यह लीला की थी इसलिए इस मास को दामोदर मास भी कहा जाता है। दामोदर मास में श्री कृष्ण की दामोदर लीला और श्री कृष्ण दामोदर अष्टकम पढ़ना विशेष फलदाई माना जाता है। 

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