MAHARANA PRATAP BIOGRAPHY IN HINDI

MAHARANA PRATAP BIOGRAPHY IN HINDI maharana pratap story in hindi maharana pratap life story महाराणा प्रताप का जीवन परिचय

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय

महाराणा प्रताप के शौर्य से तो सभी भारतीय परिचित हैं। हल्दी घाटी के युद्ध में उनके शौर्य और वीरता की गाथा गाई जाती है। महाराणा प्रताप अपने अनुपम शौर्य और पराक्रम के लिए समस्त विश्व के लिए एक मिसाल है। उन्होंने जंगलों में रहना स्वीकार किया लेकिन मुगल बादशाह की अधीनता स्वीकार नहीं की।

महाराणा प्रताप की वीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब्राहिम लिंकन ने अपनी बुक ' प्रेसिडेंट ऑफ यू एस ए' में लिखा है कि एक बार वह भारत दौरे पर आने वाले थे। उन्होंने अपनी मां से पूछा था कि," भारत से आपके लिए क्या लाऊं? उनकी मां ने कहा था कि," उस महान राष्ट्र के हल्दीघाटी से एक मुट्ठी मिट्टी ले आना। जहां के राजा ने आधे हिंदुस्तान के ऊपर अपनी मातृभूमि को चुना।"

 अकबर ने उन्हें प्रस्ताव भेजा था कि,"अगर वह उनकी अधीनता स्वीकार कर लेते हैं तो उनको आधा हिन्दुस्तान सौंप दिया जाएगा परंतु उनको अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।"

महाराणा प्रताप जब राजगद्दी पर बैठे तो उस समय मुगल बादशाह अकबर का शासन था। अकबर ने बहुत से राज्यों को अपने अधीन कर लिया था। उसने महाराणा प्रताप के पास भी बहुत से प्रस्ताव भेजे लेकिन महाराणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की।

Maharana Pratap Ka Bachpan महाराणा प्रताप का बचपन 

 महाराणा प्रताप का जन्म उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश में हुआ था। हिन्दू पंचांग विक्रम संवत के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को 9 मई 1540 ई. में कुम्भलगढ राज्य राजस्थान में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह और माता का नाम रानी जयवंता बाई था। 1568 से 1597 तक शासन किया। उनकी शासन अवधि 29 वर्ष थी। बचपन में उनको कीका नाम से पुकारा जाता था।

महाराणा प्रताप की जन्म तिथि को उनकी जयंती के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। उनकी जयंती वर्ष में दो बार मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 9 मई को और हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को।

महाराणा प्रताप उदय सिंह के पुत्र और राणा सांगा के पौत्र थे। त्याग और बहादुरी के किस्से सुनाते ही उनका बचपन बीता था। धन्ना धाय ने उनके पिता उदय सिंह के प्राण अपने पुत्र की जान देकर बचाए थे।

Maharana Pratap Ka vayaktitav महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व 

महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था। महाराणा प्रताप की लंबाई 7'5" थी और उनका वजन 110 किलो था। महाराणा प्रताप दो म्यान वाली तलवार और 80 किलों का भाला रखते थे। उनके कवच का वजन भी 80 किलों था। उनके कवच, भाले, ढाल और कवच कुल वजन 207 किलोग्राम था। महाराणा प्रताप जब इस भारी भरकर कवच ,भाले और तलवार के साथ युद्ध भूमि में जाते थे तो शत्रु उनको देखकर बैचेन हो उठते थे। महाराणा प्रताप को शस्त्रों की शिक्षा श्री जेमल मेड़तिया ने दी थी। 

 महाराणा प्रताप की 14 पत्नियां थीं और उनके 17 बेटे और 5 बेटियां थीं। उनकी पहली पत्नी का नाम अजबदेह था और अजबदेह पवांर उनकी सबसे प्रिय रानी थी‌। उसके पुत्र का नाम अमर सिंह था। अमर सिंह ही महाराणा प्रताप का उत्तराधिकारी था।

Maharana Pratap Ka Rajabhishek महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक 

महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। उनके पिता उदय सिंह ने अपनी मृत्यु से पहले उनके भाई जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। लेकिन राजपूत सरदारों को लगता था कि महाराणा प्रताप ज्यादा योग्य शासक बनेंगे और वह प्रजा में भी बहुत प्रिय थे। इसलिए कुछ राजपूत सरदारों ने मिलकर 1 मार्च 1576 को महाराणा प्रताप को गद्दी पर बैठा दिया। उनका भाई जगमाल क्रोधित होकर अकबर की शरण में चला गया। 

महाराणा प्रताप जब राजगद्दी पर बैठे तो उस समय मुगल बादशाह अकबर का शासन था। अकबर ने बहुत से राजपूत शासकों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया था। उसने महाराणा प्रताप के पास भी बहुत से प्रस्ताव भेजे। लेकिन महाराणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की तो अकबर ने उनके खिलाफ कई सैन्य अभियान भेजे।

Haldi Ghati ka yudh हल्दी घाटी का युद्ध 

हल्दी घाटी का युग 18 जून 1576 में मुगलों और मेवाड में लड़ा गया। महाराणा प्रताप  की सेना का नेतृत्व मुस्लिम सरदार हाकिम सूरी ने किया था। अकबर की सेना का नेतृत्व मानसिंह और आसफ खां के हाथों में था। 

हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के 20000 सैनिक थे और अकबर की सेना के 85000 हजार सैनिकों ने भाग लिया था।  महाराणा प्रताप ने इस युद्ध में अपने शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन किया।

लेकिन युद्ध के मैदान में शत्रु से घिर चुके महाराणा प्रताप को युद्ध के मैदान से बाहर निकलने के लिए झाला मानसिंह ने उनका मुकुट और छत्र आप अपने सिर पर धारण कर उनकी  जगह ले ली थी। उन्होंने अपने प्राण देकर महाराणा प्रताप को युद्ध के मैदान से बाहर भेजा। 

इस युद्ध में 25000 से अधिक सैनिक मारे गए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हल्दी घाटी के युद्ध में कोई भी विजय नहीं हुआ। लेकिन यह भी बात भी सत्य है कि महाराणा प्रताप की छोटी सेना ने अकबर की सेना के छक्के छुड़ा दिए।

Maharana Pratap Ke Ghode ka naam महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम 

महाराणा प्रताप के पास एक घोड़ा था जिसका नाम चेतक था। महाराणा प्रताप का घोड़ा अपने स्वामी भक्ति दिखाते हुए उन्हें 26 फीट का दरिया पार करवाने के पश्चात वीरगति को प्राप्त हो गया था। जिस स्थान पर चेतक की मृत्यु हुई थी वहां पर चेतक का मंदिर बनाया गया। उन का घोड़ा चेतक बहुत ही ताकतवर था। उसके मुंह पर आगे हाथी की सुंड लगा दी जाती थी ताकि दुश्मनों को भ्रमित किया जा सके।

Maharana Pratap Ke Hathi ka naam महाराणा प्रताप के हाथी का नाम 

महाराणा प्रताप के पास रामप्रसाद नाम का एक हाथी था।अकबर के एक सैनिक अल बदायुनी ने एक ग्रंथ में लिखा है कि जब मुगलों का  महाराणा प्रताप के साथ शुरू किया तो अकबर ने महाराणा प्रताप और उसके हाथी को बंदी बनाने का आदेश दिया।

महाराणा प्रताप का हाथी इतना समझदार और ताकतवर था कि उसने अकबर के 13 हाथियों को मार दिया था। महाराणा प्रताप के हाथी को पकड़ने के लिए अकबर के 13 सात बड़े हाथियों का एक चक्रव्यूह तैयार किया गया। जिसके ऊपर 14 महावतों को बिठाया गया। उसके पश्चात ही हाथी को बंदी बना पाए।

 अकबर की कैद में जब रामप्रसाद को खाने पीने के लिए सामग्री दी गई थी तो उसने अपनी स्वामी भक्ति दिखाते हुए 18 दिन तक ना कुछ खाया ना कुछ पिया और शहीद हो गया। कहते हैं कि अकबर ने उसकी मृत्यु पर कहा था कि जिसके हाथी को मैं नहीं झुका पाया, उसके स्वामी को मैं कहां झुका पाऊंगा?

महाराणा प्रताप का बलिदान 

हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात भी उन्होंने अपनी युद्ध नीति से अकबर की सेना को पराजित किया। हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने अपना जीवन जंगल और पहाड़ों में बिताये। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक जब तक मेवाड़ को मुक्त नहीं करवा लेते तब तक महलों को छोड़कर जंगल में रहेंगे और स्वादिष्ट भोजन त्याग करेंगे। 

मेवाड़ के आदिवासी भील महाराणा प्रताप को अपना पुत्र मानते थे। हल्दी घाटी के युद्ध में उन्होंने अकबर की सेना को अपने तीरों से रौंद‌ दिया था। महाराणा प्रताप बिना किसी भेदभाव के उनके साथ रहते थे। इसलिए मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक ओर राजपूत और दूसरी ओर भील है। 

भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 20 लाख अशर्फियां और 25 लाख रूपए भेंट स्वरूप दिए ताकि महाराणा प्रताप फिर से अपनी सेना का संगठन कर सके। इस धनराशि से महाराणा प्रताप ने अपनी सेना का पुनः संगठन किया और कुंभलगढ़ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर दिया। 

 Maharana Pratap Ke marityu महाराणा प्रताप की मृत्यु 

महाराणा प्रताप की मृत्यु राजधानी चांवड में 57 वर्ष की आयु में 29 जनवरी 1597 को हुई थी। जब वह धनुष पर अभ्यास कर रहे थे तो उस समय धनुष की डोर खींचते समय उनकी आंत में चोट लग गई जिस कारण उनकी मृत्यु हुई। महाराणा प्रताप को किसी शत्रु ने नहीं मारा अपितु अपने ही धनुष से घायल होने के पश्चात उनकी मृत्यु हुई थी।

कहते हैं कि महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उनका शत्रु अकबर भी रो पड़ा था। अकबर को सदैव इस बात का अफसोस रहा कि महाराणा प्रताप ने अपनी अंतिम सांस तक उनकी अधीनता स्वीकार नहीं की।
 

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