AHILYABAI HOLKAR STORY

AHILYABAI HOLKAR STORY IN HINDI AHILYABAI HOLKAR JAYANI 2024 Birth Date death date Ahilyabai Holkar infomation in hindiअहिल्याबाई होल्कर की  प्रेरणादायक कहानी

अहिल्याबाई होल्कर जयंती पर पढ़ें उनकी प्रेरणादायक कहानी

अहिल्याबाई होलकर भारतीय इतिहास की ऐसी वीरांगना जो ना केवल अपने अप्रतिम साहस बल्कि महिला सशक्तिकरण और समाज सुधार जैसे क्रांतिकारी कामों के लिए जानी जाती हैं। अहिल्याबाई का जन्म 1725ई में 31 मई को हुआ था इसलिए अहिल्याबाई होलकर की जयंती हर साल 31 मई को मनाई जाती है।

अहिल्याबाई होल्कर का प्रारम्भिक जीवन 

अहिल्याबाई का जन्म 1725 में महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंडी गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम मान्कोजी राव शिंदे था जो कि अपने गांव के पाटिल थे। माता का नाम सुशीला बाई था जोकि धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। अहिल्याबाई शिक्षा के लिए कभी स्कूल नहीं गई थी क्योंकि उस समय लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता था। लेकिन उनके पिता ने सभी रूढ़ियों को तोड़ते हुए उन्हें घर पर ही शिक्षा देकर पढ़ने लिखने योग्य बना दिया था। 

अहिल्याबाई होलकर का विवाह 

एक बार मालवा के महाराज मल्हार राव होलकर छौंड़ी गांव से गुजर रहे थे। तब उन्होंने एक छोटी बच्ची अहिल्याबाई को भजन गाते और दीन दुखियों की सेवा करते हुए देखा। वह उनके सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अहिल्याबाई के पिता मान्कोजी राव शिंदे  से उनका हाथ अपने पुत्र खांडेराव के लिए मांग लिया। मान्कोजी राव शिंदे ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

1733 ई में उनका विवाह खांडेराव होल्कर के साथ हुआ। विवाह के पश्चात इनके ससुर मल्हारराव होल्कर ने उनकी आंतरिक शक्ति और क्षमता को देखकर पुत्र के समान युद्ध कला और घुड़सवारी की शिक्षा दिलाई। मल्हारराव अपनी पुत्रवधू अहिल्याबाई को समय-समय पर राज कार्य की शिक्षा देते रहते थे।

अहिल्याबाई होलकर की संतान 

1745 इनके घर पर पुत्र हुआ जिसका नाम मालेराव रखा गया और उसके 3 वर्ष पश्चात कन्या उत्पन्न हुई उसका का नाम मुक्ताबाई रखा गया।

राजकार्य की बागडोर संभालना 

1754 इनके पति का निधन कुंभेर के युद्ध में हो गया तो यह अपने पति के साथ सती होना चाहती थी। लेकिन इनके ससुर मल्हारराव ने इनको रोक लिया। अपने ससुर के निर्देश पर सैन्य मामलों और प्रशासनिक मामलों में रुचि दिखाई और अपने काम को बखूबी निभाया। 1766 ई में इनके ससुर मल्हार राव का निधन हो गया। उसके एक साल बाद 1767 ई उनके पुत्र मालेराव होल्कर का निधन हो गया।

मल्हारराव होलकर के निधन के पश्चात उन्होंने पेशवाओं को गद्दी की प्रशासनिक बागडोर उन्हें सौंपने का आग्रह किया।1767 में वह मालवा शासक बन गई।

महारानी अहिल्याबाई की सूझबूझ से टल गया युद्ध

उनके राजगद्दी पर बैठने के पश्चात आसपास के राज्य के पेशवाओं ने मालवा को कमजोर समझ कर उसे हड़पने के उद्देश्य से आक्रमण करने के लिए सेना सहित उनके राज्य की सीमा पर पहुंच गए। अहिल्याबाई ने बिना डरे और बिना झुके तुकोजी राव को सेनापति बनाकर सेना का नेतृत्व करने के लिए मैदान में भेजा और साथ में एक पत्र भेजा।

उन्होंने पेशवा राघोवा को पत्र में लिखा कि हमारे पूर्वजों के राज्य को हड़प करने की इच्छा ना करें। अहिल्याबाई ने महिला सशक्तिकरण के लिए स्त्रियों की सेना बनाई थी। उन्होंने पेशवा को आगे लिखा कि हमारी स्त्री सेना युद्ध के लिए तैयार है। लेकिन अगर आप हमें हराकर विजय प्राप्त कर लेंगे इससे उनकी कीर्ति और शौर्य में किसी तरह की बढ़ोतरी नहीं होगी बल्कि इतिहास में जाना जाएगा कि एक शोकग्रस्त विधवा स्त्री को हराकर अपने जीत प्राप्त की थी। अगर हमने युद्ध जीत लिया तो इतिहास में आपकी किरकिरी होगी कि पेशवा एक नारी सेना से हार गए।

यह पत्र तीर की तरह राघोबा जी को चुभ गया और उन्होंने अपना जवाब भेजा कि आप गलत समझ रही हैं। मैं युद्ध करने नहीं अपितु संवेदना व्यक्त करने आया हूं। रानी अहिल्याबाई होलकर ने कहा कि," अगर ऐसी बात है तो फिर मैं स्वयं आपका हल्दी कुमकुम से स्वागत करूंगी।‌‌ लेकिन आप सेना लेकर नहीं अपितु खुली पालकी में बैठकर आएं।" इस तरह बिना युद्ध किए ही अहिल्याबाई ने परिस्थितियों को अपनी सूझबूझ से संभाल लिया।

अहिल्याबाई एक कुशल प्रशासक और प्रजावत्सल रानी  

अहिल्याबाई बाई अपनी उदारता और प्रजा वात्सलता के लिए जानी जाती है। 1767 में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को अपना सेनापति नियुक्त किया। अपने पति खांडे राव होलकर और ससुर मल्हार राव होलकर के निधन के पश्चात उन्होंने ना केवल मालवा राज्य को विदेशी आक्रांताओं उसे बचाया बल्कि युद्धों में सेना का कुशल नेतृत्व भी किया। वह साहसी योद्धा थी, बेहतरीन तीरंदाज थी। वह शौर्य के साथ हाथी पर बैठकर युद्ध करती थी।

उनका मानना था कि धन, प्रजा और ईश्वर की धरोहर है। इस धन की स्वामी मैं नहीं, अपितु इस धन को प्रजा की भलाई के लिए लगाने के लिए एक संरक्षक हूं। उनके राज्य में जाति भेद की कोई स्थान नहीं था। बल्कि सारी प्रजा राज सम्मान की हकदार थी। अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में सुख शांति और समृद्धि थी। इसलिए उन्हें लोकमाता कहा जाता था।

भगवान शिव की परम भक्त

वह भगवान शिव की परम भक्त थी जहां तक कि उन्होंने अपना राज्य भी भगवान शिव को समर्पित किया था। वह अपने आपको उनकी सेविका बनकर शासन करती थी। माना जाता है कि भगवान शिव की पूजा किए बिना वह अन्न का एक दाना तक नहीं खाती थी।

शिव भक्ति और समर्पण का पता इस बात से चलता है कि वह राज आज्ञा के लिए अपने हस्ताक्षर की जगह श्री शंकर लिखती थी । यहां तक कि उनके बाद भी जितने भी इंदौर के राजा बने उन्होंने शासन काल में भी राजा आज्ञा श्री शंकर नाम से जारी की जाती थी।

अहिल्याबाई होलकर द्वारा करवाए गए निर्माण कार्य

अपने कालखंड में अहिल्याबाई ने अनेकों ऐसे कार्य किए जिनके लिए उन्हें आज तक स्मरण किया जाता है। अहिल्याबाई के शासनकाल में इंदौर एक गांव से एक सुंदर शहर में तब्दील हो गया। उन्होंने अपने शासनकाल में कुओं, तालाब, बावड़ियों का निर्माण करवाया।

अहिल्याबाई होल्कर ने मुसलमान और तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े गए बहुत से मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया। अहिल्याबाई ने 1777 मैं विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ करवाया और 1780में मंदिर बनकर तैयार हो गया। सोमनाथ में शिव मंदिर का निर्माण करवाया।

अहिल्याबाई होलकर का निधन

13 अगस्त 1795 को उनका निधन हो गया। इस तरह 1767 से 1795 तक  25 वर्ष तक शासन किया और अपने राज्य की प्रतिष्ठा को बढ़ाया।
 


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