RAVANA VADH KI STORY IN HINDI

SHRI RAM NE RAVAN KA VADH KAB KYUN KAISE KIYA RAMAYAN KATHA RAVAN VADH KATHA STORY IN HINDI dussehra 2023

पढ़ें अहंकारी रावण के वध की कहानी

 श्री राम ने अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दस सिर वाले रावण पर विजय प्राप्त की थी इसलिए इस दिन को विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है। श्री राम ने दशहरे के दिन रावण का वध किया था। इसलिए हर साल इस दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। 

रावण वध कथा

भगवान राम श्री हरि विष्णु के अवतार माने जाते हैं। जब पृथ्वी पर रावण नाम के राक्षस ने देवताओं को अपने अधीन कर लिया और जहां भी यज्ञ, श्राद्ध,वेद पुराण की कथा होती वहां उसके भेजे राक्षस बहुत उत्पात मचाते।‌ पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ गए तो पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सब ने भगवान विष्णु की स्तुति की। तब आकाशवाणी हुई थी मैं सूर्यवंश में मनुष्य रूप में उतार लूंगा। यह सुनकर पृथ्वी निर्भय हो गई।

श्री राम ने अयोध्या में राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र में जन्म लिया। उनका विवाह राजा जनक की पुत्री सीता जी से हुआ। जब राजा दशरथ श्री राम का राज्याभिषेक करना चाहते थे, तब कैकेई ने मंथरा के भड़काने पर श्री राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और अपने पुत्र भरत के लिए राज्य मांगा।

श्री राम अपने पिता के दिए वचन का मान रखने के लिए अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता जी के साथ वनवास के लिए चले गए। वह कुछ साल चित्रकूट में रहे । उसके पश्चात वह पंचवटी में चले गए। वहां एक दिन रावण की बहन शर्पूनखा आई। वह श्री राम और लक्ष्मण जी को देखकर कहने लगी कि मुझे संसार तुम दोनों के समान कोई योग्य नहीं मिला। लेकिन जब उसकी कोई भी माया नहीं चली तो उसने भयानक रूप धारण कर लिया। जिसे देखकर सीता जी डर गई।

लक्ष्मण जी ने उसके कान और नाक दोनों काट दिए। शर्पूनखा ने जाकर रावण को भड़का दिया और कहा कि उनके साथ एक सुंदर स्त्री है जिसे आपके पास होना चाहिए।

रावण ने अपने मामा मारीच को स्वर्ण मृग बनने के लिए कहा। जब मारीच स्वर्ण मृग के रूप में सीता माता के सामने से गुजरा तो सीता माता ने श्री राम को उसे पकड़ कर लाने के लिए कहा। श्री राम जब उसके पीछे गए तो उसने छल किया और जोर से चिल्लाया हा! लक्ष्मण। सीता माता ने लक्ष्मण जी को श्री राम के पीछे भेजा। पीछे से रावण साधू का वेश धारण कर आया और सीता माता का हरण कर ले गया।

श्री राम सीता माता की खोज में जगह जगह भटकने लगे। फिर उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई। हनुमान जी ने उनकी मित्रता सुग्रीव जी से करवा दी। सुग्रीव ने माता सीता की खोज में वानर भेजे। संपाती ने वानर सेना को बता दिया कि सीता माता को रावण उठाकर लंका ले गया है। लंका वहीं जा सकता है जो इस विशाल समुद्र को लांघ सकता है।

हनुमान जी लंका पहुंचे सीता माता को श्री राम का संदेश दिया और लंका का दहन कर लौट आएं। 
हनुमान जी द्वारा लंका दहन कथा

हनुमान जी ने श्री राम को माता सीता का पता बताया। समुद्र पर विशाल सेतु बांधा गया। तुलसीदास जी कहते हैं कि जब रावण को समुद्र पर सेतु बांधने की बात पता चली तो वह अपने दस मुंह से बोल उठा-

बाँध्य बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस।।

भावार्थ - वननिधि, नीरनिधि, जलधि, सिंधु, तयोनिधि ,वारीश , कंपति, उदधि, नदीश को क्या सचमुच ही बांध लिया?

यह समाचार सुनकर रावण की पत्नी मंदोदरी ने उसको समझाया। वह कहने लगी कि," आप में और श्री राम में वैसा ही अंतर है जैसे जुगनू और सूर्य का में है। श्री राम का जन्म पृथ्वी का भार हरने के लिए ही हुआ है। वह रावण को कहती हैं कि उसे सीता, राम को सौंपकर और अपना राज्य पुत्र को सौंप कर वन जाकर श्रीराम का भजन करना चाहिए ताकि उसका सुहाग अचल हो सके।"

रावण को लगता है कि मंदोदरी भय के कारण ऐसा कह रही हैं। वह मंदोदरी को समझाते हुए कहता है कि उसने अपनी शक्ति के बल पर देवता , दानव, वरुण, कुबेर , यमराज आदि दिक्पालों और जहां तक काल को भी जीत रखा है। रावण की अहंकार भरी बातें सुनकर वह समझ गई कि उसका पति काल वश होने के कारण ही ऐसा कह रहा है।

श्री राम अंगद को दूत बनाकर लंका भेजते हैं। अंगद रावण को कहता है कि उसे सीता माता श्री राम को सौंप कर राम की शरण में जाना चाहिए। यह सुनकर रावण भड़क जाता है। अंगद ने रावण की सभा में अपना पैर रोप देता है और कहता है कि यदि तू मेरा पैर हटा दे तो श्रीराम लौट जाएंगे की मैं सीता जी हार गया। रावण ने अपने वीरों से कहा कि इस बंदर को पृथ्वी पर पछाड़ दो। मेघनाद और शक्तिशाली योद्धाओं ने अनंद‌ का पैर हटाने का प्रयास किया लेकिन कोई भी उनका पैर उठा नहीं पाया।

तब अंगद की ललकार पर रावण उठकर अंगद का पैर पकड़ने लगा। अंगद ने कहा- मेरे पैरो को पकड़ने से तू संकट से नहीं उभर सकता। इसलिए जाकर श्री राम के चरण पकड़। इतना सुनते ही रावण सकुचा कर लौट गया और उसकी सारी श्री जाती रही। अंगद इस तरह रावण को समझाकर वापस लौट आए।

शत्रु की सूचना प्राप्त कर श्रीराम ने मंत्रियों को बुलाया और युद्ध की रणनीति तय की। युद्ध भूमि में लक्ष्मण जी और मेघनाद में भयंकर युद्ध हुआ जब मेघनाद को लगा कि उसके प्राण संकट में है। उस ने लक्ष्मण जी पर वीर घातिनि शक्ति चलाई जिससे लक्ष्मण जी मूर्च्छित हो गए। हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आए और लक्ष्मण जी के प्राण बचाए।

लक्ष्मण जी के ठीक होने का समाचार सुनकर रावण ने अपने भाई कुंभकर्ण को जगाया और उसे बताया कि कैसे वह सीता जी को हर लाया है और वानरों ने राक्षसों के कितने योद्धा मार डाले है। कुंभकर्ण रावण की बात सुनकर कहने लगा कि तू जग जननी जगदंबा को हर लाया। अब तू अपना कल्याण चाहता है! तू उस देवता का विरोध कर रहा है जिसके शिव, ब्रह्म सेवक है। विधि के विधान अनुसार कुंभकर्ण युद्ध भूमि में गया और वानर सेना का विनाश करने लगा। प्रभु श्री राम ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जो रावण के आगे जाकर गिरा।

श्री राम ने कुम्भकर्ण को अपने परम धाम भेज दिया। कुंभकर्ण के वध के पश्चात लक्ष्मण जी और मेघनाद में युद्ध हुआ। लक्ष्मण जी ने श्रीराम का स्मरण कर बाण का संधान कर उसका वध कर दिया।

पुत्र के मरण की खबर सुन कर रावण मूर्छित ही गया। मन्दोदरी छाती पीट कर विलाप करने लगी। मेघनाद की मृत्यु के पश्चात रावण युद्ध भूमि में आया। इंद्र देव ने श्री राम को बिना रथ के युद्ध करते देख अपना रथ भेजा। श्रीराम उस रथ पर चढ़ गए। राम ने उसकी बीस भुजाओं और दसों सिरों पर एक साथ बाण चलाएं।

बीसों भुजाएँ और दसों सिर कट कर पृथ्वी पर गिर पड़े। लेकिन सिर और हाथ कटते ही नये हो जाते। प्रभु श्रीराम बार- बार उसके सिर और भुजाओं को काटते। आकाश में उसके सिर और भुजाएँ फैल गई। रावण माया दिखाने लग गया और उसने अनेकों रूप प्रकट किए। जिस से भालू, वानर डरने लगे तो श्रीराम ने बाण चला कर माया के रावणों को मार डाला।

तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस के अनुसार उसी रात्रि त्रिजटा ने सीता माता को रावण के सिर और भुजाओं के बढ़ने की बात सुनाई । सीता जी ने त्रिजटा से पूछा कि, वह दुष्ट कैसे मरेगा?" त्रिजटा ने कहा कि, " हृदय में बाण लगते ही रावण मर जाएगा ".

सीता माता ने पूछा - प्रभु उसके हृदय में बाण क्यों नहीं मारते? त्रिजटा कहती हैं,"क्यों कि उसके हृदय में आप बसती है। सिरों में बार - बार बाण लगने से उसके हृदय से आपका ध्यान हट जाएगा।"

अगले दिन रावण रण भूमि में पुनः माया दिखाने लगा। विभिषण ने श्रीराम से कहा- इस के नाभिकुंड में अमृत वास करता है जिसके कारण यह जीवित है।

प्रभु श्री राम ने इतना सुनते ही बाण छोड़े और रावण को अपने परम धाम भेज दिया। इस तरह श्री राम ने उस अहंकारी रावण पर विजय प्राप्त की।  

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