BEST MORAL STORIES IN HINDI

BEST MORAL STORIES IN HINDI MOTIVATIONAL STORY IN HINDIहिन्दी नैतिक कहानियां moral stories in hindi inspiratioal  stories for students

जीवन जीने की प्रेरणा देती बेहतरीन हिन्दी कहानियां 

कहानियां हमें सदैव से प्रेरित करती आई है। कहानियों के माध्यम से हम जीवन के नैतिक मूल्यों‌ को सीखते हैं, जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना कैसे करना है उसकी समझ बढ़ती है। कहानियां हमें बताती है कि जीवन में अगर एक बार असफलता हाथ लगी है तो उठकर पुनः प्रयास करें कामयाबी आपके कदम चूमेगी। 

जीवन में अच्छे, आचरण और नैतिक मूल्यों‌ का क्या स्थान है वह कहानियां हमें बेहतर समझाती है। छोटा हो या बड़ा कहानियां हजारों सालों से मानव को प्रेरित करती आई है। Best moral stories in hindi में हम ऐसी ही कहानियां लिखने जा रहे हैं आशा है उनको पढ़कर आपको अच्छी प्रेरणा मिलेगी। 

BEST MORAL STORIES IN HINDI 

असफलता को नई शुरुआत करके सफलता में बदला जा सकता है

Best moral story in hindi for students: यह कहानी है उस लड़के की जो अपने स्कूल में हमेशा प्रथम आता था। स्कूल से कॉलेज गया तो उसकी संगति बिगड़ गई। धीरे-धीरे पढ़ाई से ध्यान हट गया। दोस्तों के साथ दिनभर मस्ती करता रहता था। उसका असर यह हुआ कॉलेज की परीक्षा में फेल हो गया।

कॉलेज में फेल होने की बात सुनकर वह डिप्रेशन में चला गया ।उसे लगा कि सब खत्म हो गया अब कुछ नहीं बचा। घर वालों ने तो बहुत समझाने की कोशिश की ,लेकिन कुछ असर नहीं हुआ। सारा दिन कमरे में बैठा रहता था और किसी से आंख भी ना मिलाता था। उसके फेल होने का उस पर बहुत बुरा असर पड़ा था।

उसके पिता ने यह बात उसके स्कूल के प्रिंसिपल को बताई। प्रिंसिपल ने कहा उसे मेरे पास भेजना। जब प्रिंसिपल सर के पास गया तो वह अपने घर के बगीचे मे आग सेक रहे थे।

राहुल से बात करते-करते  उसके प्रिंसिपल ने उसे बहुत समझाया ,लेकिन बात उसे समझ नहीं आ रही थी। प्रिंसिपल ने आग में से एक कोयले का टुकड़ा नीचे जमीन पर फेंक दिया। जिससे वह ठंडा होकर बुझ गया। राहुल ने प्रिंसिपल सर से कहा सर आपने  इस कोयले को  बेकार क्यों किया?  प्रिंसिपल सर ने उठाकर उसे फिर से आग में डाल दिया। जिसे वह कोयला फिर से जलने लगा।

प्रिंसिपल सर ने उसे समझाया कि तुम भी इस कोयले की तरह हो गलत संगत में जाने की वजह से तुम्हारे अंदर की आग ठंडी हो गई थी। मुझे लगता है अब तुम्हें समझ आ गया होगा ,अगर यह कोयला एक बार फिर से भट्ठी में जाने से जल सकता है तो तुम भी एक बार फिर से मेहनत करो तो अपनी पढ़ाई में अव्वल आ सकते हो।

प्रिंसिपल सर की कही बात का राहुल पर ऐसा हुआ असर हुआ कि उसने गलत संगती छोड़ दी। मेहनत और लगन से पढ़कर वह आई पी एस ऑफिसर बन गया‌। यह उस शिक्षक की दी गई सीख का ही कमाल था ,जो बात उसे कोई ना समझा पाया वह उन्होंने एक छोटी सी उदाहरण में समझा दी। 

Moral- इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि असफलता को नई शुरुआत करके सफलता में बदला जा सकता है। 

अपने पद का अभिमान नहीं करना चाहिए 

Best moral story in hindi:एक बार सम्राट अशोक नगर के भ्रमण पर निकले तो रास्ते पर उन्हें एक भिक्षुक मिला। सम्राट अशोक घोड़े से उतरे और उन्होंने बहुत विनम्रता से उनके चरणों में अपना शिश झुकाया। यह देखकर सम्राट अशोक का सेनापति बहुत आश्चर्यचकित हो गया कि इतने बड़े साम्राज्य का सम्राट एक साधारण भिक्षु के चरणों में अपना शीश झुका रहा है।

 मंत्री से रहा नहीं गया और उसने सम्राट अशोक से पूछा कि महाराज आप इतने बड़े सम्राट फिर आप ने एक मामूली से भिक्षुक के चरणों में अपना शिश क्यों निवाया? 

उस समय सम्राट अशोक उस दिन चुप रहे और बोले कि समय आने पर मैं तुम को इस प्रश्न का उत्तर जरुर दूंगा। कुछ दिन के बाद सम्राट ने उस मंत्री को एक बड़ा सा थैला दिया। सम्राट ने उस मंत्री को आदेश दिया कि शाम तक इस थैले में जो भी सामान है वह बेच कर आओ।

मंत्री ने देखा उस बड़े से थैले में एक भैंसे, बकरे, घोड़े और इंसान का सिर था। शाम तक उसने भैंसे, घोड़े और बकरे का सिर तो बेच दिया लेकिन इंसान का सिर खरीदने के लिए किसी ने भी हामी नहीं भरी। 

मंत्री शाम को सम्राट अशोक के सामने उपस्थित हुआ। उसने सम्राट से कहा कि, राजन ! सभी जानवरों के सिर तो बिक है लेकिन इंसान का सिर कोई भी व्यक्ति खरीदने को तैयार नहीं है।

सम्राट ने कहा कोई बात नहीं तुम ऐसा करना कि कल इंसान का सिर किसी को मुफ्त में दे आना। राजा का आदेश पाकर मंत्री अगले दिन पुनः इंसान का सिर लेकर सब ओर गया लेकिन बहुत विचित्र बात थी कि कोई मुफ्त में भी लेने को तैयार नहीं हुआ। 

मंत्री शाम को वापस लौट आया और सम्राट अशोक को सारी बात बताई कि महाराज इस इंसान के सिर को तो कोई मुफ्त में भी रखने को तैयार नहीं है। सभी को भय है कि अगर किसी ने उनके पास इंसानी सिर देख लिया तो सब लोग उन्हें कातिल समझेंगे। मंत्री कहा- आप मुझे क्षमा करें मैं आपके आदेश का पालन‌ कर इस सिर को नहीं बेच पाया। 

उसकी बात सुनकर सम्राट अशोक मुस्कुराते हुए बोले कि यह सब कुछ तो मैंने तुम को समझाने के लिए किया था। मंत्री बोला कि महाराज मैं आपकी बात समझा नहीं। सम्राट अशोक ने कहा कि उस दिन तुम ने मुझ से कहा था कि मैंने इतना बड़ा सम्राट होते हुए एक मामूली भिक्षु के आगे सिर क्यों झुकाया?

अब तुम को समझ में आ गया होगा कि इस सिर का क्या घमंड करना। क्योंकि तुम ने खुद देखा कि भैंसें, घोड़े और बकरे जैसे जानवरों के सिर बिक गए लेकिन इस इंसानी सिर का किसी ने कोई मुल्य नहीं दिया बल्कि कोई मुफ्त में भी लेने को तैयार नहीं हुआ। 

इसलिए मैंने  बिना किसी अभिमान के उस दिन भिक्षु के चरणों में शीश झुकाया था क्योंकि जिस शीश की कोई कीमत नहीं है उसका क्या अभिमान करना।

Moral- यह कहानी हमें जीवन में विनम्रता सिखाती है।  

अकबर और बीरबल की कहानी- पैर और चप्पल 

Best moral story in hindi: बीरबल बादशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। वह सदैव दीन-दुखियों की मदद करते थे‌ लेकिन इस बात का भी ध्यान रखते थे कि कोई उनसे झूठ बोलकर उन्हें ठग ना ले।

 एक बार बादशाह अकबर ने अपने दरबारी के साथ मिलकर योजना बनाई। उन्होंने एक व्यक्ति को दीन-हीन हालत में बीरबल के पास आर्थिक सहायता मांगने के लिए तैयार किया गया। अकबर ने कहा- अगर तुम बीरबल से आर्थिक मदद ले आए तो मैं तुमको मुंह मांगा इनाम दूंगा।

अगले दिन बीरबल जब पूजा पाठ करके मंदिर से लौट रहे थे तब एक व्यक्ति उनके पास मदद के लिए आया। बीरबल से विनती करने लगा कि मेरे बाल-बच्चे कई दिनों से भूखे हैं। धर्म के अनुसार भूखे को भोजन करवाना पुण्य का कार्य है। इसलिए आप मुझे कुछ दान देकर पुण्य कमा सकते हैं। बीरबल ने उस व्यक्ति की ओर ध्यान नहीं दिया और मन ही मन मुस्कुरा कर आगे बढ़ गए।

 वह उस मार्ग की ओर चल पड़े जहां पर रास्ते में नदी पड़ती थी। वह व्यक्ति भी दान की याचना के लिए उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। बीरबल ने अपने जूते उतार कर हाथ में पकड़ लिए। बीरबल को ऐसा करता दें उस व्यक्ति ने भी जूते हाथों में पकड़ लिए। लेकिन शीघ्र ही पहन लिए। 

बीरबल ने इस बात का कोई ध्यान नहीं दिया। नदी पार करते समय उनके पैर धुलने की बजह से  उसके पैर साफ सुथरे और मुलायम और गोरी चमड़ी के दिखने लगे। इस कारण वह पथरीले रास्ते पर नहीं चल पा रहा था।

वह व्यक्ति बीरबल के पास आकर पुनः कहने लगा कि आप मेरी पुकार क्यों नहीं सुन रहे ? बीरबल कहने लगे जो व्यक्ति मुझे पापी बनाएं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूं? वह व्यक्ति कहने लगा कि," मेरी सहायता करने से आप पापी क्यों बनेंगे?" बीरबल ने कहा कि शास्त्रों में लिखा है कि ईश्वर किसी बच्चे के जन्म से पहले ही उसके भोजन की व्यवस्था करता है। उसकी मां के स्थानों में दूध का उत्तर आता है।

कहते हैं कि भगवान किसी को भूखा उठाता है लेकिन भूखा सुलाता नहीं है। तुम कह रहे हो कि पिछले 8 दिनों से मेरे बच्चों ने कुछ नहीं खाया। ऐसी स्थिति में तुमको समझ जाना चाहिए कि ईश्वर तुम्हारे परिवार से नाराज़ हैं और वह तुम सबके भूखा रखना चाहते हैं। मुझ में इतना सामर्थ्य नहीं है कि मैं ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य करूं। इसलिए मैं कह रहा हूं कि मैं इस पाप का भागीदार नहीं बन सकता। इतना कहकर बीरबल वहां से चले गए। 

दरबारी राज दरबार लौट आया और अकबर को सारी बात बता दी। बीरबल जब दरबार में आए तो अकबर ने प्रश्न किया कि बीरबल आज तुम ने एक निर्धन व्यक्ति और उसके बच्चों को भोजन करवाने से मना क्यों किया? वैसे तो तुम बहुत धर्म-कर्म का ज्ञान देते हो।

बीरबल मुस्कुराते हुए बोले कि जहांपनाह मैंने एक भूखे को नहीं अपितु एक ढोंगी को भोजन करवाने से मना किया था। अकबर तुम्हें कैसे पता कि वह कोई ढोंगी था। 

बीरबल बोला कि जहांपनाह उसके पैरों और चप्पल से। अकबर ने पूछा - वह कैसे?

बीरबल बोला कि महाराज उसने कपड़े तो भिखारियों जैसे पहने थे लेकिन वह अपनी कीमती चप्पल बदलना भूल गया। माना कि उसको चप्पल भीख में मिली हो सकती है लेकिन उसके साफ ,मुलायम और उसके पैरों की गोरी चमड़ी ने उसका वह भेद भी खोल दिया। जब मैं पथरीले रास्ते पर गया तो आदत ना होने के कारण वह उन पथरीले रास्ते पर नहीं चल पाया। जब मैं नदी से गुजरा तो वह भी मेरे पीछे पीछे आ गया और नदी के पानी से उसके पैर एक दम साफ़ और चमकदार निकल आए।

 इस तरह मुझे पता चल गया कि यह व्यक्ति दरिद्र नहीं है बल्कि एक अच्छे खानदान का व्यक्ति हैं।जिसे नंगे पांव चलने की बिल्कुल भी आदत नहीं है। बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर बहुत खुश हुए और कहने लगे कि बीरबल वह व्यक्ति हमारा भेजा हुआ ही एक दरबारी था। आज तुम ने एक बार फिर से सिद्ध कर दिया कि तुम इस दरबार के सबसे बुद्धिमान व्यक्तियों में से एक हो। तुम हर एक काम दूरदर्शिता से करते हो।‌

शिक्षा - बीरबल की इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि किसी की मदद करने से पहले उसे परख लेना चाहिए कही वह बहुरूपिया तो नहीं और हर काम दूरदर्शिता से करना चाहिए। 

मुर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है 

एक बार एक नगर में चार ब्राह्मण रहते थे।‌ चारों व्यापार के लिए दूसरे नगर में गए। वहां पर धन अर्जित करने के पश्चात उनके पास बहुमूल्य रत्न खरीदें । उन चारों उन रत्नों को चोरी के डर से शल्यक्रिया के द्वारा अपनी जांघों में सिल दिया। उनके इस कार्य को एक बुद्धिमान और ज्ञानी ब्राह्मण ने देख लिया। लेकिन वह ब्राह्मण अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण चोरी करता था। 

उसके मन में इच्छा जाग्रत हो गई कि किसी तरह इन चारों के रत्नों को किसी तरह प्राप्त कर लूं। उसके लिए उसने उन चारों से मित्रता कर ली। उस ब्राह्मण ने अपनी बुद्धिमत्ता से उन चारों को प्रभावित कर लिया और उनका विश्वास जीत लिया। 
उसने उन चारों को बताया था कि वह इस दुनिया में अकेला है इसलिए उन चारों ने उसको अपने साथ अपने देश ले जाने का निर्णय लिया। 

उनको अपने देश जाने के मार्ग में एक जंगल में से गुजरना पड़ता था। जंगल में किरातों की एक बस्ती थी। जब वह पांचों उस बस्ती के पास से गुजर रहे थे तब कागो ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि इनके पास बहुमूल्य रत्न है जल्दी से इनको पकड़ लो।

शीघ्र ही किरातों ने उन पांचों को पकड़ कर अच्छे से तलाशी ली लेकिन उनको कोई भी रत्न नहीं मिले। किरातों के सरदार ने कठोरता से पूछा कि जल्दी से बता दो कि रत्न‌ कहां है? क्योंकि हमारे कागो की सूचना आज तक कभी ग़लत नहीं हुई। अगर तुम पांचों ने सत्य नहीं बताया तो तुम सबके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएंगे।

यह सुनकर जो ब्राह्मण चोर था वह विचार करने लगा कि अगर उन चारों में से एक के भी शरीर के टुकड़े हुए तो उनमें से रत्न मिल जाएगे। उसके पश्चात यह किरात किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेंगे। मैं चाहे लाख दुहाई दूं कि मेरे पास रत्न नहीं है मेरी बात को कोई नहीं मानेगा और मेरे शरीर के भी टुकड़े कर दिए जाएंगे।

मरना तो मुझे हर परिस्थिति में पड़ेगा। इसलिए अच्छा है कि मैं मरने से पहले कुछ पुण्य कमा लूं। अगर वें पहले मेरे शरीर के टुकड़े करेंगे तो उन्हें उसमें रत्न नहीं मिलेंगे। संभवतः वह यह देखकर उन चारों ब्राह्मणों को जीवित छोड़ दें। इससे मुझे मरने के पश्चात पुण्य प्राप्त होगा। उसने किरातों के सरदार से कहा कि आप सबसे पहले मेरे शरीर के टुकड़े करें। किरातों ने उसकी बात मान कर सबसे पहले उसके शरीर के टुकड़े किए तो उन्हें उसमें कोई धन प्राप्त नहीं हुआ। उन्होंने सोचा कि शायद इन चारों के पास भी कोई धन नहीं है और उन चारों को मुक्त कर दिया। 

Moral- इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मूर्ख मित्र से कहीं अच्छा है विद्वान और ज्ञानी शत्रु क्योंकि बुद्धिमान शत्रु अपने विवेक से निर्णय करता है और मूर्ख बिना किसी सूझबूझ के लेकर आपकी हानि करवा सकता है।

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