गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानी
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उनका जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा और बुद्ध जयंती के रूप में मनाया जाता है। उन्हें भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में भी माना जाता है।
वैशाख पूर्णिमा का बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व है। गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ, वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और इसी दिन उन्होंने देह त्याग किया जिसे बुद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा जाता है। बिहार के बोध गया में जहां गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था वहां बहुत धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है।
GAUTAM BUDDHA STORY IN HINDI
महात्मा बुध का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु राज्य के लुंबिनी में हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो इश्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल से थे और माता का नाम महामाया जो कोलीय वंश से थी। उनके जन्म से पहले जब उनकी मां अपने नैहर जा रही थी तो रास्ते में प्रसव पीड़ा होने लगी। लुम्बिनी वन में उनका जन्म हुआ। उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। उनका गोत्र गौतम था इसलिए उनको गौतम बुद्ध के नाम से जाना जाता है।
सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन में उनकी मां की मृत्यु हो गई और गौतम का पालन पोषण उनकी मौसी महा प्रजापति ने किया। सिद्धार्थ के जन्म के पश्चात ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि बालक या तो महान सम्राट बनेंगा या फिर महान सन्यासी जो कि विश्व को एक नया रास्ता दिखाएंगा। राजा शुद्धोधन चाहते थे कि उनका पुत्र उनकी ही तरह एक सम्राट बने।
राजा शुद्धोधन चाहते थे कि उनके पुत्र को किसी तरह के दुःख का अहसास ना हो। इसलिए राजा ने तीन ऋतुओं के अनुसार तीन महल बनवाएं। वहां पर उनकी सुख सुविधा का पूरा प्रबंध करवा दिया। दास दासिया रखवा दी जो कि दिन रात उनकी सेवा करती थी। उनके सभी सेवक जवान और तंदुरुस्त रखे जाते थे। उनके पिता ने उन्हें संन्यासी बनने से रोकने के लिए राजमहल की परिधि में ही रखा।
उन्होंने गुरु विश्वामित्र से वेद, पुराण और राजकार्य की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने तीरंदाजी, घुड़दौड़ और कुश्ती में भी महारत हासिल कर ली। सिद्धार्थ बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी थे उन्हें जो भी सिखाया जाता है। वह बहुत जल्दी स्मरण कर लेते हैं।
Gautam Buddha Motivational Story In Hindi:सिद्धार्थ का स्वभाव बचपन से ही बहुत करूणामयी था। इंसान तो क्या उनसे किसी जानवर का भी दुःख देखा नहीं जाता था। एक बार सिद्धार्थ को तीर से घायल एक हंस मिला। उन्होंने उसको सहलाया और उसको पानी पिलाया उसकी मरहम पट्टी की। उसी समय उनका चचेरा भाई देवदत्त भी वहां पहुंच गया। वह बोला कि यह हंस मुझे दे दो जो मैंने इसका शिकार किया है।
सिद्धार्थ ने हंस उसे सौंपने से मना कर दिया क्योंकि उसका मानना था कि मैंने हंस के प्राण बचाए हैं जबकि तुम उसे मारना चाहते थे। लेकिन मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।
यह मामला राजा शुद्धोधन की सभा तक पहुंचा और उन्होंने सिद्धार्थ ने कहा कि," तुम हंस देवदत्त को लौटा दो। क्योंकि देवदत्त ने तीर चला कर इस हंस का शिकार किया था।" सिद्धार्थ ने इस पर तर्क दिया कि पिताजी निर्दोष हंस पर तीर चलाने का अधिकार देवदत्त को किसने दिया?
हंस ने देवदत्त का कुछ नुकसान नहीं किया था। फिर उसने इस पर तीर चला क्यों घायल किया? तीर लगने से हो रही उसकी पीड़ा को देखकर मैंने इसका तीर निकाला और उसकी सेवा की और उसके प्राण बचा लिए। इसलिए इस पर मेरा अधिकार होना चाहिए। राजा शुद्धोधन इस बात से सहमत हुए और फैसला सिद्धार्थ के पक्ष में सुनाया।
एक और कथा के अनुसार बचपन में घुड़दौड़ में अगर घोड़े के मुंह से झाग निकलने देखते तो यह सोचते कि घोड़ा थक गया होगा। इसलिए घोड़ा वही रोक देते ताकि थोड़ा आराम कर सके और स्वयं प्रतियोगिता हार जाते।
विवाह और पुत्र
16 वर्ष आयु में राजा शुद्धोधन ने उनका विवाह यशोधरा नाम की सुंदर कन्या से करवा दिया। उनके पिता को लगाकि अगर सिद्धार्थ सांसारिक मोह माया से बंध जाएंगे तो संन्यास का विचार उनके मन में नहीं आएगा।
उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। जहां तक तो सब ठीक चल रहा था लेकिन इसके पश्चात उन्होंने चार ऐसे ऐसे दृश्य देखे जिन्होंने उनका जीवन बदल दिया।
एक बार गौतम बुद्ध अपने सारथी के साथ नगर के भ्रमण पर जा रहे थे। उनकी दृष्टि एक वृद्ध पर पड़ी उन्होंने आश्चर्य से सारथी से पूछा कि," इसको क्या हुआ है?
सारथी ने कहा कि," यह वृद्ध हो गया है और एक दिन सभी को वृद्धा अवस्था से गुजरना पड़ता है। यह सुनकर उनका मन बहुत व्यथित हुआ।
उसके पश्चात उनकी दृष्टि एक रोगी पर पड़ी उसकी हालत दयनीय थी। उसे देखकर उनके मन में विचार आने लगा कि इंसान को कितने कष्ट सहने पड़ते हैं।
फिर उन्होंने चार लोगों को एक मृत व्यक्ति को लेकर जाते हुए देखा। जिसके पीछे उसके परिवार वाले रोते बिलखते हुए जा रहे थे। उन्होंने सारथी से इस बारे में पूछा इसको क्या हुआ है? सारथी ने बताया कि यह आदमी मर गया है और दिन सभी को मरना पड़ता है।
उसके पश्चात उन्होंने एक संन्यासी को देखा जो सांसारिक मोह त्याग कर मोक्ष के लिए प्रयत्नशील था। इन चार घटनाओं ने उनके मन को व्यथित कर दिया। वह जन्म, मृत्यु आदि से जुड़े प्रश्नों के उत्तर खोजना चाहते थे। अब वह जीवन के सत्य के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे।
पुत्र और पत्नी का मोह भी उन्हें ज्यादा समय बांध नहीं पाया। एक रात चुपचाप अपनी पत्नी और पुत्र को छोड़कर महल से निकल गए। एक सेवक को साथ में लेकर शीघ्र ही राज्य से बाहर निकल गए। उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारकर सेवक को सौंप दिए और स्वयं सधारण वस्त्र धारण कर लिए । उन्होंने सेवक को वापस भेज दिया यह कहकर कि मैं सत्य की खोज कर लूंगा तो वापस लौट आऊंगा।
29 साल की आयु में वह घर से निकल गए। इसे बौद्ध धर्म में इसे महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।
ज्ञान की तलाश और प्राप्ति
महात्मा बुध सत्य और ज्ञान की तलाश में यहां वहां घूमते रहे। ज्ञान प्राप्ति के लिए वह बहुत से साधू, संतों ,तपस्वियों के साथ रहे। अन्न जल त्याग कर तपस्या की। जिस कारण उनका शरीर जर्जर हो गया। अब उन्हें समझ आ गया था कि इस तरह ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती।
वैशाख पूर्णिमा के दिन जब वह वट वृक्ष के नीचे ध्यान मग्न थे तो सुजाता नाम की महिला वहां पहुंची। उसने मनौती मांगी थी कि पुत्र होने पर वह सोने की थाल में गाय के दूध से बनी खीर वटवृक्ष को भोग लगाएगी।
महात्मा बुद्ध को देखकर उन्होंने सोचा कि वृट देव साक्षात प्रकट हो गए हैं। उन्होंने उन्हें खीर खाने को दी और कहने लगी कि जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई वैसे ही आपकी भी पूरी होगी।
खीर खाने के पश्चात उनको संतुलित दृष्टिकोण और मध्य मार्ग अपनाकर ज्ञान प्राप्त करने का निश्चय किया। उन्हें लगा कि जीवनमयी संगीत की वीणा के तारों को इतना भी नहीं कसना चाहिए कि वह टूट जाए और इतना ढीला भी नहीं छोड़ना चाहिए स्वर ही ना निकले। उसके पश्चात जब वह ध्यान में बैठे तो उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। गौतम बुध को जिस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ उसे बौधिवृक्ष के नाम से जाना जाता है।
ज्ञान प्राप्ति के पश्चात उन्होंने अन्य लोगों में ज्ञान का प्रसार करना शुरू कर दिया। क्योंकि वह बाकी लोगों का भी दुःखों से मुक्त करना चाहते थे। उन्होंने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए जो जनसाधारण की भाषा। वह अहिंसा के पक्षधर थे और जीव हत्या का विरोध करते थे।
उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था जिसे बौद्ध धर्म के ग्रंथों में धर्म चक्र प्रवर्तन कहा जाता है।
भारत का शासक बिंदुसार उनका अनुयायी बना। उसके पश्चात अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार लंका, चीन, जापान आदि देशों में किया।
80 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया । जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा जाता है।
Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi
गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानियां वर्तमान समय में भी हमारा मार्गदर्शन करती है। हमें जीवन जीने की नई राह दिखाती है। पढ़ें गौतम बुद्ध की शिक्षाप्रद कहानियांधैर्य और परिश्रम
Gautam Buddha short story in hindi:एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कहीं धर्म प्रचार के लिए जा रहे थे । एक गांव के मार्ग में उन्होंने बहुत से गड्ढे खुदे हुए देखें । शिष्यों ने उत्सुकता से महात्मा बुद्ध से जगह जगह खोदे हुए गड्ढों का कारण पूछा।
महात्मा बुद्ध कहने लगे कि ," किसी ने पानी की तलाश में इतने गड्ढे खोदे हैं। एक गड्ढा खोदने पर जब उसे पानी ना मिला तो उस व्यक्ति ने दूसरा गड्ढा खोदना शुरू कर दिया होगा।
लेकिन अगर वह धैर्य रखता और एक ही स्थान पर गहरा गड्ढा खोदता तो उसे पानी अवश्य मिल जाता।"
Moral - महात्मा बुद्ध की इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य करने पर परिश्रम के साथ धैर्य रखना भी बहुत जरूरी है। जितना गहरा हम खोदेगे परिणाम उतना ही अच्छा होगा ।उसी तरह जितनी ज्यादा मेहनत और धैर्य से किसी काम को करेंगे तो परिणाम उतना ही बढ़िया आएगा।
शुद्ध विचार
एक बार महात्मा बुद्ध कहीं जा रहे थे ।रास्ते में उनको प्यास लगी तो उन्होंने अपने शिष्य आनंद को पानी ढूंढ कर लाने को कहा । लेकिन जब आनंद नदी पर गए तो वहां नदी पर कुछ लोग वस्त्र धो रहे थे ,पशु पानी पी रहे थे और कई लोग नहा रहे थे, जिसके कारण नदी का पानी गंदा हो गया था।
आनंद बिना पानी लिए ही वापस आ गए क्योंकि उन्होंने सोचा कि गंदा पानी पीने से गुरु जी की तबीयत कहीं खराब ना हो जाए। आनंद महात्मा बुद्ध से कहने लगे कि ,"गुरु जी हमें कहीं और आगे जाकर पानी पी लेना चाहिए क्योंकि जहां नदी का पानी बहुत गंदा है।"
महात्मा बुद्ध ने कुछ समय के पश्चात उसे वापस फिर उसी नदी पर दोबारा पानी लेने भेजा और वह इस बार नदी से मटके में पानी भर लाया । गुरुजी ने उस से पूछा कि," पहले तो तुम बोल रहे थे कि पानी गंदा है फिर अब तुम पानी कैसे ले आए?"
शिष्य ने बताया कि इस बार जब वह गया था तब सब लोग अपना अपना काम करके चले गए थे । मैंने थोड़ी देर इंतजार किया पानी में मिली मिट्टी नीचे बैठ गई थी और पानी साफ हो गया था और मैं पानी ले आया।
यह सुनकर महात्मा बुद्ध ने शिक्षा दी कि हमारा मन भी इस जल की तरह है। जैसे तुमने नदी के पानी को बिना छेड़छाड़ किए साफ होने का इंतजार किया। वैसे ही अपने मन में आए नकारात्मक और बुरे विचारों को भी छेड़छाड़ मत करो और उन्हें शांत होने दो।तुम्हारा मन शुद्ध विचार की ओर चल पड़ेगा।
Moral - महात्मा बुद्ध की कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर मन में गलत और नकारात्मक विचार आते हैं तो उस समय कोई निर्णय न लें, कुछ समय देंगे तो आपका मन शांत हो जाएगा।
समस्या का हल
एक बार एक किसान था। उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल पाता था ।जिसके कारण उसे किसी ना किसी समस्या का सामना करना पड़ता और इस कारण से वह परेशान रहता था। उसे लगता था कि उसके जीवन में समस्याएं तो खत्म होने का नाम नहीं ले रही।
उसने यह बात अपने मित्र को बताई। मित्र ने उसे महात्मा बुद्ध के पास जाने को कहा । वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध के पास अपनी समस्या लेकर गया। उसने महात्मा बुद्ध को बताया कि मेरी पत्नी बहुत अच्छी है लेकिन प्रतिदिन पैसों की कमी के कारण हमारा कोई ना कोई झगड़ा चलता रहता है। मेरी मां बीमार रहती है इस कारण वह रोज कोई ना कोई परेशानी मुझे सुनाती रहती है । मेरे दो बच्चे हैं, मैं उनकी पढ़ाई के लिए पैसे बड़ी मुश्किल से निकाल पाता हूं।
अगर मुश्किल से अगर कोई पैसा बच भी जाता है तो कोई ना कोई रिश्तेदार मदद मांगने के लिए आ जाता है ।वह पैसे उन्हें देने पड़ जाते हैं। महात्मा बुद्ध मुस्कुराए और कहने लगे कि तुम्हारी 83 समस्याओं का हल मेरे पास नहीं है ।लेकिन 84वीं समस्या का हल निकाल सकता हूं। वह आदमी बोला वह कैसे ?
महात्मा बुद्ध कहने लगे जीवन है इसमें तो समस्याएं तो आती ही रहेंगी। 84 वीं में समस्या का हल यह है कि तुम यह भूल जाओ कि अब तुम्हारे जीवन में समस्या नहीं आएंगी ।
तुम इस बात को समझ लो कि समस्या तो आएंगी मुझे उनका समाधान कैसे करना इस बात पर ध्यान देना शुरू करो।तुमे अपनी सोच को बदलना होगा। यह सुनकर उस व्यक्ति को बात समझ में आ गई कि हर एक के जीवन में समस्याएं तो आती है बात बस नजरिया बदलने की है।
Moral - महात्मा बुद्ध की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि ,"जीवन में समस्याएं तो सबके साथ आती है जरूरत नजरिया बदलने की है कि समस्या पर नहीं उसके समाधान कैसे निकले उस पर ध्यान केन्द्रित करना है।"
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