सच्ची मदद की कहानी
कहते हैं कि अगर कोई विश्वास के साथ आपके पास मदद के लिए आए तो जहां तक संभव हो उसकी मदद जरूर करनी चाहिए। "जीवन में कभी मौका मिले तो किसी के सारथी बने ना की स्वार्थी" क्योंकि आपकी एक छोटी सी मदद किसी की जिंदगी बदल सकती है।
एक बार एक लड़का था। उसके अपने माता पिता की इकलौती संतान था। उसका सुखी परिवार था।जब वह कालेज की पढ़ाई कर रहा था तो एक दिन अचानक उसके पिता की मृत्यु हो गई। घर की सारी जिम्मदारी लड़के पर आ गई। उसके रिश्तेदारों ने भी उससे और उसकी मां से मुंह फेर लिया मदद करना तो दूर की बात है।
उसकी माँ ने उसे हीरे के गहने बेचने के लिए दिए और कहा, "इसे तुम अपने पिता के दोस्त प्रेम जी की दुकान पर जा कर बेच आओ। वह हीरे और सोने के गहने बेचते है। मुझे उन पर विश्वास है कि क्योंकि वह तुम्हारे पिता के करीबी थे। इसलिए मुझे विश्वास है कि वह हमारी मदद ज़रुर करेंगे और इन गहनों का उचित दाम दे देंगे।
लड़का गहनें लेकर पिता के दोस्त की दुकान पर गया। लड़का कहने लगा कि," आप तो जानते ही हैं कि पिता जी की मृत्यु हो गई है। इसलिए मेरी पढ़ाई और घर का खर्च चलाने के भी पैसों की जरूरत है। इसलिए मां ने मुझे अपने गहने आपके पास बेचने के लिए भेजा है। मां को विश्वास है कि हमारी मदद करेंगे और उन गहनों का उचित मुल्य दिलवादेंगे."
प्रेम जी ने गहने ध्यान से देखें और कहने लगे कि," बेटा मां से कहना कि बाजार में अभी मंदी चल रही है। इसलिए यह गहने कुछ समय बाद बेचना ही उचित रहेगा। तब तक तुम ऐसा करना कि कालेज के बाद मेरी दुकान पर आकर काम में मेरी मदद कर देना। मैं तुम्हें काम के बदले पैसे दे दिया करूंगा उससे तुम्हारा घर खर्च और पढ़ाई का खर्चा निकल जाएगा।"
अब वह लड़का जौहरी की दुकान पर काम सीखने लगा और साथ साथ पढ़ाई करने लगा। कुछ सालों बाद जब लड़के की पढा़ई पूरी हो गई। प्रेम जी ने कहने लगे कि," अब हीरे के गहने बेचने का ठीक समय है बेटा कल तुम गहने ले आना।"
लड़के ने घर जाकर मां को यह बात बताई और मां से गहने मांगे। लेकिन लड़का गहने देखकर आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि सभी गहने नकली थे। लड़का प्रेम जी के पास पहुंचा और पूछने लगा कि," आप तो पहली बार देखकर ही समझ गए थे कि सभी गहने नकली है, तो फिर आपने यह बात मुझे तब क्यों नहीं बताई ?"
प्रेम जी कहने लगे कि," बेटा मैं तो गहने देखकर समझ गया था कि सभी गहने नकली हीरें के है। लेकिन जिस समय तुम मेरे पास गहने बेचने के लिए आए थे, उस समय तुम्हें सच्चाई ना बताने के तीन कारण थे।
एक कारण था कि उस समय तुम्हें और तुम्हारी मां को विश्वास था कि गहने बेच कर तुम दोनों की ज़िदगी चल जाएगी।
दूसरा तुम दोनों को मुझ पर विश्वास था कि," मैं तुम्हारी मदद ज़रुर करूँगा।"
तीसरे मैंने तुम को नौकरी पर इसलिए रख लिया ताकि एक तो तुम उससे घर का खर्चा चला सको दूसरे स्वयं हीरों की परख कर सको क्योंकि मैं जानता था कि हीरे की परख एक जौहरी को ही होती है।" अगर उस समय मैं तुम से यह बात कहता तो शायद तुम को लगता कि मैं आप लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहा हूं।
प्रेम जी कहने लगे कि," मुझे मेरे पिता जी ने एक बात सिखाई थी कि जब भी कोई विश्वास के साथ तुम्हारे पास मदद मांगने आए तो उसके सारथी बनना ना की स्वार्थी।"
अब तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है और उसके साथ - साथ तुम्हें इस काम का अच्छा अनुभव हो गया है। अब तुम चाहो तो शहर में जाकर किसी अच्छे शोरूम में नौकरी भी कर सकते हो।
MORAL - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि जीवन में जब भी कोई आप पर विश्वास करता है तो उसकी मदद जरूर करनी चाहिए।
2. एक अनजान व्यक्ति की मदद की कहानी
एक बार शर्मा जी को एक पत्र मिला । पत्र भेजने वाले ने लिखा था कि, "मैं आपके दोस्त राजेश का बेटा दीपक हूं।"आप तो जानते ही हैं कि पिताजी का 5 साल पहले ही देहांत हो चुका है। दो साल पहले मां भी गुजर चुकी है ।लेकिन मां ने मुझे मरने से पहले कहा था कि, "अगर तुम्हें कभी भी किसी मदद की जरूरत हो तो ,शर्मा जी से मांग लेना वह तुम्हारी मदद जरूर करेंगे।"
उसने आगे लिखा कि मुझे इंग्लैंड की एक यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप मिल गई है। लेकिन फिर भी ऊपर के खर्च के लिए मुझे बहुत से पैसों की जरूरत है। उसमें से कुछ का इंतजाम तो मैंने कर लिया है। लेकिन फिर भी ₹10000 कम पड़ रहे हैं।
अगर आप मेरी मदद कर देंगे तो मैं इंग्लैंड जा पाऊंगा। मैं आपका एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा और पढ़ाई खत्म करके मैं आपकी रकम जरूर लौटा दूंगा। उस पत्र में दीपक ने अपना अकाउंट नंबर भी लिखा था। शर्मा जी ने उसके अकाउंट में पैसे डलवा दिए।
उसके बाद पत्रों का सिलसिला चलता रहा। दीपक अपनी पढ़ाई ,पार्ट टाइम जॉब के बारे में उन्हें बताता रहता था। शर्मा जी भी दीपक से कहते कि," उसे फिर कभी पैसों की जरूरत हो तो मांग सकता है।" कई बार दीपक ने पैसों की जरूरत आने पर उनसे पैसे मांगे भी थे।
अब दीपक की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी। उसे इंग्लैंड में ही नौकरी मिल चुकी थी। उसने शादी कर ली थी और दो बच्चे थे। उसने शर्मा जी के पैसे भी वापस कर दिए थे। लेकिन कहानी जहां खत्म नही हुई।
लेकिन एक दिन दीपक को उसके पिता के दोस्त घनश्याम इंग्लैंड के एक होटल में मिले। दीपक ने उन्हें बताया कि कैसे उनके पिता के दोस्त शर्मा जी ने 7 साल पहले मदद की। उनकी मदद के कारण ही वह इग्लैंड में पढ़ पाया। घनश्याम जी ने उसे जो बात बताई उसे सुनकर दीपक दंग रह गया।
उन्होंने बताया कि शर्मा जी की मृत्यु तो 8 साल पहले ही हो चुकी थी। दीपक घर वापस आया और जो भी पहली फ्लाइट इंडिया के लिए आती थी उसकी टिकट बुक की क्योंकि उसके मन में एक तूफान उठा हुआ था । वह जानना चाहता था कि,"सात साल से उसकी मदद कौन कर रहा है?" अगर शर्मा जी 8 साल पहले मर चुके हैं।
भारत पहुंचकर वह उसी एड्रेस पर पहुंचा जहां पर पत्र भेजा करता था। वहां पहुंचकर क्या देखता है ? वहां शर्मा निवास की ही नेम प्लेट लगी हुई थी। उसे लगा शायद घनश्याम से कोई गलती हुई है कि शर्मा जी नहीं रहे।
उसने घंटी बजाई तो वहां से एक सज्जन बाहर आए दीपक ने कहा मैं शर्मा जी से मिलना चाहता हूं। उन्होंने कहा मैं ही शर्मा जी हूं। फिर दीपक ने अपना परिचय दिया मेरा नाम दीपक है, इंग्लैंड से आया हूं। शर्मा जी के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और वह उसे घर के अंदर ले गए। दीपक ने कहा कि," मैं तो आपके लिए अनजान था फिर आपने इतने सालों तक मेरी मदद क्यों की ?"
उन्होंने दीपक को बताया कि जब शर्मा जी की मृत्यु हुई तो उनका बेटा फ्लैट मुझे बेच गया था। इत्तेफाक से मेरा नाम भी अतुल शर्मा ही है। तुम्हारी चिट्ठी जब आई तो मैं ना जाने क्यों खुद को उसे खोलने से रोक नहीं पाया। मुझे और मेरी पत्नी को लगा कि हमें तुम्हारी मदद करनी चाहिए।
तुम ने चिट्ठी में लिखा था कि ,"कैसे तुमने दिन रात मेहनत की थी स्कॉलरशिप पाने के लिए। "हम दोनों ने निश्चय किया कि हम बिना कुछ बताए तुम्हारी मदद करेंगे। अगर हम तुम्हें तब बता देते कि मैं तुम्हारे पिता जी का मित्र नहीं हूं तो, शायद तुम हमारी मदद स्वीकार नहीं करते। उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते जहां पर आज पहुंच पाए हो। हम ने सोचा कि शायद ईश्वर तुम्हारी मदद के लिए हमें जरिया बनाना चाहता है।
शर्मा जी तो कभी दीपक से मिले भी नहीं थे। उसके बारे में कुछ जानते भी नहीं थे । वह सच बोल रहा है या झूठ बोल रहा है। लेकिन फिर भी उन्होंने विश्वास कर दीपक की मदद की जिससे वह ऊंचे मुकाम तक पहुंच पाया।
Moral - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कई बार बिना स्वार्थ भाव के किसी की मदद से आप अनजाने में उसके लिए सारथी बन जाते हैं।
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