AKSHAY TRITIYA KI KATHA MAVATVA IN HINDI

AKSHAY TRITIYA KA MAHATVA AKSHAY TRITIYA KI KATHA Akshay tritiya ki shubhkamnaye in Sanskrit akshaya tritiya meaning in hindi Importance of akshaya tritiya in hindi

अक्षय तृतीया की कथा और महत्व हिन्दी में

हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है।  2024 में अक्षय तृतीया 10 मई दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की भी जयंती मनाई जाती है।

Akshay tritiya meaning in hindi 

अक्षय तृतीया का अर्थ - अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय अर्थात नाश ना हो। तृतीया का अर्थ होता है तीसरा । अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए शुभ कर्मों और दिए गए दान का कभी क्षय नहीं होता। 

Akshay tritiya ki katha in hindi 

 अक्षय तृतीया की कथा : भविष्य पुराण में एक कथा के अनुसार शाकल नगर में धर्मदास नाम का एक वैश्य था। वह बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था। वह शुभ अवसरों पर पूजा पाठ और दान पुण्य करता रहता था। उसकी ईश्वर में प्रगाढ़ आस्था थी और वह ब्राह्मणों का भी बहुत आदर सत्कार करता था। 

एक बार धर्मदास को अक्षय तृतीया के दिन किए जाने वाले पूजा पाठ और दान पुण्य के अक्षय पुण्य के बारे में जानकारी मिली। उसने वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को प्रातः गंगा नदी में स्नान करने के पश्चात अपने पितरों का पूजन तर्पण किया। उसके पश्चात देवी देवताओं की पूजा अर्चना की। 

धर्मदास ने ब्राह्मणों को दही, गुड़, घी, गेहूं, चना, सत्तू, स्वर्ण आदि दान में देकर उनका यथोचित सम्मान किया।

उसके पश्चात उसने प्रति वर्ष अक्षय तृतीया के दिन पूजा अर्चना और दान देना जारी रखा। उसके परिवार वालों को यह पसंद नहीं था लेकिन फिर उसने दान पुण्य करना नहीं छोड़ा।

अक्षय तृतीया के दिन किए गए इस पूजा पाठ और दान के प्रभाव से वह अगले जन्म में द्वारका के कुशावती में पैदा हुआ और वहां का राजा बन गया।

इस जन्म में भी वह धार्मिक प्रवृत्ति वाला और बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति था।अक्षय तृतीया की इस कथा को सुनने-पढ़ने से अक्षर पुण्य की प्राप्ति होती है।

Akshay tritiya ka Mahatva in hindi

अक्षय तृतीया को अखा तीज भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया के महत्व का वर्णन भविष्य पुराण, महाभारत आदि ग्रंथों में किसी गया है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया को सर्व सिद्धि मुहुर्त माना गया है। इसदिन परिणय संस्कार, गृह प्रवेश, स्वर्ण, वाहन खरीदने, भूमि पूजन और नया व्यापार आरंभ करने के लिए शुभ माना जाता है। 

ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसका शुभ फल प्राप्त होता है और उसका कभी क्षय नहीं होता। 

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं 
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया 
उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै: 
 तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव

 इस तिथि पर को किए गए दान व हवन का क्षय नहीं होता है इसलिए हमारे मुनियों ने इस दिन को अक्षय तृतीया कहा है। इस तिथि पर ईश्वर की कृपा दृष्टि पाने एवं पितरों की गति के लिए की गई विधियां अक्षय और अविनाशी होती हैं। 

अक्षय तृतीया के किए गए दान का फल कई गुना प्राप्त होता है। इस दिन गरीबों को छाता, मटका, वस्त्र, बरतन, फल दान करने का विशेष महत्व है। दान का हमारे शास्त्रों में बहुत महत्व बताया गया है। 

गौरव प्राप्यते दानात न तु वित्तस्य संचयात् । 
स्थितिः उच्चैः पयोदानां पयोधीनाम अधः स्थितिः ॥ 

धन को संचित करने से नहीं अपितु दान करने से प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। जल देने वाले बादलों का स्थान उच्चा है, जबकि जल का संचय करने वाले समुद्र का स्थान नीचा है।

  • अक्षय तृतीया के दिन पितृरों का तर्पण और पिंड दान भी किया जाता है। इस दिन पितरों के तृप्त होने पर घर परिवार में सुख शांति और समृद्धि आती है ।

  • अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था। इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। 

  • अक्षय तृतीया के दिन ही वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में बिहारी जी के चरण दर्शन होते हैं। बाकी दिन उनके चरण वस्त्रों से ढके रहते हैं। बिहारी जी के चरणों में सवा किलो वजन का चंदन का लड्डू रखा जाता है और भक्तों को दर्शन करवाए जाते है। अक्षय तृतीया के दिन बिहारी जी के चरणों के दर्शन करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है और बिहारी जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि बिहारी जी के चरण दर्शन करने से धन-धान्य की कमी नहीं होती।

  • अक्षय तृतीया के दिन चार धामों में से एक बद्रीनाथ जी के कपाट खुलते हैं। 

  • इस दिन ही वनवास के दौरान युधिष्ठिर को अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था। जिसकी खासियत थी द्रौपदी के भोजन करने से पहले उस पात्र से जितना चाहे भोजन प्राप्त कर सकते थे लेकिन जब द्रोपदी कर लेती तब उस समय उस से भोजन प्राप्त नहीं होता था।

  • अक्षय तृतीया के दिन ही जगन्नाथ जी के रथों का निर्माण कार्य आरंभ होता है। जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ मास में आरंभ होती है। जगन्नाथ जी अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। इसलिए तीन भव्य रथों का निर्माण करवाया जाता है।

  • ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सुदामा श्री कृष्ण से मिलने गए थे। सुदामा की पत्नी ने उनसे श्री कृष्ण से आर्थिक सहायता मांगने भेजा था और पोटली में तीन मुठ्ठी चावल श्री कृष्ण के लिए भेंट के रूप में बांध कर दिए थे। श्री कृष्ण ने अपने मित्र का उचित माना सम्मान किया। लेकिन सुदामा श्री कृष्ण से कुछ ना मांग सके। लेकिन ‌श्री कृष्ण तो अंतर्यामी थे। उन्होंने विश्वकर्मा को सुदामा के लिए झोपड़ी की जगह एक सुंदर महल बनाने का आदेश दिया जिसमें हर एक सुख सुविधा उपलब्ध हो। तभी तो कहते हैं कि मित्रता श्री कृष्ण सुदामा जैसी होनी चाहिए एक कुछ मांगे नहीं दूसरा सब जान जाएं इसको क्या चाहिए। 

ALSO READ

पढ़ें बांके बिहारी जी की मूर्ति कैसे प्रकट हुई 
पढ़ें जगन्नाथ रथयात्रा का महत्व 
पढ़ें अक्षय तृतीया के दिन अवतरित परशुराम जी की कहानी 
पढ़ें युधिष्ठिर को अक्षय पात्र कैसे प्राप्त हुआ। 
अक्षय तृतीया पर पढ़ें कृष्ण सुदामा की कथा

About Author : A writer by Hobbie and by profession
Social Media

Message to Author