PARENTING (PARVARISH) KYA HAI
पेरेंटिंग (परवरिश) क्या है
पेरेंटिंग या परवरिश एक माता - पिता के रूप में अपने बच्चों के पालन - पोषण को कहते हैं।पेरेंटहुड की शुरुआत
पेरेंटहुड बच्चे के जन्म से पहले जब बच्चा अपनी मां के गर्भ में होता है तब से शुरू हो जाता है। पेरेंटिंग में मां और पिता दोनों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जब किसी विवाहित दंपति को पता चलता है कि वह माता पिता बनने वाले हैं तभी से उनका बच्चे के साथ भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है।तभी से वह दोनों गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत के लिए अच्छे से अच्छे डाक्टर की सलाह लेते हैं। डाक्टर की सलाह पर मां के सारे जरूरी टेस्ट करवाएं जाते हैं ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे को किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े।
मां गर्भ में पल रहे बच्चे अच्छी सेहत के लिए अपनी diet का ख्याल रखती है ताकि बच्चे को जरुरी पोषण तत्व मिल सके। समय समय पर अपनी जांच करवाती है ताकि मां और बच्चे दोनों ठीक रहे।
बच्चे का भावनात्मक जुड़ाव
ऐसा माना जाता है कि गर्भ में पल रहा शिशु अपने माता पिता की आवाज को पहचान लेता है और उसका एक भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है।मां की भूमिका
डिलिवरी से पहले जो मां एक कोक्ररोच या फिर छिपकली से डर जाती है मां बनते ही उसमें इतनी शक्ति आ जाती है कि वह अपने बच्चे के लिए किसी ख़तरे से भिड़ने के लिए तैयार रहती है। मातृत्व एक बहुत सुखद अहसास है। जब मां अपने बच्चे को पहली बार स्पर्श करती है वह अहसास आलौकिक होता है।पिता की भूमिका
अक्सर देखा गया है कि परवरिश में पितृत्व को उतनी अहमियत नहीं मिलती। लेकिन एक पिता का भी अपने बच्चे के लिए प्यार या जुड़ाव किसी भी मायने में कम नहीं होता। शायद वह अपने प्यार को व्यक्त नहीं कर पाते। लेकिन पेरेंटिंग परवरिश में हम पिता के योगदान को कम नहीं आंक सकते क्योंकि शायद एक पिता अपने बच्चे की हर एक्टिविटी में ज्यादा योगदान नहीं पाते क्योंकि उन्हें परिवार के पालन पोषण के लिए कमाने के लिए घर से बाहर रहना पड़ता है। लेकिन एक पिता को हर चीज़ की फ़िक्र रहती है कि बच्चे को अच्छा आहार मिले , अच्छी शिक्षा मिले, अच्छे संस्कार मिले।पेरेंटिंग की प्रक्रिया
पेरेंटिंग एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जो बचपन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक चलती रहती है। बच्चों की परवरिश को लेकर हर माता पिता का नजरिया अलग अलग होता है। माता पिता अपने बच्चे को हर छोटी बड़ी गतिविधि सिखाते हैं। जब बच्चा कोई नया शब्द सिखता है या फिर पहला कदम चलना सिखता है तो माता पिता की खुशी सातवें आसमान पर होती है।समय के साथ साथ बच्चा चलना, बोलना, पढ़ना, स्कूल जाना कालेज में पढ़ना आदि गतिविधियों में आगे बढ़ता रहता है। माता-पिता की भूमिका उसकी हर गतिविधि के साथ बदलती रहती है।
एक मां बचपन मे उसकी स्कूल भी होती है , मित्र भी होती है और शिक्षक भी होती है।
बच्चा जब बड़े होते हैं तो माता पिता को उनके मित्र बनकर समझाना पड़ता है।
जब वह अपने करियर को चुन रहे होते हैं या फिर किसी मुश्किल में होते हैं तो उनका मार्गदर्शक बनना पड़ता है।
पेरेंटिंग एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें आपको समय के साथ नई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं और बच्चों को भी चुनौतियों का सामना करना सिखाना पड़ता है। बच्चे को अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार देना पेरेंटिंग परवरिश का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पेरेंटिंग एक खुबसूरत एहसास है जो माता पिता के जीवन में एक पूर्णता लाता है।
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