कबीर दास जी की प्रेरणादायक कहानी
Sant Kabir Das moral story in hindi
कबीर जी ने अपने शांत स्वभाव से बदला एक अहंकारी युवक का जीवन
संत कबीर जी अपनी जीविका चलाने के लिए सुत कात कर उससे कपड़ा बनाने का काम करते थे। वह बहुत ही विनम्र और शांत स्वभाव के व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके बारे में यह बात प्रचलित थी कि उन्हें गुस्सा नहीं आता?
एक बार एक साहूकार के पुत्र ने उनके स्वभाव को परखने का निश्चय किया। वह अपने मित्रों के साथ संत कबीर जी के पास पहुंचा। उसने कबीर जी से एक साड़ी का मुल्य पूछा?
कबीर जी ने साड़ी का मुल्य दस रूपये बताया। इतना सुनते ही लड़के की खुराफात शुरू हो गई। उसने कबीर जी को क्रोध दिलाने के लिए साड़ी के दो टुकड़े कर दिए। अब वह लड़का साड़ी का एक टुकड़ा हाथ में पकड़ कर बोला कि," मुझे केवल साड़ी का एक टुकड़ा ही चाहिए। बताओ आधी साड़ी का मुल्य क्या लोगे?" कबीर जी विनम्रतापूर्वक कहा- पांच रूपये।
इतना सुनते ही लड़के ने इस बार फिर से आधी साड़ी को दो भागों में बांटा और उसका मुल्य पूछा। कबीर जी शांति पूर्वक बोले कि," अब इसका मुल्य केवल अढ़ाई रूपये है।"
लड़के का खेल चलता रहा और वह हर बार साड़ी को आगे टुकड़ों में बांट कर उसका मुल्य पूछता रहा और कबीर जी धैर्य से मुल्य बताते रहे। अंत में लड़का कहने लगा कि," मुझे अब साड़ी नहीं चाहिए क्योंकि यह टुकड़े मेरे किसी काम नहीं आएंगे।"
कबीर जी ने शांत भाव से लड़के को उत्तर दिया कि," वें टुकड़े अब तुम्हारे तो क्या किसी के काम नहीं आएंगे?
लड़के को कबीर जी को अभी भी क्रोध ना करते हुए देखकर अपने किए पर शर्मिन्दगी महसूस होने लगी। लड़का ने कबीर जी से कहा कि,"मैंने आपका नुकसान किया है इसलिए मैं इस साड़ी का मुल्य चुकाना चाहता हूं।"
कबीर जी कहने लगे कि," जो साड़ी तुमने मुझ से खरीदी ही नहीं उसका मुल्य मैं तुम से कैसे ले सकता हूं?"
लड़का अमीर साहूकार का पुत्र था। इसलिए पैसे का घमंड दिखाते हुए बोला कि," मैं तो धनी व्यक्ति हूं इसलिए इस साड़ी का मुल्य चुका भी दूंगा तो मेरे धन वैभव में कोई कमी नहीं आएगी। लेकिन तुम तो एक निर्धन जुलाहे हो तुम इतना नुक्सान कैसे सहोगे? इस साड़ी के टुकड़े-टुकड़े करके मैंने ही तो बर्बाद किया है इसलिए साड़ी का मुल्य मुझे ही चुकाना चाहिए।"
कबीर जी उसे समझाते हुए बोले कि," तुमने जो इस साड़ी का जो नुक़सान किया है उसका मुल्य देकर भी तुम उसकी भरपाई नहीं कर सकते।"
कबीर जी की बात सुनकर लड़का विस्मित होकर कबीर जी को देखने लगा कि यह जुलाहा क्या कह रहा है? वह मुल्य चुका कर भी इस साड़ी के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता।
कबीर जी ने उसे बताया कि जरा सोचो कि सबसे पहले किसान ने कितनी मेहनत से इस साड़ी के लिए प्रयोग होने वाली कपास को उगाया होगा। मेरी पत्नी फिर इस कपास को बीना और उसका सूत काता होगा। उसके बाद उसकी रंगाई की गई और उसके पश्चात उसको बुना गया।
हम सब की मेहनत तो सभी सफल हो पाती जब कोई इस साड़ी को पहनता। लेकिन तुम ने इस साड़ी के टुकड़े टुकड़े कर दिए। अब तुम ही बताओ कि इस साड़ी का मुल्य चुका कर तुम इस घाटे को कैसे पूरा कर सकते हो? लड़के की इतनी उद्दंडता के पश्चात भी कबीर जी ने शांत और सौम्य स्वर में उसे समझाया।
अब लड़का शर्म से पानी-पानी हो रहा था। वह कबीर जी के चरणों में गिर गया और क्षमा मांगने लगा।
कबीर जी ने बड़े प्यार से उसे उठाया और समझाया कि देखो बेटा अगर मैं आज तुम से इस साड़ी का मुल्य ले लेता तो मेरे नुकसान की तो भरपाई हो जाती। लेकिन तुम को जीवन का महत्वपूर्ण सबक नहीं मिल पाया। यह अहंकार तुम्हारा जीवन नष्ट कर देता।
साड़ी का क्या है? वह तो मैं मेहनत करके नई बना लूंगा। लेकिन यह जीवन अहंकार के कारण नष्ट हो जाता तो दूसरा जीवन कहां से लाते? अब तुम्हारा पश्चाताप ही इस साड़ी का असली मुल्य है। कबीर जी के इस विचार ने लड़के का जीवन पूर्णतया बदल दिया।
शिक्षा - संत कबीर जी की कहानी से संत शिक्षा मिलती है कि संत व्यक्ति परिस्थितियां कैसी भी हो अपने स्वभाव नहीं बदलते। बल्कि वह अपने अच्छे आचरण से सामने वाले का जीवन बदल देते हैं।
KABIR KE DOHE WITH MEANING IN HINDI
Kabir ji ki bodh katha in hindi
एक बार कबीर जी अपने ध्यान में हरि भजन करते हुए जा रहे थे। उनके आगे कुछ महिलाएं आपस में बातें करती हुई जा रही थी। उनमें से एक लड़की का नया नया रिश्ता तय हुआ था इसलिए उसके ससुराल से शगुन के तौर पर एक नथनी आई थी। वह लड़की अपनी सखियों को बहुत इतरा कर बता रही थी कि उन्होंने नथनी खास तौर पर मेरे लिए भेजी है। वह नथनी ऐसी है , वैसी है। वह केवल बढ़-चढ़कर नथनी का ही वर्णन करते जा रही थी। पीछे से आ रहे कबीर जी के कानों में उसकी सभी बातें पड़ रही थी। कबीर जी जब उन महिलाओं से आगे निकले तो उन्होंने कहा -
नथनी दीनी यार ने, तो चिंतन बारम्बार
नाक दीनी करतार ने,उनको दिया बिसार।
उनके कहने का भाव था कि उसके होने वाले पति ने नथनी भेजी तो उसके बारे में बहुत बार वर्णन किया जा रहा है लेकिन जिस ईश्वर ने उस नथनी को पहनने के लिए नाक दिया है उसको वह भूल गई है।हमारे साथ भी अक्सर यह होता है कि सांसारिक सुखों में हम इतने मग्न हो जाते हैं और ईश्वर ने हमें जो दिया है उसके लिए हम उसका आभार व्यक्त करना भूल जाते हैं।
कबीर जी की पगड़ी की कहानी
संत कबीर जी के बारे में एक किंवदंती है कि एक बार संत कबीर ने बड़ी मेहनत से सुंदर पगड़ी बनाई। वह उस पगड़ी को बेचने के लिए बाज़ार चले गए। उन्होंने ऊँची-ऊँची आवाज़ लगाई 'शानदार पगड़ी, जानदार पगड़ी, उनकी आवाज़ सुनकर खरीदारों ने उसका भाव पूछा। कबीर जी ने खरीददार को उसका मुल्य दो टके बताया।
अच्छी तरह से पगड़ी का निरीक्षण करने के पश्चात वह बोला कि एक टके में बेचोगे। कबीर जी ने इंकार कर दिया। हर खरीदार उसका मुल्य एक टका बोलकर आगे बढ़ जाता। आखिर निराश होकर कबीर जी घर की ओर लौट गए। अभी अपने घर में प्रवेश करने ही वाले थे कि उनको एक पड़ोसी मिल गया। कबीर जी को परेशान देखकर उसने कारण पूछा। कबीर जी ने सारी बात उसे बता दी। वह पड़ोसी बोला आप पगड़ी मुझे दे दो। मैं कल सुबह इसको बेचेंगे जाऊंगा। कबीर जी ने अपनी बनाई हुई पगड़ी अपने पड़ोसी को थमा दी।
अगले दिन सुबह पड़ोसी बाजार पहुंचा और जोर जोर से आवाज लगाने लगा जानदार पगड़ी, शानदार पगड़ी आठ टके की पगड़ी। पहला खरीदार पगड़ी के दाम सुनकर उसके पास आया। वह पूछने लगा कि इस पगड़ी में ऐसा विशेष क्या है जो तुम इतने ऊंचे दामों में बेच रहे हों। कबीर जी का पड़ोसी कहने लगा कि," आप स्वयं देख लो यह पगड़ी कितनी शानदार और जानदार है। ऐसी पगड़ी आपको दूसरी नहीं मिलेगी। जब आप इस पगड़ी को पहनोगे तो बहुत खास लगोगे।"
वह व्यक्ति बोला कि ठीक ठीक मुल्य लगाओ। पड़ोसी बोला ठीक है छः टके में ले लो, खरीदार बोला भाई पांच टके में यह पगड़ी मुझे दे दो। पड़ोसी मान गया और पांच टके लाकर उसने कबीर जी को दे दिए और सारी बात बता दी। तब कबीर जी के बोले कि
सत्य गया पाताल में, झूठ रहा जग छाए।
दो टके की पगड़ी, पाँच टके में जाए॥
इस संसार में ऐसा बहुत बार होता है जब सत्य उचित कीमत पर नहीं बिकता और झूठ अक्सर ऊंची कीमत पर बिक जाता है।
बुरा जो देखन मैं चला
मन के हारे हार है
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