GANESH JI KE BHAKTO KI KATHA IN HINDI

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Lord ganesha:गणेश जी के भक्तों की कथा 

गणेश जी भगवान शिव और मां पार्वती के पुत्र हैं। उन्हें विध्न हर्ता, विनायक, लम्बोदर आदि कई नामों से जाना जाता है। लेकिन गणेश चतुर्थी के दौरान गणपति बप्पा मोरया मंगल मूर्ति मोरया नाम के जयकारे चारों ओर गुंजते है। पढ़ें गणपति जी के साथ मोरया का नाम कैसे जुड़ा।

गणेश जी के भक्त मोरया गोसावी की कथा 

Lord Ganesha: आपने गणेश चतुर्थी पर लोगों को गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया! के जयकारे लगाते हुए सुना होगा। कहते हैं कि कई बार भगवान अपने प्रिय भक्तों के नाम से भी जाने जाते हैं। गणपति जी के साथ मोरया भी उनके प्रिय भक्त मोरया गोसावी के नाम से जुड़ गया। महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 18 किलोमीटर दूर चिंचवाड़ क्षेत्र में हर कोई गणेश जी के भक्त मोरया के बारे में जानता है। जहां पर मोरया गोसावी ने गणेश जी के एक मंदिर की स्थापना की थी।

मोरया गोसावी गणेश जी के परम भक्त थे। उनको गणपति जी की भक्ति विरासत में अपने माता-पिता से प्राप्त हुई थी। उनके पिता का नाम वामन भट्ट और माता का नाम पार्वती बाई था। दोनों पति-पत्नी गणेश जी के भक्त थे। 

 मोरया गोसावी जी भी गणेश जी के भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि मोरया गोसावी जी हर वर्ष गणेश चतुर्थी को चिंचवाड़ से पैदल यात्रा करके वहां से 95 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर में श्री गणेश के दर्शन के लिए जाते थे। उनके बचपन से 117 वर्ष की आयु तक यह सिलसिला चलता रहा। 

लेकिन वृद्धावस्था के कारण उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। एक दिन गणपति जी ने उनको स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जब तुम प्रातः काल नदी पर स्नान करने जाओगे तो तुम्हें एक प्रतिमा मिलेगी। 

अगले दिन जब वह स्नान करने गए तो उन्हें स्वप्न में जैसे स्वरुप के गणपति जी ने दर्शन दिए थे वैसी ही मूर्ति मिली। मोरया गोसावी जी ने उस मूर्ति को लेकर चिंचवाड़ में ही स्थापित कर दिया और उसकी पूजा अर्चना करने लगे। 

समय के साथ चिंचवाड़ मंदिर की लोकप्रियता बढ़ने लगी और दूर-दूर से भक्त गणपति जी के दर्शन करने आने लगे। भक्त गणपति जी का दर्शन करने के पश्चात उनके प्रिय भक्त का आशीर्वाद लेते। ऐसा माना जाता है कि भक्त उन्हें गणपति मोरया कहते और वह अपने भक्तों को मंगलमूर्ति कहते।

 समय के साथ गणपति और उनके भक्त मोरया का नाम एक साथ पुकारा जाने लगा "गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया"। 

गणेश जी जब अपने भक्त के नौकर बन गए

Lord Ganesha: एक बार गणेश जी को भूख लगी तो उन्होंने एक सेठ के खेत से अनाज के कुछ दाने चोरी करके का लिए। बाद में गणेश जी के मन में पछतावा हुआ तो वह पश्चाताप के रूप में सेठ के घर पर नौकर बन कर नौकरी करने लगे। 

एक दिन सेठ की पत्नी राख से हाथ धोने लगी तो गणेश जी ने उसके हाथ पकड़ कर मिट्टी से धुलवा दिए। सेठानी ने सेठ को शिकायत की कि आपके नौकर ने मेरा हाथ पकड़ा था। सेठ ने इसका गणेश जी से पूछा। गणेश जी कहने लगे कि," सेठ जी ऐसा मैंने इसलिए किया क्योंकि राख से हाथ धोने से लक्ष्मी जी चली जाती है लेकिन मिट्टी से हाथ धोने से लक्ष्मी जी का आगमन होता है।" गणेश जी की बात सुनकर सेठ प्रसन्न हुआ कि यह नौकर तो बहुत ज्ञानवान है।

कुछ दिनों के पश्चात सेठ ने गणेश जी को सेठानी जी को कुंभ मेला स्नान करा लाने के लिए कहा। सेठानी वहां पहुंच कर किनारे पर बैठ स्नान कर रही थी तो गणेश जी ने हाथ पकड़ कर डुबकी लगावा दी। सेठानी ने इस बार भी सेठ से शिकायत कर दी कि यह नौकर इतने लोगों के बीच हाथ पकड़ कर पानी में ले गया। सेठ जी ने इस बार भी कारण पूछा।

नौकर बने गणेश जी कहने लगे कि," सेठ जी सेठानी तो किनारे पर बैठ कर गंदे पानी से नहा रही थी। मैंने इन्हें पकड़ कर साफ़ पानी में ले जाकर अच्छे से डुबकी लगवाई जिससे इन्हें अगले जन्म में राजपाट का सुख प्राप्त होगा।" इस बार भी गणेश जी की बात सुनकर सेठ संतुष्ट हो गया।

एक दिन सेठ के घर पर हवन की तैयारी चल रही थी। सेठानी काली चुनरी ओढ़कर हवन में जाने लगी तो गणेश जी ने सेठानी को टोका और कहा कि पूजा में काले वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए इसलिए तुम लाल चुनरी ओढ़कर जाओ। 

सेठानी गणेश जी की बात से नाराज़ हो गई। सेठ ने सेठानी से इसका कारण पूछा तो सेठानी कहने लगी कि अब यह मेरे कपड़ों पर भी रोकटोक करने लगा कि। यह सुनकर सेठ ने उन्हें डांटा कि यह कैसी बदमाशी है। 

गणेश जी कहने लगे कि," मैंने तो ऐसा इसलिए किया ताकि सेठानी जी काले वस्त्र धारण कर हवन में ना बैठे। ऐसा माना जाता है कि काले वस्त्र धारण कर शुभ कार्य करने से वह सफल नहीं हो पाता।" सेठ सोचने लगा कि गणेश कह तो बिल्कुल ठीक रहा है और उसने सेठानी को लाल चुनरी ओढ़कर हवन में बैठने के लिए कहा।

एक बार सेठ जी ने  पूजा रखी लेकिन गणेश जी की मूर्ति लाना भूल गए। सेठ ने गणेश जी से पूछा अब क्या करें? गणेश जी कहने लगे कि मुझे ही मूर्ति के समान विराजमान कर दो। सेठ जी गुस्सा हो गए कि पहले यह सेठानी को मजाक करता था आज तो मेरे साथ ही करने लगा है। 

गणेश जी कहने लगे कि मैं मजाक नहीं कर रहा। मैं सचमुच में गणेश हूं। इतना कहते ही गणेश जी ने अपना वास्तविक रूप धारण कर लिया। सेठ और सेठानी ने गणेश जी की पूजा की। पूजा के पश्चात गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए। अब सेठ सेठानी को पछतावा होने लगा कि हमने गणेश जी से इतना काम करवाया। गणेश जी को सेठ के सपने में दर्शन देकर कहा कि मैंने तुम्हारे खेत से अनाज के दाने तोड़ खा लिए थे। उसके पश्चाताप के रूप में मैंने तुम्हारे घर पर नौकर बन कर काम किया। तुम को किसी भी तरह का पछतावा नहीं करना चाहिए।गणेश जी की कृपा से सेठ का घर परिवार धन धान्य से परिपूर्ण हो गया। 

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