HONESTY IS THE BEST POLICY STORY

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 ईमानदारी का फल - Motivational story in hindi 

ईमानदारी किसी भी व्यक्ति में पाएं जाने वाले नैतिक मूल्यों में से एक है। ईमानदार व्यक्ति सदैव अपने कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाते हैं और अपने रिश्तों के प्रति सदैव ईमानदार रहते हैं। परिस्थितियां चाहे जैसे भी आएं उनका व्यक्तित्व में कोई बदलाव नहीं होता और उचित समय आने पर उन्हें अपनी ईमानदारी का फल भी जरूर‌ मिलता है। पढ़ें एक सच्चे और ईमानदार लड़के की कहानी जिसे समय आने पर उसकी ईमानदारी का जो फल मिला वह उसकी सोच से कहीं परे था।

STORY ON HONESTY 

गायत्री जी और उनके पति का जीवन बहुत आराम से गुजर रहा था। लेकिन काफी कोशिश के बाद भी उनको संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। गायत्री जी के पति कपड़े के व्यापारी थे। वह भी कामकाज में उनकी सहायता करती थी। लेकिन कहते हैं ना सब दिन एक से नहीं रहते। एक दिन हृदय गति रुकने से अकस्मात् उनके पति का देहांत हो गया। उनकी तो मानो दुनिया ही थम गई थी।

लेकिन धीरे-धीरे उनको रोजमर्रा के जीवन में सामान्य होना पड़ा। क्योंकि उनकी कमाई का साधन केवल उनकी कपड़े की दुकान थी। लगभग एक माह बाद उन्होंने दुकान खोली। सभी व्यापारी उनको जानते थे इसलिए माल एक फोन करने पर ही उनकी दुकान पर पहुंच जाता।

अब उनको मदद के लिए दुकान पर किसी लड़के की जरूरत थी। उनके भाई ने कहा कि मेरे गांव के पड़ोस वाले गांव में एक राजेश नाम का लड़का है। उसकी उम्र कोई 13-14 वर्ष की होगी। उसने आठवीं तक पढ़ाई की है। आठवीं के बाद पढ़ने के लिए शहर जाना पड़ता है और उसके पिता की आर्थिक हालत इतनी अच्छी नहीं थी इसलिए वह उसे आगे पढ़ा नहीं पाएं। उसके पिता एक दिन मुझ से उसे अच्छी नौकरी दिलाने की बात कर रहे थे। अगर तुम कहो तो उसे नौकरी के लिए तुम्हारे पास भेज दूं।

गायत्री जी के भाई ने कहा - उसका गांव दूर है इसलिए तुम्हें उसके रहने और खाने का भी प्रबंध करना होगा। गायत्री जी ने अपने भाई से उसे नौकरी पर रखने की बात कह दी। लड़का बहुत ही होशियार और समझदार था। जल्दी ही व्यापार की बारिकियां समझ गया। राजेश को अब रहने के लिए घर, खाना और कपड़े गायत्री जी दिला देती और अपनी तनख्वाह वह अपने गांव भेज देता। 

अब उसे नौकरी करते हुए लगभग चार-पांच साल हो गए थे। एक दिन गायत्री जी कहने लगी कि गांव में हमारी जो जमीन थी उसका सौदा हो गया है मुझे अपने हिस्से के पैसे लेने जाना है तुम मेरे साथ चलो। जब वह दोनों वापस लौट रहे थे तो राजेश ने पूरे रास्ते उनका अच्छे से ध्यान रखा। 

अब धीरे-धीरे राजेश ने पूरी दुकानदारी संभाल ली थी। राजेश गायत्री जी से बार बार कहता कि हमें अब अपनी दुकान बड़ी कर लेनी चाहिए क्योंकि ग्राहकों के हिसाब से यह दुकान छोटी पड़ रही थी।।

एक दिन गायत्री जी कहने लगी कि मेरे सारे गहने मेरे पति के मित्र के पास है मैं उन गहनों को बेचकर दुकान को बड़ा कर लेती हूं। ‌ लेकिन सुरक्षा के लिए वह गहने लेने तुम मेरे साथ जाना ‌। दोनों गायत्री जी के पति के मित्र के घर पर पहुंचे और अच्छे से गहने लेकर वापस आ गए। गायत्री जी ने उन गहनों को बेचकर दुकान की जगह अब शोरूम खोल लिया। 

राजेश के परिवार वाले अब उसकी शादी करना चाहते थे। यह बात वह कई बार गायत्री जी से कर चुके थे। एक दिन एक वकील गायत्री जी के शोरूम में आया और कहने लगा कि मैडम मैंने जिसके नाम पर आपने कहा था मैंने उसके नाम पर आपकी आधी जायदाद के कागज़ तैयार कर दिए हैं। उसके पश्चात वकील साहब ध्यान से राजेश की ओर देखते हुए बोले कि यह नौजवान कौन है? गायत्री जी ने वकील साहब को राजेश का परिचय दे दिया। 

अगले दिन गायत्री जी राजेश से कहने लगी कि मुझे तुम्हारे गांव तुम्हारे माता-पिता से मिलने जाना है। राजेश एक दम स्तब्ध रह गया कि अचानक गायत्री जी को मेरे गांव क्यों जाना है? खैर राजेश उनकी बात टाल नहीं सकता था और दोनों राजेश के गांव पहुंचे। राजेश के शहर में नौकरी करने से उसके परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से बहुत अच्छी हो गई थी। 

गायत्री जी राजेश के माता-पिता से कहने लगी कि,"मैं आपके पुत्र को कानूनी रूप से अपना बेटा बनाना चाहती हूं। मैंने अपनी 50% प्रापर्टी भी इसके नाम पर कर दी है।" अचानक ऐसी बात सुनकर राजेश और उसके माता-पिता सन्न रह गए। गायत्री जी कहा- मैं राजेश को अपना पुत्र बनाने के पश्चात उसका विवाह स्वयं करवाना चाहती हूं। राजेश जैसे पहले आपको अपनी तनख्वाह भेजता था वैसे ही भेजता रहेगा। जैसे पहले महीने में एक-दो बार आपसे मिलने आता था वैसे ही आता रहेगा। राजेश के माता-पिता ने हामी भर दी और भला राजेश को भी क्या ऐतराज़ हो सकता था।

गायत्री जी ने अपने सभी रिश्तेदारों को बता दिया कि अब से राजेश कानूनी तौर पर उनका बेटा है। उन्होंने एक सुशील कन्या देखकर उसकी शादी करवा दी। अब राजेश और उसकी पत्नी दोनों गायत्री जी की अच्छे से देखभाल करते। एक दिन राजेश की पत्नी ने गायत्री जी से कहा कि मुझे आपसे एक बात पूछनी है। आप वादा करें कि आप सच बताएंगी। गायत्री जी ने आश्वासन दिया कि अगर बात बताने वाली होगी तो मैं जरूर सत्य ही बताउंगी। 

राजेश की पत्नी पूछती है कि मांजी आज के समय में कोई किसी पर एक पैसे का विश्वास नहीं करता और आपने इनके नाम अपनी आधी जायदाद कैसे लिख दी? गायत्री जी कहती हैं कि," बेटा उसकी ईमानदारी परख कर ही मैंने उसके नाम अपनी जायदाद की है।"

जब से राजेश मेरे पास आया है तब से लेकर आज तक उसने एक भी बार पैसों की हेराफेरी नहीं की। मैंने बहुत जांच परख कर ही उसे अपना पुत्र बनाया है और अपनी जायदाद उसके नाम की है। पहली बार जब वह 18 साल का हुआ तो मेरे मन में आया कि जांच लूं कि कहीं जवानी के जोश में इसकी ईमानदारी कम तो नहीं हो गई। मैं इसको अपने साथ यह कह कर गांव ले  गई कि मुझे खानदानी जायदाद के हिस्से के पैसे लेने जाना है। जबकि उस पैकेट में कोई पैसे थे ही नहीं। मैं तो केवल देखना चाहती थी कि कहीं लाखों रूपए की बात सुनकर इसकी ईमानदारी डगमगाने तो नहीं लगी। लेकिन यह अपनी ईमानदारी की जांच मैं खरा उतरा। 

उसके पश्चात जब इसने कहा कि मुझे दुकान की जगह शोरूम खोलना चाहिए‌। उस समय भी मैंने इसकी ईमानदारी को परखा लेकिन उस समय भी इसके मन में कोई लालच नहीं आया। 

जब मैंने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि मैं इसको अपना पुत्र बनाऊंगी तब मैं वकील के पास गई। वकील साहब ने भी मुझ से वही बात कही थी जो तुमने अभी कहीं है कि आज के समय में कोई किसी पर एक पैसे का विश्वास नहीं करता और आप अपनी आधी जायदाद किसी दूसरे के नाम करने जा रही है। मैंने वकील साहब से कहा कि वह लड़का बहुत ही मेहनती हैं और बहुत ही ईमानदार भी है। 

वकील साहब कहने लगे कि मेरा पाला दिन भर बेईमान और ईमानदार दोनों तरह के लोगों से पड़ता है। मैं कल आपके शोरूम में आऊंगा। मैं उस लड़के के सामने आपकी जायदाद के कागज़ तैयार होने की बात करूंगा। आप उस समय उसका परिचय मुझ से करवाना। मैं इंसान को देखकर बता सकता हूं कि वह व्यक्ति कैसी नियत का है। राजेश से मिलने के पश्चात वकील साहब को भी राजेश ईमानदार लगा। इस तरह उसकी अपने काम के प्रति निष्ठा और ईमानदार ने मेरा दिल जीत लिया और मैंने उसे अपना पुत्र बनाकर अपनी आधी सम्पत्ति उसके नाम कर दी। 

मेरे द्वारा आधिकारिक तौर पर उसे अपना पुत्र बनाने के पश्चात भी उसके स्वभाव में रत्ती भर भी घमंड नहीं आया। बल्कि उसने पहले से कहीं ज्यादा जिम्मेदारियां अपने सिर पर ले ली है। आने वाले समय में मेरी बाकी की जायदाद का उत्तराधिकारी भी वही होगा। इसलिए ही तो कहते हैं (Honest Is The Best Policy) 

Moral - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें जीवन में ईमानदार रहना चाहिए क्योंकि ईमानदारी का फल देर सवेर जरुर मिलता है।

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