गोपाष्टमी कब, कैसे और क्यों मनाई जाती है
MONDAY, 20 NOVEMBER
गोपाष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। हिन्दू सनातन धर्म में गोपाष्टमी पर्व का विशेष महत्व है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को यह पर्व मथुरा, वृन्दावन, सहित ब्रज क्षेत्रों में बहुत उत्साह से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में गाय को माता कहा जाता है और मान्यता है कि गाय माता की सेवा करने से सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। गोपाष्टमी का संबंध श्री कृष्ण से है श्री कृष्ण को भी गाय बहुत प्रिय थी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्री कृष्ण पहली बार गाय चराने गए थे।
GOPASHTAMI KI KATHA गोपाष्टमी की कथा
ऐसी मान्यता है कि श्री कृष्ण जब छः वर्ष के हुए तो वह मां यशोदा और नंद बाबा से हठ करने लगे कि मुझे गाय चराने वृन्दावन के वन में जाना है। मां यशोदा ने बहुत समझाया लेकिन जब श्री कृष्ण ने हठ नहीं छोड़ा तो नंद बाबा ने मुर्हुत निकलवाया। ऐसी माना जाता है कि वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी का ही दिन था। मां यशोदा ने ग्वाल बाल को बुलाकर श्री कृष्ण और बलराम को उनके साथ बछड़े चराने भेज दिया। श्री कृष्ण और बलराम वृन्दावन के वन में यमुना नदी के तट पर बछड़े और गाय चराने जाते थे। श्री कृष्ण गाय के पालक बने इसलिए उन्हें गोपाल कहा जाता है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की परीक्षा लेने की सोची। श्री कृष्ण और बलराम जब ग्वाल बाल संग गाय और बछड़े चराने वन में गए हुए । दोपहर के समय जब थक कर भोजन के पश्चात सब आपस में अमोल प्रमोद करने लगे । उनके गाय और बछड़े चरते हुए बहुत दूर चले गए।
गाय और बछड़ों को ना पाकर ग्वाल बाल घबरा गए तो श्री कृष्ण कहने लगे कि आप लोग चिंतित ना हो मैं उनको ढूंढ कर लाता हूं। श्री कृष्ण गायें और बछड़ों वन, पर्वत और गुफाओं में खोजने लगे।
श्री कृष्ण को गाय और बछड़ों में से कोई भी नहीं मिला क्योंकि श्री कृष्ण की परीक्षा लेने के लिए स्वयं ब्रह्मा जी ने उनका हरण कर लिया था क्योंकि ब्रह्मा जी को लगा था कि श्री कृष्ण अब मदद के लिए उनके पास आएंगे। जब श्री कृष्ण वापिस यमुना तट पर आए तो उन्हें वहां ग्वाल - बाल को भी वहां ना पाकर श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टि से जान लिया कि ब्रह्मा जी ने ही उनको भी चुराया है।
श्री कृष्ण ने समस्त गायें, बछड़ों सहित सभी ग्वाल- बाल का पुनः निर्माण कर दिया और सबको लेकर वृन्दावन वापिस आ गए। कोई भी मां इस भेद को जान नहीं पाई कि यह उनके पुत्र नहीं है । आज सब अपने बालकों पर पहले से भी अधिक ममता लुटा रही थी। वन से वापस आई गाय भी अपने बछड़ों को चाट कर दूध पिलाने में लग गई। लगभग एक वर्ष तक ब्रह्मा जी ने अपनी माया नहीं हटाई।
एक वर्ष पश्चात ब्रह्मा जी पुनः पृथ्वी पर आए। जब श्री कृष्ण और बलराम अपनी गाय चराने वन में गए हुए थे तो वहां पर चरने वाली गाय ने ब्रह्मा जी द्वारा हरण किये गाय और बछड़ो को देखा तो वह प्रेम वश वहां चली गई। बलराम जी यह देख कर श्री कृष्ण से पूछते हैं कि यह कैसी माया है? श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहने लगे कि भईया यह मेरी नहीं ब्रह्मा जी की माया है।
बलराम जी देखते हैं कि ब्रह्मा जी द्वारा हरण किए गए गाय और बछड़े, ग्वाल बाल श्रीकृष्ण के समीप आ गए और श्री कृष्ण द्वारा निर्मित गाय, बछड़े और ग्वाल बाल अदृश्य हो गए कोई भी कुछ भी भेद नहीं जान पाया।
ब्रह्मा जी सोचने लगे कि मैं तो श्री कृष्ण को मोहित करने चला तो यहां तो श्री कृष्ण ने मुझे ही मोह लिया। ब्रह्मा जी को सभी ग्वाल बाल में भगवान के चतुर्भुज रूप के दर्शन होने लगे।यह देख कर ब्रह्मा जी व्याकुल हो गये तो श्री कृष्ण ने अपनी माया हटा ली। ब्रह्मा जी श्री कृष्ण की स्तुति करने लगे। हे प्रभु मैं मुर्ख था जो आपकी परीक्षा लेने की कोशिश की।
मुझे अपना सेवक जानकर मेरा अपराध क्षमा करें। ब्रह्मा जी के स्तुति सुनकर श्री कृष्ण ने उन्हें वापस जाने की आज्ञा दी और स्वयं ग्वाल बाल संग भोजन करने लगे और कोई भी लीलाधर की लीला का भेद कोई जान नहीं पाया? ऐसा माना कि श्री कृष्ण ने यह लीला इसी तिथि को की थी जो बाद में गोपाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ब्रह्मा जी कहने लगे कि आपने गाय और बछड़ों की सेवा की है इसलिए भक्त आपको गोविन्द और गोपाल कहेंगे। श्री कृष्ण की इस कथा को पढ़ना और सुनना विशेष फलदाई माना जाता है।
गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा कैसे करें
गोपाष्टमी के दिन अगर घर पर गाय ना हो तो आप गोशाला में जाकर गाय माता की पूजा कर सकते हैं।
गाय को चारा और गुड़ खिलाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे सुख और समृद्धि आती है।
गोपाष्टमी के दिन गाय और बछड़ों को स्नान करवाने के पश्चात उनकी आरती उतारी जाती है।
गाय को माता के समान पुजनीय माना गया है। कहते हैं कि गाय की सेवा करने से 33 कोटि देवी देवता प्रसन्न होते हैं।इसदिन गाय माता की प्रदक्षिणा ली जाती है और गो चरण स्पर्श किए जाते हैं।
गाय माता की आरती
ॐ जय जय गौमाता, मैया जय जय गौमाता
जो कोई तुमको ध्याता, त्रिभुवन सुख पाता
ॐ जय जय गौमाता
सुख समृद्धि प्रदायनी, गौ की कृपा मिले,
जो करे गौ की सेवा, पल में विपत्ति टले।
ॐ जय जय गौमाता।।
आयु ओज विकासिनी, जन जन की माई,
शत्रु मित्र सुत जाने, सब की सुख दाई।
ॐ जय जय गौमाता।।
सुर सौभाग्य विधायिनी, अमृती दुग्ध दियो,
अखिल विश्व नर नारी, शिव अभिषेक कियो।
ॐ जय जय गौमाता।।
ममतामयी मन भाविनी, तुम ही जग माता,
जग की पालनहारी, कामधेनु माता।
ॐ जय जय गौमाता।।
संकट रोग विनाशिनी, सुर महिमा गाई,
गौ शाला की सेवा, संतन मन भाई।
ॐ जय जय गौमाता।।
गौ मां की रक्षा हित, हरी अवतार लियो,
गौ पालक गौपाला, शुभ संदेश दियो।
ॐ जय जय गौमाता।।
श्री गौमाता की आरती, जो कोई सुत गावे,
पदम् कहत वे तरणी, भव से तर जावे।
ॐ जय जय गौमाता।।
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