SATSANG KA MAHIMA

SATSANG KA MAHIMA MOVTIVATIONAL STORY QUOTE DOHA KAHANI IN HINDI सत्संग की महिमा प्रेरक प्रसंग  दोहा बिनु सत्संग बिबेक न होई।

सत्संग की महिमा प्रेरक प्रसंग

सत्संग का जीवन में बहुत महत्व है। जो मनुष्य संतों और महापुरुषों के वचनों को सुनकर उन पर अमल करते हैं उनकी आत्मिक उन्नति होती है और उनका जीवन सफल हो जाता है।  सत्संग से दुर्गुण नष्ट होते हैं और दया, परोपकार, विनम्रता, धैर्य और साहस आदि सद्गुणों बढ़ते हैं। सत्संग सुनने पर हम गलत रास्ते पर चलने से बचते और कठिन परिस्थितियों के आने पर अपने मार्ग से विचलित नहीं होते। सत्संग पर तुलसीदास जी का बहुत सुंदर दोहा है।

बिनु सत्संग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥ 

भाव- सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम जी की कृपा के बिना सत्संग सहज में मिलता नहीं मिलता। सत्संगति आनंद और कल्याण की मूल है। सत्संग की प्राप्ति ही फल है और सब साधन फूल हैं। 

SATSANG KI KAHANI MOTIVATIONAL STORY IN HINDI

एक बार एक राजा बहुत ही सनकी स्वभाव का था। उसके स्वभाव के कारण कोई भी राजा की बात को टालते की हिम्मत नहीं करता था। एक बार उसके राज्य में जब सूर्य ग्रहण लगा तो वह पुरोहितों से पूछने लगा कि, "बताओ सूर्य ग्रहण क्यों लगता है?" उन्होंने जवाब दिया कि, "राहु के सूर्य को ग्रसने के कारण सूर्य ग्रहण लगता है।"

राजा ने अपने पुरोहितों से सवाल किया कि, "राहु क्यों सूर्य को ग्रस्ता है और फिर इसके बाद उसे छोड़ कैसे देता है?" पुरोहितों ने बहुत से तर्क दिये। राजा किसी के भी उत्तर से संतुष्ट नहीं हुआ । राजा कहने लगा कि, "मैं खुद सूर्य तक पहुंचकर सच्चाई का पता लगाऊंगा।"

उसने अपनी एक विशाल सेना और मंत्रियों को सूर्य तक चलने के लिए तैयार रहने को कहा। राजा की आज्ञा के आगे कोई कुछ नहीं कर सकता। इसलिए कोई भी राजा का खुलकर विरोध नहीं कर सका। राजा का एक बुद्धिमान मंत्री बहुत चिंतित था। उसके चिंता को देखकर उसके पुत्र ने पूछा कि, "आप इतने चिंतित क्यों हैं?"

मंत्री ने अपने चिंता का कारण अपने पुत्र को बता दिया। पिता की बात सुनकर मंत्री का पुत्र कहने लगा कि, "मैं भी आपके साथ चलूंगा। लेकिन मंत्री कहने लगा कि राजा की आज्ञा के बगैर मैं तुमको अपने साथ कैसे लेकर जा सकता हूं?" 

अभी तुम्हारी आयु भी बहुत छोटी है। मंत्री के पुत्र ने जवाब दिया कि, "पिताजी विवेक और ज्ञान उम्र का मोहताज नहीं है। मार्ग में कोई विपदा आई तो मैं आप लोगों को बचा लूंगा।"

मंत्री कहने लगे कि, "ठीक है। तुम चुपके से हमारे पीछे पीछे आ जाना। राजा अपने सैनिक बल के साथ निकल पड़ा। चलते चलते वह एक घने जंगल में फंस गए और उस जंगल से निकलने का किसी को रास्ता मालूम नहीं था। इसलिए तीन दिन तक वहीं फंसे रहे।"

भूख प्यास से सैनिकों और राजा की हालत खराब हो गई थी। ऐसी हालत में राजा ने कहा कि, "किसी के पास वापस जाने का कोई उपाय है तो बताओ।" राजा की बात सुनकर मंत्री कहने लगा कि, "महाराज मेरे पुत्र के पास इस समस्या का हल है। आप आज्ञा दो तो मैं उसे बुला लूं।" राजा ने उसे बुलाने की आज्ञा दे दी। मंत्री ने अपने पुत्र को बुलाया।

राजा मंत्री के पुत्र से पूछने लगा कि," क्या तुम्हें रास्ता पता है?" मंत्री का पुत्र कहने लगा कि ,"महाराज मुझे पहले से पता था कि आप लोग रास्ता भटक जाएंगे इसलिए मैं अपनी घोड़ी को साथ लाया हूं।  जैसे ही मैं घोड़ी को मुक्त करूंगा, वह सीधे
अपने बच्चे को मिलने के लिए दौड़ेगी जो कि हमारे घर पर हैं और हम उसके पीछे पीछे जाएंगे तो हमें रास्ता मिल जाएगा।"

राजा ने मंत्री के पुत्र से पूछा कि," तुम्हें कैसे पता कि घोड़ी सीधे अपने बच्चे के पास जाएगी और उसे रास्ता मिल जाएंगा। मंत्री का पुत्र कहने लगा कि, "महाराज ईश्वर ने पशुओं को ऐसी योग्यता दी है कि वह किसी भी अनजान रास्ते में होकर गुजरे लेकिन वह अपने घर का पता लगा लेते हैं ऐसा मैंने एक सत्संग में सुना था।"  राजा कहता है कि इस समय हमारे पास और कोई समाधान नहीं है इसलिए तुम्हें जैसा उचित लगे वैसा करो।

मंत्री के पुत्र ने जैसे ही अपनी घोड़ी की लगाम छोड़ी। घोड़ी सीधे उसके घर की ओर दौड़ी और उसके पीछे पीछे पूरी सेना राजा और उसका मंत्री मंडल भी सुरक्षित अपने राज्य पहुंच गए।

राजमहल पहुंच कर राजा ने मंत्री के पुत्र को बुलाया और उससे पूछा कि,"तुम्हें कैसे पता था ताकि हम सब रास्ता भटक जाएंगे?" मंत्री के पुत्र ने जवाब दिया कि राजन सूर्य जहां से करोड़ों कोस दूर है और आज तक कोई भी सूर्य तक नहीं पहुंच सका। इसलिए आप सभी का कहीं तो फंसना स्वाभाविक था। उसकी ज्ञान भरी बातें सुनकर राजा कहने लगा कि यह बातें तुम ने कहां से सुनी है? मंत्री के पुत्र ने विनम्रता से कहा कि," यह सब बातें मैंने अपने गुरु से सत्संग में सुनी थी कि जहां बड़ों-बड़ों बुद्धि काम करना बंद कर देती है वहां गुरु का दिया हुआ ज्ञान हमें राह दिखाता है ।

इसलिए राजन्! आपको भी संतों का सत्संग सुनना चाहिए और उनके मार्गदर्शन पर चलना चाहिए । क्योंकि अगर राजा सत्संग सुनेगा तो प्रजा भी उसके अनुकरण करेगी जिससे राज्य में सुख शांति और समृद्धि होगी।

राजा ने प्रसन्न होकर मंत्री के पुत्र को स्वर्ण मुद्राएं प्रदान की और उसे अपना मंत्री नियुक्त कर लिया। राजा ने निश्चय किया कि मैं भी अब से सत्संग में जाऊंगा ताकि संतों की शिक्षा को अपने जीवन में उतार सकूं। 

संत वाणी की महिमा से बदला चोर का जीवन 

SATSANG KI MAHIMA KAHANI IN HINDI:एक बार एक चोर था।जब उसका अंतिम समय निकट आया तो उसने अपने पुत्र को पास बुलाया। उसे चोरी के गुर बताने हुए कहने लगा कि,"बेटा जिंदगी में दो बातें सदैव याद रखना। कभी भी चोरी करते हुए पकड़े जाओ तो अपनी गलती मत मानना और दूसरा कभी भी किसी साधु संत का सत्संग सुनने मत जाना। इतना कहकर उस चोर की मृत्यु हो गई।

उसकी मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र भी चोरी करने लगा।  लेकिन एक बार वह चोरी करने राजमहल में चला गया। राजमहल में उसे चोरी करते हुए रखवालों ने देख लिया लेकिन उसका चेहरा अच्छी तरह से नहीं देख पाए। चोर अब जल्दी से वहां से भागने लगा। उसे पकड़ने के लिए तीन ओर से सैनिक खड़े थे।

उसके पास भागने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता था सामने पंडाल में एक संत जी प्रवचन कर रहे थे। ना चाहते हुए भी उसे उस सत्संग वाले पंडाल से निकलना पड़ा। उसे अपने पिता की बात याद आ गई कि कभी भी किसी संत का सत्संग मत सुनना। इसलिए वहां से गुजरते हुए उसने अपने कान बंद कर लिए।

 लेकिन उसका पैर फिसल गया और उसके कान में संत जी के एक वचन पड़ गया कि देवी देवताओं की परछाईं नहीं होती। उसके भागने की कोशिश नाकाम रही और शक के आधार पर उसे पकड़ लिया गया। 

लेकिन वह अपनी चोरी मानने को तैयार नहीं हुआ। वह यही दोहराता रहा कि मैंने चोरी नहीं की है।"  शक के आधार पर राजा ने उसे जेल में तो डाल दिया लेकिन उसके लिए कोई भी सजा निश्चित नहीं हो पाई। क्योंकि अब तक उसने अपनी चोरी करने का जुर्म कबूल नहीं किया था और उसके खिलाफ कोई सबूत भी नहीं था। राजा को कहीं से सूचना मिली कि यह चोर और डाकू एक देवी की पूजा करते हैं। 

राजा ने एक योजना बनाई। राजा ने रंगमंच पर अभिनय करने वाली युवती से कहा कि तुम उस देवी का रूप धारण करो और उसकी सारी सच्चाई पता करो। सारी योजना बना ली गई कि जब देवी जेल में उसके पास जाएगी तो एक अलौकिक प्रकाश पीछे से रोशनदान से किया जाएगा और जेल के दरवाजों को भी रहस्यमय तरीके से खोल दिया जाए ताकि उसे लगे कि सचमुच देवी प्रकट हुई है। ताकि चोर अपना जुर्म कबूल कर ले।

निर्धारित समय और दिन पर देवी उसके सामने प्रकट हुई और कहने लगी बेटा कि,"पुत्र तुम मुझे दिन रात याद करते हो इसलिए मैं तुम्हारे दर्शन देने आई हूं। क्या तुम ने चोरी की है? तुम मुझे बता सकते हो। मैं तुम्हें इस जेल से मुक्त करवा दूंगी।"

  चोर जैसे ही देवी को सच्चाई बताने लगा है," उसी समय उसे देवी की परछाईं दिखाई दी। उसे उस दिन सत्संग में सुनी संत की बात याद आ गई कि देवी देवताओं की परछाई नहीं होती।

 अब मुझसे सब समझ आ जाता है कि उसे फंसाने के लिए यह सब प्लानिंग की गई है। वह थोड़ा संभल कर कहता है कि," हे! देवी मां आप तो जानती हैं कि मैं आपका भक्त हूं। मैंने चोरी नहीं की मुझे झूठे अपराध में फंसाया जा रहा है। आपसे तो कुछ भी छिपा नहीं है। आप तो जानती ही कि,"मैं आपसे झूठ नहीं बोल रहा। कृपया मुझे इस कैद से मुक्त करवाओ।

 जेल से बाहर बैठे सिपाही सारी बातें सुन रहे थे। उन्हें वास्तविकता में लगा के इस चोर ने चोरी नहीं की है और सब बातें जाकर राजा को बता दी। राजा ने सुबह उसे जेल से मुक्त करने का आदेश दे दिया। 

 कैद मुक्त होने के पश्चात पहली बार उसने सत्संग और संत दोनों का शुक्रिया किया और मन ही मन सोचने लगा कि अगर संत की एक बात से मुझे जीवनदान मिल गया अगर मैं हर रोज सत्संग पर जाऊंगा तो मुझे कितना ज्ञान मिल जाएगा और मेरा जीवन सफल हो जाएगा। इस तरह सत्संग में सुनी संत की बात से उसका जीवन और सोच पूर्णतया बदल गई।  

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