VISHNU BHAKTA PRAHLADA AND NARSIMHA AVTAR STORY IN HINDI

VISHNU BHAKTA PRAHLADA AND NARSIMHA AVTAR KATHA HIRANYAKASHIPU ki katha भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद की कथा नरसिंह अवतार की कथा हिरण्यकश्यप की कथा 

होलिका दहन पर पढ़ें भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद की कथा

फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। माना जाता है कि इससे बुरी और नकारात्मक शक्ति का नाश होता है और सकारात्मकता का आरंभ होता है। 2024 में होलिका दहन रविवार 24 मार्च को किया जाएगा। होलिका दहन पर पढ़ें भगवान विष्णु के प्रिय भक्त प्रह्लाद की कथा 

भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। भगवान विष्णु समय-समय पर सृष्टि और अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। भगवान विष्णु ने अपने प्रिय भक्त की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लिया था। ऐसा माना जाता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन नरसिंह अवतार लिया था इसलिए इस दिन नरसिंह जयंती मनाई जाती है।

भक्त प्रह्लाद के पिता का नाम हिरण्यकश्यप और माता का नाम कयाधु था। उनके पुत्र का नाम विरोचन और पौत्र का नाम राजा बलि था।

भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप की कथा

 HIRANYAKASHIPU STORY IN HINDI: भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप और चाचा हिरण्याक्ष के पूर्व जन्म की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्म जी के चार मानस पुत्र भगवान विष्णु के दर्शन के लिए गए। उनको भगवान के द्वारपालों जय-विजय ने रोका ,तो उन्होंने ने दोनों को शाप दिया कि तुम दोनों असुर योनि में जन्म लो।

भगवान विष्णु को जब उनके आने का पता चला तो भगवान स्वयं द्वार पर पहुँचे। सनकादिक को अपने शाप पर पश्चाताप हुआ। तब भगवान ने कहा कि यह सब मेरी प्रेरणा से ही हुआ है। मुनियों ने कहा कि हम अपना श्राप तो वापिस नहीं ले सकते लेकिन तुम्हारा उद्धार स्वयं श्री हरि अवतार के हाथों होगा। भगवान ने दोनों को दिति के गर्भ से जन्म लेने का आदेश दिया।

भगवान विष्णु के आदेश पर दोनों ने महर्षि कश्यप की पत्नी दिति के गृभ से जन्म लिया। जब दिति ने जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया तो प्रजापति कश्यप ने जो पहले उत्पन्न हुआ पुत्र का नाम हिरण्यकश्यप और दूसरे का हिरण्याक्ष रखा। 

हिरण्यकश्यप स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। देवताओं को पराजित कर दिया था और पृथ्वी लोक पर हवन यज्ञ पर पाबंदी लगा दी थी। उसका भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया था ताकि कोई भी देवता वहां तक ना पहुंच सके। भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर दिया और पृथ्वी को मुक्त कराया। अपने भाई के वध से क्षुब्द होकर हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से बदला लेने के लिए घोर तप करने वन में चला गया।

भक्त प्रह्लाद की कथा 

VISHNU BHAKTA PRAHLADA STORY IN HINDI: हिरण्यकश्यप की अनुपस्थिति में इंद्रदेव ने उसके राज्य पर आक्रमण किया और उसकी पत्नी कयाधु का उपहरण कर लिया। जब देव ऋषि नारद को इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने देवराज इन्द्र से कयाधु के उपहरण का कारण पूछा। 
इंद्रदेव कहने लगे कि इसके गृभ में दैत्य हिरण्यकश्यप की संतान पल रही है। भविष्य में वह भी मुझे से शत्रुता रखेगा।

नारद जी ने देवराज इन्द्र को चेतावनी दी कि इसके गृभ में भगवान विष्णु का परम भक्त पल रहा है। तुम उसको कुछ नहीं कर सकते। इतना सुनते ही देवराज इन्द्र ने क्षमा मांगी और वह कयाधु को छोड़कर कर देवलोक चले गए। नारदजी कयाधु को अपने आश्रम ले गए। आश्रम में नारदजी ने गर्भवती कयाधु को भगवान विष्णु की भक्ति के संस्कार और उपदेश दिया। गृभ में पल रहे बच्चे ने भी भगवान विष्णु भक्ति की संस्कार ग्रहण कर लिये। समय आने पर कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रह्लाद रखा।

उधर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की। उससे तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। हिरण्यकश्यप ने अमरता का वरदान मांगा तो ब्रह्मा जी ने उसे कोई अन्य वरदान मांगने के लिए कहा। 

 तब उसने वरदान मांगा कि मैं ना किसी अस्त्र से मरु, ना शस्त्र से, ना मैं किसी पशु से मरु और ना ही किसी मनुष्य से, ना दिन में मरु और ना रात में, ना घर के अंदर मरु और ना घर के बाहर। ब्रह्मा जी हिरण्यकश्यप को यह वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।

 ब्रह्मा जी से ऐसा वर प्राप्त कर हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। हिरण्यकश्यप वापस लौट कर अपनी पत्नी और पुत्र को अपने नगर ले गया। अब वह स्वयं को भगवान मानने लगा और उसके राज्य में भगवान विष्णु की भक्ति पर पाबंदी लगा दी क्योंकि उन्होंने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। 

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद जन्म से ही ब्रहम ज्ञानी था और विष्णु जी के भक्त था। हिरण्यकश्यप ने बहुत प्रयास किए कि वह विष्णु भक्ति बंद कर दें। उसने प्रहलाद के गुरु से कहा कि,साम-दाम-दंड-भेद सब तरह से उसकी विष्णु भक्ति छुड़ावाने का प्रयास करो लेकिन प्रहलाद ने विष्णु भक्ति नही छोड़ी।

 हिरण्यकश्यप विचार करने लगाकि शत्रु का प्रेमी कुल का नाशक हो सकता है इसलिए उसने प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया। सैनिकों ने प्रह्लाद पर अस्त्र-शस्त्र से प्रहार किया लेकिन विष्णु जी की कृपा से उसका कुछ नहीं बिगडा।

प्रह्लाद को हाथियों के आगे कुचलने के लिये फिंकवाया गया। समुद्र में फेंका गया, पर्वत की चोटी से गिराया गया , विषैले सर्पों से डसवाया गया , उसके भोजन में विष मिलाया गया लेकिन भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि से प्रह्लाद हर बार बच जाता। जब हिरण्यकश्यप प्रह्लाद का किसी भी तरीके से वध नहीं कर पाया तो उसने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। 

भक्त प्रह्लाद और होलिका की कथा 

BHAKTA PRAHLADA AND HOLIKA STORY IN HINDI: हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और प्रह्लाद की बुआ को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप ने होलिका को प्रह्लाद को अग्नि  में लेकर बैठने को कहा। लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैैैठी तो विष्णु भक्त की कृपा से प्रहलाद का अग्नि कुछ ना बिगाड़ पाई। अग्नि की लपटें प्रह्लाद को शीतलता प्रदान कर रही थी। वह अग्नि में भी पूरे समर्पण भाव से भगवान विष्णु के नाम का ही जप कर रहा था।

लेकिन होलिका जिसे ना जलने का वरदान प्राप्त था अग्नि में जलकर भस्म हो गई। इसलिए इस दिन को होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। माना जाता है कि इससे बुरी और नकारात्मक शक्ति का नाश होता है और सकारात्मकता का आरंभ होता है। 

भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार की कथा 

BHAGWAN VISHNU NARSIMHA AVTAR KATH: हिरण्यकश्यप ने स्वयं प्रह्लाद को समाप्त करने का निश्चय किया। एक दिन वह कहने लगा कि तेरा भगवान कहां पर है? प्रह्लाद कहने लगे कि वह तो सर्वत्र है। हिरण्यकश्यप बोला क्या इस खंभे में भी तेरा भगवान विद्यमान है। प्रह्लाद ने कहा हां पिता जी वह तो सर्वत्र है। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को खंभे से बांध कर उस पर प्रहार करना चाहा तो अपने प्रिय भक्त की रक्षा के लिए उस खंभे से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए। उनका आधा शरीर मानव का और आधा सिंह का था।

नरसिंह भगवान हिरण्यकश्यप को पकड़ कर राजभवन की दहलीज पर ले गए। भगवान नरसिंह को मारने से पहले अपनी जांघों पर डाल कर दिया और उसका वध करने से पहले बोले कि -तुम्हारा वरदान था कि ना मैं किसी पशु से मरु और ना ही किसी मनुष्य से, मेरा आधा शरीर सिंह का है और आधा मनुष्य का।

 तुम ने वरदान मांगा था कि ना दिन में मरु ना रात में, देखले इस समय संध्या का समय है।

 तुम ने कहा था कि ना घर के अंदर मरु और ना घर के बाहर इस समय तू राजभवन की दहलीज पर है ना अंदर ना बहार।

तुम ने कहा था कि मैं ना किसी अस्त्र से मरु ना शस्त्र से, उसी समय नरसिंह भगवान ने अपने नखों से उसके सीने को चीर दिया। लेकिन नरसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ।

हिरण्यकश्यप की मृत्यु का समाचार सुनकर ब्रह्मा जी, शिव जी,इंद्र आदि देवता पहुँचे और नरसिंह भगवान को शांत करने के लिए स्तुति करने लगे। लेकिन उनका क्रोध शांत ना कर पाएं। 

ब्रह्मा जी ने भक्त प्रह्लाद को नरसिंह भगवान के पास भेज।प्रह्लाद भक्त ने उनकी स्तुति की तो नरसिंह भगवान ने उसे अपनी गोद में बैठा लिया और उनका उग्र रूप शांत हो गया। भगवान ने प्रहलाद को वर मांगने के लिए कहा। प्रह्लाद कहने लगे कि प्रभु आप अगर मुझे वर देना चाहते हैं तो ऐसा वर दे कि मेरे मन में कभी भी कुछ मांगने की इच्छा जाग्रत ना हो। भगवान ने उसको हिरण्यकश्यप के राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 

प्रह्लाद जी कहने लगे कि मेरे पिता ने जो अज्ञानता वश आपका अपमान किया है उस पाप के लिए उन्हें क्षमा करें। भगवान नरसिंह बोले कि मेरे अंगों का स्पर्श पाते ही तुम्हारे पिता को उत्तम लोक प्राप्त हो गया है। प्रह्लाद तुम्हारी भक्ति ने तुम्हारे कुल की इक्कीस पीढ़ियों को तार दिया है। प्रह्लाद की स्तुति से नरसिंह भगवान प्रसन्न हो गए और सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की। भक्त प्रह्लाद और भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की यह कथा पढ़ना और सुनना विशेष महत्व मानी जाती है।

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