जलियांवाला बाग हत्याकांड
13 अप्रैल 1919 के दिन पंजाब में स्थित अमृतसर के जलियांवाला में जनरल रजिनाल्ड एडवर्ड डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दी थी। इस घटना को जलियांवाला बाग नरसंहार के नाम से जाना जाता है। इस नरसंहार में हजारों मासूम लोगों को बहुत निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया गया था।
2024 में जलियांवाला बाग नरसंहार की 105वीं बरसी पर शहीदों को शत् शत् नमन। जलियांवाला बाग का नरसंहार ब्रिटिश सरकार के शासन काल का काला दिवस था।
उस समय की ब्रिटिश सरकार ने पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलनों को दबाने के लिए मार्शल लॉ लगा दिया। जिसके अनुसार किसी के भी सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठे होने और किसी भी तरह के आंदोलन पर रोक लगा दी गई थी और तीन से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर पकड़े जाने पर जेल में डाल दिया जाएगा। लेकिन सभी लोगों तक यह सूचना नहीं पहुंची थी।
13 अप्रैल को शहर में कर्फ्यू था। उस दिन पंजाब का लोकप्रिय पर्व और पंजाबी नव वर्ष वैशाखी था। अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 बैसाखी पर भारी संख्या में लोग स्वर्ण मंदिर में दर्शनों के लिए आए थे। इसके साथ-साथ लोग जलियांवाले बाग में जो कि स्वर्ण मंदिर के निकट का वहां शांति पूर्वक ढंग से इकट्ठा हुए। लोकप्रिय नेता सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में वहां पर सभा हो रही थी। हज़ारों की संख्या में स्त्री, पुरुष और बच्चे एकत्रित हुए थे।
जरनल डायर द्वारा गोली चलाने का आदेश
उसी समय जनरल डायर को इस बात की सूचना मिली तो वह अपने सैनिकों के साथ बाग में पहुंचा और निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दी। बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं था क्योंकि सैनिकों ने मुख्य द्वार बंद कर रखा था और बाग दीवारें बहुत ऊंची थी ।
गोलियां से बचने के लिए और अपनी जान बचाने के लिए कुछ लोग वहां मौजूद कुएं में कूद गए। कुएं में कूदने के कारण उनकी मृत्यु हो गई। ब्रिटिश सरकार की रिपोर्ट के अनुसार 370 लोगों की मृत्यु हुई थी जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। लेकिन कांग्रेस पार्टी का मानना था कि इस निर्मम नरसंहार में एक हजार के लगभग लोगों की मृत्यु हुई।
जलियांवाला बाग नरसंहार कांड की चारों ओर निंदा की गई उसके पश्चात पूरे देश में आजादी के लिए संघर्ष तेज हो गया। रविन्द्र टैगोर ने इस बर्बरता पूर्ण हत्याकांड के पश्चात अपनी उपाधी का परित्याग कर दिया था।
ब्रिटिश सरकार ने नरसंहार की जांच के लिए हंटर आयोग का गठन किया। जरनल डायर को पद से हटा दिया गया।
जलियांवाला वाले बाग के नरसंहार के समय उधम सिंह भी वहीं मौजूद थे ।उन्होंने प्रण लिया था कि वह इसका बदला जरूर लेंगे। 13 मार्च 1940 में उन्होंने लंदन में जनरल डायर को गोली मारकर मार दिया था। 31 जुलाई 1940 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।
13 अप्रैल के नरसंहार के पश्चात जलियांवाला बाग भारतीयों के लिए बलिदान का राष्ट्रीय स्थल बन गया। इस बाग में आज भी दीवारों पर गोलियों के निशान देखे जा सकते हैं। वहां पर कुआं भी मौजूद है जिसमें लोगों कूद गए थे इस हत्याकांड को दुनिया के सबसे बुरे हत्याकांड में से एक माना जाता है।
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