Hanuman story/ Ramayan Lanka Dahan/Mythology story
हनुमान जयंती पर पढ़ें हनुमान जी की लंका दहन की कथा
लंका दहन का वर्णन रामायण और रामचरितमानस के सुंदर काण्ड में आता है। हनुमान जी जब सीता माता की खोज में लंका गए थे तब हनुमान जी ने लंका दहन किया था।
श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। श्री राम का जन्म राक्षसों के वध के लिए हुआ था। श्री राम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के घर पर हुआ था।
रामायण के अनुसार श्री राम जी को जब 14 वर्ष का वनवास हुआ तो मां सीता और लक्ष्मण जी भी उनके साथ वन में गए। वनवास के अंतिम वर्ष में रावण माता सीता का हरण करके लंका ले गया और माता सीता को अशोक वाटिका में रख दिया। श्रीराम सीता माता की खोज में पंपा सरोवर पहुंचें और वहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई। हनुमान जी ने श्री राम और सुग्रीव की मित्रता करवा दी। उसके पश्चात सुग्रीव ने सीता माता की खोज के लिए वानर सेना को भेजा।
जाम्बवन्त द्वारा हनुमान जी को प्रेरित करना
जटायु के भाई संपाती ने वानर सेना को बताया कि रावण सीता माता का हरण कर लंका ले गया है। मैं अपनी गीद्ध दृष्टि से सीता माता को देख सकता हूं। तुम मैं से लंका वहीं जा सकता है जो इस विशाल समुद्र को लांघ सकता है। उस समय जाम्बवन्त जी ने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण करवाया और कहा कि हनुमान तुम्हारा जन्म श्री राम के कार्य के लिए हुआ है।
हनुमान जी का लंका में प्रवेश
जाम्बवन्त जी की प्रेरणा से हनुमान जी में आत्मविश्वास का संचार हो गया। हनुमान जी समुंदर लांघ कर लंका पहुंच गए। हनुमान जी ने लंका में पहुंच कर सैनिकों से बचने के लिए मच्छर के समान रूप धारण कर लिया।
लेकिन लंका के द्वार पर लंका नाम की राक्षसी ने हनुमान जी को रोक कर पूछा कि,"कहां जा रहे हो?" हनुमान जी ने उसे एक घूंसा मारा जिससे संभल कर वह कहने लगी कि," मुझे ब्रह्मा जी ने कहा था कि जब वानर के मारने पर तुम व्याकुल हो जाओगी तो समझ लेना राक्षसों का नाश निकट है।" उसके पश्चात हनुमान जी लंका में मां सीता को खोजने लगे। लेकिन उन्हें कहीं भी मां सीता दिखाई नहीं दी।
हनुमान जी और विभिषण मिलन
हनुमान जी जब माता सीता को खोज रहे थे तो तब उन्हें लंका में एक भवन दिखाई दिया जिस पर श्री राम के आयुध और तुलसी के पौधे थे। हनुमान जी मन में विचार करने लगे कि लंका में राक्षसों का वास है। राक्षसों के बीच किसी सज्जन का निवास कैसे हो सकता है? तभी विभिषण जी अपने भवन से बाहर निकले तो हनुमान जी ने साधु का रूप धारण कर लिया। विभिषण जी ने साधु रूप धारण किए हनुमान जी का कुशल क्षेम पूछा। हनुमान जी ने विभिषण जी को अपना परिचय दे दिया और श्री राम के बारे में बताया। विभिषण जी ने सीता माता के बारे में हनुमान जी को बताया। हनुमान जी मसक समान रूप धारण कर अशोक वाटिका में पहुंच गए।
हनुमान जी का सीता माता के दर्शन करना
हनुमान जी ने अशोक वाटिका में सीता माता के दर्शन कर उनको हृदय से प्रणाम किया। मां सीता राम जी का स्मरण कर रही थी। मां सीता की दीन अवस्था देखकर हनुमान जी मन ही मन विचार कर रहे थे कि ऐसा कुछ करूं जिससे सीता माता का संताप कम हो जाएं। लेकिन उसी समय रावण अपनी पत्नी मंदोदरी के साथ वहां आ गया। रावण सीता माता को धमकाने लगा कि मेरी बात मान लो । मैं अपनी रानियों को तुम्हारी दासी बना दूंगा। सीता माता तिनके की ओट कर कहती है कि," दुष्ट तू छल से मुझे हर लाया है। तुम को लज्जा नहीं आती।" इतना सुनते ही रावण सीता माता को मारने दौड़ा तो उसकी पत्नी मंदोदरी ने रोक दिया। रावण कहने लगा कि," अगर एक महीने में मेरा कहना नहीं माना तो मैं तुम्हें इसी तलवार से मार डालूंगा।"
हनुमान जी और सीता माता संवाद
हनुमान जी ने सीता को की करुण दशा को देखकर उनके सामने श्री राम की अंगूठी डाल दी। अंगूठी को देखकर सीता माता ने हर्षित होकर उठा लिया और सोचने लगी कि माया से अंगूठी नहीं बनाई जा सकती। उसी समय हनुमान जी श्री राम के गुणों का गान करने लगे जिसे सुनकर माता सीता का दुःख दूर हो गया। सीता माता कहने लगी कि," जिस ने यह राम कथा सुनाई है वह प्रकट क्यों नहीं होता?" उसी समय हनुमान जी छोटा रूप धारण कर सीता माता के सम्मुख प्रगट हो गए।
हनुमान जी को देखकर सीता माता पूछती है कि," नर और वानर एक साथ कैसे हुएं ?" हनुमान जी फिर सारी कथा मां सीता को बताते हैं। जिसे सुनकर सीता माता को हनुमान जी पर विश्वास हो जाता है कि यह श्री राम का दास है।
सीता माता हनुमान जी से कहती है कि," श्रीराम ने मुझे क्यों भुला दिया है?" हनुमान जी सीता माता से कहते हैं कि,"माता श्रीराम के हृदय में आपके लिए बहुत प्रेम है। श्री हनुमान जी कहने लगे कि ," मां अगर श्री राम को आप की खबर होती तो वह कभी भी विलंब नहीं करते। मैं आपको अभी ले जाऊं लेकिन श्री राम की आज्ञा नहीं है। इसलिए आपको कुछ दिन धीरज धरना होगा।
सीता माता हनुमान जी से कहती हैं कि," सभी राक्षस योद्धा बहुत बलवान है। लेकिन क्या सभी वानर तुम्हारे ही समान है?" हनुमान जी माता सीता का संशय दूर करने के लिए विशाल रूप प्रकट करते हैं जिसे सीता माता का संशय दूर हो जाता है। हनुमान जी फिर से छोटा रूप धारण कर लेते हैं। सीता माता ने हनुमान जी को अजर, अमर और गुणों का खजाना होने का आशीर्वाद दिया।
हनुमान जी का अशोक वाटिका को उजाड़ना
माता सीता को हनुमान जी पर विश्वास हो गया। हनुमान जी माता से कहने लगे कि, माता मुझे भूख लगी है आप मुझे फल खाने की अनुमति दें ।" सीता माता की अनुमति मिलने पर हनुमान जी ने कुछ फल खाए और कुछ उसके पश्चात बाग को उजाड़ने लगे। हनुमान जी ने बहुत से सैनिकों को मार डाला उसके बाद और सैनिक आते तो हनुमानजी उन्हें भी मार डालते। सैनिकों ने जाकर रावण से पुकार की । रावण ने अपने पुत्र अक्षय कुमार को सेना सहित भेजा। हनुमान जी ने अक्षय कुमार को भी मार डाला। सैनिक फिर कहने लगे कि, महाराज वह वानर बहुत बलवान है। उसने आप के पुत्र का वध कर दिया है।" रावण ने अपने पुत्र मेघनाथ को आदेश दिया कि तुम वानर को जीवित पकड़ कर लाओ। मैं देखना चाहता हूं कि वह कौन वानर है जिसने मेरे पुत्र का वध कर दिया।
हनुमान जी और मेघनाद युद्ध
मेघनाद हनुमान जी को पकड़ने गया। हनुमान जी ने मेघनाथ को युद्ध में बिना रथ के कर दिया और उसे घुसा मार कर कुछ देर के लिए मूर्छित कर दिया। मेघनाथ ने उसी समय ब्रह्मास्त्र का संधान किया। अब हनुमान जी के मन में विचार आया कि अगर ब्रह्मास्त्र की महिमा नहीं मानी तो इसकी महिमा मिट जाएगी। इसलिए ब्रह्मास्त्र लगते ही हनुमान जी मूर्छित हो गये और मेघनाद उसे बांधकर ले गया।
हनुमान जी और रावण के संवाद
रावण ने क्रोधित होकर पूछा कि हे! वानर तू कौन है और तुम ने क्यों मेरे पुत्र और अन्य राक्षसों को मारा है।
हनुमान जी ने उत्तर दिया कि," जिन्होंने भगवान शिव का धनुष तोड़ा था, त्रिशिरा, खर दूषण और बाली को मारा था और जिनकी प्रिय पत्नी को तू छल से हर लाया था। मैं उनका दूत हूं
मुझे भूख लगी थी तो मैंने फल खाए और वानर स्वभाव के कारण वृक्ष तोड़ दिए। लेकिन जिन लोगों ने मुझे मारा मैंने केवल उन लोगों को ही मारा। मैं श्रीराम के कार्य के लिए यहां पर आया हूं। इसलिए तुम अपना हठ छोड़कर माता सीता श्री राम को सौंपा दो और श्री राम की शरण में चले जाओ।
हनुमान जी के मुख से ऐसी बातें सुनकर रावण क्रोधित हो गया कि एक बंदर मुझे शिक्षा देने चला है। रावण के कहने पर राक्षस हनुमान जी को मारने दौड़े। उसी समय विभिषण जी वहां आ गए। वह कहने लगे कि,"नीति के अनुसार दूत को नहीं मारना चाहिए।"
हनुमान जी द्वारा लंका दहन
विभिषण की बात सुनकर रावण कहने लगा कि," इस बंदर की पूंछ पर कपड़े को तेल में डुबोकर बांध दो और उसमें आग लगा दो। एक तो बंदर की ममता पूंछ में होती है और दूसरे जब यह बिना पूंछ कर अपने मालिक के पास जाएगा तो मालिक को साथ लेकर आएगा।
जैसे ही रक्षक हनुमान जी की पूंछ पर कपड़ा लपेटने लगे हनुमान जी ने अपनी पूंछ लंबी कर ली। पूरे नगर का कपड़ा तेल समाप्त हो गया। हनुमान जी की पूंछ पर कपड़ा लपेटने के बाद रक्षकों ने उनकी पूंछ में आग लगा दी। आग जलते ही हनुमान जी ने छोटे रूप धारण कर लिया। भगवान की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगी और हनुमान जी ने अपनी देह विशाल और हल्की बना ली और एक महल से दूसरे महल पर जाकर पूरा नगर जला दिया। लेकिन हनुमान जी ने विभीषण का घर नहीं चलाया और समुद्र में जाकर अपनी पूंछ बुझा दी।
हनुमान जी को सीता माता से आज्ञा लेना
लंका दहन के पश्चात हनुमान जी पुनः माता सीता के पास जाकर हाथ जोड़कर विनती करने लगे। माता मुझे कोई चीज दे जैसे राम ने आपके लिए दी थी। सीता माता ने चूड़ामणि उतारकर हनुमान जी को दे दी। सीता माता ने कहा कि प्रभु श्री राम को मेरा प्रणाम कहना और कहना कि अगर महीने भर में नाथ नहीं आए तो मुझे जीती नहीं पाएंगे। हनुमान जी को माता ने आशीर्वाद दिया और हनुमान जी ने माता से विदा ली।
हनुमान जी का समुद्र लांघकर वापिस आना
हनुमान जी लंका दहन के पश्चात समुद्र लांघ कर वापस आ गए और सभी किष्किन्धाकाण्ड पहुंचे। जाम्बवन्त जी ने श्रीराम से कहा कि हनुमान ने जो कार्य किया है उसका वर्णन हजारों मुख से नहीं किया जा सकता है । श्री राम ने हनुमान को गले लगा लिया और सीता माता की कुशल पूछी। श्री राम कहने लगे कि हनुमान तुम्हारे समान कोई उपकारी नहीं है मैं तुम्हारा ऋण नहीं दे सकता। इतना सुनते ही हनुमान जी विकल होकर श्री राम के चरणों में गिर पड़े और श्री राम ने हनुमान को उठाकर गले से लगा लिया।
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