SHIVA AND PARVATI MOTIVATIONAL STORY IN HINDI

 SHIVA AND PARVATI MOTIVATIONAL STORY IN HINDI  भगवान शिव और मां पार्वती की प्रेरणादायक कहानी 

 भगवान शिव और मां पार्वती की प्रेरणादायक कहानी 

एक बार भगवान शिव और मां पार्वती हरिद्वार में भ्रमण कर रहे थे। मां पार्वती ने देखा कि सहस्त्रों मनुष्य मां गंगा में स्नान कर "हर हर गंगे" कहते हुए चले आ रहे थे। लेकिन सभी मनुष्य अभी भी पाप परायण लग रहे थे। मां पार्वती भगवान शिव से पूछती है कि," प्रभु! क्या अब गंगा समर्थ नहीं रही ? 

प्रभु ने पूछा- पार्वती तुम ने ऐसा सवाल क्यों किया? 

मां पार्वती कहती हैं कि," प्रभु इन सभी मनुष्यों के पापों का अंत क्यों नहीं हुआ?"

भगवान शिव मुस्कुराते हुए कहते हैं कि," पार्वती गंगा तो अभी भी सर्व समर्थ है लेकिन इन सभी ने पापनाशिनी गंगा में स्नान नहीं किया ही नहीं।"

मां पार्वती विस्मित होकर बोली - प्रभु अभी तो गंगा में स्नान कर इन लोगों के शरीर भी नहीं सुखे और आप कह रहे हैं कि इन्होंने पापनाशिनी गंगा में स्नान नहीं किया।

 भगवान शिव ने कहा - ‌‌पार्वती मैं कल तुमको इस बात का भेद बताऊंगा। 

अगले दिन प्रातः बारिश होने लगी और सभी रास्ते पानी और कीचड़ से भर गए। भगवान शिव एक वृद्ध का रूप बना कर एक गड्ढे में ऐसे बैठ गए कि मानो वह इसमें गिर गए हैं और उनसे वृद्धावस्था के कारण निकला भी नहीं जा रहा। 

उन्होंने मां पार्वती को समझाया दिया कि तुम गंगा स्नान कर आते सभी मनुष्यों को सुनाकर कहना कि मेरा पति इस गड्ढे में गिर गया है। मेरे पति सर्वथा निष्पाप आत्मा है और कोई निष्पाप पुण्यात्मा है उनको बाहर निकल सकती है। अगर कोई व्यक्ति निष्पाप है तो वहीं मेरे पति को बाहर निकालने के लिए हाथ लगाएं । लेकिन अगर कोई निष्पाप नहीं हुआ तो उसका शरीर जलकर भस्म हो जाएगा।

मां पार्वती अब गड्ढे के पास बैठ गई और सभी को सुना कर कहने लगी। हर कोई सुंदर स्त्री को प्रलाप करते हुए देखकर रुक जाता। एक सुंदर स्त्री को वेदना में देख हर कोई उनकी मदद के लिए तैयार हो जाता। लेकिन जैसे ही वह वृद्ध वेशधारी भगवान शिव को बाहर निकालने के लिए हाथ बढ़ाने लगते, माता पार्वती तुरंत उन्हें टोक देती। 

वह कहती मेरे पति सर्वथा निष्पाप आत्मा है और कोई निष्पाप पुण्यात्मा है उनको बाहर निकल सकती है। अगर तुम निष्पाप हो तो मेरे पति को बाहर निकालने के लिए हाथ बढ़ाना। मैं तुम्हें पहले ही चेतावनी दे देती हूं कि अगर तुम निष्पाप नहीं हुए तो तुम्हारा शरीर जलकर भस्म हो जाएगा। 

इतना सुनते ही हाथ आगे बढ़ाने वाले हाथ पीछे कर लेते क्योंकि उनको लगता था कि हमने जीवन में कभी ना कभी तो पाप किया ही होगा। दूसरे उनके मन में आता है इस बुड्ढे के लिए क्यों अपनी जान जोखिम में डालने।

 इस तरह सुबह से लेकर संध्या हो गई हजारों लोग स्नान कर चले गए लेकिन किसी ने भी वृद्ध को निकालने की हिम्मत नहीं की। 

शाम के समय एक युवक हाथ में लोटा लिए वहां से गुजरा तो मां पार्वती ने उसको भी अपनी व्यथा  सुना दी। जब वह मदद करने के लिए हाथ बढ़ाने लगा तो उससे भी वही बात कही, जो अब तक वहां से गुजरे हजारों लोगों को कहीं थी। अगर तुम सर्वथा निष्पाप हो तो ही मेरे पति को हाथ लगाना नहीं तो तुम भस्म हो जाओगे। 

वह युवक बोला - माता मैं अभी तो पतित पावनी गंगा में स्नान करके आया हूं और गंगा स्नान के पश्चात तो सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मैं अभी आपके पति को बाहर निकालता हूं। उसने हाथ बढ़ाकर वृद्ध के रूप में भगवान शिव के बाहर निकाल दिया। भगवान शिव और मां पार्वती ने उसको अपने वास्तविक स्वरूप के दर्शन दिए। भगवान शिव बोले कि देखो पार्वती हजारों लोगों में से केवल इस युवक ने ही पूरी श्रद्धा से स्नान किया था कि गंगा स्नान से व्यक्ति निष्पाप हो जाता है। 

कहने का तात्पर्य यह है कि लोग बिना किसी श्रद्धा और विश्वास के गंगा स्नान करते हैं इसलिए उनको उसका पूर्ण फल नहीं प्राप्त होता। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि गंगा स्नान का फल नहीं मिलता लेकिन गंगा स्नान का वास्तविक फल उसी को मिलता है जो पूर्ण श्रद्धा भावना से स्नान करता है।

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