जगन्नाथ जी स्नान यात्रा
Jagannath Ji Sanan Yatra 2024: जगन्नाथ पुरी में स्नान यात्रा 2024 में 22 जून को मनाई जाएगी। प्रति वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगन्नाथ जी, बलभद्र और सुभद्रा माता को सहस्त्रधारा स्नान कराया जाता है। भगवान को 108 घड़ों के जल से सहस्त्रधारा स्नान करवाया जाता है।
स्नान यात्रा के दिन संध्या के समय जगन्नाथ जी और बलभद्र को गजानन वेश या फिर हाथी वेश धारण करवाया जाता है। जगन्नाथ जी को गजानन वेश धारण करवाने के पीछे उनके भक्त गणपति भट्ट की कथा है।
गणपति भट्ट की कथा
Jagannath Ji ke Bhakt Ganpati Bhatt ki Katha:16वीं शताब्दी में कर्नाटक राज्य के एक छोटे से गांव में गणपति भट्ट नाम के एक ब्राह्मण रहता थे। वह वेदों और पुराणों के अच्छे ज्ञाता थे। गणपति भट्ट को लगता था कि परमब्रह्म भगवान का स्वरूप गणेश जी के जैसा है और उनके दर्शन मात्र से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
एक बार गणपति भट्ट ब्रह्म पुराण पढ़ रहे थे तो उसमें लिखा था कि नीलगिरी में भगवान जगन्नाथ परमब्रह्म के रूप में प्रकट हुए हैं। व्यक्ति को उनके दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और फिर कभी भी यमराज के सामने नहीं आना पड़ेगा।
गणपति भट्ट परमब्रह्म के दर्शन के लिए कर्नाटक से जगन्नाथ पुरी की यात्रा पर निकल पड़े। मार्ग में भीख मांग कर जो कुछ भी प्राप्त होता उससे अपनी पेट की क्षुधा शांत कर लेते। अगर किसी दिन भोजन नहीं मिलता तो पत्ते खाकर और जल पी कर ही भूख मिटा लेते।
अंततः लंबी यात्रा के पश्चात गणपति भट्ट जगन्नाथ पुरी के प्रवेश द्वार अथरनाला पहुंचे। अथरनाला के विषय में मान्यता है कि जो भी इस स्थान को पार करके पूरी धाम पहुंचा है। उसे कभी भी यमराज दंड नहीं देंगे। गणपति भट्ट शुद्ध होकर वहां कुछ समय के लिए परम ब्रह्म का ध्यान करने बैठ गए।
गणपति भट्ट जी ने कुछ श्रद्धालुओं को जगन्नाथ मंदिर की ओर से आते हुए देखा। सभी बहुत प्रसन्न चित्त लग रहे थे और उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे। उनके हाथों में जगन्नाथ जी का प्रसाद था।
गणपति भट्ट भक्तों से पूछा कि," आप लोग कहां से आ रहे हैं? उन श्रद्धालुओं ने गणपति भट्ट को बताया कि," हम जगन्नाथ मंदिर से दर्शन करने के पश्चात आज पांच दिनों के बाद घर वापस लौट रहे हैं । जगन्नाथ जी के दर्शन कर हम बहुत प्रसन्न हैं।"
गणपति भट्ट ने विस्मित होकर उनसे पूछा कि," क्या वहां आपको वहां परम ब्रह्म के दर्शन हुए?" श्रद्धालु कहने लगे कि," हां हां हम लोगों ने वहां परमब्रह्म के दुर्लभ दर्शन किए हैं।"
गणपति भट्ट जी ने भक्तों से पुनः पूछा कि," क्या आप सबने वहां परम ब्रह्म के दर्शन ही किए हैं?" सभी ने प्रसन्न चित्त होकर बताया कि हां हम सब ने वहां परमब्रह्म के दर्शन किए हैं।
गणपति भट्ट विचार करने लगे कि यह कैसे हो सकता है? अगर इन भक्तों ने परम ब्रह्म के दर्शन किए हैं तो यह लोग अपने घर की ओर वापस कैसे लौट रहे हैं? इन सबको तो परमब्रह्म में विलीन हो जाना चाहिए था ।
उन्होंने पुराण में पुराणों दोबारा पढ़ा। उसमें लिखा था कि जो भी परम ब्रह्म के दर्शन करता है उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। फिर यह लोग दर्शन के पश्चात अपने घर कैसे लौट सकते हैं? गणपति भट्ट का मन मस्तिष्क उस समय भ्रमित था।उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। क्या ठीक है और क्या गलत? एक पल के लिए उनके मन में विचार आया कि मेरा इतनी दूर आना व्यर्थ ही गया। आत्महत्या करके अपना शरीर त्याग देता हूं। फिर उन्हें पुनः ध्यान आया कि पुराणों में लिखा है कि आत्महत्या नहीं करनी चाहिए।
उधर जगन्नाथ जी समझ गए कि मेरा भक्त भ्रमित हो गया है ।वह एक ब्राह्मण का रूप धारण कर गणपति भट्ट जी के पास जा पहुंचे। उन्होंने गणपति भट्ट से पूछा कि," आप इतने विचलित क्यों लग रहे है?"
गणपति भट्ट जी ने उत्तर दिया मैंने तो पुराणों में पढ़ा है कि नीलगिरी में परमब्रह्म के दर्शन मात्र से मोक्ष प्राप्त हो जाता है। लेकिन मुझे यहां आकर ज्ञात हुआ कि यह कोई परमब्रह्म है ही नहीं। ब्राह्मण ने उनसे पूछा कि," आपको ऐसा क्यों लगता है?"
गणपति भट्ट कहने लगे कि," मैंने पढ़ा है कि जो भी व्यक्ति परम ब्रह्म के दर्शन करता है उसका शरीर परमब्रह्म में विलीन हो जाना चाहिए। लेकिन मैंने तो भक्तों को परमब्रह्म के दर्शन के पश्चात वापस अपने घर की ओर लौटते हुए देखा है। अगर वास्तव में यहां कोई परमब्रह्म होता तो उन लोगों को मुक्ति मिल जानी चाहिए थी।
ब्राह्मण के वेष में जगन्नाथ जी मुस्कुराते हुए बोले कि," भगवान जगन्नाथ को कल्पतरु के नाम से भी जाना जाता है अर्थात वह सब की इच्छाएं पूर्ण करते हैं। इसलिए जो भक्त दर्शन के पश्चात घर वापस लौटने की इच्छा से आए थे। जगन्नाथ जी ने उनकी वैसी की कामना पूर्ण कर दी। जगन्नाथ जी के धाम में जो भक्त जैसी इच्छा लेकर आता है। उसे उसी के अनुसार फल मिलता है। इसलिए यह मत सोचो कि यहां परमब्रह्म के दर्शन नहीं होते।
ब्राह्मण की बात सुनकर गणपति भट्ट जी का मन बदला और वह जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए जगन्नाथ पूरी धाम की ओर चल पड़े।
जिस दिन गणपति भट्ट जगन्नाथ मंदिर में सिंहद्वार पर पहुंचे तो उस दिन संयोग से स्नान पूर्णिमा थी। उस समय जगन्नाथ जी बलभद्र और सुभद्रा माता को स्नान मंडप में ले जाकर स्नान करवाया जा रहा था। हजारों की संख्या में भक्त अपने देवता के दर्शन करने के लिए उपस्थित थे। गणपति भट्ट जी ने भी जगन्नाथ जी के दर्शन किए।
गणपति भट्ट जी का दृढ़ विश्वास गणेश जी पर था।उनका विश्वास था कि परमब्रह्म का चेहरा गणेश जी के जैसा है। जब उनको जगन्नाथ जी का वैसा स्वरूप नहीं दिखा तो वह उनको प्रणाम किए बिना ही निराश होकर लौट गए। अपने भक्त को निराश होकर जगन्नाथ भगवान कैसे जाने देते?
जगन्नाथ जी गजानन वेश क्यों धारण करते हैं
JAGANNATH JI GAJANANA BESA DARSHAN :उस दिन जगन्नाथ जी ने राजा के सेवक मुदिरथ को स्वपन में दर्शन दिए। जगन्नाथ जी ने कहा कि ,"मेरा भक्त इतनी दूर से मेरे दर्शन के लिए आया था। लेकिन मेरा गणपति मुख ना देकर निराश होकर लौट रहा है। इसलिए तुम तुरंत जाओ और उसे वापिस बुलाकर लाओ। उसे बोलो कि वापस आकर मेरे गणपति मुख के दर्शन करें।"
राजा के सेवक ने तुरंत गणपति भट्ट को ढूंढा और कहा कि आप तो बहुत भाग्यशाली हैं। जगन्नाथ भगवान आपको स्वयं दर्शन देना चाहते हैं। आप पुनः मन्दिर चले आपको परमब्रह्म के दर्शन होंगे। जहां भगवान परमब्रह्म के रूप में सभी को दर्शन देते हैं और आप वहां से वापस लौट रहे हैं।
गणपति भट्ट कहने लगे कि," वहां परमब्रह्म कहां है? उनका चेहरा गणेश के जैसा नहीं है और मेरा दृढ़ विश्वास है कि परम ब्रह्म का चेहरा गणपति के मुख के समान है। मुझे उनके मुख पर सुंड भी दिखाई नहीं दी। फिर तुम मुझे क्यों वापस लौटने को कह रहे हैं ?
मुदिरथ कहने लगे कि," आप एक बार दोबारा मंदिर जाएं आपको इस परमब्रह्म के स्वरूप में गणपति जी का चेहरा दिखाई देगा। राजा के सेवक के बार-बार अनुरोध करने पर गणपति भट्ट पुनः मंदिर गए। इस बार उन्हें भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के चेहरे पर एक बड़ी सुंड और सुंदर दंत के दर्शन हुए। जिसे देखकर गणपति भट्ट ने प्रसन्न होकर उनकी स्तुति की। गणपति भट्ट परम ब्रह्म के ध्यान में लीन होकर पृथ्वी पर गिर पड़े और उनकी आत्मा प्रभु में विलीन हो गई। वहां पर उपस्थित भक्त इस बात के प्रत्यक्षदर्शी बने।
उसके पश्चात से ही स्नान पूर्णिमा के दिन जगन्नाथ जी का हाथी वेश या फिर गजानन वेश बनाया जाता है।
Jagannath Bhagwan Bimar kyon hote hai
मान्यता है कि पूर्णिमा स्नान में ज्यादा स्नान करने के कारण भगवान बीमार पड़ जाते हैं। स्नान यात्रा के पश्चात भगवान बीमार हो जाते हैं इसलिए 15 दिनों के दिन भगवान एकांतवास में चले जाते हैं। मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं। भगवान को इस समय खिचड़ी दलिया फलों के रस और जड़ी बूटियों से बने काढ़े का भोग अर्पित किया जाता है। स्नान यात्रा के बाद 14 दिन तक भगवान के दर्शन नहीं होते।
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मंदिर में चका बीजे नीति की रस्म होती है। यह रस्म भगवान के स्वास्थ्य में सुधार की प्रतीक मानी जाती है। 2024 में यह रस्म 22 जून को मनाई जाएगी। जगन्नाथ भगवान स्वस्थ होने के पश्चात भक्तों को दर्शन देने के लिए निकलते हैं। जिसे जगन्नाथ रथ यात्रा कहा जाता है।
Jagannath Puri Rath Yatra 2024
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को को आरंभ होती है। जगन्नाथ रथयात्रा 2024 में 7 जुलाई को आरंभ होगी। इस दिन जगन्नाथ जी गर्भ ग्रह से निकलकर रथ पर विराजमान होकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इस रथयात्रा को देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से गुड़िया मंदिर तक जाती है।
सबसे आगे बलभद्र जी का रथ , उसके पश्चात सुभद्रा जी और फिर जगन्नाथ जी का भव्य रथ होता है जिसे भक्त बहुत श्रद्धा पूर्वक खिंचते है। रथयात्रा में रथ खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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