SHRI RAM BHARAT MILAP KI STORY IN HINDI

SHRI RAM AUR BHARAT MILAP KI KATHA KAHANI STORY IN HINDI BHART MILAP PARAV

श्री राम और भरत मिलाप की कहानी 

 श्री राम और भरत मिलाप का पर्व  दशहरा के अगले दिन अश्विन मास की एकादशी को मनाया जाता है। इसका उल्लेख बाल्मीकि रामायण में आता है। इसदिन श्री राम 14 वर्ष के वनवास के पश्चात भरत जी से मिले थे। 

श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा 

BHART MILAP STORY IN HINDI  :राजा दशरथ ने जब श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी तो पूरी अयोध्या नगरी में उत्सव का माहौल था। राजा दशरथ की रानी कैकयी की दासी मंथरा को श्री राम के राज्यभिषेक का पता चला तो उसने कैकयी को भड़काना शुरू कर दिया कि तुम्हारा पुत्र भरत ननिहाल में है इस लिए उचित मौका देखकर रानी कौशल्या ने राजा को राम के राज्याभिषेक के लिए मना लिया होगा। 

कैकयी का राजा दशरथ से दो वर मांगना 

मंथरा ने कैकयी को भड़काया कि देखना वह तुम को दासी बना कर रखेगी। इस मौके पर तुम अपने दो वर जो राजा दशरथ के पास धरोहर के रूप में पड़े हैं वह मांग लो। एक वर के रूप में तुम भरत के लिए राज्य और दूसरे वर के रूप में राम के लिए वनवास मांग लेना।

कैकयी कोप भवन में चली जाती है और राजा दशरथ के आने पर उन्हें अपने दो वर के बारे में स्मरण करवाती है। राजा दशरथ से वचन पूर्ति का आश्वासन मिलते हैं वह राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और भरत के लिए राज्य मांग लेती है। 

कैकेयी कहती है ,"अगर कल सुबह राम वन नहीं गए तो मेरा मरना तय है। यह सुनकर"राजा दशरथ हा! राम कहते हुए नीचे गिर जाते हैं। कैकयी श्री राम को बुलाती है। श्री राम  वहां पहुंचने पर कैकेयी से राजा के दुःख का कारण पूछते हैं।

 कैकेयी श्री राम को बताती है कि, "मैंने राजा से दो वरदान मांगे थे"। राजा पुत्र स्नेह के कारण धर्म संकट में हैं। तुम चाहो तो राजा का कलेश मिटा सकते हो और कैकेयी ने दोनों वचन श्री राम को बता दिए। 

श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी का वन गमन 

 श्री राम माता कौशल्या से वन गमन के लिए आज्ञा लेने चले जाते हैं। मां सीता को जब श्री राम के वन गमन का समाचार मिलता है तो वह भी उनके साथ जाने की बात करती है और लक्ष्मण जी भी श्री राम और मां सीता के संग वन जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। तीनों राजसी वस्त्र उतार कर वल्कल वस्त्र धारण कर लेते हैं और वन की ओर प्रस्थान करते हैं।

श्री राम के वियोग में राजा दशरथ का स्वर्णवास हो जाता हैं। भरत जी ने उनके ननिहाल में संदेश भेजा जाता है। भरत‌ जी के लौटने पर कैकयी उन्हें सारा प्रसंग सुनाती है। 

भरत जी मां से पिता के मरण का कारण पूछते हैं।  कैकेयी ने भरत जी को शुरू से अंत तक पूरी बात सुना दी। अपने प्रिय भाई श्री राम का वन गमन सुनते ही मानो भरत जी को पिता का मरण भूल गया।

यह सुनकर भरत जी इतने व्यथित हो जाते हैं और कहते हैं कि ईश्वर आपने  मुझे दशरथ जैसे पिताजी दिए और राम , लक्ष्मण जैसे भाई दिए लेकिन कैकयी जैसी मां क्यों दी?

भरत जी ने पूरे विधि-विधान से पिता का अंतिम संस्कार किया।‌ सभी रीतियाँ पूर्ण होने के पश्चात विशिष्ट जी ने भरत जी से कहा कि राजा दशरथ ने राजपाट आपको दिया है इसलिए आपको पिता के वचन का पालन करना चाहिए। 

चित्रकूट में श्री राम और भरत जी का मिलाप

भरत जी कहने लगे कि," पिता जी का स्वर्ग वास हो गया और श्री राम वन में चले गए मैं ऐसी स्थिति में राज्य कैसे कर सकता हूं। यदि आप सब गुरु देव मुझे आज्ञा दे तो मैं श्री राम के पास चित्रकूट जाना चाहता हूं।"

भरत जी के वचन सुनकर मानो शोक समुंदर में डूबे हुए लोगों को किनारा मिल गया । भरत जी ने श्री राम के पास जाने की सारी व्यवस्था कर दी और तिलक का सम्मान भी साथ ले जाने को कहा ताकि गुरु वशिष्ठ श्री राम का राजतिलक कर सके। 

भरत जी के साथ सभी लोगों ने चित्रकूट की ओर प्रस्थान किया।‌ भरत जी जब श्रृंगवेरपुर पहुंचे तो वहां के राजा निषाद राज जोकि श्री राम के मित्र थे। जब उन्हें पता चला कि भरत जी अपनी सेना के साथ आए हैं तो उन्होंने सोचा कि शायद भरत श्री राम और लक्ष्मण को मारकर निष्कंटक राज्य करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने घोषणा करवा दी कि सभी घाटों को कब्जे में कर लो मेरे जीते जी कोई भी गंगा पार नहीं जाएगा। 

फिर कोई वृद्ध मंत्री सलाह देते हैं कि आपको पहले चल कर उनके मन की बात जान लेनी चाहिए। निषाद राज जी जब भरत जी से मिलने गए तो उन्होंने उन्हें ऐसे गले से लगा लिया कि मानो लक्ष्मण जी गले मिल रहे हैं।

निषादराज जी ने सभी लोगों के गंगा पार उतरने की व्यवस्था करवा दी। भरत जी जब भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचे तो भरत की सोचने लगे कि मैं मुनि को क्या उत्तर दूंगा? लेकिन भरत जी को भारद्वाज ऋषि ने कहा कि आप किसी प्रकार की ग्लानि मत रखें।

अगले दिन भरत जी चित्रकूट की ओर चल पड़े। निषादराज जी भरत जी को उस पर्वत के दर्शन कराते हैं जहां पर श्री राम निवास कर रहे थे।

श्री राम और लक्ष्मण जी को जब भरत जी का सेना सहित आने का समाचार मिला तो लक्ष्मण जी कहने लगे कि जरूर भरत के मन में कोई दुष्टता चल रही होगी तभी तो वह सेना सहित आया है। आप आज्ञा दें तो मैं सेना सहित उसे पराजित कर दूं। श्री राम कहते हैं कि लक्ष्मण मैं सौगंध खाकर कहता हूं कि भरत के समान पवित्र कोई भाई नहीं है। 

भरत जी निषादराज के संग श्री राम के आश्रम पहुंच गए। भरत जी को लगा कि मानो आश्रम में पहुंचते ही उनके सारे दुःख दूर हो गए। भरत जी ने हे नाथ! रक्षा करो ऐसा कहते हुए श्री राम को दंडवत प्रणाम किया। उन्हें देखकर श्री राम को अपने शरीर की सुध ना रही कहीं वस्त्र गिरा, कहीं धनुष ,कहीं तरकस और तीर अर्थात श्री राम को अपने शरीर की सुध नहीं रही।

 उन्होंने भरत जी को उठाकर हृदय से लगा लिया। श्री राम और भरत जी का मिलन देखकर वहां खड़े सभी लोग पुलकित हो गए। 

श्री राम और भरत का मिलन देखकर देवताओं को  चिंता होने लगी। भरत जी से मिलने के पश्चात श्री राम प्रेम से शत्रुघ्न, केवट और निषादराज से मिले। लक्ष्मण जी ने भरत और शत्रुघ्न दोनों भाइयों को हृदय से लगा लिया और सीता माता को प्रणाम कर दोनों भाइयों ने आशीर्वाद लिया।

उसके पश्चात जब श्री राम को पता चला कि माताएं भी संग आई है तो वह सबसे पहले माता कैकयी से मिले और उनको सांत्वना दी कि जो भी होता है ईश्वर की इच्छा से होता है और उनका संकोच दूर किया। उसके पश्चात श्री राम ने मां कौशल्या और मां सुमित्रा को प्रणाम किया।

श्री राम,सीता जी और लक्ष्मण जी अपने पिता दशरथ जी के स्वर्ग गमन की बात सुनकर विलाप करने लगे। राम जी ने अगले दिन प्रातःकाल पिता कि वेदों की रीति के अनुसार क्रिया की। 

उसके पश्चात गुरु वशिष्ठ श्री राम से कहते हैं कि आप अयोध्या लौट चलें। भरत जी कहते हैं कि राजतिलक का सारा सामान तैयार है। प्रभु आप जैसी आज्ञा देंगे वैसा ही होगा। श्री राम भरत जी से कहने लगे कि तुम जानते हो कि इस समय‌ मेरा कर्तव्य क्या है ? तुम को भी अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। तुम को सूर्यकुल के रक्षक बनना चाहिए। श्री राम ने भारत जी से कहा कि इस समय मेरा और तुम्हारा पुरुषार्थ इसी में है कि हम दोनों भाई पिता की आज्ञा का पालन करें। तुम गुरु वशिष्ट, माता और मंत्रियों की इच्छा मानकर राज्य और प्रजा की रक्षा करना। 

भरत जी का श्री राम की खड़ाऊं को गद्दी पर विराजमान करना 

भरत जी प्रेम पूर्वक बोले कि आप मुझे कोई अवलंबन दे जिससे मैं 14 साल तक ‌की अवधि निकाल सकूं। उस समय श्री राम भरत जी को कहते हैं कि

श्री राम ने भारत जी को अपनी खड़ाऊं दी। भरत जी के लिए खड़ाऊं ऐसी थी मानो प्रजा के लिए पहरेदार है। भरत जी सभी के साथ अयोध्या वापस लौट गए। भरत जी ने श्री राम की पादुकाओं को सिंहासन पर विराजमान कर दिया और स्वयं मुनियों का वेश धारण कर नंदी ग्राम में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। भरत जी प्रति दिन श्री राम की पादुकाओं की पूजा करते और उनसे आज्ञा मानकर राज्य करने लगे। 

अयोध्या में श्रीराम भरत मिलाप की कहानी 

श्री राम ने जब रावण का वध कर दिया तो उन्होंने हनुमान जी को दूत बनाकर अयोध्या समाचार भेजा। हनुमान जी ने ब्राह्मण के वेश में भरत जी से मिले और श्री राम के आने की सूचना दी। भरत जी ने खुशी से हनुमान जी को हृदय से लगा लिया। हनुमान जी ने श्री राम को अयोध्या का समाचार सुनाया।  श्री राम जी विमान पर चढ़ कर चल पड़े।

भरत जी ने श्री राम, लक्ष्मण और सीता माता के आने का समाचार सभी माताओं और गुरुओं को दिया। सभी नगर वासियों में खुशी की लहर दौड़ गई। 

भरत जी सभी गुरुओं, माताओं और नगर वासियों संग श्री राम की अगवानी करने के लिए चल पड़े। श्री राम ने वहां पहुंच कर सबसे पहले सभी गुरुओं को और माताओं को प्रणाम किया। 

श्री राम और भरत मिलाप 

भरत जी ने श्रीराम के चरण पकड़ लिये लेकिन श्री राम ने उन्हें हृदय से लगा लिया। भरत जी इतने भाव-विभोर हो गए कि उनके मुख से कोई वचन नहीं निकल रहा था। 

परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए॥
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े॥

भावार्थ- भरतजी पृथ्वी पर लेटकर श्री राम को दंडवत प्रणाम कर रहे हैं और उठाए नहीं उठते तो कृपासिंधु श्री रामजी ने उन्हें जबर्दस्ती उठाकर हृदय से लगा लिया। उनका शरीर पुलकित हो रहा है और नवीन कमल के समान आंखों से प्रेमाश्रुओं की मानो बाढ़ आ गई हो।

 फिर श्री राम ने शत्रुघ्न को गले से लगा लिया। लंका पति विभीषण, सुग्रीव, नल - नील, जाम्बवन्त, अंगद, हनुमान जी आदि सभी ने मनुष्य शरीर धारण कर लिये। श्रीराम ने सबको गुरु विशिष्ट से मिलाया और उनको लंका युद्ध में उन सब के द्वारा दी गई सहायता का सारा प्रसंग सुनाया। 

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