अमृतसर की दीवाली क्यों प्रसिद्ध है
अमृतसर की दिवाली विश्व प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि,"दाल रोटी घर दी, दिवाली अमृतसर दी।" अगर आप दिवाली पर कहीं घूमने जाने का विचार कर रहे हैं तो अमृतसर की दिवाली जरूर देखनी चाहिए।देश विदेश में दिवाली के पर्व की धूम होती है । दिवाली के मौके पर अमृतसर का स्वर्ण मंदिर रोशनी से जगमगा उठता है और जहां आतिशबाजी की गई जाती है दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।
अमृतसर की दिवाली क्यों खास है
हिंदू धर्म को मानने वाले के लिए दिवाली का त्यौहार बहुत उत्साह से मनाते हैं क्योंकि इस दिन भगवान श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ 14 वर्ष का वनवास काट कर अयोध्या वापस लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घी के दिये जलाकर उनका स्वागत किया था। ।
सिख धर्म के मानने वाले दिवाली "बंदी छोड़ दिवस" के रूप में मनाते हैं क्योंकि इस दिन सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहिब जहांगीर की कैद से मुक्त होकर दिवाली के दिन अमृतसर पहुंचे थे । उनके अमृतसर पहुंचने पर संगत ने बाबा बुड्ढा की अगुवाई में उनका स्वागत किया और पूरे शहर को दीपों से सजाया गया था। इसलिए उस दिन के बाद सिख धर्म को मानने वाले इसलिए इस दिन को दाता बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं और दिवाली के समान ही अपने घरों और गुरुद्वारों को रोशन करते हैं। पंजाब में दिवाली हिन्दू और सिख भाईचारे का त्यौहार है।
दिवाली और बंदी छोड़ दिवस के उपलक्ष में हरिमंदिर साहिब परिसर को झिलमिलाती लाइट्स से सजाया जाता है। जब उसकी परछाई पवित्र सरोवर में पड़ती है तो वह नज़ारा सचमुच बहुत आलौकिक लगता है। रात को हरिमंदिर साहिब परिसर में आतिशबाज़ी की जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो पूरा परिसर रोशनी में नहा रहा हो।संगत दूर-दूर से अमृतसर में हरिमंदिर साहिब में माथा टेकने और अमृत सरोवर में स्नान करने आती है।
अमृत सरोवर का निर्माण गुरु रामदास जी ने करवाया था। सरोवर के नाम पर ही इस शहर का नाम अमृतसर पड़ा । स्वर्ण मंदिर के सरोवर का जल अमृत के समान माना गया है।
मान्यता है कि दुख भंजनी बेरी के नीचे स्नान करने से हर तरह के दुख दर्द दूर हो जाते है ।
स्वर्ण मंदिर का शीर्ष सोने से बना है, इस लिए इसका नाम स्वर्ण मंदिर पड़ गया।
गुरुद्वारे का मुख्य मंदिर सरोवर के बीचों बीच बना है हरमंदिर साहिब का शिल्प ,सौंदर्य, नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही बनती हैं ।
यहां पर 24 घंटे गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है हरिमंदिर साहिब में आपको एक अलौकिक आभा का आभास होता है।
गुरु अर्जुन देव जी ने पवित्र ग्रंथ का लेखन पूरा किया तो उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को औपचारिक रूप से हरिमंदिर साहिब में स्थापित किया और बाबा बुड्ढा जी को पहला ग्रंथी नियुक्त किया था। गुरु ग्रंथ साहिब का पहला संस्करण यहां पर ही स्थापित किया गया था। उसके बाद बाकी गुरुऔं की बाणी को भी इसमें संकलित किया गया है ।
अकाल तख्त का निर्माण 1606 में किया गया था ।अकाल तख्त का अर्थ है 'कई काल से परमात्मा का सिंहासन' यहां पर सिख धर्म से जुड़े फैसले किए जाते हैं ।इसकी नींव बाबा बुड्ढा, भाई गुरदास ने रखी थी और गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने इसका निर्माण करवाया था।
हरिमंदिर साहिब का लंगर दुनिया में एक अनूठा उदाहरण है यह दुनिया की सबसे बड़ी कम्युनिटी किचन है । यहां पर सब धर्मों, जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करते हैं।
यहां लगभग 24 घंटे लंगर जारी रहता है । लंगर की परंपरा सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने शुरू की थी जिसको आगे के गुरुओं ने आगे बढ़ाया। लंगर में सेवा करने के लिए हजारों स्वयं सेवी तैयार रहते हैं।
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