KARTIK MONTH: दामोदर मास में पढ़ें दामोदर अष्टकम
कार्तिक मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है। कार्तिक मास को दामोदर मास भी कहा जाता है। इस मास में भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण ने दामोदर लीला की थी। उनकी शरारतों से तंग आकर मां यशोदा ने उनके उदर (पेट) को दाम (रस्सी) से बांध दिया था इसलिए उनका नाम दामोदर पड़ा। दामोदर मास में श्री कृष्ण की दामोदर अष्टकम पढ़ना चाहिए।
DAMODAR ASHTAKAM WITH LYRICS AND MEANING
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानं
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ॥ १॥
भावार्थ- जिनका स्वरूप सच्चिदानंद अर्थात जो आनंदमय ज्ञान का शाश्वत रूप है। जिनके कपोलों पर मकराकृत कुंडल क्रीड़ा कर रहे हैं। जो गोकुल नामक धाम में शोभायमान हैं। जो दही पात्र फोड़ने के कारण मां यशोदा के भय से तेजी से कूद कर दौड़ रहे है। मैया यशोदा ने उनसे भी तेज़ वेगसे दौड़ कर अंततः पकड़ लिया ऐसे श्री दामोदर भगवान को अपना प्रणाम अर्पित करता हूँ ॥
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्
मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ
स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम् ॥ २॥
भावार्थ- अपनी माँ के हाथों में छड़ी देखकर मार के भय से जो रोते हुए अपने दोनों कमल समान हाथों से बार-बार अपनी आँखों को मसल रहे है । वह नेत्रों से भयभीत लग रहे हैं और रोते हुए सिसकियां लेने के कारण उनके त्रिरेखायुक्त कण्ठ में पहनी माला कंपित हो रही है। उनका उदर माँ यशोदा के प्रेम की रस्सियों से बाँधा हुआ है। ऐसे सर्वेश्वर श्री कृष्ण को मैं प्रणाम करता हूं।
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेशितज्ञेषु भक्तिर्जितत्वम
पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥
भावार्थ- श्री कृष्ण अपनी बाललीलाओं से गोकुल के वासियों को परमानंद के सरोवर में सरावोर करते रहते है और उन भक्तों के लिए जो केवल वैकुंठ में नारायण के ऐश्वर्य पूर्ण रूप के प्रति आकर्षित होते हैं, भगवान यहांँ अपना भाव प्रकट करते हैं "मैं यहां ऐश्वर्य हीन शुद्ध प्रेमपूर्ण भक्ति से जीत लिया गया हूं", ऐसे दामोदर श्री कृष्ण को मैं बारम्बार नमन करता हूंँ।
न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं
सदा मे मनस्याविरास्तां किमन्यैः ॥ ४॥
भावार्थ- हे प्रभु ! यद्यपि आप सभी प्रकार के वरदान देने में पूर्ण समर्थ हैं, तो भी मैं आपसे मोक्ष के लिए प्रार्थना नहीं करता और न ही वैकुंठ लोक में वास चाहता हूं और न मुझे कोई अन्य वरदान चाहिए। मेरी तो केवल एक ही प्रार्थना है कि आपका बालगोपाल रूप मेरे हृदय में निरंतर विराजमान रहे इसके अतिरिक्त मुझे किसी अन्य वर से कोई कामना नहीं है।
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गोप्या
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे
मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभैः ॥ ५॥
भावार्थ- हे प्रभु! आपका श्यामवर्ण कमल मुख जो घुँघराले बालों की लटों से घिरा हुआ है, और माँ यशोदा के बारम्बार चुमने से आपका मुख कमल और पके हुए बिम्बफलों के समान लाल हो गया हैं आपका यह रूप मेरे हृदय में सदा विराजमान रहे। इससे अन्यत्र मुझे लाखों अन्य ऐश्वर्य कि कोई कामना नहीं हैं।
प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्
कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु
गृहाणेष मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः ॥ ६॥
भावार्थ- हे देव ! हे दामोदर ! हे अनंत ! हे विष्णु ! मुझ पर प्रसन्न रहो! मैं दुःख के संसार रूपी सागर में डूबा जा रहा हूं। आप अपनी अमृत दृष्टि से मेरा उत्थान करो और मेरी रक्षा करें आप मुझ दीन-हीन शरणागत पर कृपा करें एवं मेरे नेत्रों को साक्षात दर्शन दीजिए।
त्वया मोचितौ भक्ति-भाजौ कृतौ च
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥ ७॥
भावार्थ- हे दामोदर ! आपने मां यशोदा के द्वारा बांधे जाने पर अपने दामोदर रूप में आपने नारद मुनि के द्वारा श्रापित कुबेर के दोनों पुत्रों (मणिग्रीव और नलकुबेर ) जिन्हें पेड़ों के रूप में खड़े होने का श्राप मिला था उनका उद्धार कर आपकी प्रेमपूर्ण भक्ति प्रदान की। उसी प्रकार आप मुझे अपनी भक्ति प्रदान करे। किसी अन्य मोक्ष की मुझे कोई कामना नहीं है।
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमोऽनन्त-लीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ ८॥
भावार्थ- हे दामोदर! माता यशोदा ने आपको जिस रस्सी से बांधा था मैं इस रस्सी को विनम्र प्रणाम करता हूंँ । समस्त ब्रह्माण्ड के आधार स्वरूप आपके उदर को नमन । मैं आपकी परम प्रिय श्रीमती राधारानी के चरणों में बारम्बार प्रणाम और हे अनंत ! असीमित लीलाओं करने वाले भगवन् आपको मैं बारम्बार प्रणाम करता हूँ ।
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