गणेश चतुर्थी 2023
हिन्दू धर्म में हम कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी का ध्यान और पूजा अर्चना करते हैं। भगवान गणेश जी को विध्न हर्ता कहा जाता है। गणेश चतुर्थी श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। वैसे तो गणेश चतुर्थी का उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इसकी अलग ही धूमधाम देखने को मिलती है।
Ganesh Chaturthi 2023: गणेश चतुर्थी हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार में से एक है। गणेश चतुर्थी हर साल भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। 2023 में गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को मनाई जाएगी। गणपति उत्सव की शुरुआत 19 सितंबर से हो रही है 10 दिनों तक चलने वाले इस गणेशोत्सव का समापन 28 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी की प्रतिमा के विसर्जन से होगा।
गणेशोत्सव का इतिहास
जब शिवाजी महाराज ने पेशवा साम्राज्य स्थापित किया तो उन्होंने गणेशोत्सव मनाने की परंपरा शुरू की। उन के जीवन में गणेश पूजा का बहुत महत्त्व था। छत्रपति शिवाजी जी ने मुगलों से सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए गणेश महोत्सव की शुरुआत की। उनके बाद भी मराठा शासकों ने इस परंपरा को जारी रखा। लेकिन भारत में अंग्रेजों की हकुमत के समय यह परंपरा कम हो गई थी।
इसे सार्वजनिक करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को जाता है। 1890 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक सोचते थे कि कैसे लोगों को एकजुट किया जाए। तो उन्होंने यह विचार किया की गणेश जी एक ऐसे देवता है जो समाज के सभी लोगों में पूज्यनीय है और धार्मिक उत्सव होने के कारण अंग्रेजी शासक इस में दखल भी नहीं करेंगे।
इसी विचार के साथ सन् 1893 में पहली बार पूना में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की। उन्होंने इसे अजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण हथियार बनाया। गणेशोत्सव के 10 दिनों के आयोजन में युवक सारे शहर की सड़कों पर धूम- धूम कर देश भक्ति के गीत गाते थे। अंग्रेजों को इस बात की भनक लग चुकी थी पर धार्मिक उत्सव होने के कारण वह कुछ कर नहीं पाते थे।
गणेशोत्सव की परंपरा अभी तक पुरे महाराष्ट्र के लोगों को एक सूत्र में बांधे हुए है। सभी लोग मिलकर भव्य पंडाल में गणेशोत्सव का आयोजन करते हैं और गणेशोत्सव अभी भी एकता का प्रतीक है।
Ganesh Chaturthi Ki Katha
एक बार भगवान शिव नदी पर स्नान करने के लिए गए हुए थे। माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी का उबटन लगाया था। मां ने उस उबटन को उतारा तो उससे एक पुलता बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उसका नाम गणेश रखा।
मां पार्वती गणेश जी से कहती हैं कि," पुत्र में स्नान करने जा रही हूं, तुम मुग्दल लेकर द्वार पर बैठ जाओ किसी को भी भीतर मत आने देना।"
कुछ समय पश्चात भगवान शिव स्नान कर लौट आए। वह भीतर जाने लगे तो गणेश जी ने माता के आदेश अनुसार उनको द्वार पर रोक दिया। भगवान शिव के गणों और गणेश जी में युद्ध हुआ लेकिन वें गणेश जी को पराजित नहीं कर पाए। भगवान शिव ने क्रोधित होकर गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया और भीतर चले गए।
माता पार्वती ने भगवान शिव को क्रोध में देखा तो उन्हें लगा कि भोजन में विलम्ब के कारण प्रभु क्रोधित है। उन्होंने दो थाल में भोजन परोसा तो भोलेनाथ पूछने लगे कि," यह दूसरा थाल किसके लिए है?" माता पार्वती ने कहा- यह पुत्र गणेश के लिए है जो द्वार पर पहरा दे रहा है।
भगवान शिव बोले- उसे तो मैंने उदण्ड बालक जानकर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है। यह सुनकर मां पार्वती विलाप करने लगी। मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान गरूड़ जी से कहते हैं कि उत्तर दिशा में जाओ और जो मां अपने बच्चे की तरह पीठ करके सोई हो उसकी गर्दन काट कर ले आओ। गरूड़ जी को एक हथिनी दिखी जो अपने बच्चे की तरह पीठ करके सोई हुई थी। वह उसकी गर्दन काट कर ले आएं और भगवान शिव ने हाथी के बच्चे का सर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया और उसमें प्राण डाल दिए। मां पार्वती अपने पुत्र को पुनः पाकर बहुत प्रसन्न हुई। सभी देवी देवताओं ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया। गणेश जी ने सभी देवताओं में प्रथम पुज्य माना जाता है।
Significance Of Ganesh Chaturthi
गणेश चतुर्थी का उत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है। यह उत्सव भाद्रपद मास की चतुर्थी को आरंभ होता है और 10 वें दिन अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति जी के विसर्जन तक चलता है।
गणेश चतुर्थी के दिन भक्त पूर्ण श्रद्धा भावना से गणेश जी की प्रतिमा को अपने घर पर लाते हैं और उनकी प्राण प्रतिष्ठा करवाते हैंइस दिनों गणेश जी का पूजन करने से मन वांछित फल मिलता है। गणेश को मोदक,मिठाई और दूर्वा अर्पित करनी चाहिए।
अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी का विसर्जन किया जाता है।
विघ्नहर्ता गणेश जी अपने भक्तों के जीवन के विघ्न हरते हैं और उन पर उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
गणेश चतुर्थी के दिन नहीं करने चाहिए चंद्रमा के दर्शन
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इसे कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने वाले व्यक्ति पर मिथ्या आरोप लगता है। ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण पर भी गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करने पर स्मयंतक मणि के चोरी का मिथ्या आरोप लगा था।
चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:
सिंहः प्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
भावार्थ- सिंह ने प्रसेन को मार दिया, सिंह को जाम्बवन्त ने मारा था। हे सुकुमार! रो मत यह स्यमन्तक मणि तुम्हारी है।
Message to Author