भगवान शिव और माता सती की कथा
माता सती भगवान शिव की अर्धांगिनी थी। जिन्होंने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपना देह त्याग कर दिया था।
सृष्टि के विकास के लिए ब्रह्मा जी ने स्वयंभुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। दोनों के संयोग से दो पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई।
1. देवहूति 2. प्रसूति 3. आकूति उनकी पुत्रियां हुई और उत्तानपाद और प्रियव्रत पुत्र हुए।
स्वयंभुव मनु ने अपनी कन्या प्रसूति को प्रजापति दक्ष को दिया। माता सती प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। प्रजापति दक्ष की कई पुत्रियां थीं। लेकिन ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति से देवी की आराधना करने के लिए कहा ताकि सृष्टि के कल्याण के लिए वह उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म ले।
SHIVA AND SATI STORY; दक्ष प्रजापति ने देवी शिवा की घोर तपस्या की और मां ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि मैं पुत्री के रूप में आपके घर पर जन्म लूंगी। लेकिन देवी ने यह भी कहा कि अगर आपका आदर सम्मान मेरे प्रति कम हुआ तो मैं देह त्याग कर दूंगी। माता सती ने दक्ष की पुत्री रूप में जन्म लिया और कठोर तपस्या कर उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ।
इस तरह भगवान शिव दक्ष प्रजापति के जमाता बन गए। एक बार दक्ष प्रजापति किसी सभा में गए तो सभी देवता दक्ष को सम्मान प्रकट करने के लिए खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव अपने ध्यान में मग्न बैठे रहे। इस बात से दक्ष प्रजापति खिन्न हो गया और उसने भगवान शिव को श्राप दे दिया कि इंद्र आदि देवताओं के जैसे आपको यज्ञ का भाग न प्राप्त हो।
दक्ष ने बिना किसी बात के भगवान शिव को श्राप दिया था जिसे सुनकर नंदी ने श्राप दिया कि दक्ष और उसके समर्थकों को सशरीर आनंद न मिले और कर्म कांड में पड़कर दुःखी रहे। नंदी के श्राप को सुनकर भृगु ऋषि ने कहा कि शिव के भक्त पाखंडी कहे जाएंगे। इस तरह ससुर और जमाता का आपस में विरोध हो गया था।
जब ब्रह्मा ने दक्ष प्रजापति को प्रजापतियों का नायक बनाया तो उसने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। दक्ष ने भगवान शिव को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रण भेजा।
जब माता सती ने सभी देवी-देवताओं को आकाश मार्ग से जाते हुए देखा तो उन्होने भगवान शिव से पूछा कि यह सब कहां जा रहे हैं? भगवान शिव बोले कि देवी आपके पिता ने एक यज्ञ का आयोजन किया है लेकिन मुझ से विरोध के कारण उन्होंने हमें नहीं बुलाया। क्योंकि एक सभा में वह मुझसे नाराज़ हो गए थे।
माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता के यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। भगवान शिव ने कहा कि पिता, गुरु और स्वामी के घर पर हम वैसे तो बिना निमंत्रण के जा सकते हैं लेकिन अगर आपस में विरोध चल रहा है तो वैसा इज़्ज़त सम्मान नहीं मिलता। लेकिन मां सती के हठ के आगे भगवान शिव का कोई तर्क काम नहीं किया। भगवान शिव तो अंतर्यामी थे वह तो जानते थे विधि के विधान में क्या लिखा है?
इसलिए भगवान शिव ने माता सती को अपने गणों के साथ दक्ष के यज्ञ में भेज दिया। दक्ष के यज्ञ में पहुंच कर भगवान शिव का भाग ना देखकर सती माता क्रोध की अग्नि में जल उठी।
माता सती ने अपने पिता से पूछा कि इस यज्ञ में मेरे पति शिव जी का भाग क्यों नहीं है? दक्ष ने अहंकार से भरकर उत्तर दिया कि तुम्हारे उस पति को मैं देवता नहीं मानता। वह तो नग्न रहने वाला , शरीर पर भस्म लगाने वाला और हड्डियों की माला पहनने वाला देवताओं के साथ भाग लेने योग्य कैसे हो सकता है? इसलिए उसे यज्ञ में भाग नहीं दिया गया।
यह सुनकर माता सती क्रोध से भर कर कहने लगी कि मैं अपने पति शिव जी की निंदा सुन रही हूं इसलिए मेरे इस जीवन पर धिक्कार है। उसके पश्चात माता सती देवताओं से कहने लगी कि, तुम सब लोग अपने कानों से शिव निंदा सुन रहे हो इसलिए तुम सबको धिक्कार है।
पहनने वाला देवताओं के साथ भाग लेने योग्य कैसे हो सकता है? इसलिए उसे यज्ञ में भाग नहीं दिया गया।
यह सुनकर माता सती क्रोध से भर कर कहने लगी कि मैं अपने पति शिव जी की निंदा सुन रही हूं इसलिए मेरे इस जीवन पर धिक्कार है। उसके पश्चात माता सती देवताओं से कहने लगी कि, तुम सब लोग अपने कानों से शिव निंदा सुन रहे हो इसलिए तुम सबको धिक्कार है।
माता सती कहने लगी कि तुम्हारे जैसे शिव द्रोही और शिव का तिरस्कार करने वाले से मिली हुई देह का मैं त्याग कर दूंगी। इतना कहने के पश्चात माता सती ने योगासन में बैठकर समाधिस्थ होकर अपने हृदय से अग्नि और वायु प्रकट की जिससे उनकी देह जलने लगी।
जब भगवान शिव को सती के देह त्याग का समाचार मिला तो उन्होंने अपनी जटा से वीर भद्र को प्रकट किया और उसे दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया। वीर भद्र ने यज्ञ के कुण्डों को नष्ट कर दिया और भृगु ऋषि की दाढ़ी उखाड़ दी, भग नामक देवता की आंखें निकाल दी, पूषा के दांत तोड़ दिए और दक्ष का गला दबा कर उसका सिर दक्षिणाग्नि में हवन कर दिया।
भगवान शिव स्वयं वहां पहुंच कर सती के शरीर को कंधे पर रख कर तांडव करने लगे। शिव सभी दिशाओं में घूमने लगे। सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 हिस्सों में बांट दिया। यहां यहां माता सती के शरीर के भाग गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। माता सती ने देह त्याग से पहले श्री हरि विष्णु से यह वरदान मांगा था कि उनकी प्रीति भगवान शिव के प्रति हर एक जन्म में रहे।
माता सती ने अपने देह त्याग के पश्चात राजा हिमवान और मैना की पुत्री के रूप में जन्म लिया। उस जन्म में उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या कर उनको प्रसन्न किया और भगवान शिव ने उनको पत्नी रूप में स्वीकार किया।
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