LALACH BURI BALA HAI

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लालच बुरी बला है कहानी 

लालच बुरी बला है - मुहावरे का अर्थ है लालच से बहुत हानि होती है इसलिए किसी भी तरह के लालच से बचना चाहिए।

लालच बुरी बला है यह सब जानते हैं लेकिन फिर भी जरूरत से ज्यादा लोभ के कारण हमारे पास जो पहले उपलब्ध है हम उसको भी व्यर्थ गंवा देते हैं। पढ़ें लालच बुरी बला है पर आधारित एक कहानी -

एक बार एक व्यक्ति जंगल में जा रहा था तो उसे एक साधु मिला। व्यक्ति ने साधु महाराज को प्रणाम किया। उसने साधु से पूछा कि," महाराज मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?" वह कहने लगे कि," मुझे भूख लगी है।" उस व्यक्ति के पास जो भोजन था, उसमें से आधा उसने साधु महाराज को खिला दिया। साधु ने खुश होकर उससे कहा कि," बताओ कि तुम को क्या चाहिए?"

वह व्यक्ति कहने लगा कि," महाराज मैं बहुत निर्धन हूं। आप मुझे आशीर्वाद दे कि मुझे बहुत सा धन प्राप्त हो जाए।" साधु ने उसकी बात सुनकर उसे चार दीपक दिए। साधु महाराज कहने लगे कि," पहला दीपक जला कर पूर्व दिशा की ओर चलना शुरू करना और जिस स्थान पर यह दीपक बुझ जाए उस स्थान पर तुम मिट्टी खोदना वहां से तुम्हें ज़मीन में गड्ढा हुआ धन प्राप्त होगा।" 

अगर उसके पश्चात भी तुम को अधिक धन पाने की इच्छा हो तो दूसरा दीपक जला कर पश्चिम दिशा की चले जाना वहां भी तुम्हें जमीन में गड्ढा हुआ धन प्राप्त होगा। 

उसके पश्चात भी यदि तुम संतुष्ट ना हो तो तुम दीपक जला कर उत्तर दिशा की ओर चले जाना वहां भी तुम्हें धन प्राप्त होगा ‌। फिर संत ने उसे चेतावनी दी कि भूल कर भी दक्षिण दिशा वाला दीपक जलाकर उस ओर मत जाना। साधु को प्रणाम कर व्यक्ति वहां से चल पड़ा।

साधु की कही बात कि सत्यता को परखने के लिए उस व्यक्ति  पूर्व दिशा में जाने वाला दीपक जलाया और पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा और जिस स्थान पर दीपक बुझ गया वहां खोदने पर उसे चांदी के सिक्कों से भरा संदूक मिला गया। उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। अब उसके मन में जिज्ञासा जागी गई कि पश्चिम दिशा में जाकर देखना चाहिए कि वहां धरती में कौन सा खजाना प्राप्त होगा ?

वह व्यक्ति चांदी के सिक्कों को वहां गाड़ कर पश्चिम दिशा की ओर चल पड़ता है।वह सोचता है कि यह धन मैं बाद में आकर ले जाऊंगा। दूसरा दीपक जला कर वह पश्चिम दिशा की ओर चल पड़ता और जिस स्थान पर दीपक बुझ जाता है। वहां खोदने पर उसे सोने के सिक्कों से भरा सन्दूक मिलता। अब उसकी खुशी सातवें आसमान पर थी। पश्चिम दिशा वाला भी धन वहीं दबाकर वह उत्तर दिशा की ओर चल पड़ता है।

उसके मन में जिज्ञासा हुई कि चल कर देखता हूं कि उत्तर दिशा में कौन सा खजाना मुझे मिलेगा है? उत्तर दिशा में जिस स्थान पर दीपक बुझता है वहां खोदने पर उसे हीरे-जवाहरात से भरा सन्दूक प्राप्त होता है। अब उसे अपार धन प्राप्त हो चुका था। लेकिन फिर भी उसकी और अधिक धन पाने की इच्छा समाप्त नहीं हुई थी। वह व्यक्ति सोचने लगा कि मुझे दक्षिण दिशा की ओर भी जरूर जाना चाहिए। 

तभी उसे साधु महाराज की चेतावनी स्मरण हो आई कि भूलकर भी दक्षिण दिशा की ओर मत जाना। अधिक धन पाने की लालसा में वह इतना पागल चुका था कि उसे साधु पर ही शक होने लगा।

वह सोचने लगा कि," क्या पता उस दिशा में अनमोल धन संपदा हो ? साधु स्वयं उसे प्राप्त चाहता हो इसलिए मुझे वहां ना जाने की चेतावनी दी हो।" उसने हीरों के संदूक को भी वही मिट्टी में दबाकर दिया। अब वह व्यक्ति  दीपक जलाकर दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ा।

जिस स्थान पर दीपक बुझा वहां उसे एक दरवाजा दिखा। व्यक्ति उस दरवाजे को खोलकर  अंदर चला गया। दरवाजा से अंदर प्रवेश करते ही उसे एक सुंदर महल दिखा। जिसमें चारों ओर हीरे-जवाहरात जड़े हुए थे। उस व्यक्ति को महल में कोई भी नज़र नहीं आ रहा था। वह सोचने लगा कि चांदी, सोने के सिक्कों , हीरे जवाहरात के साथ-साथ यह महल भी अब मेरा हो गया है। निश्चित ही उस साधु की दृष्टि भी इस महल पर होगी इसलिए उसने मुझे दक्षिण दिशा ओर आने से मना किया था।

फिर उसे दूर किसी कमरे में कुछ आहट सुनाई दी। व्यक्ति उस कमरे की ओर चल पड़ा। वहां उसे एक व्यक्ति चक्की चलता हुआ दिखा। उसने चक्की चलाने वाले से प्रश्न पूछा कि," आप कौन हैं? आप निर्जन स्थान पर चक्की क्यों चला रहे हैं? इस महल का स्वामी कौन है?" 

चक्की चलाने वाला बोला कि," मैं तुम्हारे प्रश्नों उत्तर एक शर्त पर ही दूंगा अगर तुम कुछ समय मेरे स्थान पर चक्की चलाओ।

उस व्यक्ति ने कहा कि ठीक है," मैं तुम्हारे स्थान पर कुछ समय के लिए चक्की चलाऊंगा। " जैसे ही उस व्यक्ति ने चक्की चलानी शुरू की पहले चक्की चलाने वाले ने उसके प्रश्नों के उत्तर देने शुरू किए। वह व्यक्ति कहने लगा कि मैं भी तुम्हारी भी तुम्हारी तरह लालची आदमी था। मुझे भी साधु ने इस दिशा में आने से मना किया था। लेकिन अधिक धन पाने की लालसा में मैंने साधु की बातों को नहीं माना और जो बहुमूल्य धन मिला था वो मैंने भी तुम्हारी तरह खो दिया। 

तुम ने मुझ से पूछा था कि मैं चक्की क्यों चला रहा हूं और इस महल का स्वामी कौन है ? इस महल का स्वामी वहीं होता है जो चक्की चलाता है। जैसे ही चक्की चलना बंद होगी यह महल गिर जाएगा। तुम्हें बता दूं कि मुझ से पहले इस महल का स्वामी कोई और लालची व्यक्ति था। मैं भी तुम्हारी तरह तुम्हारी तरह ज्यादा धन संपदा के लालच में जहां आया और इस महल को पाने के लालच में इस लोभ की चक्की को चलाने के लिए राजी हो गया।

अब तुम्हारा लालच तुम्हें जहां ले आया। जिस समय तुम्हारी और मेरी तरह कोई और‌ लालच में इस महल में प्रवेश करेंगा और तुम्हारे स्थान पर चक्की चलाएगा ।‌‌तब ही  तुम इस से मुक्त हो सकते हो क्योंकि अगर उससे पहले चक्की चलना बंद होगी महल गिर जाएगा। इतना कहकर पहला लालची आदमी वहां से चला गया।

इस तरह वह व्यक्ति लालच की चक्की पिसने लगा। अब वहां बैठ कर वह पछतावा कर रहा था कि ज्यादा पाने की लोभ में मुझे जो तीन बार पहले बहुमूल्य खजाना मिला था मैं उसे व्यर्थ ही गंवा दिया। सच ही कहते हैं कि लालच बुरी बला है।

Moral - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि जरूरत से ज्यादा लोभ के कारण हमारे पास जो पहले उपलब्ध है हम उसको भी व्यर्थ कर देते हैं।  

लालच के बारे में एक प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक है कि- 

लोभेन बुद्धिश्चलति लोभो जनयते तृषाम् ।
तृषार्तो दुःखमाप्नोति परत्रेह च मानवः ।।

भावार्थ- लोभ से बुद्धि विचलित हो जाती है, लोभ ही ना मिटने वाली तृष्णा की उत्पत्ति होती है। जो मनुष्य तृष्णा से ग्रस्त होता है वह इस लोक और परलोक दोनों में दुःख का भागीदार बनता है।

इसलिए जीवन में जब भी कोई परिस्थितियां मन में लालच उत्पन्न करें पूरे विवेक के साथ उसके बारे में आत्म विवेचन करने के पश्चात ही निर्णय ले अन्यथा व्यक्ति दुःख ही भोगता है।

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