भगवान श्री कृष्ण के प्रसिद्ध मंत्र हिन्दी अर्थ सहित
श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्री कृष्ण का नाम शाश्वत ,सनातन और आनंद प्रदान करने वाला है श्री कृष्ण के बारे में कहा जाता है कि -
जो आकर्षित करता है वह कृष्ण है। श्री कृष्ण नाम की महिमा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्मपुराण, भागवत पुराण आदि बहुत से पुराणों में मिलता है। बहुत से संत महात्माओं ने श्री कृष्ण की नाम महिमा का वर्णन किया है। श्री कृष्ण के भक्तों द्वारा और वेद पुराणों में श्री कृष्ण की बहुत सी स्तुतियां लिखी गई है। कुछ में श्री कृष्ण के बालरूप की महिमा का गान किया गया है तो कुछ में उनकी नाम महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि कलयुग में श्री कृष्ण स्वयं हरिनाम के रूप में अवतार लेते हैं । श्री कृष्ण का नाम कष्टों को हरने वाला है।
संत श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित मधुराष्टकम् पढ़कर और सुनकर हमारी आंखों के आगे श्री कृष्ण की एक सुंदर और मनमोहक छवि उभरती है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे महामंत्र का जाप तो विश्व भर में श्री कृष्ण के भक्त आंनद से भर कर नाचते गाते हुए समर्पण भाव से करते हुए नज़र आ जाते हैं। इस आर्टिकल में पढ़ें श्री कृष्ण के प्रसिद्ध मंत्र और श्लोक
Shree Krishna Mantra in Sanskrit/ Krishna shloka
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥1॥
मैं वसुदेव के पुत्र, देवकी के परमानन्द, कंस और चाणूर का मर्दन करने वाले,समस्त विश्व के गुरू भगवान कृष्ण की वन्दना करता हूँ।
ईश्वरः परमः कृष्णः सच्चिदानन्दविग्रहः।
अनादिरादिर्गोविन्दः सर्वेकारणकारणम्॥2॥
भावार्थ- भगवान तो श्री कृष्ण हैं, जो सच्चिदानन्द स्वरुप हैं। उनका कोई आदि नहीं है, क्योंकि वे प्रत्येक वस्तु के आदि हैं, भगवान गोविंद समस्त कारणों के कारण हैं।
कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार।
नाम हइते सर्व जगत निस्तार।।3॥
भावार्थ- श्री कृष्ण तथा कृष्ण नाम अभिन्न हैं। कलियुग में श्री कृष्ण स्वयं हरिनाम के रूप में अवतार लेते है। केवल हरिनाम से ही सम्पूर्ण संसार का उद्धार संभव है।
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने॥
प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥4॥
भावार्थ-हे वासुदेव नंदन परमात्मा स्वरूप श्री कृष्ण आपको प्रणाम है। उन गोविन्द को पुनः प्रणाम वह हमारे कष्टों का हरे।
ॐ कृष्णाय नमः॥5॥
भावार्थ- हे श्री कृष्ण, मेरा नमन स्वीकार करो।
ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः॥6॥
भावार्थ- हे श्री कृष्ण! मैं विनती करता हूं कि आप मुझे अपने संरक्षण में ले लो।
मन्दं हसन्तं प्रभया लसन्तं जनस्य चित्तं सततं हरन्तम्।
वेणुं नितान्तं मधु वादयन्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥7॥
भावार्थ - मृदुल हंसने वाले, तेज से चमकने वाले, सदैव लोगों का चित्त आकर्षित करने वाले, अत्यंत मधुर बांसुरी बजाने वाले बालकृष्ण का मैं मन से स्मरण करता हूं।
जिह्वे सदैवम् भज सुंदरानी,
नामानि कृष्णस्य मनोहरानी।
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि,
गोविन्द दामोदर माधवेति॥8॥
भावार्थ- हे जिह्वा! तू सदैव श्री कृष्ण के इन मनोहर नामों- गोविन्द, दामोदर, माधव का जाप कर, जो अपने भक्तों की समस्त बाधाओं का विनाश करने वाले हैं।
वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥9॥
भावार्थ - श्री राधा रानी वृन्दावन की स्वामिनी हैं और श्रीकृष्ण वृन्दावन के स्वामी ,हे प्रभु! मेरे जीवन का हर एक क्षण श्रीराधा कृष्ण के आश्रय में बीते।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीविजयो भूतिधुंवा नीतिर्मतिर्मम।।10॥
जहां योगेश्वर श्री कृष्ण हैं और जहां धनुर्धरी अर्जुन हैं, वहीं पर लक्ष्मी, विजय, विभूति और नीति है – ऐसा मेरा मानना है।
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं॥11॥
भावार्थ- हे श्री कृष्ण आपके होंठ मधुर है, आपका मुख मधुर है, आपकी आँखे मधुर है, आपकी मुस्कान मधुर है, आपको हृदय मधुर है, आपकी चाल मधुर है। हे मधुरता के ईश्वर श्री कृष्ण आप सभी प्रकार से मधुर है।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥12॥
भावार्थ- हे श्री कृष्ण! आपकी वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है, आपकी चरण रज पर चढ़ाये पुष्प मधुर है, आपके हाथ मधुर है, आपके चरण मधुर है, आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है, हे मधुरता के ईश्वर श्री कृष्ण आप सभी प्रकार से मधुर है।
देवकीसुतं गोविन्दम् वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।13॥
भावार्थ - मां देवकी और वासुदेव के पुत्र, अखंड जगत के स्वामी श्री कृष्ण मुझे एक पुत्र प्रदान करे; मैं आपकी शरण में आया हूं।
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्॥14॥
भावार्थ - देवकी और वसुदेव के पुत्र श्री कृष्ण ध्यानस्थ अपने उपासकों के विचारों को नियंत्रित करते हैं, उनकी शक्तियां असीमित है। ना तो देवता और ना ही शैतान उनकी शक्ति की व्याख्या कर सकते है, ऐसे परम देवता को मैं नमन करता हूं ,हे प्रभु! मेरा नमन स्वीकार करें।
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरीम।
श्रीधरम माधवम गोपिकावल्लभम
जानकीनायकम रामचन्द्रम भजे॥15॥
भावार्थ- हे अच्युत! हे केशव!, हे राम! जो नारायण के रूप हैं, मैं आपको भजता हूं, हे कृष्ण! हे दामोदर! हे वासुदेव! मैं आपको भजता हूं। हे हरि!, हे श्रीधर!, हे माधव!, जो गोपियों के प्रिय थे, मैं आपकी पूजा करता हूं। देवी जानकी के स्वामी! प्रभु श्री रामचन्द्र को मैं भजता हूं ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।॥16॥
16 अक्षरों का यह मंत्र श्री कृष्ण के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली मंत्रों में से एक है। विश्व भर में श्री कृष्ण के करोड़ों भक्त इस महामंत्र का जप कर श्री कृष्ण की भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं।सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) समस्त विश्व में इस मंत्र का प्रचार का प्रसार कर रहा है। हरे कृष्ण मंत्र, कलिसंतरण उपनिषद से लिया गया है
श्रीकृष्णनामामृतमात्मह्लादं प्रेम्णा समास्वादनमङ्गिपूर्वम्।
यत् सेव्यते जिह्विकयाविरामं तस्यातुलं जल्पतु को महत्त्वम्॥17॥
हृदय को अत्यन्त प्रिय लगने वाले श्रीकृष्ण नाम के अमृत का रसास्वादन प्रेम से इच्छा के साथ जिस जिह्वा द्वारा अविराम सेवन किया जाता है, उसकी विशाल महत्ता का वर्णन कौन कर सकता है।
हरे राम हरे कृष्ण कृष्ण कृष्णेति मंगलम्।
एवं वदन्ति ये नित्यं न हि तान् बाधते कलिः॥18॥
भावार्थ - जो सदा हरे राम! हरे कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण! जाप करते हैं, उस भक्त को कलियुग में कोई भी हानि नहीं दे सकता है।
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