KARTIK MONTH RAMA EKADASHI VRAT KATHA

RAMA EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE AARTI IN HINDI रमा एकादशी व्रत कथा महत्व आरती

KARTIK MONTH: रमा एकादशी व्रत कथा

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। रमा एकादशी का धनतेरस और दिवाली से पहले आने से बहुत महत्व बढ़ जाता है। रमा एकादशी व्रत करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता। इस एकादशी को कार्तिक कृष्णा एकादशी और रम्भा भी कहा जाता है। रमा मां लक्ष्मी का ही एक नाम है इसलिए इसदिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन वैभव में वृद्धि होती है।

RAMA EKADASHI KA MAHATVA

 रमा एकादशी व्रत करने से श्री लक्ष्मी नारायण दोनों की कृपा प्राप्त होती है। रमा एकादशी व्रत से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है । रमा एकादशी व्रत से सभी पाप नष्ट होते हैं और विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। रमा एकादशी व्रत करने से अश्वमेघ और वाजपेयी यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।

RAMA EKADASHI VRAT KATHA IN HINDI 

 Rama Ekadashi: एक बार मुचकुंद नाम का राजा राज्य करता था। उसकी इंद्र, कुबेर, वरुण, यम के साथ मित्रता थी। वह राजा धर्मात्मा और विष्णु भक्त था । राजा की चंद्रभागा नाम की एक पुत्री थी। जिसका विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन से हुआ था। राजा मुचकुंद के राज्य में सभी को एकादशी व्रत करना पड़ता था।

एक बार जब शोभन अपने ससुराल आया तब रमा एकादशी आने वाली थी।  चंद्रभागा सोचने लगी कि मेरा पति तो बहुत दुर्बल है । यहां पर तो उनको एकादशी व्रत करना पड़ेगा क्योंकि व्रत को लेकर मेरे पिता के आदेश कठोर है।

चन्द्रभागा अपने पति से कहने लगी कि," स्वामी आपको एकादशी से पहले किसी दूसरे स्थान पर चले। क्योंकि मेरे पिता के राज्य में आपको व्रत अवश्य करना पड़ेगा और उन्होंने पूरे राज्य में व्रत के लिए ढिंढोरा पिटवा दिया है।"

शोभन ने कहा - मैं तुम्हारे साथ व्रत अवश्य करूँगा, आगे जो भाग्य में होगा देखा जायेगा। लेकिन भूख - प्यास से दुःखी शोभन के प्राण प्रातःकाल होते खत्म हो गए।

राजा ने चंदन की लकड़ी से उसका दाह संस्कार करवाया और चन्द्रभागा अपने पिता के घर पर रहने लगी। उधर रमा एकादशी के व्रत के प्रभाव से शोभन को एक देवपुर प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुन्द के राज्य का एक ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करता हुआ उस नगर में  पहुँच गया उसने शोभन को पहचान लिया कि यह तो राजा मुचकंद का जमाई है।

ब्राह्मण ने पूछा कि आपको इतना सुंदर नगर कैसे प्राप्त हुआ? शोभन ने बताया कि रमा एकादशी व्रत से प्रभाव से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ है लेकिन यह अस्थाई है। क्योंकि कि मैंने व्रत श्रद्धा रहित किया था ? ब्राह्मण ने पूछा कि इसको स्थिर करने का क्या कोई उपाय है? शोभन ने कहा कि राजा मुचकंद की पुत्री के पुण्य के प्रभाव से नगर स्थाई हो सकता है।

ब्राह्मण सोमदत्त ने अपने राज्य लौट कर चन्द्रभागा को सारा प्रसंग सुनाया। चन्द्रभागा कहने लगी कि आप मुझे वहाँ लेकर चले, मैं अपने पुण्यों से नगर को स्थिर बना दूंगी। ब्राह्मण के साथ चन्द्रभागा पहले ऋषि वामदेव के आश्रम पहुँची। ऋषि वामदेव ने वेद मंत्रों से उज्जवल तिलक द्वारा चन्द्रभागा का अभिषेक किया।

ऋषि मंत्र के प्रभाव और एकादशी व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया। वह प्रसन्नता से अपने पति शोभन के समीप गई और उसने अपनी पत्नी को बांई ओर बैठाया।

चन्द्रभागा ने कहा कि मैं जब आठ वर्ष की थी तब से एकादशी का व्रत कर रही हूँ। आप मेरे पुण्य को ग्रहण कर लीजिए जिससे आप का नगर स्थिर हो जाएगा और प्रलय के अंत तक रहेगा। इस प्रकार चन्द्रभागा अपने पति के साथ सुख से रहने लगी। 

एकादशी व्रत विधि

एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।

एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए। उनके मंत्र, आरती, चालीसा पढ़ना चाहिए।

इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है।

भगवान कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए। गीता का पाठ करना चाहिए।

व्रती को फलाहार ही करना चाहिए।

रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है क्योंकि जो पुण्य समस्त तीर्थों का स्नान करने से मिलता है वैसा ही पुण्य रात्रि जागरण से मिलता है।

द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए। 

EKADASHI KI AARTI 

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।

विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥

ॐ जय एकादशी माता॥

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।

गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥

ॐ जय एकादशी माता॥

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।

शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥

ॐ जय एकादशी माता॥

पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।

शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥

ॐ जय एकादशी माता॥

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।

शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥

ॐ जय एकादशी माता॥

विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।

पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥

ॐ जय एकादशी माता॥

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।

नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥

ॐ जय एकादशी माता॥

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।

नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥

ॐ जय एकादशी माता॥

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।

देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥

ॐ जय एकादशी माता॥

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।

श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥

ॐ जय एकादशी माता॥

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।

इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥

ॐ जय एकादशी माता॥

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।

रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥

ॐ जय एकादशी माता॥

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।

पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥

ॐ जय एकादशी माता॥

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।

शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥

ॐ जय एकादशी माता॥

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।

जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥

ॐ जय एकादशी माता॥  

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