बुद्ध पूर्णिमा पर पढ़ें गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल डाकू की कहानी
गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए इसदिन को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन पढ़ें गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल की प्रेरणादायक कहानी
GAUTAM BUDDHA AND ANGULIMALA STORY IN HINDI
मगध राज्य में अंगुलिमाल नाम का एक खुंखार डाकू था। उसके नाम से ही वहां के लोग भयभीत हो जाते थे। उसके नाम में ही उसका आतंक छुपा हुआ था। उसका नाम अंगुलिमाल इसलिए पड़ा था क्योंकि वह जिन लोगों की हत्या करता उनकी अंगुली काट कर अपने गले में पड़ी माला में पिरो लेता। अंगुलियों से बनी माला पहनने के कारण उसका नाम अंगुलिमाल प्रसिद्ध हो गया था। लोगों ने उसकी शिकायत वहां के राजा से की। राजा ने उसे पकड़ने के लिए सैनिक भी भेजे। लेकिन अंगुलिमाल उनकी पकड़ में नहीं आता था।
एक बार संयोगवश गौतम बुद्ध उस गांव में गए। वहां ने लोगों ने बहुत अच्छे से गौतम बुद्ध का स्वागत किया लेकिन गौतम बुद्ध ने अनुभव किया कि यहां के लोग किसी बात को लेकर आतंकित हैं। उन्होंने जब इसका कारण पूछा तो वहां के लोगों ने बताया कि जंगल में अंगुलिमाल नाम का कुख्यात डाकू है, जो निर्दोष लोगों को मारकर उनकी अंगुली गले में पिरो लेता है। उसने अब तक 999 लोगों को मार दिया है।
यह सुनकर गौतम बुद्ध ने निर्णय लिया कि इस डाकू से मुझे जरूर मिलना चाहिए। यह बात सुनकर वहां के लोगों ने गौतम बुद्ध को रोकने का बहुत प्रयास किया। वह कहने लगे कि, वह अब तक 999 निहत्थे लोगों को मार चुका है और उसने 1000 लोगों को मारने का प्रण लिया है। इसलिए आपको नहीं जाना चाहिए।
गौतम बुद्ध बोले - मैं अवश्य जाऊंगा। एक संत मृत्यु के भय से अपना मार्ग नहीं बदल सकता।
गौतम बुद्ध शांत भाव से जंगल की ओर बढ़ते गए। तभी उन्हें एक आवाज सुनाई दी। 'ठहर जा'
गौतम बुद्ध बिना उस आवाज़ को कोई अहमियत देते हुए लगातार अपने मार्ग पर चलते रहे। पुनः एक आवाज आई ठहर जा, मैं कहता हूं ठहर जा।
गौतम बुद्ध ने पलटकर कहा - मैं तो ठहर गया। तू कब ठहरेगा? अंगुलिमाल सोचने लगा कि यह संयासी कैसी बातें कर रहा है। स्वयं चल रहा है और मुझ से पूछ रहा है कि तू कब ठहरेगा?
अंगुलिमाल गौतम बुद्ध के सामने आ गया। वह चाह कर भी उन्हें नहीं मार पाया। क्योंकि आजकल जितने भी लोगों की उसने हत्या की थी वह सब उसके सामने डरकर थर-थर कांपते थे। लेकिन गौतम बुद्ध के चेहरे पर बिल्कुल भी भय का भाव नहीं था।
अपना प्रभाव दिखाने के लिए अंगुलिमाल बोला- यहां का राजा भी मुझ से डरता है। मैं जहां का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हूं। गौतम बुद्ध बोले- बिना सिद्ध किए मैं कैसे मान लूं? जब तक तुम मुझे सिद्ध करके नहीं दिखा देते मैं इस बात को सच नहीं मान सकता। अंगुलिमाल का सामना अब तक किसी भी ऐसे व्यक्तित्व से नहीं हुआ था। वह असमंजस की स्थिति में था कि यह संयासी कैसी बातें कर रहा है।
गौतम बुद्ध बोले - यदि तुम सबसे शक्तिशाली है तो इस पेड़ के पत्ते तोड़ कर लाओ।
अंगुलिमाल घमंड से बोला- पत्ते तो क्या मैं तो पूरा पेड़ ही उखाड़ कर लें आता हूं।
गौतम बुद्ध बोले - नहीं तुम पत्ते ही तोड़ कर लाओ।
अंगुलिमाल पत्ते तोड़कर ले आया। गौतम बुद्ध बोले - जाओ और इन पत्तों को पुनः पेड़ से जोड़ दो।
अंगुलिमाल का सिर चकरा गया। वह सोचने लगा कि,यह संन्यासी पागल हो गया है। वह झल्लाते हुए बोला ऐसा कैसे संभव है?
गौतम बुद्ध ने कहा - तुम ने स्वयं ही तो कहा कि तुम सबसे शक्तिशाली हो। लेकिन अगर तुम तोड़कर जोड़ना नहीं जानते तो तुम काहे के शक्तिशाली व्यक्ति हो। गौतम बुद्ध की बातों को सुनकर अंगुलिमाल अवाक रह गया।
गौतम बुद्ध कहने लगे कि," तुम को किसने अधिकार दिया कि तुम निर्दोष 999 लोगों की हत्या करने का अगर तुम उन्हें जीवित करने की क्षमता नहीं रखते।"
गौतम बुद्ध की बातों को सुनकर अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन हो गया। वह आत्मग्लानि से भर गया। गौतम बुद्ध पुनः गांव की ओर चल पड़े। अंगुलिमाल उसके पीछे-पीछे आने लगा। वह गौतम बुद्ध के चरणों में गिर गया। महात्मन! आप मुझे अपनी शरण में ले लीजिए। बुद्धं शरणं गच्छामि।
यह ही अंगुलिमाल आगे चल कर संन्यासी बन गया।
गौतम बुद्ध की यह कहानी सिद्ध करती है कि अगर गुरु सच्चा हो तो वह हमारे दुर्गुणों को दूर करके हमें ज्ञान का उचित मार्ग दिखाता है।
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