ANTARAATMA KI AWAZ KYA HOTI HAI

ANTARAATMA KI AWAZ MOTIVATIONAL MORAL STORY IN HINDI अंतरात्मा की आवाज़ का अर्थ और कहानी हिन्दी में

अंतरात्मा की आवाज़ का अर्थ और कहानी हिन्दी में

अंतरात्मा की आवाज़ मानव शरीर की उस सत्ता को कहते हैं जो हमें उचित-अनुचित का ज्ञान करवाती है,"अंतरात्मा की आवाज़ सत्य होती है"

ऐसा माना जाता है कि अंतरात्मा की आवाज व्यक्ति की सबसे अच्छी मित्र होती है जो अच्छा कर्म करने पर जो उसे शाबाशी देती है और बुरा कर्म करने पर उसे दुत्कारती जरूर है।हमारी अंतरात्मा हमें उचित-अनुचित का एहसास जरूर करवाती है। यह हमें आभास करवाती है कि किसी विषय के बारे में हम जो निर्णय ले रहे हैं यह सही है या ग़लत। 

जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती है जब हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। क्या सही है और क्या गलत इसका निर्णय ही नहीं कर पाते ? ऐसी परिस्थितियों में हमारी अंतरात्मा की आवाज एक निर्णायक की भूमिका निभाती है और हमें उचित अनुचित का ज्ञान करवाती है। 

महात्मा गांधी, सुकरात और बहुत से विद्वानों ने भी इस तथ्य को माना है कि अंतरात्मा की आवाज को ईश्वर की आवाज कहा जा सकता है। कुछ दार्शनिकों का मानना है कि कोई ईश्वरीय सत्ता तो जरूर है जो हमें शुभ और नैतिकता पूर्ण कर्म करने के लिए सदैव प्रेरित करती रहती है और मनुष्य उसके निर्णय वैसे ही स्वीकार करता है जैसे कोई अनुयायी अपने गुरु के आदेश को मानता है। 

कई बार हम जब कुछ गलत सोच रहे होते हैं तो हमारी अंतरात्मा की आवाज हमें गलत करने से रोकने के लिए दुत्कारती जरूर है। यहां तक कि कई बार सामने वाला कह कुछ और रहा होता है लेकिन हमारी अंतरात्मा हमें उसके माध्यम से भी समझाने की कोशिश करती है।

अंतरात्मा की आवाज़ कहानी हिन्दी में

ANTARAATMA KI AWAZ MOTIVATIONAL STORY IN HINDI:एक बार बात है कि एक राजा अपने राज्य की मशहूर नृत्यांगना को अपने राजमहल में नृत्य करने के लिए निमंत्रण भेजता है। नृत्यांगना का नृत्य देखने के लिए राजा अपने गुरु को भी निमंत्रण भेजता है। नृत्य शुरू होने से पहले राजा अपने गुरु को मुद्राओं से भरी एक थैली देता है और कहता है कि," अगर नृत्य अच्छा लगे तो इन में से कुछ मुद्राएं नृत्यांगना को पुरस्कार के रूप में भेंट कर देना।" नृत्यांगना का नृत्य देखने के लिए राज परिवार के भी सदस्य राजमहल में उपस्थित थे। नृत्यांगना के नृत्य को सभी लोग आनंद से देख रहे थे।                     

लेकिन जब नृत्यांगना का नृत्य खत्म होने वाला होता है तो उनके पीछे जो तबला बजा रहा होता है उस की ताल बिगड़ जाती हैं। नृत्यांगना उनसे कहती है -

"सारी गई ,थोड़ी रहीं, यह भी बीती जाए, ताल भंग ना कीजिए ,नहीं तो दाग लग जाए।"

 उसके कहने का भाव होता है कि, "सारा कार्यक्रम अच्छे से हो गया है ,अब थोड़ा सा ही शेष रह गया है । अब अगर आप लोगों की ताल बिगड़ी तो मेरा नृत्य भी खराब होगा और मेरी नृत्य कला पर दाग लग जाएगा।"

लेकिन नृत्यांगना के इतना कहते ही राजा के गुरु के पास जितनी भी स्वर्ण मुद्राएं होती है उसे नृत्यांगना को भेंट कर देता है। राजकुमारी अपना नौलखा हार निकालकर नृत्यांगना को दे देती है। राजकुमार अपना सबसे महंगा मोतियों का हार दे देता है।

राजा का सर चकरा जाता है कि इसने ऐसा क्या कह दिया कि हर कोई अपनी कीमती वस्तुएं इसे उपहार के रूप में दे रहा है। राजा कार्यक्रम वहीं खत्म करने का आदेश देता है और पहले अपने गुरु जी से पूछता है कि ,"आपने इतनी सारी स्वर्ण मुद्राएं नृत्यांगना को भेंट में क्यों दे दी?"

 गुरु जी कहते हैं  कि ,"मेरी सारी उम्र ईश्वर की भक्ति में निकली लेकिन आज तुम्हारे बुलावे पर मैं यहां आ गया ।इस उम्र में नृत्य देखने लेकिन जब उसने कहा कि-

"सारी गई थोड़ी रही ,यह भी बीती जाए, ध्यान भंग ना कीजिए ,नहीं तो दाग लग जाए"            

तो मुझे ध्यान आया कि मैं यह क्या कर रहा हूं ? मुझे अपनी भक्ति से ध्यान नहीं भटकना चाहिए । इस ने मेरे मेरा ध्यान भटकने से बचाया है इसके लिए मैं इसका धन्यवाद करता हूँ। इसने मेरी अंतरात्मा की आवाज को जगाया है इसलिए मैंने इसे सारी सोने की मोहरे भेंट कर दी।" 

राजा फिर राजकुमार से पूछता है तो वह कहता है कि " इस ने मुझे पितृ हत्या करने से बचाया है। मेरे मन में राज्य के लिए लोभ जाग गया था और मैंने सोचा था कि आज रात को मैं आपको मारकर खुद राजा बन जाऊंगा। लेकिन जब उसने कहा कि - "सारी गई थोड़ी रही ,यह भी बीती जाए" 

तो मेरी अंतरात्मा ने मुझे दुत्कारा की पिताजी अब बूढ़े हो चुके हैं । उनकी कितनी आयु बीत चुकी है  और थोड़ी सी रह गई है। आज नहीं तो कल सारा राज्य मुझे ही मिलना है तो, इसलिए मुझे आपको मारकर पितृ हत्या का दोष नहीं लेना चाहिए।"

राजा राजकुमारी से पूछता है ,राजकुमारी कहती है  कि ,"मेरी विवाह की आयु हो गई है लेकिन आप तो मेरे विवाह के बारे में सोच नहीं रहे थे । इसलिए मैं आज भाग कर शादी करने वाली थी । लेकिन जब उसने कहा -

"सारी गई थोड़ी रही ,यह भी बीती जाए, चरित्र भंग मत कीजिये ,नहीं तो दाग लग जाए "

तो मुझे ध्यान आया कि,"मैं, अगर आज भाग गई तो आपके और भाई के नाम पर दाग लग जाएगा। लोग मुझे चरित्रहीन कहेंगे। इसने मेरी अंतरात्मा को जगाया है ।इसलिए मैंने अपना नौलखा हार इसे दे दिया।"

यह सब सुनने के बाद  राजा की भी अंतरात्मा जागी और उसने घोषणा की आज मेरी बेटी का स्वयंवर है और बेटी को कहा कि वह अपने मन चाहे वर को चुन सकती है।

फिर राजा ने दूसरी घोषणा की कि ,"आज मैं अपने बेटे को राजा घोषित करता हूँ।"

तीसरी घोषणा की कि, "मेरे मन में  वैराग्य जाग गया है और मैं अपने गुरु जी के साथ वन में जाकर भक्ति करना चाहता हूं।"

राजा के गुरु, राजकुमार और राजकुमारी तीनों की अंतरात्मा उन्हें गलत निर्णय लेने के लिए दुत्कार रही थी, कहीं ना कहीं उनके मन में गलत निर्णय लेने के लिए ग्लानि का भाव था। जो उन्हें अहसास करवा रहा था कि जो वह सोच रहे हैं वह गलत है।

इसलिए ही कहते हैं कि इंसान का सबसे बड़ा मित्र उसकी अंतरात्मा होती है जो बुरा काम करने पर उसे दुत्कारती है और अच्छा काम करने पर शाबाशी देती है। 

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