MAHABHARATA STORIES FOR KIDS

 Mahabharat Short stories with moral for kids in hindi /mahabharat story in hindi/ mahabharat ki kahani/ mahabharat story for kids

महाभारत की कहानियां बच्चों के लिए 

Mahabharat story in hindi/ Mahabharat ki kahani/ Mahabharat Short stories with moral for kids

महाभारत महाकाव्य की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी। महाभारत महाकाव्य असीम ज्ञान का भंडार है। महाभारत द्वापर युग से लेकर अब तक हमारा मार्गदर्शन करता आ रहा है। महाभारत हिंदू सनातन धर्म का एक अटूट अंग है। महाभारत के महाकाव्य में अनेकों ऐसी कहानियां हैं जिन्हें हम अपने बच्चों को सुना कर या फिर पढ़ा कर उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं। 

महाभारत में श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, अर्जुन, कर्ण और विदुर की ऐसी अनेकों शिक्षाप्रद कहानियाँ है जो हमें वर्तमान समय में भी शिक्षा देती हैं। 

यह माता -पिता का कर्तव्य होता है वह बच्चों को अपनी संस्कृति के माध्यम से उचित शिक्षा दें। क्योंकि यह माना जाता है कि जो बातें बच्चे बचपन में सीखते हैं वह जीवन भर उनके उन्हें स्मरण रहती हैं। इस आर्टिकल में बच्चों के लिए महाभारत महाकाव्य से संबंधित कुछ प्रेरणादायी कहानियाँ लिखने जा रहे हैं।

Mahabharata Story of Duryodhana, Pandavas and Gandhrav Chitra Sen 

महाभारत की दुर्योधन, पांडव और गंधर्व राज चित्र सेन की कहानी 

Mahabharata story for kids: महाभारत काल में पांचों पांडव और द्रौपदी वनवास के दौरान एक कुटिया में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। दुर्योधन(Duryodhana) धूर्त  प्रवृत्ति के कारण पांडवों को नीचा दिखाने के लिए पूरी राजसी ठाट-बाट और एश्वर्य के साथ वन‌ की ओर चल पड़ा। उसका केवल एक ही मंतव्य का पांडवों(Pandav) को नीचा महसूस करवाना।

वन‌ के रास्ते में दुर्योधन का आमना-सामना गंधर्व राज से हो गया। दुर्योधन को लगा कि गंधर्व राज चित्र सेन (Gandhrav chitra sen) को हराकर लगे हाथ पांडवों को अपना शौर्य प्रदर्शित करने का भी मौका मिल जाएगा। 

लेकिन परिणाम उसके विपरीत हो गया और गंधर्व राज ने दुर्योधन को हराकर अपना बंदी बना लिया। जब यह सूचना पांडवों तक पहुंची  तो युधिष्ठिर ने अपने भाईयों से कहा कि जाओ और जाकर दुर्योधन को छुड़ा कर ले आओ।

भीम कहने लगा कि, भ्राता दुर्योधन ने जीवन भर कभी भी हमारा हित नहीं चाहा तो हमें उसकी सहायता क्यों करनी चाहिए?  युधिष्ठिर कहने लगे कि, दुर्योधन के साथ हमारा पारिवारिक झगड़ा है और घर की बात को जग जाहिर कभी भी नहीं करना चाहिए। इससे पूर्वजों के मान को भी हानि पहुंचती है। परिवार के झगडे परिवार में ही रहने चाहिए। युधिष्ठिर की आज्ञा का पालन करते हुए पांडव गंधर्व राज से युद्ध करके दुर्योधन को उसकी कैद से मुक्त करवा लेते हैं। 

Moral- महाभारत की इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपने परिवार में चाहे कितने भी मतभेद हो अपने परिवार को दूसरों के सामने कमज़ोर नहीं पड़ने देना चाहिए। परिवार में आपस में कैसा भी विवाद हो विपत्ति में सदैव एकजुट होकर रहना चाहिए। क्योंकि इसका लाभ उठाकर कोई आपका नुकसान भी कर सकता है।

Mahabharat Story of Hanuman and Bheem 

हनुमान जी और भीम की कहानी जब हनुमान जी ने भीम का अहंकार चूर किया था 

Mahabharata story for kids: महाभारत में एक कथा आती है कि पांचों पांडवों में से एक भीम को अपनी शक्ति पर बहुत अहंकार हो गया। उसे ऐसा लगता था कि उसमें सौ हाथियों का बल है। इसलिए उसे कोई भी हरा नहीं सकता। उसके इस‌ अहंकार को चूर करने के लिए श्री कृष्ण ने हनुमान जी का सहारा लेकर एक लीला रची।

 द्रौपदी को एक बार कमल पुष्प मिला और द्रौपदी ने भीम से  ऐसे ओर पुष्प लाकर देने का अनुरोध किया। पुष्प लेना के लिए भीम गंधमादन पर्वत की ओर चल पड़े। भीम कंधे पर गदा उठाएं मदमस्त हाथी की तरह पर्वत की ओर बढ़ रहे थे।‌ 

तभी रास्ते में भीम ने देखा कि एक वृद्ध बंदर अपनी पूंछ फैला कर रास्ता रोके बैठा है। भीम ने कड़क स्वर में बंदर को पूंछ हटाने के लिए कहा। बंदर के रूप में हनुमान जी ही थे। हनुमान जी कहने लगे कि," मैं बुजुर्ग हो गया हूं या तो तुम मेरी पूंछ उठा के पीछे कर दो या फिर उसे उलांघ कर चले जाओ।"

लेकिन भीम तो बलवान थे किसी को उलांघना उनकी मर्यादा के खिलाफ था। इसलिए उन्होंने हनुमान जी की पूंछ को स्वयं हटाने का निश्चय किया। भीम मन में विचार करने लगे कि बलवान हाथी मेरे सामने कुछ नहीं। इस बंदर की पूंछ हटाना तो एक तुच्छ कार्य है। हनुमान जी उसके अहंकार को देखकर मन ही मन मुस्करा रहे थे। लेकिन श्री कृष्ण ने यह सारी लीला रची थी इसलिए चुपचाप सब देखते रहे।

 भीम ने गदा नीचे ज़मीन पर रखी और झुककर हनुमान जी की पूंछ को हटाने लगा। भीम को लगा था कि वह पूंछ को एक तिनके की तरह उठा लेंगे। लेकिन कुछ ही क्षणों में भीम का अभिमान चूर हो गया। हनुमान जी की पूंछ को उठाना तो दूर भीम उसको हिला भी नहीं सका। भीम के बार-बार प्रयास करने पर भी जब हनुमान जी की पूंछ नहीं हिली तो उन्होंने बंदर की ओर देखा। वह मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। मानो उस मुस्कान से भीम के अहंकार को चोट लगी है। भीम ने पुनः पूरी क्षमता से बंदर की पूंछ हटाने के लिए भरपूर जोर लगा दिया। लेकिन हनुमान जी की पूंछ टस से मस नहीं हुई।

अब भीम अब मन ही मन विचार करने लगे कि यह कोई साधारण बंदर नहीं हो सकता। अब तक भीम का सबसे ताकतवर होने का अहंकार ही चूर हो चुका था कि मैं विश्व में सबसे ज्यादा शक्तिशाली हूं। उन्हें समझ आ चुका था कि यह जरूर‌ कोई दिव्य शक्ति है। भीम ने अब झुककर विनम्रता पूर्वक कहा कि हे ! वानर मुझे मेरी उद्दंडता के लिए क्षमा करें और कृपा करके अपना वास्तविक परिचय दें।

भीम को अहंकार रहित देख कर और उनके विनम्रतापूर्वक शब्द सुनकर हनुमान जी ने उन्हें गले लगा कर अपना वास्तविक परिचय दिया। 

हनुमान जी कहने लगे कि," मैं पवन पुत्र हनुमान और श्री राम का सेवक हूं।" मैं अपने प्रभु की आज्ञा से ही तुम्हारे मार्ग में लेटा था ताकि तुम्हें वास्तविकता बता सकूं। हम दोनों का संबंध भाईयों वाला है और रिश्ते में मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं‌‌। प्रभु के आदेश पर मैंने अपने बड़े भाई का फर्ज निभाते हुए तुम्हें आभास करवा दिया है कि कभी भी अपनी ताकत पर अभिमान नहीं करना चाहिए। 

भीम याद रखो कि हमें यह बल ईश्वर ने दिया है और जो चीज हमारी है ही नहीं उसका अभिमान कैसा? इसलिए तुम्हें अभिमान रहित होकर ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। भीम को हनुमान जी की त्रेता युग की सभी वीर कथाएं स्मरण हो आई। भीम ने हनुमान जी को अपने वास्तविक स्वरूप में दर्शन देने का अनुरोध किया। हनुमान जी ने अपने विशाल स्वरुप के दर्शन करवाएं। हनुमान जी का स्वरूप इतना विशाल था कि भीम उन्हें देख नहीं पा रहा था। हनुमान जी कहने लगे कि," भीम मैं इससे भी बड़ा रूप धारण कर सकता हूं।" इसमें मेरी कोई बड़ाई नहीं है। यह सब मेरे प्रभु की कृपा से मुझे प्राप्त है।

हनुमान जी विनम्रतापूर्वक कहने लगे कि," भीम मेरा तुम्हें यह रूप दिखाने का उद्देश्य यही है कि हमें जो भी भौतिक सुख सुविधाएं और सम्मान और बल मिलता है वो ईश्वर की कृपा से मिलता है। क्योंकि उसकी इच्छा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिल सकता। इसलिए जो चीज ईश्वर ने प्रदान की है उस पर तुम को अभिमान नहीं करना चाहिए। बल्कि उसके लिए विनम्र होकर ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए।"

हनुमान जी की बातें सुनकर भीम अब अभिमान रहित हो चुका था। उन्होंने क्षमा मांगते हुए हनुमान जी को प्रणाम किया।

Moral - हनुमान जी और भीम की इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी शक्ति पर कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।

आशा है कि आपको महाभारत की यह कहानियां पसंद आएगी। अगर आपको Mahabharata Stories for kids में दी गई कहानियां अच्छी लगे तो इसे जरूर share करें।

 

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