स्वामी विवेकानंद की प्रेरणादायक कहानियां
स्वामी विवेकानंद की कहानियां जो जीवन में प्रेरणा देती है। स्वामी विवेकानंद जी अपने धर्म और संस्कृति का बहुत सम्मान करते थे। अगर कोई उनके धर्म और संस्कृति के बारे में कुतर्क करता तो स्वामी जी अपने तर्कों से उनको संतुष्ट कर देते थे।
स्वामी विवेकानंद एक बार विदेश गए। वहां पर एक सज्जन ने अपनी सभ्यता अनुसार स्वामी विवेकानंद जी को 'हेलो' कहा। उसके उत्तर में स्वामी जी ने हाथ जोड़कर ' नमस्ते ' कहा। उन सज्जन को लगा कि,"स्वामी जी को अंग्रेजी बोलना नहीं आता।"
इसलिए उन्होंने हिंदी में पूछा,"आप कैसे हैं? "
स्वामी विवेकानंद जी ने जवाब दिया- आई एम फाइन थैंक यू।
यह सुनकर वह सज्जन बहुत आश्चर्यचकित रह गए।
उसने स्वामी कहा- जब मैंने इंग्लिश में पूछा तो आपने उत्तर हिंदी में दिया। लेकिन जब मैंने हिंदी में पूछा आपने जवाब इंग्लिश में दिया, इसकी वजह क्या है ?"
स्वामी विवेकानंद जी ने उससे कहा- जब आप अपनी मां का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी मां का सम्मान कर रहा था । जब आपने मेरी मां का सम्मान किया तब मैंने आपकी मां का सम्मान किया। स्वामी विवेकानंद ने उससे कहा कि मैं अपनी भाषा को भी अपनी मां के समझता करता हूं।
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एक बार स्वामी विवेकानंद जी को किसी राजा ने आमंत्रित किया। राजा ने हिन्दू धर्म का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि," तुम हिन्दू पत्थर और पीतल से बनी मूर्तियों की बनी पूजा क्यों करते हो? ऐसे पत्थरों को हम अपने पैरों के नीचे कुचलते है। इन बेजान पत्थरों के चेहरा बना देने से क्या उनमें प्राण आ सकते हैं?
स्वामी विवेकानंद जी शांत रहे। उन्होंने राजा से पूछा कि यह पीछे दीवार पर लगा चित्र किसका है? राजा ने बहुत गर्व से कहा- यह मेरे पिता का चित्र है।
स्वामी विवेकानंद जी ने पूछा - क्या आप यह चित्र उतरवा सकते हैं। राजा के कहने पर चित्र दीवार से उतारा गया।
स्वामी विवेकानंद जी राजा से कहने लगे कि," अब आप इस चित्र पर थूक दे।" राजा गुस्से में तमतमाते हुए बोला कि मेरे पिता का चित्र है। तुम ने ऐसी बात करने की हिम्मत कैसे की?
स्वामी विवेकानंद बोले - कोई बात नहीं अगर आप थूक नही सकते तो पैरों के नीचे एक बार कुचल तो सकते हो। इतना सुनते ही राजा क्रोध से लाल हो गया। राजा कहने लगा कि," यह मेरे पिता का चित्र है। इसमें मुझे उनका स्वरूप नजर आता है।"
स्वामी विवेकानंद ने तुरंत जवाब दिया कि," बहुत आश्चर्य की बात है कि यह तो केवल एक कागज़ का टुकड़ा मात्र है, जिस पर कुछ रंग भरे गए हैं। इसमें ना कोई हड्डी है और ना कोई प्राण। फिर भी तुम इसमें अपने पिता का स्वरूप देखते हो।
ऐसे ही हिन्दू धर्म में भी पत्थर, तांबे और कांसे आदि धातु आदि की देवी देवताओं की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है। यह बात सत्य है कि ईश्वर सब जगह विद्यामान है लेकिन मन की एकाग्रता के लिए हिन्दू मूर्ति को आधार बना कर पूजा करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी द्वारा दिए गए तर्क से उस राजा को बात अच्छे से समझ आ गई। उसने स्वामी विवेकानंद जी से क्षमा मांगी।
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स्वामी विवेकानंद जी एक बार किसी ने पूछा कि " इस दुनिया में हर कोई मां की महिमा क्यों गाता है? स्वामी विवेकानंद कहने लगे कि," अगर तुम को इस प्रश्न का उत्तर चाहिए तो जाओ और एक पांच किलो का पत्थर लेकर आओ।" वह व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी विवेकानंद जी बोले- इस पत्थर को किसी कपड़े के साथ अपने पेट पर बांध लो। उत्तर पाने की लालसा में उस व्यक्ति ने पत्थर को पेट से बांध लिया। स्वामी जी कहने लगे कि ,"24 घंटे इसे अपने पेट पर बांध कर रखने के पश्चात तुम मेरे पास आना।"
लेकिन कुछ ही घंटों के बाद वह व्यक्ति पत्थर के भार को उठाते हुए पूरी तरह से थक चुका था। उस पत्थर का ओर बोझ सहना उसके लिए उसकी सहनशीलता से बाहर था। वह तुरंत स्वामी जी के पास गया। उसने कहा- मैं अपने प्रश्न के उत्तर पाने की खातिर भी इस पत्थर को ओर देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकता। अब मैं इस पत्थर को ओर ज्यादा देर अपने पेट पर नहीं बांध सकता।
स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराते हुए बोले कि," अब तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।" वह व्यक्ति आश्चर्य से स्वामी जी की ओर देखता है। वह व्यक्ति कहने लगा कि मेरे पत्थर पेट के साथ बांधने या ना बांधने का मेरे प्रश्न के साथ क्या संबंध है?"
स्वामी विवेकानंद बोले संबंध है - एक मां नौ महीने तक अपने शिशु को बिना किसी शिकायत के अपने पेट में पालती है। पूरे घर परिवार का काम भी सहज भाव ,बिना किसी मुश्किल और शिकायत से करती है। इसलिए मां के सिवाय कोई दूसरा धैर्यवान और सहनशील नहीं है इसलिए मां के जैसा संसार में दूसरा कोई भी नहीं है। स्वामी विवेकानंद जी की बात सुनकर वह व्यक्ति निःशब्द सा हो गया।
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