विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक कहानियां
कहानियां बच्चों के मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। कहानियों से बच्चों में तार्किक बुद्धि विकसित होती है। विद्यार्थियों पर प्रेरणादायक कहानी पढ़ते हैं तो वह समझ पाते हैं कि कहानी में शिक्षा का जीवन में क्या महत्व है, नैतिक मूल्यों का हमारे जीवन में कितना योगदान है। इस आर्टिकल में पढ़ें Inspirational stories in hindi For students
शिक्षा के महत्व पर प्रेरणादायक कहानी
Importance Of Education Story In Hindi:एक बार एक राजा शिकार खेलने जंगल में गया। शिकार की तलाश में वह बहुत दूर निकल गया। वह अकेला रास्ता भटक गया और उसकी सेना अब उससे अलग हो गई थी।
राजा बहुत भटकने के पश्चात एक गांव में पहुंचा। राजा को गांव की सीमा पर तीन लड़के खेलते हुए दिखाई दिये। राजा लड़को को पास पहुंचा और उनसे कहने लगा कि," मुझे बहुत भूख और प्यास लगी है। क्या आप लोग मुझे पीने के लिए पानी और खाने के लिए कुछ लाकर दे सकते हो?
बच्चें अपने-अपने घर से राजा के लिए अलग-अलग भोजन और पानी लाकर दिया। अब राजा की भूख और प्यास शांत हो चुकी थी। राजा ने बच्चों को अपना परिचय देते हुए कहा कि," मैं इस राज्य का राजा हूं। आप तीनों जो चाहे मुझसे मांग सकते हैं। आपकी हर इच्छा पूरी करूंगा।"
पहले लड़के ने कहा कि राजन! आप मुझे बहुत सा धन प्रदान करें ताकि मेरी जिंदगी आराम से गुजर सके। राजा ने उसकी इच्छा पूरी करने का वचन दिया।
दूसरे लड़के ने कहा कि राजन! मैं बहुत छोटी सी झोपडी में रहता हूं। मैं एक बड़ा सा घर और एक बैलगाड़ी चाहता हूं ताकि मेरी आने वाली जिंदगी आराम से गुजर सके। राजा ने उसकी इच्छा पूरी करने वचन दिया।
राजा ने तीसरे लड़के से पूछा कि तुम्हारी क्या इच्छा है? लड़का कहने लगा कि," राजन! मेरा पढ़ने का बहुत मन है। लेकिन गांव में कोई भी अच्छा गुरुकुल नहीं है। मैं चाहता हूं कि आप मेरी शिक्षा का प्रबंध कर दें।" राजा उसकी इच्छा सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और राजा ने उसे वचन दिया कि वह अच्छे से अच्छे गुरु से उसको शिक्षा दिलवाएगा। समय के साथ राजा ने तीनों लड़कों की इच्छाएं पूरी कर दी।
तीसरा लड़के की राजा ने योग्य शिक्षकों से शिक्षा की व्यवस्था कर दी और समय के साथ अपनी योग्यता के बल पर वे राज दरबार में मंत्री बन गया। अब योग्यता के बल पर उसके पास घर , सम्मान, धन सब अर्जित कर लिया था। एक दिन राजा को उस घटना का स्मरण हो आया जब उसने तीनों लड़कों की मदद की थी।
राजा ने जो लड़का उसके राज्यसभा में मंत्री था, उसे कहा कि तुम अपने दोनों मित्रों को रात्रि भोज पर बुलाओ। राजा कहने लगा कि," मैं जानना चाहता हूं कि उनके जीवन मेरी मदद के पश्चात क्या परिवर्तन आया?"
रात्रि भोज पर तीनों राजा से मिले। पहला लड़का कहने लगा कि,"राजन मैंने आपसे बहुत सा धन और दौलत मांगा था। मेरा यह निर्णय बिल्कुल भी उचित नहीं रहा। बिना परिश्रम के मिले इस धन का मैनें सम्मान नहीं किया और बहुत सा धन अपनी विलासिता में लगा दिया। जो बचा था वह चोर चुरा कर ले गए। बिना परिश्रम के मिले इस धन के कारण मैं आलसी हो गया और जीवन में कोई भी कौशल नहीं सिखा। इसलिए कुछ समय के पश्चात मैं फिर से गरीब हो गया।"
दूसरा लड़का कहने लगा कि," मैंने आपसे बड़ा सा बंगला और साथ में घोड़ागाड़ी मांगी थी। मेरा जीवन भी आराम से गुजर रहा था। लेकिन एक बार गांव में बाढ़ आई और जिसमें मेरे घर और बैलगाड़ी दोनों बह गए और मैं फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में वापस आ गया।
दोनों कहने लगे कि," हमारा तीसरा मित्र समझदार निकला जिसने आपसे शिक्षा मांग की। शिक्षा के बल पर आज वह आपकी राज्यसभा में मंत्री बन चुका है। धन, बंगला, बैलगाड़ी और सम्मान सब कुछ उसने अपने शिक्षा के बल पर प्राप्त कर लिया। शिक्षा को ना तो चोर चुरा कर लेकर जा सका और ना ही उसने बाढ़ बहा कर ले जा सकी। वह अपनी शिक्षा के बल पर ना केवल राजमहल में मंत्री हैं अपितु उसके पास धन, बड़ा घर, मान सम्मान सब है।
MORAL - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि शिक्षा का हमारे जीवन में बहुत महत्व है क्योंकि शिक्षित व्यक्ति के ज्ञान को कोई चुरा नहीं सकता। अपितु वह अपने ज्ञान के बल पर बहुत कुछ अर्जित कर सकता है।
कर्म फल ही व्यक्ति को दुष्ट और महान बनाते हैं
INSPIRATIONAL STORY IN HINDI FOR STUDENT:एक चित्रकार था जोकि ऐसे चित्र बनाता था कि मानो अभी बोल पड़ेंगे । एक दिन एक मंदिर के लिए उसे चित्र बनाने के लिए कहा गया। मंदिर प्रबंधन की इच्छा थी कि वह श्री कृष्ण और कंस का चित्र बनाएं।
चित्रकार कहने लगा कि मैं श्री कृष्ण का चित्र बनाने के पश्चात कंस का चित्र बनाऊंगा। उसने प्रेरणा के लिए एक सुंदर से लड़के को श्री कृष्ण के स्वरूप के रूप में अपने सामने खड़ा किया। उसने क्या कमाल का चित्र बनाया कि मानो अभी बोल पड़ेंगा। लेकिन कंस का चित्र बनाने के लिए बहुत से लोगों को उसके सामने लाया गया लेकिन कोई भी उसको कंस के चरित्र के हिसाब से नहीं जचा।
वह चित्रकार कुछ वर्षों के लिए चित्रकार विदेश चला गया और वह चित्र अधूरा ही रह गया। जब चित्रकार पुनः लौटा तो वह मंदिर में माथा टेकने गया। मंदिर में दर्शन के पश्चात उसने मंदिर प्रबंधन से उस अधूरे चित्र के बारे में पूछा। उसे बताया गया कि वह चित्र तब से मंदिर के स्टोर रूम में अधूरा ही पड़ा है। वें कहने लगे कि," अब आप वापस आए हैं तो उस चित्र को पूरा कर दे।" चित्रकार ने खुशी-खुशी हामी भर दी। लेकिन लेकिन इस बार भी यही समस्या आई के कंस के रूप में किसे खड़ा किया जाए।
संजोगवश उस समय एक जेलर मंदिर में दर्शन के लिए आया हुआ था। वह तो श्रीकृष्ण की बनी हुई आधी पेंटिंग को देखकर ही मोहित हो रहा था। जब उसे पता चला कि इस चित्रकार को कंस के व्यक्तित्व के अनुरूप कोई व्यक्ति नहीं जच रहा उसने एक सुझाव दिया।
जेलर चित्रकार से कहने लगा कि," आप मेरे साथ जेल में चले। वहां पर जाकर देख ले, अगर कोई कैदी आपको कंस के व्यक्तित्व के अनुरूप जचता है तो आप उसको कंस के रूप में खड़े कर सकते हैं।" चित्रकार जेलर के साथ जेल में गया और उसे एक व्यक्ति कंस के व्यक्तित्व के अनुसार जच गया।
जेलर ने उस कैदी से पूछा कि," क्या तुम कंस के जैसे वस्त्र पहनकर इस चित्रकार की पेंटिंग बनाने में सहायता कर सकते हो?" उस कैदी ने हां में हामी भर दी।
चित्रकार ने उस व्यक्ति को कंस के रूप में अपने सामने खड़ा कर दिया। चित्रकार का चित्र पूरा होने पर हर कोई मंत्र मुग्ध हो रहा था। ऐसी जीवंत पेंटिंग बनी थी कि मानो अभी बोल पड़ेंगी। हर कोई उस चित्रकार और उसकी पेंटिंग की प्रशंसा कर रहा था।
लेकिन कंस के रूप में जो व्यक्ति खड़ा था वह फूटफूट कर रो रहा था। हर कोई उसे ऐसा करता देखकर स्तब्ध था। इतनी सुंदर पेंटिंग को देखकर हर कोई उसकी प्रशंसा कर रहा है और यह व्यक्ति फूटफूट कर कर क्यों रो रहा था?
जब उससे जेलर ने कारण पूछा तो हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। वह व्यक्ति कहने लगा कि आज से कुछ साल पहले जिस लड़के को कृष्ण बना कर खड़ा किया गया था वह मैं ही था। तब मेरी आयु 14 -15 साल थी। समय के साथ मैं बुरी संगत में पड़ गया। लोगों को मारने, लूटने, सताने में मुझे मजा आने लगा। अपने इन्हीं कर्मों के कारण मैं एक दिन में पकड़ा गया और मुझे जेल हो गई। यह मेरे किए हुए बुरे कर्मों का फल था जिन्होंने मुझे कंस के समान निर्दयी बना दिया।
MORAL - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए क्योंकि बड़े बुजुर्गो द्वारा कहा गया है कि आदमी अच्छा या बुरा नहीं होता उसके कर्म ही उसे अच्छा बुरा बनाते हैं।
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