RAMAYAN STORY ANGAD RAVAN SANVAD

RAMAYAN STORY ANGAD RAVAN SANVAD श्री राम का अंगद को दूत बनाकर लंका भेजना कह दसकंठ कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दूत दसकंधर ramchritmanas caupai

श्री राम का अंगद को दूत बनाकर लंका भेजना 

जब समुद्र पर सेतु बनकर तैयार हो गया और सारी वानर सेना पुल पार कर लंका पहुंच गई। श्री राम ने सभी मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श किया। जाम्बवान जी कहने लगे कि," प्रभु हमें अंगद को अपना दूत बनाकर भेजना चाहिए।"

 भगवान श्री राम से अंगद को पूरी रणनीति समझा दी कि तुम शांति दूत बनकर जाओ और रावण को अच्छे से संदेश देकर आओ।

 भगवान राम द्वारा अंगद जी को दूत बनाने की बात सुनकर उनका शरीर पुलकित हो उठा कि प्रभु ने इतने महत्वपूर्ण कार्य की बागडोर उनको सौंपी है।

अंगद जी श्री राम को शिश निवाकर चल पड़े। अंगद जी को देखकर लंकावासी सोचने लगे कि," क्या यह वही वानर वापस आ गया है जिसने लंका दहन की थी? अंगद जी ने रावण को अपने आने की सूचना दी। रावण ने हंस कर कहा कि हां बुला लाओ उस वानर को। अंगद जी किसी मतवाले हाथी के समान चलते हुए रावण की सभा में पहुंचे।

रावण और अंगद संवाद (Angad Ravan Sanvad) 

तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में चौपाई आती है-
कह दसकंठ कवन तैं बंदर।
मैं रघुबीर दूत दसकंधर ॥
मम जनकहि तोहि रही मिताई।
तव हित कारन आयउँ भाई ॥

अंगद जी से रावण से पूछा कि," वानर तू कौन है? "अंगद जी ने कहा - मैं अपने प्रभु श्री राम का दूत हूं। मेरे पिता आपके मित्र थे। इस नाते मैं तुम्हारी भलाई के लिए कह रहा हूं। तुम जो माता सीता जी को हर लाए हो‌।

तुम सीता माता को श्री राम को सौंप दो और स्वयं श्री राम की शरण में चले जाओ। वह आपके सारे अपराध क्षमा कर देंगे।

अंगद जी कि श्री राम की शरण में जाने की बातें सुनकर रावण ने उन्हें संभलकर बोलने की नसीहत दे डाली। 

रावण कहने लगा कि, "तू तो कह रहा था कि तेरे पिता मेरे मित्र हैं। तूं मुझे अपने पिता का नाम तो बताओ।"

 अंगद जी ने कहा- मैं बालि का बेटा हूं। 

बालि का नाम सुनकर रावण ने सकुचाते हुए कहा - अपने पिता की कुशल मंगल बताओ।

 अंगद ने हंसकर कहा दस दिन बाद बालि के पास जाकर अपने मित्र की कुशल पूछ लेना कि श्रीराम के विरोधी की कैसी कुशल होती हैं? 

रावण अंगद जी से कहने लगा कि," मैं तेरे कटु वचन इसलिए सह रहा हूं क्योंकि मैं धर्म और नीति का पालन कर रहा हूं।"

अंगद ने कहा- तुम्हारी धर्म शीलता मैंने सुनी है कि कैसे तुमने पराई स्त्री चोरी की है। तुम जैसे ऐसे धर्म का पालन करने वाले को डूब कर मर जाना चाहिए।

अंगद जी के कटु वचन सुनकर रावण कहने लगा कि," जड़ वानर तुम नहीं जानते कि मुझ से तो लोकपाल भी डरते हैं।"

 रावण ने श्री राम की सेना की निंदा करते हुए कहा कि," तुम्हारी सेना में कोई नहीं है जो मुझ से लड़ सके। तुम्हारा स्वामी तो अपनी स्त्री के वियोग में दुःखी है और उसका छोटा भाई लक्ष्मण अपने बड़े भाई को दुखी देखकर दुःखी है। अंगद तुम और सुग्रीव दोनों तट के वृक्ष के समान हो। अपने भाई विभीषण को रावण ने डरपोक और जाम्बवान् को बूढ़ा और नल- नील दोनों भाईयों को शिल्पकार बोल दिया। लेकिन उसने हनुमान जी की बड़ाई करते हुए कहा कि हां कुछ दिन पहले एक वीर बंदर आया था जिस ने लंका जलाई थी‌।"

अंगद ने अहंकार को चूर करने के लिए व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा- क्या उस वानर ने सचमुच लंका जलाई थी? वह तो सुग्रीव की सेना का छोटा सा सैनिक था जिसे उन्होंने  केवल खोज खबर  लेने भेजा था।

अंगद जी रावण की बात में व्यंग्यात्मक लहजे में सहमति जताते हुए कहते हैं कि तुम सत्य कहते हो रावण! सचमुच श्री राम की सेना में ऐसा कोई नहीं है जो तुम से लड़ने में शोभा पाये। तुम जैसे को मारने में श्रीराम की लघुता है और बड़ा दोष भी है। 

अंगद की बातें रावण को बाण की तरह चुभी तो रावण अपनी बड़ाई करने लगा।

 अंगद ने रावण के घमंड को तोड़ने के लिए कहा कि यह तो बता कि इस संसार में कितने रावण है ? मैंने एक रावण के बारे में सुना है जो बलि को जीतने पताल में गया था तो उसे बच्चों ने घुड़साल में बांधकर दिया था। जिसे बालक खेल-खेल में मरते थे। बलि को दया आई और उसने उसे छुड़ा दिया।

मैंने एक और रावण के बारे में सुना है जिसे सहस्त्रबाहु विचित्र  प्राणी समझकर अपने साथ ले गया। तब पुलसत्य मुनि ने उसे छुड़वाया था।

एक रावण को मेरे पिता बालि ने कई दिनों तक अपनी कांख में दबा कर रखा था। बताओ तुम इनमें से कौन से रावण हो? 

भरी सभा में अंगद की बातें सुनकर रावण के अहंकार को चोट लगी। उसने अपनी वीरता का बखान करते हुए कहा कि मैं वही रावण हूं जिसने अपने शिश बार-बार महादेव जी को समर्पित किए थे। भगवान शिव मेरी भक्ति जानते हैं वह इस बात के साक्षी हैं। मेरे चलने से पृथ्वी हिलती है। कुंभकर्ण मेरा भाई है और इंद्र को हराने वाला मेघनाद मेरा पुत्र है। मैैं वही रावण हूं जिसने संपूर्ण जड़ चेतन को जीत लिया है। 

तुम्हारी वानर सेना की केवल इतनी ही बड़ाई है कि उन्होंने समुद्र पर सेतु बांध लिया है। लेकिन समुद्र को अनेकों पक्षी पार कर जाते हैं इससे उनको शूरवीर नहीं कहा जा सकता। तुम्हारा स्वामी अगर इतना बड़ा योद्धा हैं तो वह संधि के लिए शांति दूत क्यों भेज रहा है।

रावण ने अंगद जी से कहा है कि,"जब मस्तक जल रहे थे तो मैंने अपने मस्तक पर ब्रह्मा जी के लिखे अक्षर पढ़े थे कि मेरी मृत्यु किसी मानव के हाथों होगी। लेकिन मुझे इस बात का भय नहीं है क्योंकि मुझे लगता है कि बूढ़े ब्रह्मा की बुद्धि भ्रमित हो गई होगी ?"

अंगद एक बार फिर रावण को समझाते हुए कहते हैं कि,"मैं संधि करने नहीं आया। प्रभु श्री राम कहते हैं कि सयार को मारने में सिंह की शोभा नहीं है। श्री राम के इन वचनों का स्मरण करते हुए ही मैं तुम्हारे कटु वचन सह गया। श्री राम के अपमान का भय ना हो तों मैं तुम्हारी सेना सहित तुम्हारा वध कर, तुम्हारी स्त्रियों सहित मां सीता जी को ले जाऊं लेकिन मरे हुए को मारने मेरी कोई बड़ाई नहीं है।"

रावण अंगद के वचन सुनकर कहता है कि," जिसके बल पर तुम ऐसी बड़ी-बड़ी बाते कर रहे हो मुझे तो उसमें कोई बड़ाई नजर नहीं आती। उसके पिता ने उसको वनवास भेज दिया इस समय वह अपनी स्त्री के वियोग में है उसके साथ साथ उसे मेरा डर सता रहा होगा।

रावण के मुख से श्री राम की निंदा सुनकर अंगद जी क्रोधित हो गए। ऐसा माना जाता है कि जो विष्णु और शिव की निंदा सुनता है उसे गो वध के समान पाप लगता है। भगवान राम भगवान विष्णु के अवतार हैं।

रावण की बात सुनकर अंगद ने अपने भुजदंडो को पृथ्वी पर दे मारा। जिससे पृथ्वी हिलने लगी और रावण के सभासद पृथ्वी पर गिर पड़े।  रावण भी गिरते -गिरते बचा जिससे उसके मुकुट पृथ्वी पर गिर गए। रावण जब मुकुट उठाकर अपने सिर पर धारण कर रहा था तो अंगद जी ने कुछ मुकुट उठाकर श्री राम के पास भेज। जिससे क्रोधित होकर रावण ने कहा इस बंदर को पकड़कर मार डालो। 

अंगद जी यह सुनकर कहने लगे कि," लगता है कि श्री राम के बाण तुम्हारे रक्त के प्यासे हैं। तेरी लंका गूलर के फल के समान है और तुम सब कीड़े की तरह उसके भीतर रह रहे हो बंदर को फल खाते कितना समय लगेगा।"

अंगद जी ने रावण को श्री राम के दूत का बल दिखाने के लिए रावण की सभा में अपना पैर रोप दिया और उसे चुनौती दी कि अगर तूने मेरा चरण हटा दिया तो श्रीराम वापस लौट जाएंगे की मैंने सीता जी को हार दिया। यह सुनकर रावण ने अपने वीरों से कहा कि इस बंदर को हरा दो‌। रावण की सभा के सभासद और उसके पुत्र इंद्रजीत ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी लेकिन कोई भी अंगद जी के पैर को हिला ना पाया।

यह देखकर रावण स्वयं अंगद जी का पैर पकड़ने आ गया तो अंदर ने कहा कि मेरे पैर पकड़ने से तेरे सिर पर आया संकट समाप्त नहीं होगा अगर पैर पकड़ने ही है तो श्री राम के चरणों को जाकर पकड़। यह सुनकर रावण शर्मिंदा होकर लौट गया।

 अंगद जी के बहु विधि समझाने पर भी रावण नहीं माना तो अंगद जी वापिस लौट आए। अंगद जी ने श्री राम के चरणों में प्रणाम किया। श्री राम ने रावण के चार मुकुट के बारे में पूछा तो अंगद जी कहने लगे कि, वें चार मुकुट नहीं राजा के चार गुण है- साम ,दाम, दंड, भेद। वह गुण रावण को छोड़कर आपके पास आ गए हैं। फिर अंगद ने लंका की सूचना श्री राम को दी।

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