Basant panchmi: मां सरस्वती की वंदना मंत्र आरती चालीसा लिरिक्स इन हिन्दी
सरस्वती पूजा हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को की जाती है। इस तिथि को बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विद्या, ज्ञान और संगीत की देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था।
संगीत, ज्ञान और कला के क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते से उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। हर कोई अपने तरीके मां सरस्वती को प्रसन्न करने हेतु उनकी वंदना, आरती, चालीसा और मंत्र पढ़ता है।
SARASWATI VANDNA GEET
Var De Veena Vadini Va
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
यह वंदना सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी द्वारा रचित है।
सरस्वती वन्दना लिरिक्स हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ ।।
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ ।।
अज्ञानता से हमें तारदे माँ ।।
मुनियों ने समझी, गुनियों ने जानी
वेदोंकी भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ।।
अज्ञानता से हमें तारदे माँ
तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मनसे हमारे मिटाके अँधेरे,
हमको उजालों का संसार दे माँ ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
मां सरस्वती मंत्र
Maa Saraswati Mantra
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां सरस्वती के 12 नाम
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती ।
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी ।।
पंचमं जगती ख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा ।
सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी ।।
नवमं बुधमाता च दशमं वरदायिनी ।
एकादशं चन्द्रकान्ति द्वादश भुवनेश्वरी ।।
मां सरस्वती के बारह नाम हिन्दी में
1. भारती
2. सरस्वती
3. शारदा
4. हंसवाहिनी
5. जगती ख्याता
6. वागीश्वरी
7. कुमुदी
8. ब्रह्मचारिणी
9. बुधमाता
10. वरदायिनी
11. चन्द्रकान्ति
12. भुवनेश्वरी
SARASWATI VANDANA IN SANSKRIT
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
MATA SARASWATI KI AARTI LYRICS IN HINDI
सरस्वती माता की आरती लिरिक्स इन हिन्दी
ॐ जय सरस्वती माता,
मैया जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता॥
मैया जय सरस्वती माता।
चंद्रवदनि पद्मासिनी,
ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी,
अतुल तेजधारी ॥
मैया जय सरस्वती माता।।
बाएं कर में वीणा,
दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणि सोहें,
गल मोतियन माला ॥
मैया जय सरस्वती माता।
देवी शरण जो आएं,
उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी,
रावण संहार किया ॥
मैया जय सरस्वती माता।
विद्या ज्ञान प्रदायिनी,
ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का,
जग से नाश करो ॥
मैया जय सरस्वती माता।।
धूप, दीप, फल, मेवा
मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता,
जग निस्तार करो ॥
मैया जय सरस्वती माता।।
मां सरस्वती की आरती,
जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी,
ज्ञान भक्ती पावें ॥
मैया जय सरस्वती माता।
ॐ जय सरस्वती माता,
मैया जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता॥
मैया जय सरस्वती माता।
SARASWATI CHALISA LYRICS IN HINDI
मां सरस्वती का चालीसा हिन्दी में
।।दोहा।।
जनक जननि पद रज , निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अंनतु।
रामसागर के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु।।
।।चौपाई।।
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुज धारी माता।
सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥
तबहि मातु ले निज अवतारा।
पाप हीन करती महितारा॥
बाल्मीकि जी थे हत्यारा।
तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई।
आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना।
भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।
केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता।
तेहि न धरई चित सुंदर माता॥
राखु लाज जननि अब मेरी।
विनय करउं भांति बहु घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
क्षण महु संहारे तेहि माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी।
सुर-मुनि हदय धरा सब काँपी॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।
बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥
भरत मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।
रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे।
कानन में घेरे मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी।
कीजै कृपा दास निज जानी।
॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु॥
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