SITA RAM VIVAH KATHA IN HINDI

SITA RAM VIVAH KATHA IN HINDI VIVAH PUNCHMI : सीता राम विवाह कथा SITA Swayamvar ki kahani story katha in hindi

सीता राम विवाह कथा 

 मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। श्री राम और मां सीता का विवाह मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को हुआ था। इसदिन को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। 

 श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं और मां सीता देवी लक्ष्मी का अवतार थी। त्रेता युग में श्री राम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में और सीता माता जनक पुरी के राजा जनक की पुत्री थी। राजा जनक के पास भगवान शिव का धनुष था जिसे मां सीता ने खेल खेल में उठा लिया था। उस दिन राजा जनक जान गए कि यह कन्या कोई साधारण नहीं है बल्कि इसमें आलौकिक गुण है। इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि अपनी पुत्री का विवाह उसी के साथ करेंगे जो भगवान शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा। 

राजा जनक ने सीता जी के विवाह हेतु स्वयंवर रचाया। उसमें शामिल होने बहुत से राजा और राजकुमार सम्मिलित हुए। सीता जी के स्वयंवर के समय श्री राम और लक्ष्मण जी ताड़का वध के लिए ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में थे। ऋषि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण जी को अपने साथ जनक पुरी ले गए। जनकपुरी के नर नारी श्री राम और लक्ष्मण जी को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। राजा जनक ने ऋषि विश्वामित्र का स्वागत किया और सभी को सम्मान सहित आसन दिया। 

अगले दिन प्रातः श्री राम और लक्ष्मण जी पुष्प लेने के लिए पुष्प वाटिका गए। उधर सीता जी भी मां गौरी के पूजन के लिए सखियों संग वहां उपस्थित थीं। पुष्प वाटिका में सीता जी को उनकी सखी बताती है कि ऋषि विश्वामित्र के साथ दो सुंदर राजकुमार आए हैं जिन्होंने जनकपुरी के लोगों का मन मोह लिया है। यह सुनकर सीताजी के मन में उत्कंठा जागी और उनको नारद जी के वचनों का स्मरण हो आया। वह अपनी सखियों को आगे कर उस ओर चल‌ पड़ी। 

श्री राम ने सीता जी की पाजेब की आवाज सुनकर उस ओर देखा तो मानो सीता जी के मुख रुपी चंद्रमा को देखने के लिए उनके नेत्र चकोर बन गए हो। सीता जी की शोभा देखकर श्री राम हृदय से उनकी सराहना करते हैं। श्री राम लक्ष्मण जी से कहते हैं कि यह वही कन्या है जिसके लिए धनुष यज्ञ हो रहा है। यह जहां पर वह सखियों सहित गौरी पूजन के लिए आई है। उधर श्री राम जी की छवि देखकर सीता जी पलकों ने मानो गिरना छोड़ दिया हो। सीता जी की सखी ने स्मरण कराया कि हमें अब गौरी पूजन के लिए चलना चाहिए। 

सीता जी मां गौरी से प्रार्थना करती है कि जिसमें मेरा मन अनुरक्त हो गया है मुझे वहीं वर प्राप्त हो। मां गौरी सीता जी को आशीर्वाद देती है।‌ तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में मां सीता द्वारा गौरी पूजन के समय यह दोहा आता है - 

सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा।
सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥ 

भावार्थ- हे सीता! मेरी सच्ची आशीष सुनो , तुम्हारे मन की मनोकामना पूर्ण होगी। नारद जी का वचन सदा पवित्र और सच्चा है। जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है वहीं वर तुम को प्राप्त होगा।

सीता जी के स्वयंवर में आए सभी राजा धनुष को उठाने के लिए पकड़ते हैं लेकिन धनुष उठाना तो दूर कोई भी धनुष को हिला भी नहीं पाता। यह देखकर राजा जनक व्यथित होकर कहते हैं कि क्या यह पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है? क्या ऐसा कोई नहीं जो इस धनुष को उठा सकें। उस समय ऋषि विश्वामित्र श्री राम को आज्ञा देते हैं कि धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर राजा जनक को चिंता मुक्त कर दे। श्री राम ने ऋषि विश्वामित्र का आशीर्वाद लेकर धनुष को प्रणाम कर उठाया और प्रत्यंचा पर चढ़ाया और खींचा। क्षण भर में धनुष को तोड़ दिया। सीता माता ने जयमाला श्री राम को पहना दी। 

उसके पश्चात राजा जनक ने विवाह का बुलावा राजा दशरथ को भेजा। निमंत्रण पढ़कर अयोध्या पुरी में हर्ष की लहर दौड़ गई कि श्री राम ने सीता जी का स्वयंवर जीत लिया है। राजा दशरथ बारात लेकर जनकपुरी पहुंचे। शुभ मुहूर्त पर श्री राम और सीता जी का विवाह हुआ। सभी देवता ब्राह्मण का रूप धारण कर विवाह में पहुंचे। श्री राम दूल्हे के रूप में शोभायमान हो रहे थे।

 सीता जी साखियां आदर सहित उनको लेकर आई। सभी वेद ब्राह्मण वेश धारण कर विवाह की रीतियां करवा रहे थे। दोनों कुलों के कुल गुरु श्री राम और सीता जी की हथेलियों को मिला कर शंखोच्चार करने लगे। पाणिग्रहण देखकर देवता हृषित हो रहे थे। राजा जनक ने वेद की रीति अनुसार कन्यादान किया। मुनियों ने सभी रीतियां पूर्ण करवाई। श्री राम सीता जी की मांग में सिंदूर दे रहे हैं इस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता।

 विवाह के पश्चात श्री राम और सीता जी को एक विशेष आसान पर बैठाया गया। उसके पश्चात ऋषि वशिष्ठ जी ने मंडप सजा कर मांडवी जी का विवाह भरत जी से, उर्मिला जी का लक्ष्मण जी से, श्रुत कीर्ति जी का शत्रुध्न जी से वेदों की रीति अनुसार विवाह करवाया। सब पुत्रों और बंधुओं को देखकर राजा दशरथ आनंदित हो रहे हैं।

बारात को जब जनकपुरी में ठहरे हुए बहुत दिन बीत गए राजा दशरथ ने अयोध्या वापस जाने की अनुमति मांगी। उस समय ऋषि विश्वामित्र जी और शतानन्द जी ने जनक को समझाया कि अब आपको दशरथ जी को  अयोध्या वापिस जाने की आज्ञा देनी चाहिए। राजा जनक ने सनमान सहित बारात को विदा किया।

बारात की खबर जब अयोध्या पहुंची तो वहां पर घर घर में मंगल गीत होने लगे। सभी रानियों ने पुत्रवधू का स्वागत किया। 

श्री राम और मां सीता की जोड़ी आदर्श जोड़ी मानी जाती है। विवाह पंचमी के दिन सीता राम विवाह की कथा पढ़ना विशेष फलदाई माना जाता है। 

इसदिन श्री राम और मां सीता को फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। 

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