TULSI VIVAH 2023: तुलसी विवाह कथा
तुलसी विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप में करवाया जाता है। क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णु इस दिन चार मास की निद्रा से उठते है. तुलसी विवाह को देव जागरण का शुभ मुहूर्त माना जाता है क्योंकि जब भगवान विष्णु जागते हैं तो पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की सुनते हैं। 2023 में देव उठनी एकादशी 23 नवंबर को है इसलिए इस दिन तुलसी विवाह करवाया जाएगा।
Kartik Month 2023 :तुलसी विवाह शालीग्राम से करवाने की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार वृंदा नाम की एक राक्षस कन्या थी। भगवान विष्णु की भक्त होने के साथ साथ वृंदा पतिव्रता थी। उसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर राक्षस को पराजित करना बहुत कठिन हो गया। जलंधर ने अपनी शक्ति के बल पर देवताओं को अपने अधीन कर लिया।
सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की अराधना की।भगवान विष्णु ने कहा कि जलंधर को पराजित करने के उसकी पत्नी के सतीत्व को भंग करना होगा। भगवान विष्णु अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग कर दिया। जिससे जलंधर दैत्य की शक्ति क्षीण हो गई और युद्ध में उसका का वध हो गया।
जब वृंदा को भगवान विष्णु के इस कृत्य का पता चला तो वह कहा कि, "मैंने आप की भक्ति की और आपने साथ ऐसा क्यों किया?" भगवान विष्णु के पास उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं था। वृंदा ने कहा कि, "आपने मेरे साथ पाषाण जैसा कृत्य किया है। इसलिए मैं आप को श्राप देती हूँ कि आप पाषाण हो जाए।" भगवान विष्णु ने वृंदा के श्राप को स्वीकार और उनका वह रुप शालीग्राम कहलाता है।
वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई और उसकी राख से एक पौधा निकाला जो तुलसी कहलाया। भगवान ने वरदान दिया कि तुलसी का विवाह मेरे शालीग्राम रूप से होगा। वृंदा की मर्यादा के लिए तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप से देवताओं ने करवाया। तब से तुलसी विवाह की प्रथा है।इस लिए कार्तिक एकादशी के दिन तुलसी विवाह शालीग्राम के साथ करवाया जाता है।
तुलसी विवाह का महत्व
ऐसा माना जाता है कि तुलसी विवाह करवाने का पुण्य कन्यादान के समान होता है। ऐसा माना जाता है कि जिन दम्पत्ति को कन्या सुख प्राप्त नहीं होता वह तुलसी विवाह करवा कर इस पुण्य को प्राप्त कर सकते हैं। तुलसी पुजन से धन वैभव में वृद्धि होती है। मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
तुलसी विवाह कैसे करवाया जाता है
तुलसी विवाह हिन्दू रीति रिवाजों के अनुसार किया जाता है। हिन्दू विवाह के जैसे मंडप सजाया जाता है।
तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह लाल साड़ी, चुड़ा, लकीरें, बिंदी से सजाया जाता है।
भगवान विष्णु की मूर्ति या शालीग्राम रूप से तुलसी विवाह कराया जाता है।
हवन के पश्चात तुलसी और भगवान विष्णु की आरती की जाती है।
भोग लगाकर प्रसाद वितरित किया जाता है।
तुलसी माता का मंत्र
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी माता जी के आठ नाम अर्थ सहित
वृंदा – सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी
वृन्दावनी – जिनका उद्भव व्रज में हुआ
विश्वपूजिता – समस्त विश्व द्वारा पूजित
विश्व पावनी – विश्व को पावन करने वाली
पुष्पसारा – हर पुष्प का सार
नंदिनी – ऋषि मुनियों को आनंद प्रदान करने वाली
कृष्ण-जीवनी – श्रीकृष्ण की प्राण जीवनी
तुलसी – अद्वितीय
तुलसी माता की आरती
जय जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता ॥
जय तुलसी माता॥
सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर ।
रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता ॥
जय तुलसी माता॥
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या ।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता ॥
जय तुलसी माता.॥
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित ।
पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता ॥
जय तुलसी माता॥
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में ।
मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता ॥
जय तुलसी माता॥
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी ।
प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता ॥
हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता ॥
जय तुलसी माता॥
जय जय तुलसी माता, मैया जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता ॥
जय तुलसी माता॥
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