मुचकुंद महादेव मंदिर मधियानी हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि कहा जाता है। इस देश भूमि पर भगवान शिव जी का विषेश महत्त्व है। माता चिंतपूर्णी धाम से लगभग 15 किमी की दूरी पर पौंग झील के किनारे देहरा उपमंडल के अधीन नंगल गांव में मुचकन्द महादेव का मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में अपने अज्ञातवास के दौरान पांडवों के द्वारा करवाया गया था।मुचकुंद महादेव मंदिर का चिंतपूर्णी धाम से संबंध
मां चिंतपूर्णी धाम के चारों ओर रक्षा कवच के रूप में भगवान शिव के मंदिर स्थापित है। पूर्व में महाकालेश्वर महादेव,पश्चिम में नारायण महादेव,उत्तर में मुचकन्द महादेव,दक्षिण में शिव बाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है।
नारायण महादेव और मुचकुंद महादेव की पिंडियां पौंग झील में जलमग्न हो गई। नारायण महादेव को इंदिरा कालोनी हरिपुर के समीप स्थापित किया गया और मुचकुंद महादेव को झील के किनारे पर उसी गांव में पुनः स्थापित किया गया।
मुचकुंद महादेव मन्दिर को जिसे 'मधियानी के नाम से भी जाना जाता है यहां मुचकुंद मन्दिर महादेव का मन्दिर है। उसके साथ मंदिर परिसर में शनि देव मन्दिर, राध कृष्ण मन्दिर, हनुमान मन्दिर भी स्थापित है। मंदिर के साथ बने तालाब में शिव मूर्ति है जो कि इसके आकर्षण को और भी बढा देती है।
MUCHKUND MAHADEV TEMPLE HISTORY IN HINDI
भगवान शिव ने राजा मुचकुंद की भक्ति, आस्था और पराक्रम से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि भगवान के नाम से पहले उनका नाम लिया जाएगा। इसलिए भगवान राजा मुचकुंद को दिए वरदान के अनुसार मुचकुंद महादेव कहलाएं।
Raja Muchukunda story in hindi:पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्य कई सदियों तक युद्ध हुआ तो देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी। तब भगवान शिव ने अपने परम भक्त मुचकुंद को देवताओं की ओर से युद्ध लड़ने के लिए कहा। जब राजा मुचकुंद ने राक्षसों का वध कर दिया तो भगवान शिव ने उसे अपनी राजधानी वापस जाने को कहा तो राजा मुचकुंद ने भगवान शिव से अपने चरणों में स्थापित होने की जगह मांगी ताकि वह भगवान शिव की भक्ति में लीन हो सके।
उस समय भगवान शिव ने उसकी सदियों की थकान को दूर करने के लिए किसी गुफा में बैठ कर तपस्या करने का आदेश दिया। भगवान शिव ने उसे एक वरदान दिया कि जो भी तुम्हारी तपस्या रूपी निद्रा को भंग करेगा वह उसे देखते ही भस्म हो जाएगा।
मान्यता के अनुसार मधियानी में एक गुफा थी जिसमें बहुत तपस्या की तभी इस स्थान का नाम महाध्यानी पड़ गया।
पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में कालयवन नाम का एक राक्षस था। उसे भगवान से वरदान प्राप्त था कि वह कभी किसी अस्त्र शस्त्र से नहीं मरेगा। उसने भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। श्री कृष्ण जानते थे कि इसको किसी भी अस्त्र शस्त्र से नहीं मारा जा सकता इसलिए श्री कृष्ण वहां से भाग गए। श्री कृष्ण अपनी इस लीला के कारण रणछोड़ कहलाए।
श्रीकृष्ण ने भगवान से इस उपाय पूछा। भगवान द्वारा बताए उपाय के अनुसार श्री कृष्ण पीले पीताम्बर के साथ गुफा में प्रवेश कर गए। कालयवन श्री कृष्ण के पीछे पीछे भागा। श्री कृष्ण ने गुफा में जाकर अपना पीताम्बर वहां गुफा में तपस्या रूपी निद्रा में लीन राजा मुचकुंद पर डाल दिया। कालयवन ने उन्हें श्री कृष्ण समझ कर लात मारी जिससे राजा मुचकुंद की निद्रा भंग हो गई और आंख खोलते ही उनकी दृष्टि कालयवन पर पड़ी और वह जल कर भस्म हो गया।
अंग्रेज अफसर ने चलवाया था शिवलिंग पर हथौड़ा
अंग्रेजों के जमाने में मधियानी का मेला देखने एक अंग्रेज अफसर आया। उसने हिन्दुओं की आस्था परखने के लिए की मुचकुंद महादेव की पिंडी को तोड़ने का आदेश दिया। मिस्त्री सोचने लगा कि अगर अफसर का आदेश नही ना माना तब भी मृत्यु होगी ।इसलिये अच्छा है अपने भगवान के हाथों ही मोक्ष प्राप्त हो जाए। लेकिन मिस्त्री ने जैसे ही दो तीन हथौड़े शिवलिंग पर मारे एक महात्मा वहां उठ खड़े हुए और अचानक हजारो की संख्या में चींटियों और मधुमक्खियों ने अंग्रेज अफसर पर हमला कर दिया और उसकी मृत्यु हो गई। आज भी शिवलिंग पर हथौड़े के निशान देखे जा सकते हैं।
शिवरात्रि पर्व पर जहां पर मेला लगता है जिसमें दूर से श्रद्धालु मंदिर में आकर नतमस्तक होते हैं। वैशाखी पर्व पर भी जहां पर भारी संख्या में भक्त दर्शन हेतु आते हैं।
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