मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान, खिचड़ी और तिल दान का महत्व
मकर संक्रांति का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। सूर्य देव के एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करने को सक्रांति कहा जाता है । एक साल में 12 संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन सूर्य भगवान धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
मकर संक्रांति के दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करना विशेष फलदाई माना जाता है विशेष रूप से गंगा सागर तट पर हर साल मकर संक्रांति के दिन मेला लगता है। इस दिन गंगा नदी ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान कर सागर में मिल गई थी।
मकर संक्रांति से जुड़ी कथाएं
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं जो मकर राशि के स्वामी माने जाते हैं । इस दिन इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपनी दक्षिण से बदल कर उत्तर की ओर कर लेते हैं इसलिए मकर संक्रांति के दिन को उत्तरायण भी कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात है कि भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर सक्रांति के दिन को चुना था। क्योंकि मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्यागने से पुनर्जन्म के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार जिस दिन मां यशोदा ने श्री कृष्ण के जन्म के लिए व्रत रखा था तब सूर्य उत्तरायण थे और उस दिन मकर सक्रांति का ही दिन था।
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा सगर ने अश्वमेध य़ज्ञ का आयोजन किया। देवराज इंद्र लगा कि राजा सगर इंद्र पद पाने के लिए तो अश्वमेघ यज्ञ नहीं करवा रहे। उन्होंने यज्ञ का घोड़ा चुरा कर मुनि कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में देखकर कहा कि उन्होंने घोड़ा चुराया है। क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया।
राजा सगर ने कपिल मुनि के आश्रम जाकर माफी मांगी और पुत्रों के मोक्ष का समाधान पूछा । उन्होंने कहा कि तुम्हारे पुत्रों को मोक्ष तब ही मिलेगा यदि तुम्हारे वंश में से कोई गंगा को इस पृथ्वी पर ले आए। राजा सगर और उनके वंशजों ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घोर तप किया। राजा भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी।
राजा भागीरथ के पीछे पीछे मां गंगा बहाते हुए कपिल मुनि के आश्रम पहुंच कर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों मोक्ष प्रदान किया। जिस दिन गंगा ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष दिया उस दिन मकर सक्रांति थी।
मकर संक्रांति के दिन दान का महत्व
मकर संक्रांति के दिन दिन तिल, गुड़ से बनी चीजें दान की जाती है और खाई जाती हैं। कई राज्यों में इसे उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है । लोग पतंग उड़ा कर त्योहार का मजा लेते हैं। मकर संक्रांति के दिन किए गए जप, तप, दान का महत्व किसी अन्य दिन किए गए दान से कई गुना अधिक मिलता है।
इस दिन इस दिन गुड़, तिल और गरीबों को अनाज, कंबल आदि दिए जाते हैं । मकर सक्रांति के दिन खिचड़ी दान करने और खाना विशेष फलदाई माना जाता है।
गुड़ तथा तिल दान करने से सूर्य और शनि ग्रह को मजबूती मिलती है।
नमक दान करने से बुरा वक्त खत्म होता है।
घी दान करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं।
गरीबों को अनाज दान करने से धन धान्य के भंडार भरते हैं और मां अन्नपूर्णा प्रसन्न होती है।
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी दान करने और खाने का महत्व
आयुर्वेद के अनुसार खिचड़ी को सुपाच्य भोजन की संज्ञा दी गई है और खिचड़ी को सेहत के लिए औषधि माना गया है। खिचड़ी चावल और उड़द दाल और हरी सब्जियों को मिला कर बनाई जाती है। चावल चंद्रमा का प्रतीक है काली उड़द दाल शनि ग्रह का, नमक शुक्र का प्रतीक, हल्दी बृहस्पतिवार ग्रह ,हरी सब्जी बुध ग्रह, खिचड़ी की गर्मी मंगल और सूर्य का प्रतीक है माना जाता है।
इस दिन किसी ब्राह्मण को खिचड़ी दान करना चाहिए और परिवार सहित खिचड़ी खानी चाहिए मान्यता है कि क्योंकि इस दिन खाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। क्योंकि खिचड़ी सभी चीजों को मिला कर बनाई जाती है इसलिए इसे एकता का प्रतीक भी माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार बाबा गोरखनाथ, अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध के दौरान भोजन पका कर खा नहीं पाते थे और भूखे रहने के कारण शारीरिक रूप से कमज़ोरी हो रही थी। इस समस्या के समाधान के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को मिला कर भोजन बनाया और उसे खिचड़ी का नाम दिया। इस भोजन को बनाने में कम समय लगता था लेकिन वह इसको खाकर उर्जा से भरपूर महसूस करते थे। बाबा गोरखनाथ को मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का भोग लगता है।
मकर संक्रांति पर तिल का महत्व
तिल का धार्मिक, मांगलिक और आयुर्वेदिक महत्त्व है। सभी धार्मिक और मांगलिक कार्यों में, पूजा-अर्चना, हवन में तिल जरूर इस्तेमाल किया जाता है। तिल को पवित्र माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार जब नरसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु द्वारा अपने भक्त प्रह्लाद को कष्ट देने के कारण क्रोधित होकर उसका वध कर दिया। क्रोधित होने के कारण उनका शरीर पसीने से भर गया। वह पसीना जब पृथ्वी पर गिरा तो उससे तिल की उत्पत्ति हुई। ऐसी मान्यता है कि तिल का दान पूर्वजों की अतृप्त आत्माओं को मोक्ष का मार्ग दिखाता है। तिल दान करने से राहू और शनि के दोष का निवारण होता है। आयुर्वेद के छः रस में से चार रस तिल में पाए जाते हैं। इसलिए मकर संक्रांति के दिन काले तिल दान करने और खाने का विशेष महत्व है।
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