जगन्नाथ स्वामी की कथा हिंदी में
जगन्नाथ जी भगवान श्री कृष्ण का ही एक रूप है। जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ जी अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के संग विराजमान है। भगवान जी के बारे में कहा जाता है कि
यस्य नाथो जगन्नाथस्तस्य दुःखं कथं प्रभो॥
भाव - जिसका इस संसार में कोई नहीं है,भगवान जगन्नाथ उसके नाथ है, इसमें कोई संशय नहीं है और जिसके नाथ जगन्नाथ जी है उसको जीवन में क्या दुःख हो सकता है।
जगन्नाथ जी और उनके भक्तों की बहुत ही भावपूर्ण कथाएं हैं जिनको पढ़कर मन आनंदित हो उठता है। इस आर्टिकल में पढ़ें जगन्नाथ जी के भक्त की कथा
माधव दास और जगन्नाथ जी की कथा हिन्दी में
Madhav Das aur jagnnath swami ki katha in hindi: जगन्नाथ पुरी में जगन्नाथ जी के एक भक्त माधव दास जी रहते थे। वह दिन भर जगन्नाथ जी की भक्ति में लीन रहते थे और सांसारिक जीवन से विरक्त थे। वह जगन्नाथ जी की सखा भाव से भक्ति करते थे।
एक बार माधव दास जी को उल्टी दस्त का रोग हो गया। उनकी तबीयत इतनी बिगड़ गई कि रोग के कारण वह चलने फिरने में भी असमर्थ हो गए। जब कोई मदद के लिए पूछता तो कहते मेरे जगन्नाथ जी मेरी रक्षा करेंगे।
लेकिन कुछ समय के पश्चात बिमारी के कारण इतनी कमजोरी हो गई कि उठा भी नहीं जा रहा था और अपने वस्त्रों में ही मल-मूत्र त्याग करने लगे।
ऐसे समय में एक लड़का माधव दास जी की सेवा करने लगा। वह माधव दास के शरीर और वस्त्रों को अपने हाथों से साफ करता। उस लड़के के स्पर्श से माधव दास जी जान गए कि यह तो स्वयं जगन्नाथ जी है। उन्होंने कहा - प्रभु आप इतना कष्ट उठाकर मेरी सेवा कर रहे हैं। मेरे मल-मूत्र और गंदे वस्त्र अपने हाथों से साफ कर रहे हैं। उससे अच्छा होता है आप मेरा रोग ही समाप्त कर देते।
जगन्नाथ जी बोले- माधव हम सबको अपना प्रारब्ध तो भोगना ही पड़ता है। अगर तुम इस जन्म में भोग कर नहीं जाओगे तो तुम्हें अगले जन्म में भोगना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता कि मेरे प्रिय भक्त को जरा के प्रारब्ध के कारण पुनः जन्म लेना पड़े।
तुम मेरे प्रिय भक्त हो और मैं अपने भक्तों की बात को भी टाल नहीं सकता। इसलिए अभी तुम्हारे 15 दिनों का रोग शेष बचा है। उसे मैं ले लेता हूं। जगन्नाथ जी 15 दिनों के लिए अपने भक्त माधव दास की बिमारी स्वयं ले ली। ऐसी अनूठी लीलाएं करते हैं भगवान जगन्नाथ जी अपने भक्तों के साथ। यह परम्परा अभी तक जारी है।
जगन्नाथ जी हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से लेकर 15 दिनों तक बिमार रहते हैं। उन 15 दिनों में जगन्नाथ जी अपने भक्तों को दर्शन नहीं देते। उनको भोग में दलिया और फलों का रस दिया जाता है और औषधि के रूप में काढ़ा दिया जाता है। 15 दिनों की इस अवधि को अनवसर कहा जाता है।
आषाढ़ प्रतिपदा तिथि को जगन्नाथ जी पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं और मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिये जाते हैं। इस उत्सव को नैत्र दर्शन के रूप में मनाया जाता है। नैत्र उत्सव के अगले दिन जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा आरंभ होती है। जब जगन्नाथ जी अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को विशाल रथों पर विराजमान किया जाता है।
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