जगन्नाथ जी और उनके भक्त रघुदास जी की कटहल चुराने की कहानी
भक्त और भगवान का रिश्ता बहुत अदभुत है। भक्त जिस भावना से भगवान के साथ संबंध बनाता है उसी भाव से वह भगवान को पा लेता है। तभी तो तुलसीदास जी कहते है कि
जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
jagannath story:ऐसे ही जगन्नाथ जी के एक परम भक्त रघुदास जी थे। रघुदास जी का जगन्नाथ जी के साथ साख्य भाव वाला संबंध था। अब अगर संबंध सखा भाव वाला था तो जगन्नाथ जी ने उनके साथ कटहल चोरी करने की लीला की, जैसे श्री कृष्ण वृन्दावन में अपने सखाओं संग माखन चोरी की लीला करते थे।
Jagannath ji ke bhakt Ragudas ji ki katha : भगवान जगन्नाथ जी के एक परम भक्त (devotee) रघुदास जी थे। उन्होंने जगन्नाथ जी से साख्य भाव का संबंध बनाया था। यह बात भली भांति सभी लोग जानते थे कि रघुदास जी दिन रात जगन्नाथ जी की भक्ति में लीन रहते हैं और उनकी दुनिया जगन्नाथ जी ही हैं।
एक दिन जगन्नाथ जी रघुदास जी से कहने लगे कि,"चलो सखा राजा के बगीचे से कटहल चुराते हैं।"
रघुदास जी कहने लगे कि,"प्रभु आपका अगर कटहल खाने का मन है तो मैं कल ही कटहल का फल आपके लिए लेकर आऊंगा। प्रभु उसके लिए चोरी करने की क्या आवश्यकता है?
जगन्नाथ जी मुस्कुराते हुए बोले कि," रघुदास वो बात नहीं है, मुझे दिन भर छप्पन भोग लगाया जाता है। यूं तो मां यशोदा भी मुझे प्रतिदिन माखन खाने को देती थी लेकिन फिर भी सखाओं के संग माखन चुराने का आनंद ही अप्रतिम होता है। इसलिए चलो रघुदास राजा के बगीचे से कटहल चुराते हैं"
रघुदास जी बोले - लेकिन प्रभु मुझे तो चोरी करना आता ही नहीं है।
जगन्नाथ जी कहने लगे कि," तुम मेरे सखा हो तो मैं तुम्हें सब सिखा दूंगा, मैं चाहता हूं तुम भी मेरे साथ इस लीला का आंनद लो।"
जगन्नाथ जी की बात मानकर रघुदास जी चल पड़े राजा के बगीचे में चोरी करने। उस समय रात का समय था और सिपाही बाग में पहरा दे रहे थे।
जगन्नाथ जी ने रघुदास जी को कटहल के पेड़ पर चढ़ा दिया और बोले कि बढ़िया सा कटहल तोड़ कर नीचे फैंक दो। मैं नीचे से लपक लूंगा। रघुदास जी जगन्नाथ जी के कहने पर पेड़ पर चढ़ गए। उन्होंने एक बढ़िया सा कटहल तोड़ कर जगन्नाथ जी को आवाज लगाई, मैं कटहल फेंक रहा हूं। आप पकड़ लेना। इतना कहकर उन्होंने कटहल नीचे गिरा दिया। लेकिन यह क्या? जगन्नाथ जी तो वहां से गायब हो चुके थे और कटहल धड़ाम से जमीन पर गिर गया।
कटहल गिरने की आवाज़ से राजा के सिपाही चौकन्ने हो गए और आवाज़ की दिशा में दौड़े।
लेकिन पेड़ पर रघुदास जी को बैठा देख कर सिपाही चौंक गये और तुरंत राजा को सुचना दी।
राजा तुरंत बाग में पहुंचें और रघुदास जी को पेड़ से नीचे उतारा गया। राजा ने रघुदास से कहा कि," आपको कटहल खाने की इच्छा थी तो मुझे संदेश भिजवा देते। आपको कटहल चुराने की क्या जरूरत आन पड़ी?"
राजा की बात सुनकर रघुदास जी ने जगन्नाथ जी की सारी लीला राजा को सुना दी। सारा वृत्तांत सुनकर राजा और उनके सिपाही खूब हंसे। राजा ने कटहल का बगीचा जगन्नाथ जी के नाम कर दिया। अगले दिन जगन्नाथ जी रघुदास जी से पूछने लगे कि," सखा बताओं फिर रात कैसी रही?"
रघुदास जी कहने लगे कि," आप तो वहां से खाली हाथ लौट कर आ गए। लेकिन मुझे देखो मैं पूरा बगीचा ही आपके नाम लिखवा कर लाया हूं।"
ऐसे ही है जगन्नाथ जी जो अपने भक्तों की कष्टों से रक्षा करते हैं तो कभी कभी अपने भक्तों को फंसाने की लीला भी करते हैं। उस अनुपम सुख का अनुभव तो उनके परम भक्त ही कर सकते हैं।
कहते हैं कि एक बार जगन्नाथ पुरी रथयात्रा के शुरू होने पर राजा ने सोने के हत्थे वाले झाड़ू से मार्ग साफ करने की विधि भी कर दी। लेकिन जगन्नाथ जी का रथ टस से मस नहीं हुआ। रथ को आगे बढ़ाने के लिए हाथी, घोड़े की भी सहायता ली गई लेकिन रथ आगे खिसका ही नहीं।
फिर राजा ने रघुदास से कहा कि आप ही भगवान को मनाओ। राजा के कहने पर रघुदास जी जगन्नाथ जी के रथ पर चढ़े और उनके कान में अनुनय विनय किया। जगन्नाथ जी उनकी बात सुनकर प्रसन्न हो गए और जगन्नाथ जी का रथ आगे बढ़ा। भक्त और भगवान की ऐसी लीला सुनकर मन आंनद विभोर हो जाता है। ऐसे ही है जगन्नाथ जी जो अपनी लीला से सबको अचंभित कर देते हैं।
जय श्री कृष्णा।
जय जगन्नाथ।।
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