SHRI RAM VANVAS STORY IN HINDI

SHRI RAM VANVAS STORY RAMAYAN STORY KAIKEYI NE SHRI RAM KO VANVAS KYUN DIYA LORD RAMA STORY IN HINDI

श्री राम के वनवास के लिए मंथरा ने कैकयी को भड़काया था

श्री राम भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। भगवान विष्णु दुष्टों के संहार के लिए विभिन्न अवतार लेते हैं। भगवान विष्णु का राम अवतार रावण और अन्य राक्षसों के वध के लिए हुआ था। अपने वनवास काल के दौरान श्री राम और लक्ष्मण जी ने ने खर दूषण, रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण आदि राक्षसों का अंत कर देवताओं के कष्टों को दूर किया था। 

श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारी 

 राजा दशरथ ने एक दिन जब दर्पण में अपने सफ़ेद बाल देखे तो उन्होंने निश्चय किया कि मुझे अब राम का राज्याभिषेक कर देना चाहिए। दशरथ जी ने अपने इस निर्णय को गुरु विश्वामित्र जी को बताया। श्री राम राजा बनने के लिए सब विधि योग्य थे तो उन्होंने भी राजा दशरथ की इस इच्छा में सहमति जताई। अब तो राजमहल में श्री राम के राज्याभिषेक की तैयारियां जोरों शोरों से शुरू हो गई। यह खबर सुनकर पूरी अयोध्या में खुशी की लहर दौड़ गई। ऋषि विश्वामित्र ने श्री राम को राजा दशरथ द्वारा उनके राज्याभिषेक के बारे में जानकारी दी। 

श्री राम को वनवास भेजने के लिए मां सरस्वती द्वारा मंथरा की बुद्धि फेरना 

एक ओर श्री राम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर अयोध्या में उत्सव की तैयारी चल रही थी तो दूसरी ओर देवताओं को चिंता सताने लगी। वह सोच रहे थे कि श्री राम का अवतार तो राक्षसों के वध के लिए हुआ है। इसलिए उन्होंने मां सरस्वती से विनती करी कि कुछ ऐसा करें कि श्री राम राज्य त्याग कर वन चले जाएं। 

मां सरस्वती ने देवताओं का कार्य संवारने के लिए राजा दशरथ की तीसरी पत्नी कैकयी की दासी मंथरा की बुद्धि फेर दी। मंथरा ने जब अयोध्या में राम के राज्याभिषेक की तैयारियां देखी तो उसने कैकयी को भड़काना शुरू कर दिया कि तुम्हारा पुत्र भरत ननिहाल में है। इसका फायदा उठा कर रानी कौशल्या ने राजा को अपने पुत्र राम का राज्याभिषेक करने के लिए मना लिया है। मंथरा कहने लगी कि देखना मौका मिलते ही कौशल्या तुम को राज्य से बाहर निकल देगी। 

कैकयी द्वारा राजा दशरथ से दो वर मांगना 

मंथरा के भड़काने पर रानी कैकयी कोप भवन चली जाती है। जब राजा दशरथ को अपनी प्रिय रानी के कोप भवन में जाने की बात पता चलती है तो वह उनसे मिलने जाते हैं। राजा दशरथ कैकयी से उनकी नाराज़गी का कारण पूछते हैं।

उस समय कैकयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे जो उनके पास धरोहर के रूप में थे। एक वर के रूप में उसने अपने पुत्र भरत के लिए राज्य मांगा और दूसरे वर के रूप में राम के लिए 14 वर्ष का वनवास। राजा दशरथ ने कैकयी से कहा कि मैं सुबह ही भरत को ननिहाल से बुलवा कर उसके राज्याभिषेक की घोषणा करवा दूंगा। लेकिन तुम राम को वनवास मत भेजो। लेकिन कैकयी नहीं मानी। राम के वनवास की बात सुनकर राजा दशरथ बेसुध हो कर गिर गए। कैकयी ने श्री राम को बुलाया और पिता के दो वर के बारे में बताया। श्री राम ने सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। श्री राम मां कौशल्या से वन जाने की अनुमति मांगने जाते हैं।

श्री राम, सीता और लक्ष्मण जी का वन की ओर प्रस्थान 

 उधर जब सीता जी को श्री राम के वन गमन की सूचना मिली तो उन्होंने भी वन में साथ चलने की आज्ञा मांगी। श्री राम ने उन्हें समझाया कि वन में भयानक सर्दी, गर्मी और वर्षा होगी। नंगे पांव चलने पर पांवों में कांटे चुभेगे। लेकिन जब किसी भी प्रकार सीता जी नहीं मानी तो श्री राम ने उन्हें वन में साथ चलने की आज्ञा दे दी। उधर जब लक्ष्मण जी ने श्री राम के वनवास का पता चला तो वह भी श्री राम के साथ चलने के लिए कहने लगे। श्री राम के बहु विधि समझाने पर भी जब वह नहीं माने तो श्री राम ने उन्हें मां से आज्ञा मांग कर आने के लिए कहा। श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी को वल्कल वस्त्र में देकर दशरथ जी व्यथित हो उठते हैं।

 राजा दशरथ सुमंत्र जी से कहते हैं कि तुम राम, लक्ष्मण और सीता के साथ जाओ और इनको वन दिखाकर चार दिन बाद लौटा लाना। जब श्री राम लक्ष्मण जी सहित श्रृंगवेरपुर पहुंचे तो निषादराज गुह ने श्री राम का हृदय से स्वागत किया। रात को वहां विश्राम करने के पश्चात सुबह सुमंत्र जी को वापस भेज दिया। 

केवट और श्री राम का प्रसंग 

वहां से श्री राम गंगा किनारे पहुंचे और केवट से नाव मांगी। केवट कहने लगा कि," प्रभु मैंने सुना है कि आपके चरणों की धूल से पत्थर एक सुंदर नारी में परिवर्तित हो गया था। इसलिए मैं पहले आपके चरण पखारूगा उसके पश्चात ही अपनी नाव में चढ़ाऊंगा।" अपने भक्त की इस विनती को श्री राम ने स्वीकार किया और केवट ने उन्हें गंगा पार उतार दिया। वहां पर सभी ने गंगा जी में स्नान किया और सीता माता ने गंगा जी की पूजा कर उनका आशीर्वाद मांगा। 

वहां से सभी ने प्रयाग की ओर प्रस्थान किया और फिर श्रीवेणी के दर्शन कर श्री राम ने वहां भगवान शिव की पूजा की। 

श्री राम का भरद्वाज मुनि और बाल्मीकि ऋषि से मिलना

 श्री राम भारद्वाज मुनि के आश्रम में पहुंचे और फिर भारद्वाज मुनि की आज्ञा पाकर यमुना के किनारे पहुंचे। यमुना जी में सब ने स्नान किया। 

श्री राम ,लक्ष्मण और सीता जी ने यमुना जी को प्रणाम कर बाल्मीकि ऋषि के आश्रम की ओर प्रस्थान किया। वाल्मीकि जी जानते थे कि श्री राम का जन्म राक्षसों के वध के लिए हुआ है। सीता जी साक्षात माया है जो जगत का पालन और संहार करती हैं और लक्ष्मण जी शेषनाग के अवतार हैं। श्रीराम इस वनवास में देवताओं के काम के लिए राक्षसों की सेना का संहार करने वाले हैं।

श्री राम वाल्मीकि जी से पूछते हैं कि हमें किस स्थान पर निवास करना चाहिए। बाल्मिकी जी मुस्कुरा कर कहते हैं, " ऐसा कौन सा स्थान है जहां आप विराजमान नहीं है।"

 फिर भी श्री राम के आग्रह पर वह उन्हें चित्रकूट पर्वत पर निवास करने के लिए कहते हैं। श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी सहित कुटी बनाकर चित्रकूट में रहने लगे। 

राजा दशरथ का स्वर्गवास 

उधर सुमंत्र जी से श्री राम के वन गमन का समाचार सुनकर राजा दशरथ स्वर्ग सिधार गए। भरत और शत्रुघ्न जी को ननिहाल से बुलाया गया। भरत जी पिता के स्वर्ग गमन और श्री राम के वनवास की बात सुनकर व्यथित हो गए। उन्होंने पिता का विधिवत संस्कार किया।

भरत का श्री राम से मिलन

 पिता के संस्कार कर्म करने के पश्चात उन्होंने गुरु वशिष्ठ से श्री राम के पास जाने की अनुमति मांगी। आज्ञा मिलने पर उन्होंने श्री राम के पास जाने की सारी व्यवस्था करवा दी। भरत जी आश्रम पहुंच कर हे नाथ! रक्षा करें ऐसा कहकर श्री राम को दण्डवत प्रणाम किया। श्री राम ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया। सब लोग चाहते थे कि श्री राम वापस लौट आए लेकिन श्री राम भरत को समझाते हैं कि हमें पिता के वचन का पालन करना चाहिए। 

भरत जी श्री राम के समझाने पर कहते हैं कि प्रभु आप मुझे कोई आवलंबन प्रदान करें। श्री राम उनको अपनी चरण पादुका देते हैं जिसे भरत अयोध्या लौट कर सिंहासन पर विराजमान कर देते हैं और स्वयं पर्णकुटी बनाकर नंदीग्राम में मुनियों का वेश धारण कर निवास करने लगते हैं। श्री राम ने सीता जी और लक्ष्मण जी सहित चित्रकूट में बहुत से चरित्र किये। 

श्री राम का अत्रि मुनि और ऋषि शरभंगजी जी से मिलना 

चित्रकूट से श्री राम, लक्ष्मण जी और मां सीता सहित अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे। वहां पर अत्रि ऋषि ने श्री राम की स्तुति की। उनकी पत्नी सति अनुसुइया जी ने माता सीता को दिव्य वस्त्र आभूषण भेंट किये। 

अत्रि मुनि से विदा लेकर श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी ऋषि शरभंगजी के पास पहुंचे। शरभंगजी कहने लगे कि प्रभु मैं आपके दर्शन से धन्य हो गया और प्रभु के दर्शन कर वह बैकुंठ चले गए। 

सुतीक्ष्ण और अगस्त्य ऋषि से मिलन

श्री राम वहां से अगस्त्य ऋषि के शिष्य सुतीक्ष्ण जी के पास पहुंचे जो दिन रात श्री राम को ही भजते थे। श्री राम के दर्शन कर वह उनके चरणों में गिर पड़े श्री राम ने उन्हें गले से लगा लिया। सुतीक्ष्ण जी श्री राम को अगस्त्य ऋषि के आश्रम में ले गए। अगस्त्य मुनि ने श्री राम की स्तुति की । श्री राम कहने लगे कि आप तो जानते हैं मैं जहां राक्षसों के विनाश के लिए आया हूं। आप बताइए मैं उनको कैसे मारु। उन्होंने श्री राम को पंचवटी में रहने के लिए कहा। 

श्री राम, मां सीता और लक्ष्मण जी का पंचवटी में निवास 

श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहां पर उनकी भेंट गृध्रराज जटायु से हुई। पंचवटी में निवास के दौरान एक दिन शूर्पणखा वहां आई। जब वह अपने रूप से सीता जी को डराने लगी तो लक्ष्मण जी ने उसके नाक और कान काट दिए। उसके भड़काने पर वहां पर उसके भाई खर और दूषण आए गए श्री राम ने सेना सहित उनका संहार कर दिया। 

वनवास के दौरान सीता माता का अपहरण 

शूर्पणखा ने रावण को भड़काया कि वहां वन में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र रह रहे हैं और मुझे ऐसा लगता है कि वह मानो पृथ्वी राक्षसों से विहिन करने जहां आएं हैं। उनके साथ एक सुंदर स्त्री भी है। रावण छल से मुनि वेश धारण कर सीता जी का हरण कर लें गया। जटायु ने सीता माता की करूण दशा देखकर रावण से युद्ध किया। लेकिन रावण ने उनके पंख काट दिए। 

श्री राम ने जब आश्रम में सीता माता को नहीं देखा तो वह व्याकुल हो गए। जटायु ने श्री राम को बताया कि रावण नाम का राक्षस सीता जी का अपहरण कर ले गया है। जटायु ने श्री राम के दर्शन कर प्राण त्याग दिये श्री राम ने अपने हाथों से उनका दाह संस्कार किया। फिर श्री राम लक्ष्मण जी सहित सीता जी की खोज में घने वन में चले गए। 

श्री राम का शबरी के आश्रम जाना 

सीता जी को खोजते हुए श्री राम शबरी माता के आश्रम पहुंचे। वह कई वर्षों से श्री राम की प्रतीक्षा कर रही थी। उनके गुरु मतंग ऋषि ने कहा था कि एक दिन उनके आश्रम में श्री राम जरूर आएंगे। गुरु के वचन सत्य मानकर वह प्रतिदिन मार्ग बुहारती और अपने आश्रम के बाहर पुष्प बिछाती। गुरु के वचन सत्य हुए और एक दिन श्री राम लक्ष्मण जी सहित उनके आश्रम में पहुंचे।

उन्होंने श्री राम को कंद-मूल खिलाएं। श्री राम ने उनको नवधा भक्ति का उपदेश दिया। श्री राम ने उनसे सीता जी का पता पूछा तो वह कहने लगी कि आप पंपा सरोवर चले जाएं। श्री राम ने पंपा सरोवर पहुंच कर वहां पर स्नान किया। 

वनवास के दौरान श्री राम का हनुमान जी और सुग्रीव से मिलन

श्री राम जब लक्ष्मण जी सहित ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे तो वहां उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई उन्होंने श्री राम की सुग्रीव से मित्रता करवा दी। श्री राम ने बालि का वध‌कर दिया और सुग्रीव को राज्य सौंप दिया और अंगद को युवराज बना दिया। वर्षा ऋतु के कारण श्री राम चार महीने तक प्रवर्षण पर्वत पर रहे। 

सुग्रीव ने सीता जी की खोज में वानर सेना को भेजा। हनुमान जी सीता माता का पता लगा कर और लंका दहन कर लौट आए। श्री राम के कहने पर सेना समुद्र तट की ओर कूच किया। समुद्र देव ने समुद्र तट पर सेतु बांधने का सुझाव दिया। नल नील की सहायता से समुद्र पर सेतु बांधा गया। 

श्री राम और वानर सेना पुल पर चढ़कर लंका पहुंच गई। युद्ध में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद सेना सहित मारे गए। श्री राम ने विभिषण को लंका का राज्य सौंप दिया। 

श्री राम की वनवास की अवधि पूरी होने वाली थी। विभिषण जी पुष्पक विमान ले आए जिस पर श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी सहित सुग्रीव, नल, जाम्बवन्त्, अंगद, हनुमान और विभिषण जी चढ़ कर अयोध्या पहुंच गए। अयोध्या वासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका हर्षोल्लास से स्वागत किया। पूरे विधि-विधान से शुभ मुहूर्त पर श्री राम का राज्याभिषेक किया गया।  

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