SITA MATA KI KAHANI IN HINDI

RAMAYANA STORY SITA MATA KI KAHANI STORY IN HINDI SITA NAVAMI 2024 DATE SITA MATA FATHER MOTHER NAME सीता माता की कहानी हिंदी में4

जानकी नवमी पर पढ़ें सीता माता की कहानी

Ramayana story:सीता माता भगवान श्री राम की अर्द्धांगिनी है और वह मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाती है। जब भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लिया तो मां लक्ष्मी ने उनकी अर्द्धांगिनी के रूप में सीता का अवतार लिया। सीता माता का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। 

इस तिथि को जानकी नवमी के नाम से जाना जाता है। जानकी नवमी या सीता नवमी का पर्व राम नवमी के एक मास बाद आता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती है। यह पर्व जानकी नवमी के रूप में भी प्रसिद्ध है। 2024 में जानकी नवमी 16 मई को मनाई जाएगी। सीता माता का जन्म पुष्य नक्षत्र में हुआ था। 

सीता जी राजा जनक की पुत्री थी इसलिए उनको जानकी नाम से भी जाना जाता है। सीता माता बाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की मुख्य पात्र हैं। रामायण के हर पात्र से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। सीता माता पवित्रता, धैर्य और समर्पण और पतिव्रत धर्म की प्रतीक है। जहां वह राजा जनक जैसे राजा की पुत्री थी वहीं वह राजा दशरथ की पुत्रवधु थी। लेकिन उन्होंने अपने पति संग वनवास में जाने के लिए एक क्षण भी नहीं सोचा और सभी सुख सुविधाओं का त्याग कर दिया। 

janaki  navami:सीता माता की जन्म की कथा 

 Birth story of goddess Sita :सीता माता राजा जनक की पुत्री थी। राजा जनक मिथिला के राजा थे। राजा जनक का वास्तविक नाम सिर ध्वज था और उनकी पत्नी का नाम सुनयना था। 

राजा जनक अपनी प्रजा के सुख-दुख में उनके साथ थे। राजा जनक के शासन काल में एक बार भीषण अकाल पड़ा तो ज्योतिषयों ने बताया कि अगर राजा जनक स्वयं हल चलाए तो जो गृह दोष राज्य पर चल रहा है उससे मुक्ति होगी और भारी वर्षा होगी। 

राजा जनक ने राज्य की समृद्धि के लिए स्वयं हल‌ चलाने का निश्चय किया ताकि उनकी प्रजा को कष्टों से मुक्ति मिल सके। जब राजा जनक हल चला रहे थे तो उनकी हल किसी धातु की वस्तु से टकरा गई। जब उस स्थान पर खुदाई की गई तो धरती से एक पेटी मिली जिस में एक नवजात कन्या थी। हल की सीत से टकराने के कारण कन्या पेटी मिली थी इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया। राजा जनक और सुनयना ने उस कन्या को अपना लिया और अपनी पुत्री मान लिया। राजा जनक की पुत्री होने के कारण उनका नाम जानकी पड़ा।

राजा जनक ने सीता जी को शस्त्र विद्या, पाक कला, वेद और उपनिषदों की शिक्षा दिलाई। सीता जी ने बचपन में भगवान शिव का पिनाक धनुष उठा लिया था तब राजा जनक को आभास हो गया कि यह कोई दिव्य कन्या है इसलिए उस दिन उन्होंने संकल्प लिया कि उनकी पुत्री का विवाह उसके साथ होगा जो धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा। 

सीता स्वयंवर की कहानी

जब सीता जी विवाह योग्य हुई तो राजा जनक ने उनके स्वयंवर का आयोजन किया। उस समय श्री राम और लक्ष्मण जी ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा हेतु उनके आश्रम में थे। श्री राम ने ताड़का का वध कर ऋषि मुनियों को उसके भय से मुक्त कर दिया था। ऋषि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण जी को अपने संग सीता स्वयंवर में ले गए। 

सीता जी जब मां भवानी की पूजा करने गई तो वहां पर पुष्प वाटिका में श्री राम और लक्ष्मण जी भी आए थे। वहां पर सीता जी ने श्री राम को देखा। जब वह मां भवानी की पूजा करने गई तो उन्होंने माता से मनवांछित फल पाने के लिए स्तुति की। 

जय जय गिरिवर राजकिशोरी 
जय महेश मुख चंद चकोरी 

मां पार्वती ने उन्हें मनवांछित फल प्राप्ति का वर दिया। 

सीता जी के स्वयंवर में सभी आमंत्रित राजाओं में से कोई भी भगवान शिव के धनुष को हिला भी नहीं पाया तो राजा जनक बहुत चिंतित हो गए। उस समय ऋषि विश्वामित्र ने श्री राम को धनुष उठाने के लिए कहा। श्री राम ने अपने गुरु की आज्ञा पाकर भगवान शिव के धनुष को उठकर जैसे ही उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई तो वह क्षण भर में टूट गया। सीता जी ने जयमाला श्री राम को पहनाई। वेदों की रीति अनुसार दोनों का विवाह हुआ। श्री राम और सीता जी के विवाह के पश्चात अयोध्या में मंगल छा गया। 

सीता जी का वन में श्री राम संग जाना

जब राजा दशरथ ने श्री राम का राज्याभिषेक करने का निश्चय किया तो कैकयी ने उनसे श्री राम के लिए वनवास और भरत के लिए अयोध्या का राज्य मांग लिया। श्री राम जब अपने पिता का वचन पालन करने के लिए वनवास जाने के लिए लगे तो सीता जी भी कहने लगी कि," प्रभु मैं भी आपके संग चलूंगी।"

 श्री राम ने उन्हें समझाया कि वन में भयानक सर्दी, गर्मी और वर्षा होगी। नंगे पांव चलने पर पांवों में कांटे चुभेगे। लेकिन जब किसी भी प्रकार सीता जी नहीं मानी तो श्री राम ने उन्हें वन में साथ चलने की आज्ञा दे दी। इस तरह सीता जी ने अपने पतिव्रता धर्म को निभाते हुए सारी सुख सुविधाएं त्याग कर वल्कल वस्त्र धारण कर श्री राम के संग चल पड़ी। 

सती अनुसूया द्वारा सीता माता को दिव्य वस्त्र आभूषण भेंट करने की कहानी

वनवास काल के दौरान श्री राम लक्ष्मण और सीता जी ऋषि अत्री के आश्रम में पहुंचे। वहां सीता जी विनम्रता पूर्वक अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया जी से मिली। उन्होंने सीता जी को दिव्य वस्त्र और आभूषण दिए जो कि नित्य नए निर्मल और सुहावने बने रहते थे ।

सती अनुसूया जी ने सीता जी को स्त्री धर्म की शिक्षा भी दी। उन्होंने ने कहा कि, "माता-पिता भाई सहित सभी हित करने वाले हैं लेकिन पति तो असीम सुख देने वाला है। जो स्त्री पति की सेवा नहीं करती उसे यमपुरी में भी दुःख सहने पड़ते हैं।"
उन्होंने कहा कि हे सीता! तुम्हारा नाम लेकर स्त्रियाँ पतिव्रत धर्म का पालन करेंगी।

मां सीता ने अपने वनवास काल के दौरान कंद मूल फल खाए और सभी सुख सुविधाओं के बिना किसी शिकायत के वनवास काटा। वनवास के अंतिम वर्षों में जब श्री राम लक्ष्मण और सीता जी पंचवटी में निवास कर रहे थे तो एक दिन वहां शर्पूनखा सुंदर रुप धारण कर आई। जब श्री राम और लक्ष्मण जी उसके रूप से मोहित नहीं हुए तो वह सीता माता को डराने लगी। लक्ष्मण जी ने उसके नाक और कान काट दिए। उसने रावण को जाकर भड़का दिया कि वन में दो सुंदर राजकुमार है उनके साथ एक सुंदर स्त्री है उसको तो आपके महल में होना चाहिए। रावण मन में विचार करने लगा कि मै उन दोनो राजकुमारों को पराजित करके उनकी स्त्री को छीन लूंगा। रावण ऐसा विचार कर मरीच के पास गया।

सीता जी का अग्नि में प्रवेश करने की कथा 

 तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के अरण्य काण्ड में कथा आती है कि जब लक्ष्मण जी जब वन में कंदमूल लेने गए थे तब श्री राम ने सीता जी से कहते हैं"तुम पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली हो और मैं अब राक्षसों का विनाश करने के लिए मनुष्य लीला करूंगा। इसलिए हे सीते! तुम तब तक अग्नि से में निवास करना।

श्री राम की बात समझ कर सीता जी अग्नि में समा गई और उन्होंने अपने जैसा रूप और शील वाली छाया मूर्ति वहां पर प्रकट कर दी। भगवान की इस लीला को लक्ष्मण जी भी नहीं जान पाए। 

रावण द्वारा सीता माता के अपहरण की कथा 

रावण ने सीता जी का अपहरण करने के लिए अपने मामा मारीच की सहायता मांगी। मारीच मन में विचार करने लगा कि अगर इसका कहना नहीं माना तो यह मेरा वध कर देगा। इससे तो अच्छा है कि मैं भगवान श्री राम के हाथों मरुं। 

मारीच ने सुंदर स्वर्ण मृग का रूप धारण किया। जिसे देखकर मां सीता ने मनुष्य रूप में लीला करते हुए श्री राम से उन्हें लाने के लिए कहा। श्री राम धनुष लेकर उस मृग के पीछे गए तो मारीच ने आवाज लगाई हा लक्ष्मण! सीता जी ने लक्ष्मण जी को श्री राम के पीछे जाने के लिए भेजा कि कहीं प्रभु श्री राम किसी कष्ट में ना हो।

इतने में रावण मौका देखकर सन्यासी के वेश में सीता जी के पास आया और  उनसे भिक्षा मांगने लगा। मां सीता जब उन्हें भिक्षा देने लगी तो वह अपने असली रूप में आ गया। जिसे देखकर सीता जी भयभीत हो गई। सीता जी कहने लगी कि दुष्ट रुक जा ! अभी मेरे प्रभु आ रहे हैं। तू काल के वश होकर मेरी चाह कर रहा है।

सीता जी के वचन सुनकर रावण को क्रोध आ गया फिर क्रोध से उनको रथ पर बैठाया। सीता जी विलाप करती है कि लक्ष्मण तुम्हारा कोई दोष नहीं है। मैंने ही क्रोध का फल पाया है। रावण ने लंका ले जाकर सीता जी को अशोक वाटिका में रखा। 

श्री राम ने जब आश्रम में सीता माता को नहीं देखा तो वह उनकी खोज में निकले। जटायु ने श्री राम को बताया कि रावण सीता माता का हरण कर लें गया है। 

श्री राम ने सुग्रीव की सहायता से सीता माता की खोज में वानर सेना को भेजा। सम्पाति ने वानर सेना को सीता माता का पता बताया। हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका पहुंच गए। 

हनुमान जी द्वारा सीता माता को श्री राम का संदेश देने की कथा 

हनुमान जी एक दम छोटा रूप धारण कर अशोक में पहुंचे। उस समय अशोक वाटिका में रावण सीता माता को धमका रहा था। लेकिन सीता जी को श्री राम की बिरह से व्याकुल देखकर हनुमान जी का एक क्षण कल्प सामान बीत रहा था। तब हनुमान जी ने सीता जी के सामने श्री राम की अंगूठी डाल दी। सीता जी विचार करने लगी कि श्री राम की अंगूठी माया से नहीं बनाई जा सकती। फिर हनुमान जी ने सीता जी से राम कथा कही।‌जिसे सुनकर सीताजी का दुःख दूर हो गया। 

सीता माता कहने लगी कि, यह सुंदर राम कथा सुनाने वाला मेरे सामने क्यों नहीं आता? तब हनुमान जी एक छोटा रूप धारण कर सीता जी के सामने प्रकट हो गए।

हनुमान जी को देखकर  सीता माता पूछने लगी कि नर और वानर एक संग कैसे हो गए? हनुमान जी पूरी राम कथा सीता माता को बताई तो सीता जी को विश्वास हो गया है कि यह श्री राम का दूत हैं। लेकिन सीता माता के मन में एक संशय पैदा हो गया।

 सीता जी हनुमान जी से पूछने लगी कि,"क्या सब वानर तुम्हारे ही समान हैं, यह राक्षस तो बहुत बलवान योद्धा है।" 

तब हनुमान जी ने सीता माता का संशय दूर करने के लिए विशाल शरीर धारण किया जिसे देखकर सीता जी के मन में विश्वास हो गया। सीता जी मां ने आशीर्वाद दिया कि हे पुत्र! तुम अजर, अमर और गुणों का खजाना हो जाओ।हनुमान जी ने कहा माता आपका आशीर्वाद अमोघ हैं।  

हनुमान जी लंका दहन कर सीता माता से चुडामणि लेकर समुद्र के उस पार पहुंच गए। हनुमान जी ने श्री राम को सीता माता का पता बताया और पूरी वानर सेना समुद्र तट पर पहुंच गई। फिर समुद्र पर सेतु निर्माण का कार्य आरंभ किया गया। पूरी वानर सेना समुद्र के उस पार पहुंच गई। श्री राम ने एक बार फिर अंगद को दूत बनाकर भेजा कि रावण सीता जी को लौटा दे। जब रावण नहीं माना तो युद्ध आरंभ हो गया। श्री राम ने रावण और कुंभकरण और लक्ष्मण जी ने रावण के पुत्र मेघनाद का वध कर दिया। 


रावण वध के पश्चात हनुमान जी ने सीता जी को बताया कि श्री राम ने अहंकारी रावण का वध कर दिया है। सीता माता हनुमान जी से कहा कि तुम मुझे श्री राम से मिलवाने का काम करो। जानकी का संदेश सुन कर प्रभु श्री राम ने विभिषण से कहा कि हनुमान के साथ जाओ और जानकी को सम्मान सहित ले आओ।

सीता जी की अग्नि परीक्षा की कथा 

विभिषण आदर सहित सुंदर पालकी में सीता जी को बैठा कर लें आएं। श्री राम और सीता जी जानते थे कि वास्तविक सीता जी को अग्नि में है।  श्री राम के चरणों में सिर निवास कर सीता जी ने लक्ष्मण जी से कहा कि तुम आग तैयार करो।

यह सब सुनकर लक्ष्मण जी का मन द्रवित हो गया लेकिन श्री राम से कुछ बोल नहीं पाए। लक्ष्मण जी ने जब अग्नि तैयार कर दी तो सीता जी कहने लगी कि " यदि मैंने मन , वचन और कर्म से मेरे हृदय में श्री राम को छोड़ कर कोई नहीं है तो यह अग्नि मेरे लिए चंदन के समान शीतल हो जाए।

जैसे ही  सीता जी ने अग्नि में प्रवेश किया, सीता जी की छाया मूर्ति अग्नि में जल गई लेकिन श्री राम और सीता जी के अतिरिक्त इस चरित्र को किसी ने नहीं जाना‌।

उसी समय अग्नि देव ने शरीर धारण कर सीता जी को श्री राम को वैसे ही समर्पित किया जैसे क्षीर सागर ने विष्णु भगवान को लक्ष्मी जी को समर्पित किया था। सीता श्री राम के वाम अंग में विराजित हुई। 

उसी समय विभिषण जी पुष्पक विमान ले आए। श्री राम, लक्ष्मण जी और सीता जी के साथ- साथ सुग्रीव, नल, जाम्बवन्त्, अंगद, हनुमान और विभिषण जी सहित सभी विमान में चढ़े और उन्होंने अयोध्या जी की ओर प्रस्थान किया।

अयोध्या पहुंच कर अयोध्या वासियों ने श्री राम लक्ष्मण और सीता जी का हार्दिक स्वागत किया और श्री राम जानकी जी सहित दिव्य सिंहासन पर विराजमान हुए।  

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