श्री कृष्ण के भक्तों की कथाएं हिन्दी में
श्रीकृष्ण अपने भक्तों पर अपने प्रेम और करुणा बरसाते हैं। जो भक्त सारे आसरे सहारे छोड़ कर श्री कृष्ण को भजते हैं। श्री कृष्ण उनके कार्य स्वयं संवारते हैं पढ़े श्री कृष्ण के ऐसे ही एक भक्त की कथा
श्री कृष्ण के भक्त वैद्य जी की कथा
KRISHNA BHAKT STORY IN HINDI:वृन्दावन में एक वैद्य जी रहते थे। वह श्री कृष्ण के भक्त थे। उनकी श्री कृष्ण पर अपार आस्था थी। वह श्री कृष्ण की भक्ति में मग्न रहते थे। वह अपनी पत्नी से कहते कि तुम को दिन भर के लिए जो भी सामान चाहिए एक चिट्ठी में लिख दिया करो। वैद्य जी जब दुकान पर जाते तो चिट्ठी पढ़ते। सामान के भाव देखते और श्री कृष्ण से प्रार्थना करते कि कन्हैया आज के सामान की व्यवस्था कर देना। जैसे ही उन्हें जितने धन की आवश्यकता होती उसकी व्यवस्था हो जाती तो वह अन्य मरीजों से पैसे नहीं लेते थे और अपने गांव लौट जाते और ईश्वर भक्ति में मग्न रहते। यह ही उनका हर रोज की दिनचर्या थी।
एक दिन वैद्य जी ने दुकान पर आ कर चिट्ठी खोली तो एक दम से सन्न रह गए। मानो आंखों के आगे तारे चमकने लगे हों। लेकिन अगले ही पल श्री कृष्ण पर विश्वास कर स्वयं को संभाला। पत्नी ने राशन के सामान के नीचे लिखा था कि बेटी के दहेज का सामना। राशन के सामान के आगे उनके भाव लिख दिये लेकिन दहेज़ के सामान के आगे लिख दिया यह काम कन्हैया ही जाने।
वैद्य जी मरीजों को उनकी बिमारी पूछ कर दवा दे ही रहे थे कि इतने में एक बड़ी सी कार आकर उनकी दुकान के आगे रूकी।उनमें से एक सज्जन गाड़ी में से निकला और उन्हें प्रणाम कर बेंच पर बैठ गया। बाकी के मरीज दवा लेकर चले गए तो वैद्य जी ने उस सज्जन को बुलाया और कहा कि आप को दवा लेनी है तो अपनी नाड़ी दिखानी पड़ेगी। वह सज्जन विनम्रता पूर्वक कहने लगे कि वैद्य जी लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं।
मैं आज से 15-16 साल पहले आपकी दुकान पर आया था। मैं इंग्लैंड में रहता हूं। इंग्लैंड जाने से पहले ही मेरी शादी हो गई थी लेकिन हमें बहुत सालों तक औलाद का सुख प्राप्त नहीं हुआ। हमने भारत और इंग्लैंड दोनों जगह ईलाज करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
फिर मुझे किसी ने आपके बारे में बताया। आपने मुझे सांत्वना दी और कहा कि निराश नहीं होते क्योंकि श्रीकृष्ण के खजाने में किसी चीज़ का अभाव नहीं है। खुशी गमी, जीवन मृत्यु सभी ईश्वर के हाथों में है। ईश्वर पर भरोसा रखो। अगर कन्हैया की कृपा हुई तो तुम को संतान सुख अवश्य मिलेगा। आपने मुझे दवाई की पुड़िया बना कर दी और उसे खाने की विधि भी बता दी। आपने उन पुड़ियां के लिफाफों पर श्री राधा कृष्ण का नाम लिख कर मुझे दे दिया।
जब दवा लेने के पश्चात मैंने आपसे दवा के पैसे पूछे तो आपने कहा कि पैसे देने की जरूरत नहीं है। लेकिन जब मैंने पैसे देने के लिए जोर डाला तो आप कहने लगे कि, मैंने आज का खाता बंद कर दिया है। " मुझे यह बात समझ नहीं आई तो आपने बताया था कि मैंने अपने घर के खर्च के लिए जितनी रकम श्री कृष्ण से मांगी थी वह मुझे मिल गई है। अब मैं किसी से भी पैसें नहीं ले सकता। आपके विचार सुनकर मैं बहुत प्रभावित हुआ और आपको प्रणाम कर लौट गया।
घर जाकर कर मैंने अपनी पत्नी को सारी बात बताई। वह कहने लगी कि वह वैद्य जी जरूर देवता पुरुष होंगे। उसने विश्वास कर दवाई खाई। उसके पश्चात मेरे तीन बच्चे हुए। हम पति पत्नी हर समय आपको धन्यवाद देते हैं।
वैद्य जी मैं तो पत्नी और बच्चों के साथ इंग्लैंड में ही रहता हूं। जहां वृन्दावन में मेरी एक विधवा बहन रहती है। मैं परिवार सहित अपनी भांजी की शादी के लिए ही वृन्दावन आया हूं। अपनी भांजी की शादी के दहेज का सारे सामान का खर्च मैंने ही उठाया है।
दहेज का सारा सामान इकट्ठा हो चुका था लेकिन अचानक बीमार होने के कारण मेरी भांजी की मृत्यु हो गई। भांजी की मृत्यु के पश्चात मुझे ना जाने क्यों आपकी बिटिया का ख्याल आया। क्योंकि जब मैं आपसे दवा लेने आया था तब मैंने आपकी बिटिया को देखा था। मुझे लगा कि अब तो विवाह योग्य हो गई होगी। इसीलिए मैंने और मेरे परिवार ने निश्चय किया कि आपसे पूछकर दहेज का सारा सामान आपके घर पर भिजवा दिया जाएं। मैं शादी के बाकी के खर्चों के लिए नकदी पैसे भी देना चाहता हूं। आपसे विनती है कि मना मत करना।
उनकी बातें सुनकर कर वैद्य जी विस्मित थे। वैद्य जी पत्नी की लिखी हुई चिट्ठी उनको दिखा दी। वैद्य जी कहने लगे कि," जब सुबह मैंने दुकान पर आकर चिट्ठी खोली तो पत्नी ने राशन के सामान के बाद लिखा था बेटी के दहेज का सामान। मैंने उसके आगे लिख दिया था कि यह काम कन्हैया ही जाने। मेरे जीवन में आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि जो चिट्ठी पर लिखा है वह मुझे मिला ना हो।"
वैद्य जी बोले कि मुझे आपकी भांजी की मृत्यु का दुःख है। लेकिन मैं विस्मित हूं कि कन्हैया अपने कैसे कैसे रंग दिखाता है। चिठ्ठी देखकर वह सज्जन भी विस्मित थे। वैद्य जी कहने लगे कि मुझे अब जो भी मिला है मेरे उस कन्हैया की कृपा से मिला है।
ऐसे ही है श्री कृष्ण। तभी तो कहते हैं कि भक्ति ऐसी करो कि कष्ट भक्त पर हो और फ्रिक ईश्वर को हो कि इसके कष्ट को दूर कैसे करना है।
श्री कृष्ण के भक्त रसखान जी की कथा
Shri Krishna bhakt Raskhan Bhakti katha:श्री कृष्ण के भक्त रसखान जी के बारे में किंवदंती है कि एक बार रसखान जी आपने उस्ताद के साथ मक्का-मदीना जा रहे थे। रसखान जी के उस्ताद कहने लगे कि," रास्ते में आगे हिन्दूओं का तीर्थ वृन्दावन आने वाला है। वहां के बारे में कहा जाता है कि वहां काला नाग रहता जो लोगों को डस लेता है । इसलिए रसखान वहां पहुंचने पर तुम आगे-पीछे, दाएं-बाएं मत देखना नहीं तो वह काला नाग डंस लेगा। तू सीधे मेरे पीछे पीछे आना।"
उस्ताद की बात सुनकर रसखान जी के मन में इच्छा जाग्रत हो गई कि क्या वह काला नाग मुझे नज़र आएगा ? वृन्दावन पहुंचते ही उस्ताद ने पुनः चेताया रसखान जहां पर ध्यान से रहना यही पर काला नाग रहता है।
इधर लीला धारी श्री कृष्ण की लीला शुरू हो गई। रसखान जी को कभी दाएं से तो कभी बाएं बांसुरी की मधुर धुन सुनाई देनी शुरू हो गई। अभी बांसुरी की धुन से ही वशीभूत हो रहे थे कि इतने में पायल की झंकार की सुनाई देने लगी। दाएं-बाएं तो छोड़ो रसखान जी चारों ओर देखे तो कोई दिखाई भी न दें।
जैसे ही यमुना किनारे पहुंचे श्री कृष्ण के साथ राधा रानी की मधुर छवि देखकर भाव विभोर हो गए। अपने शरीर की सुध बुध खो बैठे थे। उस परम मनोहर छवि को देखकर बौरा गए थे। दर्शन देकर युगल जोड़ी तो अंतर्ध्यान हो गई लेकिन रसखान जगह-जगह उन्हें ढूंढ रहे थे।
उस्ताद को जब थोड़ी दूर जाकर ध्यान आया कि रसखान तो पीछे रह गया। वहां से वापस लौटे तो रसखान जी की हालत देखकर समझ गए कि इसे काले नाग ने डंस लिया है।
रसखान जी को जब चेतना आई तो वहीं प्यारी युगल जोड़ी को चारों ओर ढूंढने लगे। सब से पूछने लगे कि वह सांवला सलोना अपनी बेगम के साथ कहां रहता है। किसी भक्त ने उनको श्री कृष्ण के मंदिर का पता बता दिया। लेकिन दूसरे धर्म के होने के कारण उनको मंदिर में प्रवेश नहीं मिला तो वह भूखे प्यासे तीन दिन तक मंदिर के बाहर ही पड़े रहे। कहते हैं कि तीसरे दिन श्री कृष्ण स्वयं जी दूध भात का कटोरा लेकर स्वयं खिलाने आएं। सुबह लोगों ने जब बिहारी जी के चांदी का कटोरा रसखान जी के पास देखा और उनके मुंह पर दूध भात लगा देखा तो रसखान जी की चरण रज को माथे से लगाने लगे। रसखान जी ने श्री कृष्ण की भक्ति में बहुत से पद लिखे। उनका श्री कृष्ण के भक्त कवियों में विशेष स्थान है।
श्री कृष्ण की भक्ति कथाएं पढ़ने वाले के मन को सम्मोहित कर लेती है।
श्री कृष्ण और भक्त की कहानी
KRISHNA BHAKT KI KAHANI:एक बार एक सेठ बहुत ही कंजूस था लेकिन श्री कृष्ण का अनन्य भक्त था। एक अक्सर एक संत जी के प्रवचन सुनने जाता था। एक बार उसने संत जी से विनती की कि महाराज कोई ऐसा उपाय बताएं कि मैं भगवान की मैं अपने ईष्ट श्री कृष्ण भरपूर सेवा करूं लेकिन मेरा एक भी रूपया खर्च ना हो। संत जान गए कि यह व्यक्ति बहुत कंजूस है लेकिन श्री कृष्ण के प्रति उसकी श्रद्धा देखकर संत जी ने उसे अद्भुत उपाय बताया।
संत जी कहने लगे कि तुम श्री कृष्ण की प्रतिदिन मानसिक पूजा किया करो।मन में ऐसा विचार करो कि तुम उनके श्री विग्रह को स्नान करवा रहे हो, उन्हें बहुमूल्य सुंदर वस्त्र धारण करवा रहे और उनका उत्तम श्रृंगार कर रहे हो। उनको बढ़िया से बढ़िया भोग अर्पित कर रहे हो।
इस विधि में तुम्हारा एक भी पैसा खर्च नहीं होगा और तुमको अपने आराध्य की भक्ति और सेवा दोनों का आनंद आएगा। संत मुस्कुराते हुए बोले- यह मानसिक पूजा है इसमें कोई कंजूसी मत करना।
संत की बात मानकर सेठ जी ने श्री कृष्ण की मानसिक पूजा आरंभ कर दी। अब उनका नियम बन गया था कि वह स्नान के पश्चात भाव से श्री कृष्ण के विग्रह को स्नान करवाते, वस्त्र धारण करवाते और दूध में शक्कर डालकर उनको भोग लगाते। अपनी मानसिक पूजा के इस नियम को करते हुए उन्हें कई वर्ष बीत गए। अब तो सेठ को कई बार अनुभूति होती कि जैसे श्री कृष्ण स्वयं उनका भोग ग्रहण करते हैं।
एक बार सेठ जी जब श्री कृष्ण की मानसिक पूजा के दौरान स्नान करवाने और श्रृंगार करने के पश्चात जैसे ही भोग के दूध में शक्कर डाल रहे थे तो उन्होंने एक चम्मच की जगह दो चम्मच शक्कर डालकर दी। कंजूस सेठ के मन में विचार आया कि एक चम्मच शक्कर निकाल लेता हूं किसी ओर काम आएंगी। जैसे ही वह दूध से शक्कर निकालने लगा तो उसे अहसास हुआ श्री कृष्ण ने उसका हाथ पकड़ लिया हो। भगवान कहने लगे कि," रहने दे ज्यादा शक्कर तुम ने तो मेरी पूजा में एक पैसा भी खर्च नहीं किया। मानसिक पूजा में भी तुम्हारी कंजूसी की आदत जाती नहीं है।"
भगवान का स्पर्श पाकर सेठ कृतार्थ हो गया था। प्रभु के स्पर्श का अहसास उसके लिए अकल्पनीय था उसके नैत्रों से अश्रु बहाने लगे। उसने अपनी मानसिक पूजा के बल पर ही भगवान के दर्शन पा लिए थे। इसलिए कहते हैं कि ईश्वर तो भाव के भूखे हैं
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