श्री राम के जीवन से हम क्या सीख सकते है
SHRI RAM:श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। श्री राम के जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते है।
नियती को स्वीकार करना
अगर हमारे साथ कुछ भी ग़लत हो जाएं तो हम उसी समय ईश्वर को उलाहना देना शुरू कर देते हैं लेकिन हम श्री राम के जीवन से नियती को स्वीकार करना सीख सकते हैं।
जैसे श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा हो चुकी थी। अगली सुबह उनका राज तिलक होने वाला था लेकिन राजा दशरथ के रानी कैकेई को दिए हुए वचन का मान रखने के लिए श्री राम ने बिना किसी प्रश्न के 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया।
वह चाहते तो इंकार कर सकते थे क्योंकि राजा दशरथ स्वयं यही चाहते थे कि श्री राम वन ना जाएं। लेकिन श्री राम जानते थे कि इससे उनके कुल की रीत टूट जाएगी क्योंकि,"रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई " उन्होंने नियति को स्वीकार किया। हम में से कोई होता तो उल्टा पिता से प्रश्न करता कि आपने ऐसा वचन ही क्यों दिया। हां अगर दे ही दिया तो मैं क्यों स्वीकार करूं?
माता पिता का सम्मान करना
श्री राम के जीवन से हमें माता पिता का सम्मान करने की प्रेरणा मिलती है। माता कैकई को दिए गए वचन का मान रखने के लिए श्री राम को 14 साल का बनवास मिला तो श्रीराम ने उसे सहर्ष स्वीकार किया ।
माता कैकई के प्रति उनके मन में कोई भी द्वेष भाव नहीं था। जब श्री राम से मिलने भरत चित्रकूट गए तो श्री राम सबसे पहले माता कैकेई से ही मिलते हैं और उन्हें कहते हैं कि आप किसी बात की चिंता ना करें जो भी हुआ भाव वश हुआ। वह माता कौशल्या और माता सुमित्रा से भी उतना ही स्नेह करते थे।
मर्यादा में रहना
श्री राम से हम मर्यादा में रहना सीख सकते है श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है ।उन्होंने पूरे जीवन काल में कभी मर्यादा को नहीं लांघा।
कभी किसी के राज्य अतिक्रमण नहीं किया ।बाली को मारा था उसका राज्य सुग्रीव को सौंप दिया ।रावण का राज्य विभीषण को सौंप दिया। जीवन पर्यन्त एक पत्नी व्रत रहे।
धैर्य और विनम्रता
धैर्य हम श्री राम के जीवन से धैर्य रखना सीख सकते हैं। जय श्री राम ने सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बनाया तो चतुर्मास के कारण सीता माता को खोजने के लिए वानर सेना को नहीं भेजा जा सकता था।
श्रीराम उस नियती को मान कर धैर्य से काम लिया। यह सिखाता है कि कई बार हम ऐसी परिस्थितियों में फंसे होते हैं कि हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते। ऐसे समय में धैर्य से काम लेना चाहिए।
श्री राम के विनम्रता के गुण को भी जीवन में जरूर धारण करना चाहिए। श्री राम भगवान विष्णु के अवतार थे और हर तरह से शक्ति सम्पन्न थे लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी शक्ति का दिखावा नहीं किया अपितु श्री राम बहुत ही विनम्र स्वभाव के थे। उनके अनुज लक्ष्मण जब सीता स्वयंवर में भगवान शिव का पिनाक धनुष टूटने पर परशुराम जी के क्रोधित होने पर उनके साथ उदंडता से बात कर रहे थे श्री राम ने बहुत विनम्रता से अपने असली स्वरूप का अनुभव करवाया था।
सबका सम्मान करना
श्री राम ने अपने वनवास काल में बहुत से ऋषि , मुनियों से मिले। भीलों के साथ वन में रहे। निषादराज उनकी मित्रता दर्शाती है कि वह जात पात ऊंच- नीच में विश्वास नहीं करते थे।
सीता माता की खोज करते हुए श्री राम माता शबरी के आश्रम में पहुंचे और माता शबरी ने उनका स्वागत किया और श्री राम ने उनके द्वारा दिए गए बेर बहुत चाव से खाएं थे। सुग्रीव की वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बनाया। श्री राम सभी को एक साथ लेकर चलते थे।
गुरु और ऋषि, मुनियों को उचित सम्मान
श्री राम के जीवन से हम गुरु का जीवन में उचित सम्मान करना सीखना चाहिए। महर्षि विश्वामित्र, महर्षि बाल्मीकि और अगस्त्य जी जानते थे कि श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं उनका जन्म राक्षसों का वध करने के लिए हुआ है। लेकिन श्री राम इतने विनम्र थे कि उनको उचित सम्मान देने के लिए उनकी आज्ञा से कार्य करते थे ।
जब श्री राम ऋषि विश्वामित्र जी के साथ सीता माता के स्वयंवर में पहुंचते हैं। जब कोई भी राजा भगवान शिव के पिनाक धनुष को नहीं उठा पाया तो श्री राम ने अपने गुरु के आदेश के बाद ही धनुष उठाया था।
जब श्री राम को 14 वर्ष का वनवास मिला तो वह लक्ष्मण जी और माता सीता के साथ बाल्मीकि जी के आश्रम में पहुंचे तो श्री राम वाल्मीकि जी से विनती करते हैं कि वह स्थान बताएं जहां वह रह सके। बाल्मिकी जी मुस्कुरा कर कहते हैं, " ऐसा कौन सा स्थान है जहां आप नहीं हैं"।
लेकिन श्री राम का मान रखने के लिए बाल्मीकि जी कहते हैं कि आप चित्रकूट पर्वत पर निवास करें जहां आपको सब प्रकार की सुविधा होगी। वहां मंदाकिनी नदी है जिसे अत्रि ऋषि की पत्नी अनसूया जी अपने तपोबल से लाई थी ।
जब श्री राम को चित्रकूट में सब लोग उनके बारे में जान गए हैं तो श्री राम ने उस स्थान को त्यागने का निश्चय किया और श्री राम , सीता जी और लक्ष्मण जी ऋषि अगस्त्य के आश्रम में पहुंचे ।
श्री राम ने मुनि से कहा कि, " आप तो जानते हैं मेरा वन में आगमन राक्षसों के विनाश के लिए हुआ है ". आप मुझे बताएं कि मैं कैसे उनको मारूं ?
ऋषि कहने लगे आप तो सब लोकों के स्वामी हैं ।आप मुझसे प्रश्न कर रहे हैं ।आप सदा अपनी सेवकों को बढ़ाई देते हैं इसलिए आप मुझसे पूछ रहे हैं ।अगत्स्य मुनि कहने लगे कि, प्रभु पंचवटी नाम का पवित्र स्थान है आप वहां निवास करे।
श्री राम के जीवन से हम सीख सकते हैं कि हमें गुरु और अपने से अनुभवी लोगों का उचित सम्मान करना चाहिए और उनकी बातों का अनुकरण करना चाहिए।
पूर्वधारणा नहीं बनानी चाहिए
हमारे साथ कई बार होता है कि अगर किसी का कोई भाई बहन गलत संगत में हो तों हम पूर्वधारणा लगा लेते हैं कि यह भी ऐसा ही होगा।
जब रावण का भाई विभीषण रावण द्वारा धिक्कारे जाने के पश्चात श्री राम की शरण में आया तो सभी लोग कहने लगे कि यह जरूर हमारी जानकारी लेने आया है ।
श्री राम कहने लगे कि शरण में आए हुए को जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, मैं उसे भी नहीं त्यागता।
यदि रावण ने उसे भेद लेने भेजा है तो भी हमें उस से भय या हानि नहीं है । लेकिन अगर वह भयभीत होकर मेरी शरण में आया है तो, मैं उसे प्राणों की तरह रखूंगा। इस तरह श्री राम का विभिषण को अपनी सेना में रखना भविष्य में फायदेमंद साबित हुआ।
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