उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा महत्व और आरती
एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है लेकिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का विशेष महत्व है क्योंकि सतयुग में एकादशी भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी या फिर उत्पत्ति एकादशी भी कहा जाता है।
एकादशी तिथि भगवान विष्णु को अति प्रिय है क्योंकि इसी दिन एकादशी देवी भगवान के शरीर से प्रकट हुई थी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करना विशेष फलदाई होता है। इस दिन एकादशी व्रत करने से पूर्व जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। 2023 में उत्पन्ना एकादशी 8 शुक्रवार को मनाई जाएगी ।
उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत करने वाले को मोक्ष प्राप्त होता है ।शत्रुओं का विनाश होता है और विघ्न दूर होते हैं ।जो मनुष्य एकादशी महात्म को पढ़ता या फिर सुनता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण ने एकादशी का महत्व युधिष्ठिर को सुनाया था। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी व्रत करने वाले को आरोग्य, संतान प्राप्ति होती है और मोक्ष का अधिकारी होता है। उत्पन्ना एकादशी के दिन मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करने से धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
एक बार मुर नामक भयंकर दैत्य था ।उसने इंद्र ,वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग से भगा दिया ।सभी देवताओं ने जाकर भगवान शिव की स्तुति की। देवताओं ने अपनी विपति भगवान शिव को सुनाई।
भगवान शिव ने उन्हें भगवान विष्णु की शरण में जाने को कहा।सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में जाकर हाथ जोड़कर विनती करने लगे। हे उत्पत्ति ,पालन और संहार करने वाले प्रभु आप हमारी रक्षा करें।
दैत्य मुर ने हमें पराजित करके स्वर्ग से भगा दिया है। प्रभु आप हमारी रक्षा कीजिए। देवताओं की विनती सुनकर भगवान कहने लगे कि वह दैत्य कौन है और कहां से आया है ?
इंद्रदेव कहने लगे कि, "प्रभु यह दैत्य नाड़ीजंघ नाम के राक्षस का पुत्र है ,वह चंद्रावती नामक नगरी में रहता है उसमें समस्त देवताओं को स्वर्ग से निकालकर अपना अधिकार कर लिया है।"
प्रभु आप हमारी रक्षा कीजिए और उस दैत्य का संहार करे। हम आपकी शरण में आए हैं। भगवान विष्णु ने कहा कि," मैं शीघ्र दैत्य का संहार करूंगा।" भगवान विष्णु दैत्य का संहार करने के लिए चंद्रावती नगर में गए।
मुर दैत्य ने विष्णु जी पर तीखे बाण छोड़े । भगवान विष्णु के बाण नागों की तरह लहराते हुए दैत्य को मारने लगे । युद्ध में सभी दैत्य मारे गए लेकिन मुर दैत्य बच गया।
मुर दैत्य 10000 वर्षों तक भगवान से युद्ध करता रहा परंतु पराजित नहीं हुआ ।उस मुर दैत्य से लड़ते-लड़ते भगवान थक कर बद्रिका आश्रम चले गए। बद्रीनाथ में भगवान एक गुफा में विश्राम करने लगे। मुर दैत्य भगवान का पीछा करते हुए गुफा तक पहुंच गया। मुर दैत्य सोया हुआ जानकर जैसे ही भगवान को मारने के लिए उद्यत हुआ, उसी समय भगवान श्री हरि के शरीर से एक तेजस्वी कन्या अस्त्र-शस्त्र लिए हुए उत्पन्न हुई। उसने मुर दैत्य के साथ युद्ध किया और दैत्य का सिर काट डाला। किस प्रकार वह दैत्य पृथ्वी पर गिर कर मृत्यु को प्राप्त हुआ।
भगवान विष्णु की निंद्रा टूटी तो उन्होंने दैत्य के कटे हुए सिर और दो हाथ जोड़े खड़ी है कन्या को देखा। भगवान ने पूछा कि," इस दैत्य को किसने मारा है।" उस कन्या ने बताया कि जब आप निंद्रा में थे तो यह दैत्य आप को मारने के लिए उद्यत हुआ था। उसी समय मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इस दैत्य का वध किया है ।
भगवान बोले की तुमने दैत्य को मारकर देवताओं का महान कार्य किया है ।अब तुम इच्छा अनुसार वर मांगो।उस देवी ने वर मांगा कि, "जो मेरा व्रत करें उसके सब पाप नष्ट हो जाए और उसे मोक्ष को प्राप्त हो जाएं।"
रात्रि को भोजन करने वाले को आधा फल और जो एक बार भोजन करें उसको भी आधा फल प्राप्त हो । जो मनुष्य भक्ति पूर्वक व्रत को करें वह निश्चित ही आपके लोक को प्राप्त हो। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम्हारे और मेरे भक्त एक ही होंगे और वे जीवन में सुख को प्राप्त करेंगे । क्योंकि तुम एकादशी को उत्पन्न हुई हो इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा। तुम मुझको सब तिथियों में प्रिय हो इस कारण एकादशी व्रत का फल सभी तीर्थों से अधिक फलदाई होगा।
भारत के उत्तराखंड राज्य के बद्रीनाथ में एक गुफा में भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी ।उस गुफा को एकादशी गुफा या फिर उत्पन्ना गुफा कहा जाता है। बद्रीनाथ से उत्पन्ना गुफा की दूरी 1.5 km के लगभग है।
EKADASHI KI AARTI
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी माता॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी माता॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी माता॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी माता॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी माता॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी माता॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी माता॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी माता॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी माता॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी माता॥
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