वल्लभभाई पटेल जयंती पर पढ़ें उनकी प्रेरणादायक कहानी
आधुनिक भारत के शिल्पकार भारत की एकता और अखंडता के प्रतीक सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर उनको कोटि-कोटि नमन। सरदार वल्लभभाई पटेल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे उनके भारत को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने के लिए उनकी जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है।
सरदार वल्लभभाई की कहानी हिन्दी में
सरदार वल्लभभाई पटेल का पर जन्म 31 अक्टूबर 1875 में गुजरात के नाडियाड में हुआ था। इनके पिता का नाम झावेरी भाई और माता का नाम लाडबा पटेल था। सरदार वल्लभभाई ने 22 वर्ष की आयु में अपनी मैट्रिक परीक्षा पास की थी।
बचपन से ही वह क्रांतिकारी सोच वाले थे। स्कूल में जब उन्होंने अध्यापकों को किताबें बेचते हुए देखा तो उन्होंने उनके खिलाफ आवाज उठाई। अध्यापक छात्रों को उनसे ही किताबें खरीदने के लिए मजबूत करते और मनमाने दामों पर किताबें बेचते। लेकिन उनके द्वारा आवाज उठाने पर अध्यापकों के किताबें बेचने पर प्रतिबंध लग गया।
अपने काम के प्रति कर्तव्य निष्ठा
सरदार वल्लभभाई पटेल आजादी से पहले 46 दोषियों को सजा से बचाने के लिए अदालत में जिरह कर रहे थे तभी उनको किसी ने एक कागज़ का टुकड़ा हाथ में थमाया।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने उसे पढ़ा और कागज़ चुपचाप अपनी जेब में रख लिया और कोर्ट में अपनी बहस जारी रखी। बहस के पश्चात अंग्रेज़ न्यायाधीश ने सभी 46 व्यक्तियों को रिहा कर दिया।
फैसला सुनाने के पश्चात न्यायाधीश ने उनसे पूछा कि," उस समय उस कागज़ में आपको क्या जानकारी मिली थी?"
सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा - मेरी पत्नी जोकि हस्पताल में एडमिट थी उनका देहांत हो गया है। न्यायाधीश ने आश्चर्य से पूछा कि," ऐसी खबर सुनकर भी तुम यहां पर केस के लिए बहस कर रहे हो। तुम को तो अपने घर के लिए चले जाना चाहिए था।"
सरदार वल्लभभाई पटेल बोले कि," मैं अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात उसका जीवन तो वापस नहीं ला सकता। लेकिन 46 व्यक्तियों के जीवन के लिए और उनको सजा मिलने से रोकने के लिए अपनी तरफ से भरसक प्रयास तो कर ही सकता हूं।"
सरदार वल्लभभाई पटेल की यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें परिस्थिति और समय के अनुरूप कैसे निर्णय लेने चाहिए।
भारत को एकता के सूत्र में पिरोना
आजादी के पश्चात सभी रियासतों को भारत में मिलाने के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। भारत और पाकिस्तान की स्वतंत्रता के समय बहुत सी रियासतें ऐसी थी जिनको ब्रिटिश सरकार ने कहा था कि आप भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी को भी चुन सकते हो।
उस समय कुछ रियायतें अपना स्वतंत्र अस्तित्व चाहती थी, कुछ भारत के साथ थी तो कुछ पाकिस्तानी के साथ जुड़ना चाहते थे। ऐसे समय में इन सबको एक साथ लाना भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। लेकिन वल्लभभाई पटेल ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से और साम-दाम-दंड-भेद सभी अपना कर उन सबको अपने साथ कर लिया। जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ को भारत में शामिल होने के लिए उनके खिलाफ सैनिक बल का भी प्रयोग किया। उनके प्रयास से 560 रियासतें भारत में शामिल हो गई। उनका मानना था कि
शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं।
उनकी याद में "स्टैच्यू ऑफ यूनिटी "बनवाया गया है। यह विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा है। गुजरात के नर्मदा के सरदार सरोवर बांध पर उनकी 182 फीट ऊंची लौह प्रतिमा का निर्माण करवाया गया है।
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