पंचतंत्र की कहानियां
PANCHTANTRA STORIES IN HINDI/ Bedtime stories in Hindi panchtantra/ Panchtantar Moral stories For kids in hindi
पंचतंत्र की कहानियां भारतीय संस्कृति की महान देन है। पंचतंत्र की कहानियां बच्चों को जीवन जीने की कला , जीवन में मित्रता का महत्व, नैतिक मुल्य सीखाती है। सबसे बड़ी बात ज्यादातर कहानियों के बहुत से पात्र पशु-पक्षी है जो बोल सकते हैं। इसलिए यह कहानियां बच्चों को बहुत आकर्षित करती है। ऐसा माना जाता है कि बच्चे जो चीजें कहानियों के माध्यम से याद करते हैं वह उन्हें लम्बे समय तक स्मरण रहती है। पंचतंत्र की कहानियों की उपयोगिता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी तक 50 से भी अधिक भाषाओं में इनका अनुवाद हो चुका है। पंचतंत्र की कहानियां मूल रूप से संस्कृत भाषा में लिखी गई है जिसके रचयिता विष्णु शर्मा को माना जाता है।
प्राचीन काल में अमर शक्ति नाम का एक विद्वान राजा था। प्रजा उसके राज्य में बहुत ही सुखी थी और राज्य में धन वैभव की कोई कमी नहीं थी। लेकिन राजा के मन में एक सदैव चिंता बनी रहती थी। क्योंकि राजा के 3 पुत्र थे- बहु शक्ति, उग्र शक्ति और अनंत शक्ति जो कि बहुत ही उद्दंड और लापरवाह प्रवृत्ति के स्वामी थे।
गणित, व्याकरण ,राजनीतिक, धर्म कोई भी विषय में उनको कुछ भी समझ में नहीं आता था। राजा अपने बच्चों के अशिक्षित और उदंड होने के कारण सदैव व्यथित रहते थे कि उनकी प्रजा का उनके पश्चात क्या होगा ? क्योंकि एक मूर्ख राजा केवल अपनी राज्य का विनाश कर देता है, अपितु उसकी प्रजा पर भी दुखों का पहाड़ टूट सकता है।
एक दिन राजा ने अपने सभी मंत्रियों के साथ मंत्रणा की कि मेरे उदण्ड पुत्र मेरे पश्चात राज्य कैसे संभालेंगे? ऐसे पुत्रों के कारण माता-पिता को भी शर्मिंदा होना पड़ता है और अपनी मूर्खता से वह प्रजा को दुःखी करेंगे। क्या कोई मेरे पुत्र को समझदार बनाने का समाधान बता सकता है ?
मंत्री कहने लगे कि," महाराज हमारे राज्य में एक से एक विद्वान हैं उनको बुला कर इसका समाधान पूछ सकते हैं।" पूरे राज्य से विद्वानों को बुलाया गया। महाराज की समस्या को सुनकर विद्वानों का यही कहना था कि ,"शास्त्रों की विद्या को सिखने में बहुत समय लगता है ।पढ़ाई की एक आयु होती है जो राजकुमारों ने व्यर्थ कर दी है । इन उदण्ड राजकुमारों को पढ़ाने में पूरा जीवन व्यतीत हो जाएगा। विद्वानों की बात सुनकर राजा निराश हो गए। राजा सोचने लगे कि क्या इस समस्या का कोई समाधान नहीं हो सकता?
तभी सभा में से एक वयोवृद्ध आचार्य विष्णु शर्मा खड़े हुए और कहने लगे कि," महाराज निराश ना हो । इस सृष्टि पर ऐसा कोई नहीं कार्य नहीं जिसे मनुष्य चाहे तो वह कर ना सके। मैं छः मास में राजकुमारों को प्रत्येक क्षेत्र में निपुण बना दूंगा।"
इतना सुनकर आजा के चेहरे पर एक चमक आ गई। राजा ने खुश होकर कहा कि," आचार्य अगर आपने ऐसा कर दिया तो मैं आपको 100 गांव उपहार स्वरूप दगा।" आचार्य विष्णु शर्मा कहने लगे कि महाराज मुझे संपत्ति या फिर धन का कोई लोभ नहीं है। इस आयु में मैं जीवन के सब सुख भोग चुका हूं।
मैं राजकुमारों को शिक्षा इसलिए देना चाहता हूं क्योंकि यह मेरा कर्तव्य है। राजा अमर शक्ति ने आचार्य से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और पूर्ण विश्वास के साथ राजकुमारों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए आर्चाय विष्णु शर्मा के साथ भेज दिया ।विष्णु शर्मा ने कहानियों के माध्यम से बनाकर तीनों राजकुमारों को हर क्षेत्र में निपुण कर दिया। इन कहानियों को संकलन को ही पंचतंत्र का नाम दिया गया।
इस आर्टिकल में हम पंचतंत्र की कुछ कहानियां लिखने जा रहे हैं जिन्हें पढ़कर बच्चे उन से शिक्षा ले सके।
PANCHTANTRA KI KAHANI आजमाए हुए को आजमाना
MURKH GADHA AUR SHER KI KAHANI
पंचतंत्र की मुर्ख गधे और सिंह की कहानी : एक बार की बात है कि एक वन में करालकेसर नामक सिंह रहता था। एक बार वह सिंह घायल हो गया तो उसने धूसरक नामक गीदड़ से कोई ऐसा जीव ढूंढ कर लाने के लिए कहा जिसको वह घायल में भी मार कर खा सके।
गीदड़ शिकार ढूंढते हुए एक गांव में पहुंचा। वहां पर उसे लम्बकर्ण नाम का गधा दिखाई दिया। गीदड़ उसके साथ चिकनी चुपड़ी बातें करने लगा। क्या बात है तुम इतने कमज़ोर क्यों लग रहे हो? गधा कहने लगा कि," मेरा स्वामी मुझ से दिन भर बहुत काम करवाता है और बहुत कम खाने के लिए देता है।"
गीदड़ कहने लगा कि," तुम मेरे साथ वन में चलो। वहां पर बहुत मुलायम हरी घास है। तुम्हारा जीवन आराम से कट जाएगा और तुम को धोबी की दास्तां से भी छुटकारा मिल जाएगा।"
गधा कहने लगा कि," लेकिन जंगल में मुझे हिंसक जानवरों का भोजन बनने का डर बना रहेगा। गीदड़ कहने लगी कि, तुम किसी बात की चिंता मत करो। मैं जंगल के राजा सिंह का सेना पति हूं। किसी का तुम्हारी और देखने का साहस भी नहीं होगा।" गधा उस धूर्त गीदड़ की बातों में आ गया।
गीदड़ उसे लेकर जंगल में झाड़ियों के पास पहुंच गया। जहां पर वह सिंह छिपा बैठा था। गीदड़ गधे को लेकर वहां गया। सिंह ने जैसे ही गधे को झपटा मारा गधा उसे दुलत्ती मारकर वहां से भाग गया। गीदड़ बोला कि," महाराज आप तो एक गधे का शिकार नहीं कर पाये तो हाथी से युद्ध कैसे करेंगे?"
सिंह शर्मिंदा होते हुए बोला कि मैंने जब उस पर आक्रमण किया तब मैं पूरी तरह से तैयार नहीं था। इसलिए वह मुझे दुलत्ती मार कर भाग निकला।
धूसरक बोला कि मैं उसे पुनः आपके पास लाता हूं। लेकिन इस बार आक्रमण के लिए तैयार रहना। सिंह बोला कि तुम ऐसा करो कि किसी अन्य शिकार को ढूंढ कर ले आओ। मुझे लगता है कि वह गधा दोबारा अपनी जान गंवाने क्यों आएगा?
धूसरक कहने लगा कि, "महाराज मुर्ख विपत्ति में पड़कर भी बार बार वही कार्य करता है। इसलिए आप फिक्र मत करें। मैं उसे लेकर आता है इस बार आप तुरंत शिकार कर लेना।"
धूसरक गधे के समीप गया तो गधा कहने लगा कि," आज मैं अपने प्राण बचा बड़ी मुश्किल से आया हूं। किसी हिंसक जानवर ने मुझ पर झपटा मारा था।"
गीदड़ बोला कि वह कोई हिंसक जानवर नहीं अपितु एक गर्दभी थी। वह तो तुम्हारा आलिंगन करना चाहती थी लेकिन तुम उसको दुलत्ती मार कर आ गए। वह अब भी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है।
गधा कहने लगा कि," वह तुम गर्दभी के जैसी तो प्रतीत नहीं हुई।" धूसरक हंसते हुए कहने लगा कि उसने जंगल की अमृत समान घास को खाई है और स्वच्छ वायु में पली बढ़ी है ।इसलिए वह शारीरिक रूप से बलिष्ठ और हष्ट-पुष्ट हो गई है।
कुछ ही दिनों में तुम भी जंगल की घास खाकर और स्वच्छ वातावरण में ऐसे ही ताकतवर हो जाओगे। लम्बकर्ण उसकी बातों में आ गया और उसके साथ चला गया।
इस बार शेर तैयार बैठा था और उसने जाते ही अपना शिकार बना लिया। धूसरक कहने लगा कि,"महाराज आपको नहा धोकर भोजन करना चाहिए।" जब सिंह स्नान के लिए गया तो लोमड़ी गधे का दिमाग निकाल कर खा गई। शेर वापस आया और उसने पूछा कि इसका दिमाग कहां है? धूसरक ने जवाब दिया कि महाराज अगर इसके पास दिमाग होता तो यह एक बार हमले से बाल बाल बचने पर भी दोबारा प्राण गंवाने आता।सिंह उसकी जवाब से संतुष्ट हो गया।
शिक्षा - कभी भी किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए और आजमाएं हुए को फिर से नहीं आजमाना चाहिए अर्थात जिसके कारण हम एक बार विपत्ति से बच निकले पुनः हमें स्वयं को उन्हीं परिस्थितियों में डालना हमारे विनाश का कारण बनता है।
PANCHTANTRA KI KAHANI मुसीबत में भी धैर्य नहीं खोना चाहिए
Magarmach Aur Bandar ki Kahani
पंचतंत्र की बंदर और मगरमच्छ की कहानी : एक बार नदी किनारे एक जामुन के पेड़ पर एक बंदर रहता था। एक दिन नदी से निकलकर एक मगरमच्छ पेड़ के नीचे आया। बंदर ने अतिथि समझकर उसे मीठे जामुन खाने को दिए। उस दिन से बंदर और मगरमच्छ में मित्रता हो गई।
अब प्रतिदिन बंदर मगरमच्छ को जामुन खाने को देता। बंदर उसे बहुत से जामुन उपहार स्वरूप भी देता है जिसे वह मगरमच्छ अपनी पत्नी के खाने के लिए ले जाता। एक दिन मगरमच्छ की पत्नी पूछने लगी कि," आप यह अमृत तुल्य मीठे जामुन कहां से लाते हैं?"
मगरमच्छ ने उसे बताया कि मेरा मित्र बंदर जामुन के पेड़ पर रहता है। वह ही मुझे प्रतिदिन जामुन देता है। यह सुनकर मगरमच्छ की पत्नी जिद्द करने लगी कि," मैं उस बंदर का हृदय खाना चाहती हूं। जो बंदर प्रतिदिन इतने अमृत्तुल्य मीठे फल खाता है उसका हृदय कितना मीठा होगा ?
मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को बहुत समझाने की बहुत कोशिश की। वह बोला कि बंदर मेरे भाई तुल्य है। ऐसा करना उसके साथ विश्वासघात होगा। लेकिन मगरमच्छ की पत्नी को समझाने की कोशिश नाकामयाब रही ।
अगले दिन जब मगरमच्छ बंदर के पास पहुंचा तो मैं कुछ उदास लग रहा था। बंदर ने उसकी उदासी का कारण पूछ। मगरमच्छ कहने लगा कि," तुम जो मीठे जामुन मुझे प्रतिदिन देते हो वह मेरी पत्नी हर रोज़ खाती है। मेरी पत्नी तुम से मिलकर तुम्हरा धन्यवाद करना चाहती है।"
बंदर बोला कि," तुम भाभी को यहां ले आओ। मैं उनका अच्छे से आदर सत्कार कहूंगा। तुम्हारा घर दूर पानी में है और मैं पानी में कैसे जा सकता हूं?" मगरमच्छ कहने लगा कि," तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ मैं तुम्हें वहां ले चलूंगा।"
बंदर मगरमच्छ की बातों पर विश्वास करके उसकी पीठ पर बैठ गया। जब दोनों नदी के बीच पहुंच गए तो मगरमच्छ ने अपनी स्त्री की इच्छा बंदर को बता दी। उसने कहा कि मेरी पत्नी तुम्हारा हृदय खाना चाहती है।
इतना सुनते बंदर के पसीने छूट गए और सोचने लगा कि उसने अंजाने में इस धूर्त मगरमच्छ को अपना मित्र बना लिया उसी का फल मुझे मिल रहा है।
लेकिन बंदर ने सोचा कि विपत्ति में भी उसे अपने धैर्य को नहीं छोड़ना चाहिए और बुद्धि से काम लेना चाहिए। उसने मगरमच्छ को डांटते हुए कहा कि," तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया की भाभी मेरा हृदय खाना चाहती है। पहले बताते तो मैं अपना हृदय साथ ले आता। अब तुम को लज्जित होना पड़ेगा और तुम भाभी की इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते।"
मगरमच्छ विस्मित होकर बंदर से पूछता है कि मित्र यह तुम क्या कह रहे हो? यह कैसे हो सकता है ? क्या तुम्हारा हृदय तुम्हारे शरीर में नहीं है?
बंदर कहने लगा कि," हम बंदर अपना हृदय निकालकर पेड़ पर रख देते हैं ताकि हम लंबे समय तक जीवित रह सके। मगरमच्छ बंदर की बातों में आ गया।
मगरमच्छ सोचने लगा कि," अगर मैं बिना हृदय के ही बंदर को वहां ले गया तो मेरा इसे वहां ले जाने का प्रयोजन भी पूरा नहीं होगा। इसलिए मगरमच्छ उसे लेकर वापस लौट गया।"
नदी के तट पर पहुंचते ही बंदर कूदकर वृक्ष पर चढ़ गया। मगरमच्छ कहने लगा कि," मित्र जल्दी करो हमें देर हो रही है।" बंदर ने उसे डांटते हुए कहा कि तुम्हें लज्जा नहीं आती। तुमने अपनी मित्रता को कलंकित किया है। तुम ने मेरे साथ विश्वासघात किया है। आज से तेरी मेरी मित्रता खत्म।
बिगड़ती परिस्थितियों को सम्भालने के लिए मगरमच्छ बोला कि मैं तो मजाक कर रहा था। भला मैं तुमसे विश्वासघात कैसे कर सकता हूं? मेरी पत्नी तो तुम्हें अपने भाई मानती हैं। वह तुम्हारा इंतजार कर रही होगी।
बंदर ने फटकारते हुए कहा कि," अरे दुष्ट तुझे अपने किए पर अभी भी लज्जा नहीं आ रही। गलती मेरी ही है कि मैं कैसे तुम्हें पहचान नहीं पाया? बंदर की फटकार सुनकर मगरमच्छ अपना सा मुंह लेकर वापस लौट गया।
Moral - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें मुसीबत में भी धैर्य नहीं खोना चाहिए और अपने मित्रता सोच समझ कर करनी चाहिए।
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