एक बार बादशाह अकबर के राज्य में बहुत ठंड पड़ी। बादशाह अकबर ने घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति सारी रात तालाब के पानी में खड़ा रहेगा, उसे ईनाम में सौ सोने की मोहरें दी जाएगी।
एक गरीब धोबी था। उसे अपनी बेटी के विवाह की बहुत चिंता थी। इस लिए वह इस प्रतियोगिता के लिए मान गया। वह पूरी रात तालाब के ठण्डे पानी में खड़ा रहा। सैनिक उस पर नज़र रख रहे थे, कि वह कोई धोखा ना करे।
सैनिक सुबह उसे अकबर के पास लेकर गए। अकबर ने पूछा कि," तुम्हारे पास पानी में खड़े रहने की हिम्मत कहा से आई?" धोबी ने जबाब दिया कि," दूर महल की खिड़की पर एक दिया जल रहा था, मैंने मन में सोचा की मुझे इस से गर्मी मिल रही है।"
यह सुनकर अकबर ने कहा कि," तुम ने धोखा किया है, तुम्हे तो महल के दिये से गर्मी मिल रही थी। इसलिए तुम ईनाम के हकदार नहीं हो।" धोबी खाली हाथ वापस लौट आया। उसे किसी ने सलाह दी कि अब तुम्हारी मदद केवल बीरबल ही कर सकता है।
उसने सारी बात बीरबल को बताई। बीरबल ने कहा कि," तुम बेफिक्र हो कर जाओ ईनाम तुम्हें मिल जाएगा।" बीरबल उस दिन दरबार नहीं पहुंचे। अकबर ने सैनिकों से कहा कि,"पता लगाकर आओ कि बीरबल आज दरबार में क्यों नही आया?" सैनिक अकबर का आदेश सुनकर बीरबल के पास पहुंचे।
सैनिकों ने वापिस आकर बताया कि महाराज बीरबल ने कहा है कि,"जब मेरी खिचडी़ बन जाएगी तो मैं दरबार आ जाऊंगा।" लेकिन महाराज जिस तरह बीरबल खिचडी़ बना रहे हैं पता नहीं महाराज वह कभी बन भी पाएंगी या नहीं।
सैनिकों की बात सुनकर महाराज अकबर स्वयं उस स्थान पर जाने का निश्चय करते है, जहां बीरबल खिचड़ी पका रहा था। महाराज अकबर वहां पहुंच कर देखते है कि बीरबल ने दो डंडों पर खिचडी़ की हांडी टांगी हुई है और नीचे कुछ दूरी पर लकड़ी जलाई हुई है।
यह देखकर महाराज अकबर ,बीरबल पर हंसने लगे। अकबर,बीरबल से कहने लगे कि," बीरबल इस तरह तुम्हारी खिचड़ी कभी नहीं बनेगी।" इतनी उपर टांगी हुई हांडी तक आग की गर्मी कैसे पहुँचेगी?"
बीरबल कहने लगे कि, "जहांपनाह धैर्य रखें, मुझे विश्वास है कि खिचड़ी जरूर बनेंगी।"
अकबर झल्लाते हुए बोला कि, क्या तुम मुर्ख हो? तुम्हें समझ नहीं आता कि इतनी दूरी से आग की गर्मी हांडी तक कैसे पहुंच पाएंगी ?"
बीरबल ने झट से जवाब दिया,"अगर दूर महल में जला हुई दिया एक धोबी को गर्मी दे सकता है, हांडी के नीचे जलाई हुई आग टांगी हुई खिचडी़ की हांडी को भी गर्मी क्यों नहीं दे सकती है?"
यह सुनकर महाराज अकबर को समझ गए कि बीरबल ने यह सब कुछ क्यों किया ? महाराज अकबर ने धोबी को बुलाकर उस की 100 मोहरों का ईनाम दे दिया। इस तरह बीरबल ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए एक गरीब को उसका हक दिला दिया।
शिक्षा - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि अगर कोई विश्वास के साथ आपसे मदद माँगने आता है तो उसकी हर संभव मदद करनी चाहिए और हमें किसी के द्वारा की गई परिश्रम की कद्र करनी चाहिए और बिना तथ्य जाने किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए।
अकबर बीरबल की कहानियां
अकबर बीरबल की हर एक कहानी हमें कोई ना कोई सीख देती है। जो हमें जीवन जीने का नजरिया सिखाती है। बादशाह अकबर हर बार बीरबल को कोई ना कोई चुनौती देते हैं और बीरबल अपनी बुद्धिमत्ता से उस असंभव से दिखने वाले काम का भी आसानी से समाधान निकाल देते हैं। ऐसी ही प्रेरणादायक और मजेदार कहानियां
AKBAR BIRBAL STORY:बीरबल की खिचड़ी
एक बार बादशाह अकबर के राज्य में बहुत ठंड पड़ी। बादशाह अकबर ने घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति सारी रात तालाब के पानी में खड़ा रहेगा, उसे ईनाम में सौ सोने की मोहरें दी जाएगी।
एक गरीब धोबी था। उसे अपनी बेटी के विवाह की बहुत चिंता थी। इस लिए वह इस प्रतियोगिता के लिए मान गया। वह पूरी रात तालाब के ठण्डे पानी में खड़ा रहा। सैनिक उस पर नज़र रख रहे थे, कि वह कोई धोखा ना करे।
सैनिक सुबह उसे अकबर के पास लेकर गए। अकबर ने पूछा कि," तुम्हारे पास पानी में खड़े रहने की हिम्मत कहा से आई?" धोबी ने जबाब दिया कि," दूर महल की खिड़की पर एक दिया जल रहा था, मैंने मन में सोचा की मुझे इस से गर्मी मिल रही है।"
यह सुनकर अकबर ने कहा कि," तुम ने धोखा किया है, तुम्हे तो महल के दिये से गर्मी मिल रही थी। इसलिए तुम ईनाम के हकदार नहीं हो।" धोबी खाली हाथ वापस लौट आया। उसे किसी ने सलाह दी कि अब तुम्हारी मदद केवल बीरबल ही कर सकता है।
उसने सारी बात बीरबल को बताई। बीरबल ने कहा कि," तुम बेफिक्र हो कर जाओ ईनाम तुम्हें मिल जाएगा।" बीरबल उस दिन दरबार नहीं पहुंचे। अकबर ने सैनिकों से कहा कि,"पता लगाकर आओ कि बीरबल आज दरबार में क्यों नही आया?" सैनिक अकबर का आदेश सुनकर बीरबल के पास पहुंचे।
सैनिकों ने वापिस आकर बताया कि महाराज बीरबल ने कहा है कि,"जब मेरी खिचडी़ बन जाएगी तो मैं दरबार आ जाऊंगा।" लेकिन महाराज जिस तरह बीरबल खिचडी़ बना रहे हैं पता नहीं महाराज वह कभी बन भी पाएंगी या नहीं।
सैनिकों की बात सुनकर महाराज अकबर स्वयं उस स्थान पर जाने का निश्चय करते है, जहां बीरबल खिचड़ी पका रहा था। महाराज अकबर वहां पहुंच कर देखते है कि बीरबल ने दो डंडों पर खिचडी़ की हांडी टांगी हुई है और नीचे कुछ दूरी पर लकड़ी जलाई हुई है।
यह देखकर महाराज अकबर ,बीरबल पर हंसने लगे। अकबर,बीरबल से कहने लगे कि," बीरबल इस तरह तुम्हारी खिचड़ी कभी नहीं बनेगी।" इतनी उपर टांगी हुई हांडी तक आग की गर्मी कैसे पहुँचेगी?"
बीरबल कहने लगे कि, "जहांपनाह धैर्य रखें, मुझे विश्वास है कि खिचड़ी जरूर बनेंगी।"
अकबर झल्लाते हुए बोला कि, क्या तुम मुर्ख हो? तुम्हें समझ नहीं आता कि इतनी दूरी से आग की गर्मी हांडी तक कैसे पहुंच पाएंगी ?"
बीरबल ने झट से जवाब दिया,"अगर दूर महल में जला हुई दिया एक धोबी को गर्मी दे सकता है, हांडी के नीचे जलाई हुई आग टांगी हुई खिचडी़ की हांडी को भी गर्मी क्यों नहीं दे सकती है?"
यह सुनकर महाराज अकबर को समझ गए कि बीरबल ने यह सब कुछ क्यों किया ? महाराज अकबर ने धोबी को बुलाकर उस की 100 मोहरों का ईनाम दे दिया। इस तरह बीरबल ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए एक गरीब को उसका हक दिला दिया।
शिक्षा - इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि अगर कोई विश्वास के साथ आपसे मदद माँगने आता है तो उसकी हर संभव मदद करनी चाहिए और हमें किसी के द्वारा की गई परिश्रम की कद्र करनी चाहिए और बिना तथ्य जाने किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए।
AKBAR BIRBAL STORY:बीरबल की तुलसी, गाय और गंगा माता
एक बार अकबर और बीरबल टहलने जा रहे थे। रास्ते में बीरबल को तुलसी का पौधा दिखा तो उन्होंने उसे प्रणाम किया। अकबर ने पूछा कि," तुम ने इस पौधे को प्रणाम क्यों किया?" बीरबल कहने लगे कि,यह तुलसी का पौधा है,हम इसे माता समान मानते हैं।"
अकबर यह सुनकर चिढ़ गया और आगे बढ़कर तुलसी के पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया। अकबर कहने लगा कि," तुम हिन्दू कितनी चीजों को अपनी मां मानते हो?" बीरबल उस उसे शांत रहे।
बीरबल के दिमाग में एक युक्ति आई । कुछ दूरी पर एक बिच्छुपत्ती(खुजली वाला) पौधा था। बीरबल ने आगे बढ़कर उसे दंडवत प्रणाम किया और कहने लगे," प्रणाम पिता जी।"
अकबर ने क्रोध में उस पौधे को भी उखाड़ने के लिए हाथ में पकड़ा तो उसे भयंकर खुजली होने लगी।
अकबर ने बीरबल से पूछा," इस पौधे को हाथ में पकड़ते ही मुझे इतनी बुरी तरह से खुजली क्यों हो रही है?"
बीरबल मंद-मंद मुस्काते हुए बोले कि," महाराज आपने मेरी मां को उखाड़ कर फेंक दिया, इसलिए मेरे पिता आप पर क्रोधित हो गए।"
अकबर बीरबल से कहने लगा कि," मुझे इस खुजली से मुक्ति का उपाय बताओं।"
बीरबल ने कहा कि," महाराज जिसके पास उपाय है उसको भी हम माता ही मानते हैं। आपको विनम्रता से उनके सामने विनती करनी होगी।"
अकबर खुजली से छुटकारा पाना चाहता था इसलिए बेमन से मान गया। कुछ दूरी पर एक गाय मिली बीरबल कहने लगे कि," महाराज गाय माता से विनती करें कि, मुझे खुजली से मुक्ति की दवा दें।"
अकबर ने बीरबल के कहने पर वैसे ही किया। गाय ने गोबर किया जिसे बीरबल ने अकबर के शरीर पर लगा दिया। उससे अकबर को खुजली से मुक्ति मिल गई। अकबर कहने लगा कि," बीरबल इस गोबर के लेप के साथ में राजमहल कैसे जाऊं?"
बीरबल कहने लगे कि," महाराज हमारी एक और माता है। सामने गंगा नदी बह रही है। हम हिन्दू उसे भी माता मानते हैं। आप बस जय गंगा मइया बोले और नदी में स्नान कर लें।
अकबर ने जा कर नदी में स्नान किया। बीरबल कहने लगे कि," महाराज! यह तुलसी,गाय और गंगा को हम हिन्दू माता का दर्जा देते हैं। हम हिन्दू इन से कोई ना कोई संबंध बना लेते है ताकि इनकी रक्षा और सुरक्षा हो सके। यह सब तो बिना भेदभाव सब का कल्याण करती है और हमें अच्छा स्वास्थ्य और सुख प्रदान करती है। बीरबल के तर्क के आगे अकबर कुछ नहीं बोल सका।
Moral - इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें किसी की भावनाओं का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। पुराने समय में हमारे बुजुर्ग जो चीजें प्रकृति रूप से उन्हें फायदा पहुंचती थी वह उन्हें देव तुल्य मानते थे। ताकि उनकी रक्षा और सुरक्षा हो सके।
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