पुत्रदा एकादशी व्रत कथा महत्व और एकादशी आरती लिरिक्स
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत कहते हैं।
पुत्रदा एकादशी व्रत साल में दो बार आता है। एक बार पौष मास में और दूसरी बार श्रावण मास में एकादशी व्रत आता है। जैसे की इसके नाम से ज्ञात होता है यह व्रत संतान से संबंधित है और यह व्रत करने से निसंतान दंपत्ति को संतान प्राप्ति होती है और संतान को संकटों से दूर रखने और उनकी सुख समृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहा जाता है। पौष पुत्रदा एकादशी के बारे में मान्यता है कि इस एकादशी व्रत को करने वाले पाप मुक्त होते और उनके पितृ भी प्रसन्न होते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व /SIGNIFICANCE OF PAUSH PUTRADA EKADASHI
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के करने वाले को यशस्वी और पितृ भक्त पुत्र की प्राप्ति होती हैं। पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से निसंतान को भी यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है अच्छी संतान की प्राप्ति और उसकी रक्षा और उन्नति के लिए सभी को यह व्रत करना चाहिए। इस एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनने से भी मनुष्य सुंदर संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा /PAUSH MAAS PUTRADA EKADASHI VRAT KATHA
प्राचीन काल में भद्रावती नगर में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। संतान हीन होने के कारण दोनों चिंतित रहते थे। उनके पित्र भी सोचते थे कि राजा के पश्चात उन्हें पिंड कौन देगा ?
राजा को पुत्र ना होने के कारण उसको सारी धनसंपदा अर्थहीन लगती थी। राजा के मन में अक्सर यह विचार आता कि मेरे मरने के पश्चात मेरा पिंडदान कौन करेगा ? देवताओं का ऋण कैसे उतरेगा?
एक दिन राजा वन में गया तो वहां मृग ,सूअर ,सिंह आदि को अपने बच्चों के साथ भ्रमण करते देखकर राजा को पुत्र हीन होने का दु:ख और पीड़ा देने लगा।
इसी सोच में राजा पानी की तलाश में एक सरोवर पर पहुँचा। वहाँ उसे एक मुनियों के आश्रम दिखे। राजा ने घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम किया। मुनि कहने लगे कि हम विश्व देव हैं और इस सरोवर पर स्नान करने आए हैं। राजा ने मुनियों से अपने पुत्र हीन होने की व्यथा कहीं और मुनियों से पुत्र प्राप्ति का वर माँगा।
मुनियों के कहा कि," आज पुत्रदा एकादशी है और पुत्र प्राप्ति की इच्छा करने वाले को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।" राजन आप निश्चय से पुत्रदा एकादशी व्रत करें। भगवान की कृपा से आप को पुत्र रतन अवश्य प्राप्त होगा।मुनियों के कहे अनुसार उसने एकादशी का व्रत कर द्वादशी के दिन व्रत का पारण किया और मुनियों का प्रणाम कर राजा के अपने महल की ओर चल दिया।
व्रत के प्रभाव से उसी मास रानी गर्भवती हुई और नौ मास के पश्चात एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ। वह पुत्र बड़ा होकर वीर, यशस्वी और चक्रवर्ती सम्राट बना।
व्रत विधि
एकादशी व्रत करने वाले व्रती को दसवीं वाले दिन सूर्यास्त के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए।
भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है।
इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है।
भगवान विष्णु और श्री कृष्ण के मंत्रों का जप करना चाहिए।
व्रती को फलाहार ही करना चाहिए।
रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है।
द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।
एकादशी माता की आरती EKADASHI AARTI LYRICS
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी माता॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी माता॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी माता॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी माता॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी माता॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी माता॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी माता॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी माता॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी माता॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी माता॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी माता
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